आज 'शिवरात्री' है। एक ऐसे भगवान की पूजा आराधना का दिन जिसे आदि शक्ति माना जाता है, जिसकी तीन आँखें हैं और जब वह मध्य कपाल में स्थित अपनी तीसरी आँख खोलता है तो दुनिया में प्रलय आ जाता है। इस भगवान का रूप बड़ा विचित्र है। शरीर पर मसान की भस्म, गले में सर्पों का हार, कंठ में विष, जटा में गंगा नदी तथा माथे में प्रलयंकर ज्वाला है। बैल को उन्होंने अपना वाहन बना रखा है।
भारत में तैतीस करोड़ देवी देवता हैं, मगर यह देव अनोखा है। सभी देवताओं का मस्तक पूजा जाता है, चरण पूजे जाते हैं, परन्तु इस देवता का 'लिंग' पूजा जाता है। बच्चे—बूढ़े—नौजवान, स्त्री—पुरुष, सभी बिना किसी शर्म लिहाज़ के , योनी एवं लिंग की एक अत्यंत गुप्त गतिविधि को याद दिलाते इस मूर्तिशिल्प को पूरी श्रद्धा से पूजते हैं और उपवास भी रखते हैं।
यह भगवान जिसकी बारात में भूत—प्रेत—पिशाचों जैसी काल्पनिक शक्तियाँ शामिल होती हैं, एक ऐसा शक्तिशाली देवता जो अपनी अर्धांगिनी के साथ एक हज़ार वर्षों तक संभोग करता है और जिसके वीर्य स्खलन से हिमालय पर्वत का निर्माण हो जाता है। एक ऐसा भगवान जो चढ़ावे में भाँग—धतूरा पसंद करता है और विष पीकर नीलकण्ठ कहलाता है। ओफ्फो— और भी न जाने क्या—क्या विचित्र बातें इस भगवान के बारे में प्रचलित हैं जिन्हें सुन—जानकर भी हमारे देश के लोग पूरी श्रद्धा से इस तथाकथित शक्ति की उपासना में लगे रहते है।
हमारी पुरा कथाओं में इस तरह के बहुत से अदृभुत चरित्र और उनसे संबधित अदृभुत कहानियाँ है जिन्हें पढ़कर हमारे पुरखों की कल्पना शक्ति पर आश्चर्य होता है। सारी दुनिया ही में एक समय विशेष में ऐसी फेंटेसियाँ लिखी गईं जिनमें वैज्ञानिक तथ्यों से परे कल्पनातीत पात्रों, घटनाओं के साथ रोचक कथाओं का तानाबाना बुना गया है। सभी देशों में लोग सामंती युग की इन कथाओं को सुन—सुनकर ही बड़े हुए हैं जो वैज्ञानिक चिंतन के अभाव में बेसिर पैर की मगर रोचक हैं। परन्तु, कथा—कहानियों के पात्रों को जिस तरह से हमारे देश में देवत्व प्रदान किया गया है, अतीत के कल्पना संसार को ईश्वर की माया के रूप में अपना अंधविश्वास बनाया गया है, वैसा दुनिया के दूसरे किसी देश में नहीं देखा जाता। अंधविश्वास किसी न किसी रूप में हर देश में मौजूद है मगर भारत में जिस तरह से विज्ञान को ताक पर रखकर अंधविश्वासों को पारायण, जप—तप, व्रत—त्योहारों के रूप में किया जाता है यह बेहद दयनीय और क्षोभनीय है।
देश की आज़ादी के समय गाँधी के तथाकथित 'सत्य' का ध्यान इस तरफ बिल्कुल नहीं गया। नेहरू से लेकर देश की प्रत्येक सरकार ने विज्ञान के प्रचार-प्रसार, शिक्षा और भारतीय जनमानस के बौद्धिक विकास में किस भयानक स्तर की लापरवाही बरती है, वह इन सब कर्मकांडों में जनमानस की, दिमाग ताक पर रखकर की जा रही गंभीरतापूर्ण भागीदारी से पता चलता है। आम जनसाधारण ही नहीं पढ़े लिखे शिक्षित दीक्षित लोग भी जिस तरह से आँख मूँदकर 'शिवलिंग' को भगवान मानकर उसकी आराधना में लीन दिखाई देते हैं, वह सब देखकर इस देश की हालत पर बहुत तरस आता है।
यह भारतीय संस्कृति है! अंधविश्वासों का पारायण भारतीय संस्कृति है ! वे तथाकथित शक्तियाँ, जिन्होंने तथाकथित रूप से विश्व रचा, जो वस्तुगत रूप से अस्तित्व में ही नहीं हैं, उनकी पूजा-उपासना भारतीय संस्कृति है! जो लिंग 'मूत्रोत्तसर्जन' अथवा 'कामवासना' एवं 'संतानोत्पत्ति' के अलावा किसी काम का नही, उसकी आराधना, पूजन, नमन भारतीय संस्कृति है?
चिंता का विषय है !! कब भारतीय जनमानस सही वैज्ञानिक चिंतन दृष्टि सम्पन्न होगा !! कब वह सृष्टी में अपने अस्तित्व के सही कारण जान पाएगा!! कब वह इस सृष्टि से काल्पनिक शक्तियों को पदच्यूत कर अपनी वास्तविक शक्ति से संवार पाएगा ?
सही कह रहे हैं बंधू.
ReplyDeleteमुझे यह सब देखकर उतना ही गन्दा और अश्लील लगता है जितनी की मकबूल हुसैन की घटिया और अश्लील पेंटिंग देखकर लगता है.
आपको मकबूल हुसैन की पेंटिंग देखकर कैसा लगता है? क्या आपके मानक उसके लिए यही "लिंग' 'कामवासना' हैं या उन्हें देखकर आपको कोई अलग "कला संस्कृति" याद आजाती है.
जबाब अवश्य दीजिये, प्रतीक्षा कर रहा हूँ.
मकबूल हुसैन चित्रकार नही बल्कि चूतिया हैं
Deleteलिंग तो बंधु लिंग है चाहे शिवलिंग हो या हुसैन की पेटिंग का लिंग। वैसे शिवलिंग चूँकि जनमानस में ईश्वर की तरह रचा—बसा है इसलिए बुरा नहीं लगता लेकिन हुसैन या कोई और भी कला में लिंग के दर्शन कराता है तो वह अश्लीलता के दायरे में ही आता है कला के नहीं।
ReplyDeleteदृष्टिकोण
पहले तो लिंग का अर्थ जानिए ? लिंग का मतलब प्रतिक भी होता है । दूसरा जिस लिंग को आप इतना गलत कह रहे हैं तो अपने लिंग को कटा कर देख लीजिए । मूर्खता की हद है 👍
Deleteदृष्टिकोण से पूरी तरह सहमति, मकबूल हुसैन की पेंटिंग अश्लीलता के ही दायरे में आती हैं.
ReplyDeleteSir,mai apni ye samashya badi ummed ke saath apse share kar raha hun .kripya iska jawaab avashya dein.
ReplyDeleteapke lekh padh kar mai poorntya naastik ban gaya.
lekin mere jaisa manovigyan me ruchi rakhne wale ke saath bhi aisa ho sakta hai mai soch nahi sakta tha.aastik se naastik banna shayad apko bachcho ka khel lagta hoga lekin sirf itna kahna chahunga pagal hone jaisi isthti ho gayee thi.dil jor se dhadkne laga ,haath pair kaampne lage,baar baar dimaag ko doosri taraf lagane ki koshish karta lekin dimaag ghoomne laga tha.bas paagal hi nahi hua tha.is ghatna ke baad sab kuch rookha rookha lagta tha.yadi mere akele ke saath hota to shayad mai khud ko kamjor samajh kar chup rahta.bilkul aisi ishthti mujhse do din pahle astik se nastik banne wale ke huyee thi.maine use kamjor dil ka samjh kar doctoro jaisi salaah bhi de daali ki ardhchetan mann me jame vishwaas wala karan hai.sakratmak socho theek ho jaoge.aur mujhe nahi lagta tha mere jaise zindadil insaan ke kabhi ye samashya aa sakti hai.karan sirf itna tha lagataar aastik aur naastik ke beech 7 din bahas chalti rahi.sawaalo aur jawaabo me ulajh gaye aur hum apke lekhon ke sahaare jitte bhi chale gaye.kyunki sirf hum do logo ne apki baate dimaag ke saath saath dil se apnane ki sochi thi.lekin ab kuch theek hai.lekin dimaag me nakraatmak vichaar bhar gaye hain.atmvishwaas kamjor pad gaya hai.dimaag sirf is aastikta aur naastikta ke beech fans kar rah gaya hai.baar baar alag sochne ki koshish karta hun lekin har jagah bhagwaan ke charche sunne ko milte hai fir dimaag wahin chala jata hai.mai khud nahi samajh paa raha hun wo sab kyun aur kaise hua tha.sirf bahas karne ke karan???
kirpya mujhe kuch achchi salaah dein .main apka bahut abhaari rahunga.
Please sir please.
hum aaj bhi naastik hai.lekin kya ye samashya age bhi aa sakti hai.aur aage naa aye iske liye kya karein.
ummed karta hun aap meri madad karenge.
Dhanyawaad.
यदि किसी का विश्वास दूसरे को कुछ नहीं कहता तो इसमें कोई बुराई नहीं होनी चाहिये !
ReplyDeleteमनीष जी, आपके कमेंट को पढ़कर एकबारगी तो मैं इतना डर गया कि सोचा आस्तिक हो जाउं। फिर सोचा कि क्या डर किसी बात को मानने का उचित कारण हो सकता है !?
ReplyDeleteआपने दिल धड़कने, हाथ-पैर कांपने और पागल होने की स्थिति तक पहुंच जाने की बात की है। सोचता हूं कि कलको कोई मेरे सीने पर चाकू रख दे तो हो सकता है कि मेरा पूरा शरीर ही कांपने लगे। मगर यह तो मुझे ही अपनी समझ से तय करना होगा कि मनोरोगी कौन है, मैं या छुरेवाला ?
और मैं समझता हूं कि वे लोग तो अपने प्रति बहुत ही जागरुक, ईमानदार और साहसी लोग होते हैं जो अपने मनोरोगों को ठीक से जानते हैं और उन्हें सार्वजनिक रुप से स्वीकार करने का साहस भी रखते हैं। वरना तो कितने ही लोग हैं जो ख़ुद मनोरोगों से ग्रस्त होते हैं मगर ज़िंदगी-भर दूसरों को पागल समझकर सताया करते हैं। अगर आपका मनोविज्ञान से लगाव है और विशेषकर व्यवहारिक रुप से भी लोगों को इस दृष्टि से ऑबज़र्व करते रहते हैं तो जानते होंगे कि इस दुनिया में मनोविकार रहित व्यक्ति ढूंढना मुश्किल है।
यह कोई ‘मनोचिकित्सक की सलाह’ जैसा कॉलम तो है नहीं ना ही मैं कोई मनोचिकित्सा-विशेषज्ञ हूं, सो इतना ही कह सकता हूं कि आपको ज़्यादा ही डर लगता है तो फिर से आस्तिक हो जाईए। (बाक़ी, इस संदर्भ में इस ब्लॉग की सदस्य और हमारी मित्र लवली गोस्वामी, चाहें ता, आपकी मदद कर सकतीं हैं क्योकि वे इस विषय की विशेषज्ञ हैं।)
इससे आगे यह भी कहना चाहूंगा कि यदि हम डर को ही चीज़ों के वैद्य या अवैद्य होने का आधार बनाएंगे तो इस दुनिया में शायद एक दिन चोरो, लुटेरों, डाकुओं आदि-आदि यानि कि जो भी हमें डराएगा, उसका राज होगा।
प्रिय मनीष
ReplyDeleteहम आपकी समस्या के समाधान के लिए अवश्य ही एक लेख लिखेंगे, तब तक आपको यह सलाह देना चाहते है कि मात्र किन्ही तार्किक बिन्दुओं से सहमत होकर आस्तिक से नास्तिक बन जाना ठीक प्रक्रिया नहीं कही जा सकती, यह विशुद्ध रूप से ज्ञान मीमांसा का मामला है। प्रकृति, विश्व बम्हांड, मानव समाज की उत्पत्ति और इसके अवस्थान को लेकर कई सारी भ्रांतियाँ है जिन्हें वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझना बेहद जरूरी है। आप इन बिन्दुओं पर विभिन्न साहित्य खोजकर पढ़े आप समस्या का काफी हद तक समाधान हो जाएगा। सर्वप्रथम मैं आपको भगतसिंह का आलेख मैं नास्तिक क्यों हूँ पढ़ने की सलाह दूँगा। आप बुनियादी रूप से एक ईमानदार इन्सान हैं, सत्य की विवेचना के आधार पर ज्ञानवान बनिए और इस ज्ञान को लोगों में भी बांटिए आप देखेंगे आप दिमागी रूप से काफी मज़बूत होते जाएँगे।
शुभकामनाओं के साथ।
काजल जी,
ReplyDeleteशायद आप अंधविश्वास की बात कर रहे हैं। बात एक दूसरे के विश्वासों को ठेस पहुँचाने की बिल्कुल नहीं है। हर इन्सान को सत्य का ज्ञान हो इसी में मानव समाज की भलाई है। अंधविश्वासों के गुलाम हम लोगों का इस संसार में नाना प्रकार से दुरुपयोग हो रहा है।
जनन शक्ति की पूजा हर प्राचीन सभ्यता में मौजूद है. यह नयी बात नहीं है. चीनी, पेगन (रोमन), बेबीलोन सभ्यता में यह है. बाकी सभ्यता में यह लुप्तप्राय है लेकिन
ReplyDeleteभारतीय सभ्यता इसे जीवित रखे हुए है. हेरोस गैमोस के बारे में पढ़िए. चीनी मोलंग के बारे में पढीये. ग्रीक देवी आईसीस भी इससे का प्रतिक है.
आधुनिक हो जाने या नास्तिक हो जाने से परम्पराओ को पूरी तरह समझे बीना आक्षेप उठाना ठीक नहीं है. मै नास्तिक तो नहीं लेकिन संशय वादी(अग्नोस्टिक) हूँ. मुझे भी शिव पूजा अजीब लगती थी लेकिन जब मैंने इसे जनन शक्ति के पीछे मानव सभ्यता के सम्मान के रूप में देखा तो कुछ भी अजीब नहीं लगा. ज्यादा खोज बीन करने बाके सभ्यताओं में इसे मौजूद पाया.
आप अन्धाविश्वाशो के विरोध में आवाज उठाये, कर्म कांडों के विरोध में आवाज उठाये. लेकिन कुछ परम्पराए प्रतीकात्मक होती है, इसका वास्तिवक अर्थ वह नहीं होता जो दिखाई देता है इसलिए विरोध करना अच्छा नहीं है. जैसे होली नयी शीत की नयी फसल के पकाने के बाद उसे आग में भून कर खाने से जुड़ा है, दिवाली बारीश के बाद घर के सफाई , फसल के घर पर आने से जुड़ा है इत्यादि.
बात तो यही है जनन शक्ति की पूजा किसलिए. हर वो छेज़ जो महत्वपूर्ण है जरुरी नहीं की उसको पूजा जाए.
Deleteएक महत्वपूर्ण बात तो भूल ही गया !
ReplyDelete'संतानोत्पत्ति' को इतने हलके में मत लीजीये! यह एक मूलभूत प्रक्रिया है जीस पर सारी प्रकृती निर्भर है, यह नहीं होती तो ना आप होते ना मै !
Sanjay ji mai apka dhanywaad deta hun ki apne meri samashya par vichaar kar kuch paramarsh diya .kaam ane wali baat maine note kar li aur kuch shaanti bhi mili lekin fir se aastik banne wali baat ne dil dukhaya.yadi humaare haath me bhool jana hota to dukh kis baat ka tha.jo atmvishwaas bhagwaan ke karan tha ab use apne karan kaise banaya jaaye sirf itna pooch rahaa hun sir.marz dete ho to dawaai dene me bhi peeche mat rahiye sir.tabhi ye blog saarthak ho sakega.
ReplyDeleteaur@drishtikon Sir apko bahut bahut dhanyawaad.apne meri samashya achchi tarah se samjhi hai aur ye yadi hum do mitro ke saath ho sakti h to ho sakta hai astik se naastik banne wale ke saath hona aam baat ho.is dar se ab is baare me baat karne se hi sir bhaari hone lagta hai.lekin samashya badi hai aur iske liye apke lekh ka mujhe besabri se intzaar rahega.
thoda aur bata du Sir.ab lagta hai ki bhagwaan bhi nahi raha ab koun bachayega.saari jimmwari apne upar aa gayee hai.swarg narak nahi hote marne ke baad kuch nahi rahega.jeene ka maksad hi kya hai.is tarah ke nakraatmak vichaaro se aur dar lagta hai.zindagi ko kis tarah pahle jaise sahishnu aur sanvedna me gholu samajh nahi aata zindagi ka mazaa kis tarah lein.thoda gahra sochne par sir bhaari bhaari ho jata hai.lekin himmat jutaane ki koshish karta hun.apke,tasleem ke,vigyaan vishva ke bahut lekh padhne ke baad mai naastik bankar 5-7 din khush tha lekin achaanak mitr ke saath huyee ghatna ke 2 din baad wo hi problem mujhe vivek ka prayog karte huye bhi ho gayee.lekin iska karan bahas karte huye atmvishwaas ka kam hona ya ardhchetan man me basa ishwar ho sakta hai.mai to confused hun hi apke lekh ka intzaar rahega.
Dhanywaad
पहले तो यह बताएँ कि 'लिंग' का मतलब आप 'शिश्न' या 'पुरुष कामग्रंथि' कैसे समझते हैं?
ReplyDeleteयदि यही अर्थ होता तो 'पुलिंग', 'स्त्रीलिंग' या नपुंसक लिंग का क्या अर्थ है? 'लिंग' का अर्थ व्याकरण में 'जेण्डर' होता है। इसका सामान्य अर्थ 'प्रतीक' या चिह्न है ।
फसबूक पर मेरी एक फरेंद हैं Abha Nivsarkar Mondhe उन्होंने ने भी आज कुछ ऐसे ही सवाल उठाये हैं हालाँकि वे पूरी तरह आस्तिक हैं नास्तिक नहीं ..उनका सवाल है -
ReplyDelete'' महाशिवरात्रि के मौके पर एक विचित्र सवाल पूछ रही हूं. अब तक पूछने की हिम्मत नहीं होती थी. अब है... इस फेसबुक के जाल में कोई तो होगा जो इसका जवाब दे सकता है... हरतालिका तीज के दिन शिव और पार्वती का पूजन होता है. महिलाएं वर मांगती हैं कि उनका पति शिव जैसा हो. शिव जो बिरागी हैं, जिनका संसार से कोई लेना देना नहीं. पूजा भी शिवलिंग की... जो पुरुषत्व और सृजन का प्रतीक है... क्या इसमें बहुत बड़ा विरोधाभास नहीं है...''
बरहाल उनके सवाल के संदर्भ में मेरा सिर्फ ये कहाँ है की सवाल केवल नास्तिकों के दिमाग की ही उपज नहीं है..गर लोग समझते हैं की नास्तिक इस तरह की प्रपंच करते हैं तो...
मनीष जी -
कुछ सवाल आपके जायज हैं ...जैसे जिन्दगी का उद्देश्य क्या है...?
- इसका जवाब ना मेरे पास है और ना ही किसी और नास्तिक के पास होगा मेरा ऐसा मानना है...और ना ही किसी आस्तिक के पास ही होगा इसका जवाब......
..मैं इतना भर अपनी जिन्दगी का उद्देश्य मानता हूँ हसो और खुश रहो ...और लोगों को जितनी ख़ुशी बात सको बात लो बस इससे ज्यादे इस जिन्दगी का कोई उद्देश्य नहीं दीखता ...
- और आपकी दूसरी समस्या सर भरी होना, आत्मविश्वास में कमी आदि ..... ये तो होना लाजमी है सबके साथ होता है जब जिन्दगी , जीवन आस्था , अनास्था,इश्वर सृस्ती आदि से जुड़े सवालों का सामना करता है तो ऊपर संजय सर की जो साला है वो इस संदभ में है की इन सारे सवालों का सामना आप नहीं कर पा रहे शायद इसलिए उन्होंने आपको दुबारा आस्तिक होने के लिए कहा है. क्योंकि की ये काफी वक़्त मांगते हैं सवाल...आपसे ... इतना आसान नहीं होता नास्तिक होना क्योंकि आस्तिक तो अपनी सारी जिम्मेदारी और सवाल इश्वर के हवाले करके चैन की नीद सो सकता है ..लेकिन नास्तिक नहीं ...नास्तिक का मतलब ही है खुद को जिम्मेदार मानना ...आप गर नास्तिक हैं तो आप अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला नहीं झाड़ सकते... आपको खुद अपने सवालों के जवाब ढूंढने होंगे ...
आप एकाक सिर्फ दो चार पोस्ट पढ़ के नास्तिक हुवे उससे ये नहीं होता की ये नास्तिकता सही है या गलत ....पहले खुद विचार कर लीजिये सोच समझ लीजिये यहाँ जो बातें कहीं जा रही हैं वही ठीक हैं,सच हैं या नहीं फिर उसको माने.... और जो सवाल उठते हैं दिमाग में उनके जवाब dhudhiye वक़्त लगेगा इसके जवाब तलासने में आपको ..लेकिन यकीं मानिये एक बार जब आप अपने सवालों के जवाब ढूंढ़ निकालेंगे तो ये डर भय और कपकपाहट नहीं रहेगी....
दूसरी बात मनीष जी ..जब लोग खुद को नास्तिक घोषित करते हैं तो जानते हैं क्या होता है एकाक वे अपने आस पास के लोगों की नज़रों में कुछ अजीब से हो जाते हैं..या ये कह सकते हैं लोगों का आपको देखने का नजरिया बदल जाता है... लोग आपको पहले पागल समझते हैं या सोचते हैं कोई परेशानी है जिसकी वजह से आप एकाक इश्वर की सत्ता के खिलाफ हो गए हैं...दूसरी आपसे तरह तरह के सवाल पूछे जाते हैं ... और हो सकता है कुछ सवालों के जवाब आपके पास होते हैं कुछ के नहीं ... जो जवाब नहीं होते उन्ही की आपको खोज करनी है ... ऐसा हमेसा नहीं रहने वाला लेकिन लोगों को आपको सामान्य रूप में लेने में कुछ वक़्त तो लगेगा ही...ये वक़्त काम से काम समझ लीजिये एक दो साल का होगा..मेरा खुद का अनुभव तीन साल तक ..हर बार नए सवालों से सामना होगा आपका...ऊपर आपसे भगत सिंह को पढने को कहा गया है ..भगत सिंह की एक तार्किक किताब है ज्यादे मोटी भी नहीं आसानी से किसी बुक स्टाल पर मिल जाएगी ...50 रूपये से कम की ही होगी..'' मैं नास्तिक क्यों हूँ..'' यहाँ आपको ज्यादतर सवालों के जवाब मिल जायेंगे...
ReplyDeleteहम ईश्वर में विश्वास रखने वालों से कुछ सवाल करते हैं _
Deleteअगर, जैसा कि आपका विश्वास है, कि एक परमात्मा है, विश्वव्यापी, त्रिकालदर्शी, सर्वशक्तिमान ईश्वर - जिसने धरती या संसार की रचना की, लेकिन कृपया मुझे यह बतायें कि उसने इसकी रचना क्यों की? जबकि यह संसार शोक और पीडाओं तथा यथार्थ, असंख्य विपदाओं का अनन्त संयोजन है। कोई एक आत्मा तक पूरी तरह संतुष्ट नहीं है। पूजा करो लेकिन यह मत कहो कि यह ईश्वर का नियम है: अगर वह किसी नियम से बंधा है, तो वह सर्वशक्तिमान नहीं। वह भी हमारी तरह एक दास है। यह कदापि न कहें कि इस सब में उसकी कोई खुशी छिपी है। नीरो ने तो सिर्फ एक रोम जलाया था। उसने तो कुछ ही संख्या में लोगों को मारा था। उसने तो बहुत कम संख्या में विपदाओं को जन्म दिया, सिर्फ अपने मनोरंजन के लिये। लेकिन उसका इतिहास में क्या स्थान है? इतिहासकारा उसे किस नाम से सम्बोधित करते हैं? सारे जहरीले विशेषणों से उसे सुशोभित किया गया। पन्नों पर पन्ने नीरो के काले कारनामों की भर्त्सना से रंगे पडे है, गद्दार, हृदयहीन, दुष्ट।
एक चंगेजख़ान है जिसने कुछ हजार जीवनों का बलिदान अपने आमोद प्रमोद के लिये कर दिया था और इसलिये हम उस नाम से ही भयंकर घृणा करते हैं। तब तुम अपने उस परमात्मा को कैसे न्यायोचित ठहराओगे, अमर नीरो, जो कि हर दिन, हर घण्टे, हर मिनट असंख्य विपदाएं निर्मित करता रहा है और करता रहेगा? तुम कैसे उस परमात्मा के दुष्कृत्यों का साथ दे सकते हो जो चंगेज ख़ान को भी हर पल पीछे छोड रहा है? मैं कहता हूं कि उसने किसलिये इस संसार का निर्माण किया है - एक वास्तविक नर्क, लगातार और कडवी अशान्ति की जगह? किस लिये तुम्हारे परमात्मा ने इन्सान को बनाया जबकि उसके पास यह न करने की शक्ति थी? इस सबका क्या औचित्य है? क्या तुम यह कहते हो कि यही निर्दोष पीडितों के लिये पुरस्कार और गलत करने वालों के लिये दण्ड है? ठीक है, ठीक है, कितनी देर तक आप एक व्यक्ति को न्यायोचित ठहरा सकते हो जो आपके शरीर पर घाव करता रहे और बाद में ठण्डा और नरम मल्हम लगाए? आप कितनी देर तक भूखे शेर के आगे एक योध्दा को फेंक कर तमाशा बनाने वाले प्रबन्धकों और समर्थकों को न्यायोचित ठहराएंगे जो कि बाद में योध्दा के जंगली जानवर के शिकंजे से बाहर निकल आने पर उसकी अच्छी खातिरदारी करते हैं। इसीलिये तो मैं पूछता हूं, क्यों उस परमात्मा ने यह संसार और इसमें इन्सान को बनाया? अपने मनोरंजन के लिये? तब उसमें और नीरो में क्या फर्क
सहज ही तुम दूसरा सवाल पूछोगे जो कि काफी बचकाना है। यदि कोई भगवान नहीं है तो लोग कैसे उसमें विश्वास करने लगे? मेरा उत्तर साफ व संक्षिप्त है कि जिस प्रकार की वे भूतों में, बुरी आत्माओं में विश्वास करते हैं उसी प्रकार बस फर्क सिर्फ इतना है कि भगवान में विश्वास सर्वत्र है और दर्शनशास्त्र पूर्ण विकसित। भगवान के होने का विचार मुसीबत में फंसे आदमी के लिये बहुत सहायक है।
समाज को इस विश्वास से लडना है तथा साथ ही साथ मूर्तिपूजा से भी और इस धार्मिक संर्कीणता से भी। इसी प्रकार जब आदमी अपने पैरों पर खडे होने का प्रयत्न करता है और एक वास्तविकतावादी बनना चाहता है तो उसे अपना विश्वास उतार कर फेंक देना चाहिये तथा उन सारी मुसीबतों, परेशानियों का सामना करना चाहिये जिसमें परिस्थितियों ने उसे धकेल दिया है। बिलकुल यही मेरा हाल है। यह मेरा मिथ्याभिमान नहीं है, मेरे दोस्तों। यह मेरे सोचने का तरीका है जिसने मुझे नास्तिक बनाया है। मुझे नहीं पता कि मेरी स्थिति में भगवान में विश्वास और रोज की प्रार्थना जिससे कि मैं मनुष्य के लिये बहुत ही स्वार्थपरक तथा गिरा हुआ कार्य मानता हूं, मेरे लिये सहायक हो सकतीं थीं या ये मेरी स्थिति को और बुरा बना देतीं। मैं ने पढा है कि नास्तिक समस्याओं का बहुत साहस से मुकाबला करते हैं, इसलिये मैं कोशिश कर रहा हूं कि अपने अंत समय तक अपना सिर ऊंचा करके एक आदमी की तरह खडा रहूं, यहां तक कि फांसी के तख्ते तक भी।
देखते हैं कि मैं आगे कैसे बढता हूं: मेरे एक मित्र ने प्रार्थना करने के लिये कहा। जब उसे बताया गया कि मैं नास्तिक हूं तो उसने कहा, '' तुम्हारे आखिरी दिनों में तुम विश्वास करने लगोगे।'' मैं ने कहा, '' नहीं प्रिय श्रीमान ऐसा नहीं होगा।'' मैं सोचूंगा कि यह एक निम्नस्तर तथा हतोत्साहित करने वाला कृत्य है। स्वार्थी प्रवृत्ति के कारण मैं प्रार्थना नहीं करने वाला। पाठकों और मित्रों, '' क्या यह मिथ्याभिमान है?'' और अगर है भी तो, मैं इसी में विश्वास करता हू
माफ़ करें ऊपर कुछ ज्यादे ही लाम्बा लिख गया हूँ ....शायद अपनी औकात से ज्यादे लेकिन मुझे लगा कुछ वैसे सवाल हैं जो मेरे दिमाग में भी कभी घूमते थे ...दूसरी एक चीज साफ कर दें ..
ReplyDeleteये ब्लॉग लोगों को नास्तिक बनाने के लिए नहीं बना है ... ये इसलिए बना है ताकि दूसरे लोग जरा नास्तिकों और उनके विचारों के बारे में जाने ये लोग क्यों नास्तिक हैं..क्यों पागल हुवे हैं जो एक सर्वमान्य सत्ता के खिलफ खड़े हो रहे हैं ... लोग मुर्ख समझते हैं और हम यहाँ ये बताने के लिए इक्कठे हैं की हम मुर्ख नहीं हैं हमरी भी कुछ तार्किक सोच है...
वाह दृष्टिकोण जी, बहुत खूब, क्या खंडन मंडन परम्परा वाला लिखा है. अब बहुत जल्दी ही आप एक नास्तिकों का मठ खोलें, जहां हम नास्तिक मिल बैठ कर नास्तिकता का कीर्तन करें. नास्तिक बाबा बनें, नास्तिक चेला बनें.
ReplyDeleteलेकिन कृपया भगतसिंह का नाम न घसीटें. भगतसिंह ने अपनी नास्तिकता के बारे में लिखा था. उन्होंने किसी दूसरे की आस्था पर उंगलियां नहीं उठायीं थीं.
यहां नीचे लिखा है कि धर्म/संप्रदाय विशेष को लक्ष्य करके लिखी गई टिप्पणीयां हटा दी जायेंगी.
लेकिन यही मानदंड पोस्टों के लिये क्यो नहीं हैं?
अगर आपने भगत सिंह को ठीक से पढ़ा होता तो शायद ऐसा न लिखते.
Deleteमाफ कीजिये, मुझे इसमें अश्लील तो कुछ भी नहीं लगता है ... मैं खुद एक नास्तिक व्यक्ति हूँ ... पर लिंग पूजन को मैं अश्लील नहीं बल्कि हास्यास्पद कहूँगा ... अब आप लिंग को पूजा करें या गुर्दा या हाथपैर, या फिर यकृत को, मानव देह का कोई अंग को पूजने की ज़रूरत क्यूँ है ?
ReplyDeleteवैज्ञानिक चिंतन और श्रद्धा एक साथ नहीं निभती. आस्था और विश्वास का कोई तर्क नहीं होता.
ReplyDeleteचिंता का विषय है !! कब भारतीय जनमानस सही वैज्ञानिक चिंतन दृष्टि सम्पन्न होगा !! कब वह सृष्टी में अपने अस्तित्व के सही कारण जान पाएगा!! कब वह इस सृष्टि से काल्पनिक शक्तियों को पदच्यूत कर अपनी वास्तविक शक्ति से संवार पाएगा
ReplyDeleteइस लेख में सिर्फ यही बात सही लिखी है ......क्योंकि अगर कोई थोडा बहुत भी साइन्स का जानकार है....... तो इस तरह के लेख या उनका समर्थन तो नहीं कर सकता/सकती
खैर...... इस बहाने आपके ज्ञान का स्त्रोत भी पता चल गया :))
खैर ...... बाकी बातें छोडिये इस बारे में क्या विचार है,
ReplyDeletehttp://nushindusociety.org/test/index.php?PHPSESSID=b42c154230f1abdec3e8256cb236d114&action=dlattach;topic=1243.0;attach=115
इस लिंक पर जाने पर एक जे. पी. जी. मिलेगी , ताकि आपका नजरिया थोडा और आगे तक जाये :))
~~~~~आप सभी को शिवरात्रि की शुभकामनाएं~~~~~~
समय की कमीं के चलते संभव है की मेरा दोबारा इस ब्लॉग पर आना ना हो ....... पर मेरी बातों पर विचार कीजियेगा
किसी की श्रद्धा वैज्ञानिक भी हो सकती है साथ ही ये भी संभव है की ये बात ना आपको पता हो ना श्रद्धालु को :)
स्पष्टीकरण : मैंने सिर्फ एक और नजरिया बताया है .... साइंटिफिक एनालिसिस कोई भी जानकार ब्लोगर दे सकते हैं...कोई मुश्किल काम नहीं है .... मैं थोडा जल्दी में हूँ इसलिए इतना ही....... शुभकामनाएँ
ReplyDeleteThe Rishis imagined that Prajapati must have created a mound first. You have to make a mound before creating anything, for example, a clay mound for a statue and a store mound for a sculpture. Our Rishis had imagined this round mound, the Shivling, was wrapped with a snake, which might model DNA. To describe more complex DNA, a pair of snakes wrapped around each other can be visualized to represent a double helix, as Rishis explained. The Rishis also said that it was the base structure and entire nature began with it. This was determined by our Rishis to be the fundamental and elemental point with which any life form could being.
ReplyDeleteModern science corroborates the findings of our scriptures that DNA is like a thread and is so small that it can not be seen with naked eyes it reproduces itself by multiplying itself and cannot be destroyed. An object can be destroyed, but its DNA will exist in one form or another. The properties suggested for DNA by modern science had also been suggested in our scripture. So the Shivling is not just a mere symbol. Our Rishis wanted to give a message to the masses that you can see the smallest form of nature in the form of the Shivling. The Shivling represents the atomic structure. When they created the Shivling it was imagined that there was one Hari and one Har in the ling. Har is shiva, and Hari is Vishnu. Shiva and Vishnu are present in this Ling. Jalhari has three lines because three signifies “multiple” in Sanskrit. In our atomic structure, there are protons and neutrons which are surrounded by fast spinning electrons.
~~~nuclear reactors~~~~
ReplyDeleteYou must have seen that the nuclear reactors resemble a Shivling in the shape like a mound, and all the radioactive particles are constantly kept under water. The hard water and soft water are formed there. This water becomes radioactive. Water is constantly sprinkled on the Shivling to control Shiva’s temper, reflecting a nuclear reactor.
In terms of modern science, it is supposed to represent the nuclear reactor. This water from the Shivling is not used as prasad or even as holy water. This could be compared to the water used for cooling the nuclear reactors which is also not used for any other purposes. This water from Shivling flows freely from the jalhari in a stream from a corner of the Ling. One cannot go around the Shivling as it is beyond a human being to really go around or comprehend this tremendous power. This also shows humans their limitations within which we need to live.
~~~~nebulae or galaxies~~~~~~
ReplyDeleteWe can see the smallest form of this in a Shivling and also the colossal form in our galaxy. If you look at the pictures of nebulae or galaxies, you will see the mound, which is called the Shivling and the jalahari around it. This is in the reality pictures taken from space show a clear picture of Shivling as described in our scriptures. Shiva is referred to as “bhole” meaning simple and can be pleased by little worship. Once he is happy, he gives boons without thinking of the worshipper’s worthiness. Still one must follow the right path for if you are on a wrong path even by mistake and Shiva is not pleased with you, no one can save you. Shiva is pleased very easily and at the same time, is enormously powerful. One should worship him only after understanding his great power. One who has power can pass it on to others and anyone can receive it. It is critical that you understand the colossal power of Shiva.
भाषा थोड़ी खटक रही है क्योकि कोई भी बात तभी ज्यादा अच्छी लगती है जब वह उपहासात्मक न हो | चुकी हमको बचपन से ये देखने की आदत है इसलिए इसमे कुछ भी अश्लीलता नहीं दिखती पर दूसरो के लिए हो सकती है अभी कुछ समय पहले ही पढ़ा की एक मुश्लिम बहुल देश में ( नाम में थोडा कन्फ्यूज हु इसलिए नहीं बता पा रही ) शिव लिंग की पूजा को अश्लील बता कर उस पर रोक लगा दी है | नास्तिक होने का ये अर्थ नहीं है की आस्तिको का उपहास उड़ाया जाये | रही बात वैज्ञानिक सोच की तो श्रद्धा कभी किसी तर्क या वैज्ञानिक सोच पर आधारित नहीं होती है इसलिए हम यहाँ ये सवाल नहीं उठा सकते है |
ReplyDeleteबाधा सही तर्क है आपका. नास्तिको पर चाहे जितने सवाल उठा श्रध्धा पर कोई सवाल न उठाओ वाह.
Deleteएक बात तो है अंग्रेजी में बात ज्यादा इफेक्टिव लगने लगती है ..... है ना ! इसीलिए दोबारा आना पड़ा :))
ReplyDeleteये सारे कमेंट्स सिर्फ नजरिया बढाने के लिए है ..... साइंटिफिक एनालिसिस अभी शुरू नहीं किया है .... उसमें बहुत समय लगेगा ....अभी बस इतना ही .. फिर से शुभकामनाएँ :)
आपने लिखा है - "किसी धर्म/संप्रदाय विशेष को लक्ष्य करके लिखी गई टिप्पणियाँ हटा दी जाएँगी…" :) :)
ReplyDeleteलेकिन ऐसी पोस्ट रखी जायेगी…। :) न सिर्फ़ रखी जायेगी बल्कि पूरी कोशिश की जायेगी कि उपहास किया जाये (खासकर हिन्दुओं का)
@anjuleji thank you
ReplyDeleteaaj ki taza khabar
ReplyDeletehttp://khabar.ibnlive.in.com/news/49274/3/21?xml
In a blog that spreads the message of atheism, it is normal to have articles against the so called religions ...
ReplyDeleteHowever, some grievances are natural and justified when most of the criticisms are against only one religion (hinduism). Atheism and scepticism denounces not only just one religion but all religions in general and the whole idea of religiousness.
Now, coming to the point in question, the whole idea of worshipping a body part as a god is hilarious to say the least. If we can worship a penis or a vagina, why not worship a liver or a kidney or an intestine for that matter.
ReplyDeleteNext comes the question of justifications for the "ling poojan" as has been given at length by Mr. Gaurav Agarwal.
First of all the comparison of the snakes with the DNA double helix. We are so naively assuming that whatever the modern technology, through years of painstaking hard work, has unveiled now, was known to forest dwelling half educated or illiterate unsocial bums long long ago, who did not have any idea of even our body parts. These so called ascetics did not even know what is a intestine or what is the functioning of a kidney, and now they are supposed to know a DNA, and actually fashion a worship idol based on its complex structure.
Are we logical human beings or some kind of zombies to believe in such crap?
He has given examples of Nuclear Reactors and Galaxies and what not. This custom of worshipping the Linga started quite some time back in the history at which point of time neither was there any nuclear reactor, nor was their any telescope to understand the shape of galaxies. So, these justifications are not only a vain and oft-repeated attempt at explaining illogical and uninformed customs, but also criminal conspiracies at misleading gullible people. It has become a fashion these days to try to explain every bullshit superstition by using scientific terms and bending the science.
ReplyDeleteWhoever has explained the shiva linga as a nuclear reactor seems to have very sketchy knowledge about a reactor's function, most probably gathered from the internet.
A similar attempt has been made at explaining the shiva linga by comparing it to a gland at teh base of our brain. So, now the linga has become a gland. How much more idiotic can it get? Comparing by shape and then declaring it to be the same .... if this is not blind superstition, I do not know what is.
Quite similar to some people who declare that the Betel leaf is very good for human heart just because it is heart shaped (the commercial shape of heart as advertised by various media, not the real shape of heart, which of course is unknown to such people).
Well written Sir
DeleteThe explanation given by Anjule is good enough. It is very easy to search in Google for some kind of bullshit (so called scientific) explanation of the the religious views, because such kind of sites are available a dime a dozen. However, it is entirely a different ball game to actually question the established but illogical customs prevalent in the society.
ReplyDeleteAtheists and sceptics have been and are the real heroes of the society who question and change society and are the causes behind progress.
आपने अपने अल्प अध्ययन अल्पज्ञान के मुताबिक़ विचार रखे -इस पर किसी को भी आपत्ति होनी चाहिए ..
ReplyDeleteकभी लिंगोत्थान किये नागा बाबाओं को देखा है? लिंग से पत्थर उठाने के हठयोग देखे हैं ..बंदरों का अपने दल में अनुशासन कायम करने के लिए साथियों पर उत्थित लिंग का प्रहार देखा है? आधुनिक काम पिपासुओं द्वारा फेलैशिओ रत होने को देखा सुना है ....सिन्धु सभ्यता जो मूलतः शैव सभ्यता है के बारे में कितना सुना जाना है ?
अगर इन सबका उत्तर नहीं है तब आप इस लेख को लिखने की काबिलियत नहीं रखते ...
अभी आपको भारतीय दर्शन मनीषा/ जीवन दर्शन में और गहरे उतरने की जरुरत है मित्र -मित्रवत आमंत्रण है बहस के लिए!
However, it is entirely a different ball game to actually question the established but illogical customs prevalent in the society.
ReplyDeleteAtheists and sceptics have been and are the real heroes of the society who question and change society and are the causes behind progress.
पढ़िए अच्छी श्रृंखला है ....
http://mishraarvind.blogspot.com/2009/02/blog-post_18.html
http://mishraarvind.blogspot.com/2009/02/blog-post_19.html
http://mishraarvind.blogspot.com/2009/02/blog-post_21.html
We are so naively assuming that whatever the modern technology, through years of painstaking hard work, has unveiled now, was known to forest dwelling half educated or illiterate unsocial bums long long ago, who did not have any idea of even our body parts. These so called ascetics did not even know what is a intestine or what is the functioning of a kidney,
ReplyDeleteउफ्फ शायद आपकी बात से तो भगत सिंह भी सहमत ना होते :)) फिर भी इस बात से ये अंदाजा हो रहा है मुझे जानकारी का ...सच्ची :)
"forest dwelling half educated or illiterate unsocial bums long long ago"
वैसे मुझे तो जंगली हम सबसे ज्यादा प्रेक्टिकल ज्ञानी लगते हैं ख़ास तौर से शरीर विज्ञान के बारे में ......वैसे आप किनकी बात कर रहे हैं .......आज का विज्ञान जो एक्यूपंचर और प्रेशर दे रहा है वो तो उन ऋषि मुनियों ने बहुत पहले ही ढूंढ लिया था (नथ बालि आदि गहनों के रूप में) , नाड़ी विज्ञान से (बिना लक्षण पूछे) शरीर के आतंरिक रोगों का ज्ञान हो जाता है आप भी जानते हैं, वात कफ पित्त का सारगर्भित और महान सिदांत भी आपको पता होगा नहीं हो तो गूगल पर मिल सकता है ,कम पढ़े लिखे लोग जो श्लोक लिख गए हम पढ़े लिखों के पाठ्यक्रम का हिस्सा हैं .......सब जानते हैं
Next comes the question of justifications for the "ling poojan" as has been given at length by Mr. Gaurav Agarwal.
ReplyDeleteये पढ़े लिखे लोगों के लिए नहीं है उनके लिए है जो गूगल से सन्दर्भ दूंढ़ कर कम समय में स्केप्टिक बने हैं ...बात ही ख़त्म हो गयी और मैंने इसे साइंटिफिक नहीं कहा है ..इतनी अक्ल तो है मेरे पास
It is very easy to search in Google for some kind of bullshit (so called scientific) explanation of the the religious views, because such kind of sites are available a dime a dozen.
ReplyDeleteबिलकुल बिलकुल सहमत हूँ ......... यही बात यहाँ मौजूद सन्दर्भों पर भी लागू होती है ..ऐसे सो कोल्ड स्केप्तिज्म पर क्या कहूँ मैं :)) और तो और आधे से जयादा स्केप्तिक वो बने हुए हैं जिन्हें ये भी नहीं पता की उत्तर काण्ड बाद में जोड़ा गया है ...या संस्कृत के ज्ञान से पैदल हैं
ऐसे ही किसी जवाब का मुझे इन्तजार था ....लेकिन मुझे लगा था मेरे एक अन्य ब्लोगर मित्र ये बातें कह रहे होंगे आपके कमेन्ट पढ़ कर अच्छा लगा
ReplyDeleteवैसे ये पहला ब्लॉग है (जो मैंने नोटिस किया) जिसने भगत सिंह जैसे व्यक्तित्व को भी लपेटे में लिया है ...भगत सिंह तो ज्यादा पुराने नहीं हैं यारों...... उन्हें ही लपेटे में ले लिया तो शिव, राम ,और कृष्ण को तो क्या समझ पाओगे ??:))
दरअसल मेरे कमेन्ट माहौल से प्रभावित होते हैं अगर आप ज्ञानियों से कभी किसी वैज्ञानिक लेख पर बात होगी तो आप मेरे कमेन्ट में फर्क महसूस कर लेंगे
ReplyDeleteवैसे मिश्र जी आ गये हैं तो मुझे राहत मिली अब मैं आराम से इस चर्चा से गायब हो सकता हूँ , व्यस्तता की वजह से परेशानी हो रही है वर्ना इस चर्चा में जरूर शामिल होता
ReplyDeleteएक न्यूज है (ये मत समझ लीजियेगा की मैं महिमा गाने का प्रयास कर रहा हूँ ..... आप खुद जानकार हैं ....इससे जो आप जो समझना चाहें समझ सकते हैं )
http://hi.shvoong.com/exact-sciences/earth-sciences/2080779-%E0%A4%B6-%E0%A4%B5%E0%A4%B2-%E0%A4%97-%E0%A4%AC%E0%A4%A4-%E0%A4%8F/
अरविन्द मिश्र जी ने आपका सारा "खेल" अकेले दम पर ही चौपट कर दिया है…
ReplyDeleteइंद्रनील ने भी सही कहा कि नास्तिकों का असली टारगेट "हिन्दू धर्म" ही होता है… (आपका नकाब खींचने के लिये काफ़ी है)
सभी स्केप्टिक (गूगल वाले और बिना गूगल वाले दोनों ) मेरे कमेंट्स पूरे पढ़ा करें इसीलिए तो अलग अलग कमेन्ट करता हूँ :)).... ये एक अच्छे स्केप्टिक (असली वाले) की पहचान होती है ..वैसे चर्चा(स्वस्थ वाली) के अंत में वे कमेंट्स सार्थक भी हो सकते हैं ..सच्ची .. :)
ReplyDeleteरही बात नास्तिकों की :
जिसको बनना है पूरा कृष्ण बनो भाई ....... ये "फ्रेंडशिप डे" और "वेलेंटाइन डे" के दिन मौसमी भक्ति[?] तो मेरी समझ के बाहर है ..गीता के पहले अध्याय में श्री कृष्ण भी एक अच्छे श्रोता की तरह बात को सिर्फ सुनते हैं ..अतः कमेन्ट पूरे पढ़ें फिर आराम से कुछ कहें :)
चर्चा के लिए सभी मित्रों को शुभकामनाएं :)
चिपलूनकर जी से सहमत
ReplyDeleteमैं भी मिश्र जी का इन्तजार कर रहा था ....एक दिन पहले ही उनके लेखों के हाइपर लिंक संभाल कर रखे थे और मेरे कमेन्ट करने से एक मिनट पहले ही उनका आगमन हुआ :)
हाँ .... इन्द्रनील जी ने सारी बातें सही कही .......... बस दुःख इस बात का है की अपने साइंटिफिक ज्ञान (जो मुझे शायद 10 स्टेंडर्ड में मिल गया था ) को झाड़ने के अति उत्साह में वो मेरे कुछ कमेन्ट नहीं पढ़ पाए और कुछ ज्यादा ही टाइप कर गए मैं तो अभी तक आश्चर्य चकित हूँ :))
अब से मैं तो स्पष्टीकरण लगाना बंद करने वाला हूँ ..क्या फायदा जब कोई पढता ही नहीं है :)) इस बार तो दो दो स्पष्टीकरण लगाये थे ....... अदभुद है
इस बार तो मैंने कमेन्ट को बोल्ड भी कर दिया है :)
drashtikon namak vyakti sadaiv se upahasatmak hi likhata raha hai ..kabhi bhi tarkik likhane hi himmat nahee hui
ReplyDelete@चिपलूनकर जी - इस ब्लॉग पर प्रकाशित पोस्ट-विशेष के अंतर्गत लिखी गई सामग्री के लिए मोडेरेटर उत्तरदायी नही है. यह लेखक की व्यक्तिगत राय है, अगर लेख में आपको कुछ आपत्तिजनक दिखता है तो बेहतर होगा लेखक से सन्दर्भ की मांग की जाए और अगर लेखक सन्दर्भ देने में असमर्थ होगा लेख हटा दिया जायेगा शेष अगर दृष्टिकोण जी की भाषा व्यंगात्मक है तो इनका विरोध किया जा सकता है जो लोग कर भी रहे हैं. हमारा उदेश्य किसी धर्म विशेष को "निशाना बनाना" जैसा की आप कह रहे हैं, नही है. इस ब्लॉग के सदस्य हिन्दू भी है और मुश्लिम भी.
ReplyDeleteयहाँ हिन्दू दर्शन पर आधारित नास्तिक मत का भी उल्लेख किया गया है जिसे लोकायत कहते हैं .उस वक्त आप कहाँ थे ? उस वक्त आपने यह क्यों नही कहा की यह हिन्दू धर्म को निशाना बनाए जाने की कोशिश है की हम मुश्लिम और इसाई धर्मो के नास्तिक मत का उल्लेख क्यों नही करते ?
भाषा उपहासात्मक है पर जैसे हम पोस्ट नही हटा रहे वैसे ही आपकी टिप्पणियाँ भी यहाँ शोभायमान है इसका ध्यान रखें .
इंद्रनील ने भी सही कहा कि नास्तिकों का असली टारगेट "हिन्दू धर्म" ही होता है…बहुत ही सुंदर बात कही आप ने, भारत देश में जिस तरह से विज्ञान को ताक पर रखकर अंधविश्वासों को पारायण, जप—तप, व्रत—त्योहारों के रूप में किया जाता है. यह बेहद दयनीय और क्षोभनीय है।
ReplyDeleteचिंता का विषय है !! कब भारतीय जनमानस सही वैज्ञानिक चिंतन दृष्टि सम्पन्न होगा !! कब वह सृष्टी में अपने अस्तित्व के सही कारण जान पाएगा!! कब वह इस सृष्टि से काल्पनिक शक्तियों को पदच्यूत कर अपनी वास्तविक शक्ति से संवार पाएगा ?
कब वह मिथ्या अवैज्ञानिक पुस्तकों को छोड़ के वेद के सही अर्थों को अपनाएगा? आप बहुत अच्छा कार्य कर रहे हैं. मेरी बहुत सारी शुभकामनाएं आपको!!
आज हम कभी नहीं सोचते की कभी पुरे विश्व में आर्य संस्कृति थी, जो इन्ही धर्मान्धता तथा संकीर्ण दृष्टीकोण के कारण सिर्फ भारत तक सिमट कर रह गयी है. वो भी कोई सुधार न होने के कारण धर्मातरण के रूप में कम होती जा रही है. जिसने भी इसे सुधारने की कोशिस की उसे सरे आम अपमानित किया गया, गलियां दी गयी तथा धोके से विष भी दिया गया. ये तथाकथित बाबाओं ने जिन्होंने इश्वर के नाम पर सदिओं से जनता को लुटा, मुर्ख बनाया उन्ही का सम्मान बढाया गया. ठीक है भैया लुटते रहो! सही बात के समर्थन के लिए हमें गलियां देते रहो!!
ReplyDeleteलिंगोत्थान सबका होता है ... कोई बड़ी बात नहीं है ...
ReplyDeleteलिंग से पत्थर उठाने का काम केवल नागा बाबा ही नहीं करते हैं ... ऐसा काम कई देशों के कई लोग कर चुके हैं ... कई देशों में इस तरह के करतब दिखाने वाले लोग मिल जायेंगे ... क्या दुसरे देशों में लिंग पूजन का परंपरा है ? नहीं है ...
क्या इस वजह से लिंग या योनी का पूजन करना चाहिए? यदि हाँ ... तो ये कहाँ का तर्क है ? कैसा तर्क है ?
दांत से हवाई जहाज खींचने वाले भी मिल जाते हैं, या फिर बालों से ट्रक खींचने वाले ... फिर हम दांत और बालों के भी पूजा शुरू कर देते हैं ... यदि यही तर्क है लिंग पूजन का ....
बंदरों में लिंग से एक दुसरे को मारने का अगर कोई प्रचलन है तो क्या ये कोई सही वजह है कि हम अपने समाज में या धर्म में लिंग पूजन शुरू कर दें ...
फेलाशियो, आधुनिक दुनिया में और हर देश में काम क्रीडा रत युगल करते हैं ... कोई नई बात नहीं है ... इससे यह कैसे साबित होता है कि लिंग पूजन ज़रूरी और तर्कसंगत है ? या फिर इससे मन में लिंग पूजन के लिए विश्वास का संचार होना चाहिए ?
भारतीय दर्शन यदि केवल अतार्किक कुसंस्कारों पर आधारित है तो ऐसे दर्शन का यथाशीघ्र तिलांजलि दे देना चाहिए ... पर मुझे लगता है कि भारतीय दर्शन शतर का ऐसे कुसंस्कारों से कोई लेना देना नहीं है ... ये सब स्वार्थी लोगों द्वारा प्रचलित परम्पराएं हैं ...
सवाल यहाँ ये नहीं है कि हमारे शरीर का एक अंग, प्रक्रिया में इस्तमाल होने वाला अंग किस तरह और क्यूँ और कितना महत्वपूर्ण है ... सवाल ये है कि शरीर के एक महत्वपूर्ण अंग को भगवान मानकर पूजा करना कहाँ तक जायज है .... और अगर अब तक होता भी आया हो ... तो क्या अब समय नहीं आया है कि हम ऐसे दकियानुसी परम्पराओं का त्याग कर अच्छे परम्पराओं का निर्माण करें ?
"उफ्फ शायद आपकी बात से तो भगत सिंह भी सहमत ना होते :)) फिर भी इस बात से ये अंदाजा हो रहा है मुझे जानकारी का ...सच्ची :)"
ReplyDeleteकृपया अपनी बात के समर्थन के लिए भगत सिंह का सहारा न लें .. वो क्या करते और क्या न करते ये तो उन्ही को पता होता ... खैर नास्तिकों में समय के हिसाब से बदलाव आयें हैं ... आज से एक सदी पहले जो नास्तिक हुआ करते थे उनकी सोच और आजके नास्तिकों की सोच में फर्क होना लाजमी है ...
किस जानकारी का क्या अंदाज़ा हो रहा है कृपया ये भी विस्तृत करें ... लेखक के उपहासात्मक लेख के विरोध में खुद जब आप उपहासात्मक भाषा का प्रयोग करते हैं तो आपको विरोध का कोई हक नहीं है ...
"वैसे मुझे तो जंगली हम सबसे ज्यादा प्रेक्टिकल ज्ञानी लगते हैं ख़ास तौर से शरीर विज्ञान के बारे में ......वैसे आप किनकी बात कर रहे हैं .......आज का विज्ञान जो एक्यूपंचर और प्रेशर दे रहा है वो तो उन ऋषि मुनियों ने बहुत पहले ही ढूंढ लिया था (नथ बालि आदि गहनों के रूप में) , नाड़ी विज्ञान से (बिना लक्षण पूछे) शरीर के आतंरिक रोगों का ज्ञान हो जाता है आप भी जानते हैं, वात कफ पित्त का सारगर्भित और महान सिदांत भी आपको पता होगा नहीं हो तो गूगल पर मिल सकता है ,कम पढ़े लिखे लोग जो श्लोक लिख गए हम पढ़े लिखों के पाठ्यक्रम का हिस्सा हैं .......सब जानते हैं"
ReplyDeleteअगले बार जब कोई शारीरिक परेशानी हो तो कृपया डॉक्टर के पास न जाकर किसी "बाबा" के पास जाइयेगा ...
आयुर्वेद में जो सिद्धांत दिए गए हैं ... वो ऐसे लोग नहीं दिए हैं जो जंगलों में आधे नंगे होकर पड़े रहते थे ... या फिर पूजा के नाम पर भोली भाली जनता को ठगते थे ...
नथ बालि आदि गहनों के रूप में अकुप्रेषर हो रहा है ... ये ज़रूर नया सिद्धांत है ... कितना तर्कसंगत है ये और कहाँ किस विश्वविद्यालय या विज्ञानशाला में ये प्रमाणित किया गया है .. ये भी बता दीजियेगा ...
शायद आपने पोस्ट या टिप्पणियों को पढ़ने या समझने की कोशिश नहीं की होगी ... यहाँ लिंग पूजन जैसे सामाजिक कुरीतियों की बात हो रही है न कि वैकल्पिक चिकित्सा शास्त्र की ...
भारतीय चिकित्सा विज्ञान "आयुर्वेद" में यदि सभी रोगों का हल होता तो आज भारत में अलोपथी का इतना बोलबाला नहीं होता ...
"ये पढ़े लिखे लोगों के लिए नहीं है उनके लिए है जो गूगल से सन्दर्भ दूंढ़ कर कम समय में स्केप्टिक बने हैं ...बात ही ख़त्म हो गयी और मैंने इसे साइंटिफिक नहीं कहा है ..इतनी अक्ल तो है मेरे पास"
ReplyDeleteयदि आप इसे वैज्ञानिक नहीं मानते हैं, तो इस लेख का विरोध का उद्देश्य क्या है ? कोई गूगल देखकर स्केप्टिक बने, या बहुत सोच विचार कर, असल बात तो यह है इस व्यक्ति ने समाज में व्याप्त एक गलत और भ्रामक परम्परा के खिलाफ आवाज़ उठाई है ... जो सराहनीय है
"बिलकुल बिलकुल सहमत हूँ ......... यही बात यहाँ मौजूद सन्दर्भों पर भी लागू होती है ..ऐसे सो कोल्ड स्केप्तिज्म पर क्या कहूँ मैं :)) और तो और आधे से जयादा स्केप्तिक वो बने हुए हैं जिन्हें ये भी नहीं पता की उत्तर काण्ड बाद में जोड़ा गया है ...या संस्कृत के ज्ञान से पैदल हैं"
ReplyDeleteरामायण में उत्तर कांड बाद में जोड़ा गया हो या पहले ... संस्कृत का ज्ञान हो या नहीं ... यह एक स्केप्तिक होने के लिए या तर्क संगत बात करने के क्यूँ ज़रूरी हो गया ये समझ में नहीं आया ...
शादी हो जाय और बच्चे हो जाय तो ज़रा मिलिएगा ... देखना क चाहूँगा कि आप अपने बच्चों को अंगरेजी सिखा रहे हैं या संस्कृत में ग्रजुएट बना रहे हैं ... संस्कृत के बारे में ब्लॉग पर बड़ी बड़ी बातें करना आसान है ... जितने लोग संस्कृत में ज्ञान बघारते हैं वो अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम विद्यालय में भेजते हैं शिक्षा के लिए ...
तर्क संगत बात करने के लिए कोई भी भाषा का ज्ञान पर्याप्त है ... चाहे वो संस्कृत हो या अंग्रेजी ... ज़रूरी है एक जग्रत मन ... जो आँख बंद करके किसी बात पे भरोसा न करे ..
"दरअसल मेरे कमेन्ट माहौल से प्रभावित होते हैं अगर आप ज्ञानियों से कभी किसी वैज्ञानिक लेख पर बात होगी तो आप मेरे कमेन्ट में फर्क महसूस कर लेंगे "
ReplyDeleteटिप्पणी से टिप्पणीकार के ज्ञान, सोच और समझ पता चलता है ... आप यदि किसी बात को सही समझते हो तो उस बात के पक्ष में आपके पास सही तर्क होने चाहिए ...
अब ये मत कहियेगा कि "विश्वास बड़ी चीज़ है" ...
"हाँ .... इन्द्रनील जी ने सारी बातें सही कही .......... बस दुःख इस बात का है की अपने साइंटिफिक ज्ञान (जो मुझे शायद 10 स्टेंडर्ड में मिल गया था ) को झाड़ने के अति उत्साह में वो मेरे कुछ कमेन्ट नहीं पढ़ पाए और कुछ ज्यादा ही टाइप कर गए मैं तो अभी तक आश्चर्य चकित हूँ :))"
ReplyDeleteदुःख इसी बात का है कि कई लोग अपने दसवीं में अर्जित ज्ञान भी सही ढंग से इस्तमाल नहीं कर पाते हैं ... हम पढ़े लिखे हैं ... अपने दिमाग से सोच सकते हैं ... फिर हम इतने आसानी से ऐसे लोगों द्वारा लिखे या कहे बातों को कैसे मान लेते हैं जो हमेशा समाज से दूर रहे, कभी कोई विद्या अर्जन नहीं किये ?
टिप्पणी सिर्फ पढ़ना ही काफी नहीं होता है ... कही गई बात और उसमे निहित तर्क को समझना भी ज़रूरी होता है ... नास्तिकों में और आस्तिकों में यही फर्क होता है ...
एक नास्तिक बात को समझने की कोशिश करता है ...सवाल करता है ... जवाब ढूँढता है ... हर बात को आँखें बंद करके सही नहीं मानता है ...
जबकि एक आस्तिक कभी कोई सवाल नहीं करता है ... कभी जवाब नहीं ढूँढता है ... हर बात पे धर्मग्रन्थ और धर्मगुरुओं की बात को सही मानता है ... तर्क को परे रख विश्वास को ज्यादा महत्व देता है ...
टिप्पणी में बहुत सारी बात एक साथ लिखी जाय या छोटी छोटी टिप्पणी की जाय ... ये अपनी अपनी मर्ज़ी है ... ज्यादा ज़रूरी है कि तिपनी में तर्क संगत बात कही जाय ... पुराने भारतीय ग्रंथो का वास्ता देकर बहुत तथाकथित सारगर्भित बातें कही जा सकती है ... उससे कुछ भी सिद्ध नहीं होता है ... तर्क के आधार पर कौन सी बात खरी उतरती है ये देखना है ... भले ही वो हमारे धर्मग्रंथो में कही गई हो या नहीं .... हमें हक है कि हम अपने धर्मग्रंथो में कही गई बातों पर सवाल उठाये ..
गीता हो या उपनिषद, या पुराण, या कुरआन, हर धर्मग्रन्थ पे सवाल उठनी चाहिए ... हम इंसान है कोई गधे घोड़े नहीं कि मालिक जो बोलेगा वही करना है ...
haan ye baat main bhi manta hun ki nastikta kee baat par hindu dharm ka samaalochna sabse jyada hota hai ...
ReplyDeleteiska kaaran hai ki islam ya isaai dharm ke log apne dharm ka samaalochna bilkul nahi sah paate hain aur maarne-marne par utaru ho jaate hain ...
isse aur jyada ye saabit hota hai kai dharmik baatein niri bewakufi ke alawa aur kuch nahi hai ...
sabhi dharm mein kuch acchi baatein to kuch galat baatein hoti hai ... manav samaaj tabhi sudhar sakta hai jab ham apne apne dharm se galat baaton ko nikaal dein ...
dharmik vaimanswa ka kaaran bhi yahi hai ki ham apne dharm ka samalochna nahi sah paate hain ...
@कृपया अपनी बात के समर्थन के लिए भगत सिंह का सहारा न लें ..
ReplyDeleteमैं भी इस ब्लॉग से यही उम्मीद रखता हूँ ,जो तोडी जा चुकी है
@खैर नास्तिकों में समय के हिसाब से बदलाव आयें हैं ... आज से एक सदी पहले जो नास्तिक हुआ करते थे उनकी सोच और आजके नास्तिकों की सोच में फर्क होना लाजमी है ...
हाँ आजकल वो मॉडर्न साइंस में अन्धविश्वास करने लगे हैं ,मॉडर्न साइंस खुद हर बात के दो पक्ष रख देता है ?? और बाकी सिर्फ प्रभावित या और बुद्धी जीवी दिखने में होने वाली सुविधा की वजह से नास्तिक बने हैं
@किस जानकारी का क्या अंदाज़ा हो रहा है कृपया ये भी विस्तृत करें .
ReplyDeleteयहाँ आगे कमेंट्स में कुछ स्पष्ट हो जायेगा
@लेखक के उपहासात्मक लेख के विरोध में खुद जब आप उपहासात्मक भाषा का प्रयोग करते हैं तो आपको विरोध का कोई हक नहीं है
मुद्दा ये है की पहल कौन करता है ??
@अगले बार जब कोई शारीरिक परेशानी हो तो कृपया डॉक्टर के पास न जाकर किसी "बाबा" के पास जाइयेगा ...
ReplyDeleteमैं "सत्संग" को केवल "बिहेवियर थेरेपी" समझता हूँ , इस हिसाब से बाबा (सही वाले ) को एक साइकोलोजिस्ट (सही वाले ) से मेच किया जा सकते हैं (क्या फर्क है ?? दोनों बस सांत्वना ही देते हैं.... है ना ! ठीक तो सब "वक्त" या "इंसान का मन" ही करता है )..अगर मैं कहूँगा की पढ़े लिखे लोग इनके बताये छोटे मोटे उपायों (सूर्य नमस्कार,मन्त्र जप,घरेलु नुस्खे आदि भी शामिल ) से बड़े बड़े रोगों में फायदा पाते देखे गए हैं (मैं अपनी बात नहीं कर रहा )..तो ????.....सही जीवन शैली से बीमारियाँ कम हो जाती हैं जो आजकल "आर्ट ऑफ़ लिविंग" जैसी कांसेप्ट अर्थात कह सकते हैं "सत्संग" में बतायी जाती है से डॉक्टर की जरूरत कम पड़ती है (मैं किसी भी पक्ष को अनावश्यक नहीं मानता )
@आयुर्वेद में जो सिद्धांत दिए गए हैं ... वो ऐसे लोग नहीं दिए हैं जो जंगलों में आधे नंगे होकर पड़े रहते थे ...
मैं आपकी दी गयी "जंगली लोगों" की परिभाषा बड़ी विस्तृत महसूस कर रहा हूँ ..क्या करूँ ?
@या फिर पूजा के नाम पर भोली भाली जनता को ठगते थे ...
अगर कोई डॉक्टर गलत ओपरेशन कर दे तो उससे पूरी एलोपेथी बदनाम नहीं की जा सकती .....यही बात यहाँ लागू होती है ......
चमत्कार के पीछे पड़े लोग तो विज्ञान से ठगने में आयेंगे और अध्यात्म से भी
@नथ बालि आदि गहनों के रूप में अकुप्रेषर हो रहा है ... ये ज़रूर नया सिद्धांत है ... कितना तर्कसंगत है ये और कहाँ किस विश्वविद्यालय या विज्ञानशाला में ये प्रमाणित किया गया है .. ये भी बता दीजियेगा ...
ReplyDelete@किस जानकारी का क्या अंदाज़ा हो रहा है कृपया ये भी विस्तृत करें
अगर आप इन बातों का खंडन करें तो मुझे ख़ुशी होगी ,क्योंकि मैं भी खंडन से परेशान नहीं होता... मैं तो किसी पर विश्वास ही नहीं करता ना
Even in the Bible, the nose ring gets a notable mention. In the part Genesis 24:22, Abraham requests his eldest servant to find a partner for his son Isaac; the servant found Rebekah; among the gifts he gave her was a golden ear ring. It was stated, that Shanf in colloquial word in Hebrew said to refer the "Nose Ring"!
In South Africa, this particular Jewel is displayed among the nomadic tribal of Berber and Beja, as a display of their wealth. The larger the size, it considers them as wealthy.
Also, there is a known close connection between the nose and the sexual reflexes. Believe me, the age old practice in India to predict a person's character, used to first observe the Nose of a person; it is also widely acclaimed in the "Samudrika Lakshanam" an art that studies the behavioral pattern of every individual, that points to the size, length, positioning etc. of a persons nose and predicts the character to the near accurate result. Even in the Medical terms, it is established beyond doubt, that swelling of the nasal spongy tissues and congestion of the nose occur during sexual excitement in human beings. The nasal passages of women swell, and occasionally bleed, during menstruation. Mr. Wilhelm Fliess (1858-1928 AD), an associate & close friend of Dr. Sigmund Freud, found a strange relationship between the nose and the female sexual apparatus, and held that certain gynecological complaints could be cured by cauterizing the appropriate parts of the nose.
http://www.trsiyengar.com/id13.shtml
http://en.wikipedia.org/wiki/Emma_Eckstein
ये भी बताइयेगा की सभी धर्मों (हिन्दू मुस्लिम सिक्ख इसाई ) में सर पर कपड़ा (किसी ना किसी रूप में ) क्यों रखा जाता है ??
@शायद आपने पोस्ट या टिप्पणियों को पढ़ने या समझने की कोशिश नहीं की होगी ...
पढ़ ली और समझ ली ..एकतरफा पोस्ट है ..इसीलिए और नजरिये दिए हैं कमेंट्स में
@यहाँ लिंग पूजन जैसे सामाजिक कुरीतियों की बात हो रही है न कि वैकल्पिक चिकित्सा शास्त्र की ...
यहाँ आप ऋषि मुनियों (उन्हें आप जंगली कहते हों शायद ) का बात (उपहास) कर रहे हैं तो उनसे जुडी सभी चीजें आनी ही हैं
@भारतीय चिकित्सा विज्ञान "आयुर्वेद" में यदि सभी रोगों का हल होता तो आज भारत में अलोपथी का इतना बोलबाला नहीं होता .
अगर एलोपेथी के पास हर बात का इलाज होता तो होमियोपैथी , आयुर्वेद का अस्तित्व ही नहीं होता . सभी पक्ष जरूरी हैं जीवन में भी लेख में भी ...कुछ रोगों में एलोपेथी बहुत सफल पाई जाती है
(समय की कमी से सन्दर्भ नहीं दे रहा हूँ )
[सुधार]
ReplyDeleteकुछ रोगों में होम्योपेथी एलोपेथी से ज्यादा सफल पाई जाती है
(समय की कमी से सन्दर्भ नहीं दे रहा हूँ )
@यदि आप इसे वैज्ञानिक नहीं मानते हैं, तो इस लेख का विरोध का उद्देश्य क्या है ?
ReplyDeleteविरोध ??? मैं तो नजरिये दे रहा हूँ ना ! ........मैं मानता हूँ हर बात के सारे मौजूद पक्ष दिखने चाहिए .....उनकी आलोचनात्मक व्याख्या हो तो ये पता चल जाता है की यूं ही कोई लेख देख कर शुरुआत नहीं कर दी गयी है... सारे पक्ष जरूरी हैं जीवन में भी लेख में भी
मैं चर्चा में ठीक शामिल भी नहीं हो पाया हूँ :(
@कोई गूगल देखकर स्केप्टिक बने, या बहुत सोच विचार कर, असल बात तो यह है इस व्यक्ति ने समाज में व्याप्त एक गलत और भ्रामक परम्परा के खिलाफ आवाज़ उठाई है ... जो सराहनीय है
ये आपका नजरिया है मैं मानता हूँ इन विषयों पर काफी अध्ययन शेष है ...क्योंकि भारत की बहुत सी परम्पराओं में आज साइंस ढूंढा जा चुका है ... बाकी बात तो मिश्र जी से ही करें तो ज्यादा सही रहेगा
@रामायण में उत्तर कांड बाद में जोड़ा गया हो या पहले ... संस्कृत का ज्ञान हो या नहीं ... यह एक स्केप्तिक होने के लिए या तर्क संगत बात करने के क्यूँ ज़रूरी हो गया ये समझ में नहीं आया ...
ReplyDeleteइसलिए जरूरी है ताकि नए भोले स्केप्टिक बनावटी घटनाओं को लेकर राम विरोधी पोस्ट ना बना दें ..गूगल पर ढेरों मिलती हैं
@शादी हो जाय और बच्चे हो जाय तो ज़रा मिलिएगा ... देखना क चाहूँगा कि आप अपने बच्चों को अंगरेजी सिखा रहे हैं या संस्कृत में ग्रजुएट बना रहे हैं ...
अब ग्रेजुएशन की क्या जरूरत आ गयी ????,बिना ग्रेजुएशन किये पढ़ ले तो कोई परेशानी हो सकती है ??? या सिर्फ सर्टिफिकेट वाली पढाई ही पढाई है ?????
@संस्कृत के बारे में ब्लॉग पर बड़ी बड़ी बातें करना आसान है ... जितने लोग संस्कृत में ज्ञान बघारते हैं वो अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम विद्यालय में भेजते हैं शिक्षा के लिए ...
तर्क संगत बात करने के लिए कोई भी भाषा का ज्ञान पर्याप्त है ...
चाहे वो संस्कृत हो या अंग्रेजी ... ज़रूरी है एक जग्रत मन ... जो आँख बंद करके किसी बात पे भरोसा न करे ..
हाँ ये बात सब पर अप्लाई होती है ....कृपया मेरे बारे में इतनी जल्दी कोई राय ना बनाएं ..मैंने कोई बड़ी बात नहीं कही है
वैसे मैंने एक मित्र (ब्लोगर) को मेल भी किया है ....लगभग मेरी उम्र के ही हैं ...मैंने पूछा है की क्या वो अपने बेटे को संस्कृत सिखा रहे हैं ??)
@टिप्पणी से टिप्पणीकार के ज्ञान, सोच और समझ पता चलता है ...
ReplyDeleteलेख से और उसके समर्थकों (सभी नहीं ) की टिप्पणी से ये पता चल जाता है की कितना एक तरफ़ा सोचते हैं या कितने पक्ष एनालाइज किये हैं ..जैसे मुझे पता है की इस चर्चा में से कुछ लोग सिर्फ वो "चटपटे लगने वाले संवाद" चुन रहे होंगे जो कभी उनके काम आ सकें... चर्चा के नतीजों से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ेगा ....
@आप यदि किसी बात को सही समझते हो तो उस बात के पक्ष में आपके पास सही तर्क होने चाहिए ...
इस मुद्दे पर बोलने के लिए मिश्र जी जैसे अनुभवी और वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाले व्यक्ति ही होने चाहिए ..मैं सिर्फ दृष्टिकोण दे रहा हूँ कमेंट्स के रूप में...... ताकि उनका खंडन या समर्थन हो तो बहस कुछ नतीजा निकले ..वैसे ये काम लेखक का है ..आप सदियों से चले आ रहे से चल रहे कथित विश्वास या अंधविश्वास को मिटाने का कार्य करना कहते हैं तो थोडा और अच्छे तरह होना चाहिए ना ....
@अब ये मत कहियेगा कि "विश्वास बड़ी चीज़ है"
नहीं... नहीं... मैं किसी पर विश्वास नहीं करता ..
(मैं समय (और अनुभव) की कमी से भी बोलने से बच रहा हूँ ...ये विषय समझाना आसान काम नहीं है )
@दुःख इसी बात का है कि कई लोग अपने दसवीं में अर्जित ज्ञान भी सही ढंग से इस्तमाल नहीं कर पाते हैं ...
ReplyDeleteऔर मुझे इस बात का की आप उसे "सब जगह" अपने तरीके से अप्लाई कर रहे हैं और मैं अभी सिर्फ नजरिये बता रहा हूँ
@हम पढ़े लिखे हैं ... अपने दिमाग से सोच सकते हैं ... फिर हम इतने आसानी से ऐसे लोगों द्वारा लिखे या कहे बातों को कैसे मान लेते हैं जो हमेशा समाज से दूर रहे, कभी कोई विद्या अर्जन नहीं किये ?
वैज्ञानिक भी धुन के पक्के और समाज से दूर रहने वाले होते हैं ....कुछ बात तो होती है एकांत में ......
बेहद सुन्दर प्रश्न है पर समय की कमी से ठीक से उत्तर नहीं दे पा रहा हूँ
@टिप्पणी सिर्फ पढ़ना ही काफी नहीं होता है ... कही गई बात और उसमे निहित तर्क को समझना भी ज़रूरी होता है ... नास्तिकों में और आस्तिकों में यही फर्क होता है ...एक नास्तिक बात को समझने की कोशिश करता है ...सवाल करता है ... जवाब ढूँढता है ... हर बात को आँखें बंद करके सही नहीं मानता है ...जबकि एक आस्तिक कभी कोई सवाल नहीं करता है ... कभी जवाब नहीं ढूँढता है ... हर बात पे धर्मग्रन्थ और धर्मगुरुओं की बात को सही मानता है ... तर्क को परे रख विश्वास को ज्यादा महत्व देता है ...
देखा आपने सही कहा था... बड़ी बड़ी बातें करना आसान है ..अब देखिये वहां आपने कहा की जाग्रत मन का महत्त्व ज्यादा है वो बात यहाँ भी एप्लाई होनी चाहिए थी ..जाग्रत मन के व्यक्ति को कोई परेशानी नहीं हो सकती चाहे वो आस्तिक हो या नास्तिक ..अब ये भी बताइये की क्या गीता में अर्जुन ने कृष्ण पर संशय नहीं किया था ???
@टिप्पणी में बहुत सारी बात एक साथ लिखी जाय या छोटी छोटी टिप्पणी की जाय ... ये अपनी अपनी मर्ज़ी है ... ज्यादा ज़रूरी है कि तिपनी में तर्क संगत बात कही जाय ...
ये बात तो सही है !
@पुराने भारतीय ग्रंथो का वास्ता देकर बहुत तथाकथित सारगर्भित बातें कही जा सकती है ... उससे कुछ भी सिद्ध नहीं होता है ... तर्क के आधार पर कौन सी बात खरी उतरती है ये देखना है ... भले ही वो हमारे धर्मग्रंथो में कही गई हो या नहीं ....
हमें हक है कि हम अपने धर्मग्रंथो में कही गई बातों पर सवाल उठाये ..गीता हो या उपनिषद, या पुराण, या कुरआन, हर धर्मग्रन्थ पे सवाल उठनी चाहिए ... हम इंसान है कोई गधे घोड़े नहीं कि मालिक जो बोलेगा वही करना है ...
ये भी बिलकुल ठीक कहा पर इसका पालन कहाँ हो रहा है ???
धर्मों में समानता ढूंढनी चाहिए...... सिर्फ विरोधाभास नहीं ....सत्य मिल सकता है ..जैसे वही.... सर पर कपड़ा (किसी ना किसी रूपमें ) रखना
@मित्र इन्द्रनील जी
ReplyDeleteमुझे बहुत अच्छा लगा आपसे बात करना ..मैं थोडा जल्दी में हूँ इसलिए चर्चा में शामिल नहीं हो पा रहा हूँ .....लेकिन आपका फिर से आना मुझे अच्छा लगा ...पिछली पोस्ट में ग्रोवर जी से भी बेहद मित्रता पूर्वक चर्चा हुयी थी ....ये सच में एक अच्छी बात है की आप प्रश्न पूछते हैं... बाकी बातें मिश्र जी और चिपलूनकर जी जैसे विद्वान ही स्पष्ट कर पाएंगे ..मैं वैसे हर बात के सन्दर्भ देता हूँ ..पर अभी नही दे पा रहा हूँ ...इसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ
समय और अनुभव के अभाव में ऐसे संवेदनशील विषय पर अपनी ओर से ज्यादा कुछ बोलने से बचना ही चाहता हूँ ..उम्मीद है आप मेरी परेशानी समझेंगे
शुभकामनाएं
यह नास्तिकों का ब्लॉग है या मात्र हिन्दू धर्म पर अनास्था रखने वालो का ब्लॉग है ?????
ReplyDeleteप्रथम तो भईये अपनी भोंथरी बुद्धि को थोड़ी ज्ञान कि रगड़ खिलवाओ, जिससे कि लिंग और योनी के अर्थ (जो कि तुम्हे सिर्फ मल उत्सर्जन अंग के रूप में ही ज्ञात है ) भी पता चले. अरे भईये दो रूपये कि सामग्री को छोड़कर कुछ विद्वानों के साहित्य का अध्यन करो (हाँ पैसा जरूर खर्च होगा ) राजस्थान पत्रिका वाले कुलिश जी के ग्रंथों का ही अध्यन कर लो, सारा लोकायत पना भूल जाओगे :)
वैसे आदमी चाहे कितना ही नकाब लगाले उसकी भाषा,लहजे, आदि से पहचान में आ ही जाता है ........
कमेन्ट में आई अपने बच्चों को संस्कृत सिखाने कि बात ....... तो आज किसी भी भाषा को बोलने वाले करोड़ों कि संख्या में होते है तो भी उस भाषा के व्याकरण से भिज्ञ हो यह कतई आवश्यक नहीं है क्योंकि हममे से अधिकाँश अपने द्वारा बोले जाने वाली भाषा के व्याकरण से सर्वथा परिचित नहीं है ......................... इसी आलोक में मैं इतना कह सकता हूँ मै अपने बेटे को ___जो कि अपनी सुनने की कम क्षमता के कारण ढंग से बोलना नहीं सीख पाया है _____ को संस्कृत पढ़ना अवश्यमेव सिखाउंगा व्याकरण सीखना उस पर निर्भर है. खैर इसके अलावा जितनी भी सांस्कृतिक संस्कार दे सकता हूँ देने कि सारी कोशिश रहती है ................... सुबह मेरे साथ ठाकुर जी कि सेवा में हाथ भी बटाता है :) ............................ वह संस्कृत सीखेगा और जरूर सीखेगा, व्याकरण सीखना उस पर निर्भर रहेगा परन्तव संस्कृत पढने में उसे कोई दिक्कत नहीं आयेगी ऐसा विशवास है .
ओह… यह आपकी ज़र्रानवाजी है कि आपने मेरे कमेण्ट को बरकरार रखा…
ReplyDeleteफ़िर भी वही बात रिपीट करना चाहूंगा जो इस कमेण्ट बाक्स के ऊपर लिखी है… "किसी धर्म/संप्रदाय विशेष को लक्ष्य करके लिखी गई टिप्पणियाँ हटा दी जाएँगी…" लेकिन ऐसी पोस्ट रखी जायेगी… :) :)
=========
विद्वान लोगों… चलिये अब लिंग पूजन पर सवाल उठाने के बाद "मोहम्मद" के सेक्स कारनामों और बिन-ब्याही मां "मदर मेरी" के आँसुओं पर भी चर्चा हो जाये… :) :) :) और भी बहुतेरे विषय हैं… समय-समय पर अपने अनाड़ी सुझाव दूंगा :) :) नास्तिक विद्वानों की महफ़िल में मुझे भी थोड़ा ज्ञान मिलेगा… :)
इन्द्रनील जी ,
ReplyDeleteलिंग पूजा शक्ति पूजा है ..शक्ति की पूजा है ...
फैलिक वरशिप पूरी दुनिया में किसी न किसी रूप में विद्यमान है हमारे यहाँ इसे एक संस्कारित भव्य धार्मिक स्वरुप दे दिया है बस ......इन लिनक्स को देखें ,परिप्रेक्ष्य बहुत स्पष्ट हो जायेगा -हर हिन्दू कर्मकांडों के पीछे हाथ धोकर पड़ने के पहले अपने ज्ञान को अभिवृद्ध करना जरुरी है नहीं तो विचार एकांगी रह जायेगे -
http://mishraarvind.blogspot.com/2009/02/blog-post_18.html
http://mishraarvind.blogspot.com/2009/02/blog-post_19.html
http://mishraarvind.blogspot.com/2009/02/blog-post_21.html
बड़े आश्चर्य की बात है कि इस ब्लॉग के नास्तिक सदस्य और अन्य समर्थकों ने इस बहस पर खामोशी अख्तियार कर कुछ अवैज्ञानिक बातें करने और भ्रम फैलाने वालों के लिए मैदान खुला छोड़ दिया है। समाज को सांस्कृतिक पिछड़ेपन के दलदल में पड़े रहने देने वालों का समुचित तार्किक विरोध होना चाहिए वह वैचारिक समानता रखने वाले भाई बहन नहीं कर रहे हैं, बहुत खेद की बात है।
ReplyDeleteरही बात हिन्दु धर्म के विरोध की, धर्म चाहे कोई भी हो यदि समाज की उत्तरोत्तर प्रगति में बाधक है तो उसका विरोध लाज़मी है। प्रश्न यह है कि हमें पहले अपना घर देखना चाहिए कि दूसरों के घरों में झाँकना चाहिए ? क्यों चिपलूनकर ?
दृष्टिकोणजी, आपने पिछली कितनी बहसों में कितनों का साथ दिया है ? पिछली ही बहस देखिए, संजय ग्रोवर अकेला लगा है। यहां तो फिर भी इंद्रनील भट्टाचार्जी, ऐडमिन, अंजुले आदि सशक्त तर्कों के साथ उपस्थित हैं।
ReplyDeleteबहरहाल दूसरे क्यों चुप हैं, यह तो वही जानें, मैं तो अपने बारे में बता सकता हूं।
आपने भ्रम फैलाने की बात कही। अगर एक मंतव्य यहां भगतसिंह से है तो मैं कहूंगा कि एक तो मैं क़िताब आधारित लेखन बहुत कम करता हूं दूसरे भगतसिंह नास्तिक थे या आस्तिक, यह जानने और बताने में मेरी न तो रुचि है, न सुविधाएं हैं, न उस तरह का मेरा मानसिक ढंाचा है। इस बारे में दूसरे सदस्यों को ही प्रमाण रखने चाहिए। जहां तक मेरी समझ है, व्यक्तिगत रुप से मुझे इससे कोई फ़र्क ही नहीं पड़ता कि भगतसिंह नास्तिक थे या आस्तिक। मेरा विवेक कहता है कि दृष्टिकोण जी अगर इस दुनिया के पहले और अकेले नास्तिक हैं और मुझे लगता है कि वह सही हैं तो मुझे उनका साथ दे देना चाहिए भले मैं आस्तिक क्यों न होउं। एक-एक बच्चा इस दुनिया में अपने साथ न जाने क्या-क्या अनूठी चीज़ें लेकर पैदा होता होगा, सिर्फ़ संख्या बल के आधार पर या इस आधार पर उसे नकार देना कि वह दूसरों के जैसा नहीं है, मेरी समझ में बहुत बड़ी क्रूरता है, अन्याय है। (शेष अगले कमेंट में)
मनीष जी,
ReplyDeleteजावेद अख़्तर का शेर है:
ग़म होते हैं जहां ज़िहानत होती है,
दुनिया में हर शय की क़ीमत होती है।
दूसरे, यहां किसीने ऐसी घोषणा नहीं की है कि यह ब्लॉग किसीको नास्तिक बनाने के लिए है। आपके कमेंट के चलते मैंने ऐडमिन द्वारा दिया ब्लॉग का परिचय फिर पढ़ा। उसमें भी ऐसा कुछ नहीं है। मनीषजी, आपने समलैंगिकों के आंदोलन देखे होंगे। वे कहीं नहीं कहते कि हमारे जैसे बनो। वे कहते हैं कि हम भी इंसान हैं, हमारे पास अपने होने के तर्क हैं, फिर क्यों नहीं हमें जीने दिया जाता। मैं समलैंगिक नहीं हूं पर मुझे उनका तर्क भी समझ में आता है, बेबसी भी और साहस भी। और नास्तिक सारे एक जैसे और एक ही वजह से नहीं होते। इसलिए रेडीमेड तर्क ज़्यादा दिन काम नहीं आते। हर किसी को अपने जैसा होने के तर्क अपने ही जीवन, अनुभव और चिंतन से ढूंढने पड़ते हैं। अगर आप इस ब्लॉग को पढ़कर नास्तिक हो रहे हैं (दूसरे नहीं हो रहे) तो क्यों हो रहे हैं यह आपको ही अपने भीतर जाकर ढूंढना पड़ेगा। मैं आपको कोई रेडीमेड तर्क या तसल्ली दे भी दूंगा तो वह कितने दिन काम आएगा !? हां, जो आपने अपनी मनोवैज्ञानिक समस्याएं सामने रखीं, उसके लिए मैं आपकी ईमानदारी और साहस की दाद देता हूं। इस बारे में मदद करने का वादा आपसे किया ही जा चुका है। (अगले कमेंट में थोड़ा-सा और..)
http://amit-nivedit.blogspot.com/2010/12/blog-post_8949.html
ReplyDeleteशकुन्तला प्रेस कार्यालय के बाहर लगा एक फ्लेक्स बोर्ड देखे.......http://shakuntalapress.blogspot.com/2011/03/blog-post_14.html क्यों मैं "सिरफिरा" था, "सिरफिरा" हूँ और "सिरफिरा" रहूँगा! देखे.......... http://sach-ka-saamana.blogspot.com/2011/03/blog-post_14.html
ReplyDeleteआप सभी पाठकों और दोस्तों से हमारी विनम्र अनुरोध के साथ ही इच्छा हैं कि-अगर आपको समय मिले तो कृपया करके मेरे (http://sirfiraa.blogspot.com , http://rksirfiraa.blogspot.com , http://shakuntalapress.blogspot.com , http://mubarakbad.blogspot.com , http://aapkomubarakho.blogspot.com , http://aap-ki-shayari.blogspot.com , http://sachchadost.blogspot.com, http://sach-ka-saamana.blogspot.com , http://corruption-fighters.blogspot.com ) ब्लोगों का भी अवलोकन करें और अपने बहूमूल्य सुझाव व शिकायतें अवश्य भेजकर मेरा मार्गदर्शन करें. आप हमारी या हमारे ब्लोगों की आलोचनात्मक टिप्पणी करके हमारा मार्गदर्शन करें और अपने दोस्तों को भी करने के लिए कहे.हम आपकी आलोचनात्मक टिप्पणी का दिल की गहराईयों से स्वागत करने के साथ ही प्रकाशित करने का आपसे वादा करते हैं # निष्पक्ष, निडर, अपराध विरोधी व आजाद विचारधारा वाला प्रकाशक, मुद्रक, संपादक, स्वतंत्र पत्रकार, कवि व लेखक रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा" फ़ोन:9868262751, 9910350461
दोस्तों! अच्छा मत मानो कल होली है.आप सभी पाठकों/ब्लागरों को रंगों की फुहार, रंगों का त्यौहार ! भाईचारे का प्रतीक होली की शकुन्तला प्रेस ऑफ़ इंडिया प्रकाशन परिवार की ओर से हार्दिक शुभमानाओं के साथ ही बहुत-बहुत बधाई!
ReplyDeleteआप सभी पाठकों और दोस्तों से हमारी विनम्र अनुरोध के साथ ही इच्छा हैं कि-अगर आपको समय मिले तो कृपया करके मेरे (http://sirfiraa.blogspot.com , http://rksirfiraa.blogspot.com , http://shakuntalapress.blogspot.com , http://mubarakbad.blogspot.com , http://aapkomubarakho.blogspot.com , http://aap-ki-shayari.blogspot.com , http://sachchadost.blogspot.com, http://sach-ka-saamana.blogspot.com , http://corruption-fighters.blogspot.com ) ब्लोगों का भी अवलोकन करें और अपने बहूमूल्य सुझाव व शिकायतें अवश्य भेजकर मेरा मार्गदर्शन करें. आप हमारी या हमारे ब्लोगों की आलोचनात्मक टिप्पणी करके हमारा मार्गदर्शन करें और अपने दोस्तों को भी करने के लिए कहे.हम आपकी आलोचनात्मक टिप्पणी का दिल की गहराईयों से स्वागत करने के साथ ही प्रकाशित करने का आपसे वादा करते हैं
बडी गम्भीर बहस चल रही है। सैल भाई, आपकी तर्कशक्ति और हिम्मत की दाद देता हूं। नास्तिक तो मैं भी हूं, पर मैं अगर यहां कुछ बोला, तो बात बनने के बजाए बिगडेगी ही।
ReplyDeleteवैसे इस बहाने कुछ विज्ञान संचरकों की अवैज्ञानिक सोच देखने को मिली। शुक्रिया।
............
ब्लॉगिंग को प्रोत्साहन चाहिए?
एच.आई.वी. और एंटीबायोटिक में कौन अधिक खतरनाक?
waise to mujhe bhi bhagwaan, aatma, parmatma aadi par vishwaas nahi... par main kisi ke vishwaas aur shardha ke sath khilwaad nahi karta... sabki apni sonch aur jeene ka najariya hai...
ReplyDeleteदेश और समाजहित में देशवासियों/पाठकों/ब्लागरों के नाम संदेश:-
ReplyDeleteमुझे समझ नहीं आता आखिर क्यों यहाँ ब्लॉग पर एक दूसरे के धर्म को नीचा दिखाना चाहते हैं? पता नहीं कहाँ से इतना वक्त निकाल लेते हैं ऐसे व्यक्ति. एक भी इंसान यह कहीं पर भी या किसी भी धर्म में यह लिखा हुआ दिखा दें कि-हमें आपस में बैर करना चाहिए. फिर क्यों यह धर्मों की लड़ाई में वक्त ख़राब करते हैं. हम में और स्वार्थी राजनीतिकों में क्या फर्क रह जायेगा. धर्मों की लड़ाई लड़ने वालों से सिर्फ एक बात पूछना चाहता हूँ. क्या उन्होंने जितना वक्त यहाँ लड़ाई में खर्च किया है उसका आधा वक्त किसी की निस्वार्थ भावना से मदद करने में खर्च किया है. जैसे-किसी का शिकायती पत्र लिखना, पहचान पत्र का फॉर्म भरना, अंग्रेजी के पत्र का अनुवाद करना आदि . अगर आप में कोई यह कहता है कि-हमारे पास कभी कोई आया ही नहीं. तब आपने आज तक कुछ किया नहीं होगा. इसलिए कोई आता ही नहीं. मेरे पास तो लोगों की लाईन लगी रहती हैं. अगर कोई निस्वार्थ सेवा करना चाहता हैं. तब आप अपना नाम, पता और फ़ोन नं. मुझे ईमेल कर दें और सेवा करने में कौन-सा समय और कितना समय दे सकते हैं लिखकर भेज दें. मैं आपके पास ही के क्षेत्र के लोग मदद प्राप्त करने के लिए भेज देता हूँ. दोस्तों, यह भारत देश हमारा है और साबित कर दो कि-हमने भारत देश की ऐसी धरती पर जन्म लिया है. जहाँ "इंसानियत" से बढ़कर कोई "धर्म" नहीं है और देश की सेवा से बढ़कर कोई बड़ा धर्म नहीं हैं. क्या हम ब्लोगिंग करने के बहाने द्वेष भावना को नहीं बढ़ा रहे हैं? क्यों नहीं आप सभी व्यक्ति अपने किसी ब्लॉगर मित्र की ओर मदद का हाथ बढ़ाते हैं और किसी को आपकी कोई जरूरत (किसी मोड़ पर) तो नहीं है? कहाँ गुम या खोती जा रही हैं हमारी नैतिकता?
मेरे बारे में एक वेबसाइट को अपनी जन्मतिथि, समय और स्थान भेजने के बाद यह कहना है कि- आप अपने पिछले जन्म में एक थिएटर कलाकार थे. आप कला के लिए जुनून अपने विचारों में स्वतंत्र है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में विश्वास करते हैं. यह पता नहीं कितना सच है, मगर अंजाने में हुई किसी प्रकार की गलती के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ. अब देखते हैं मुझे मेरी गलती का कितने व्यक्ति अहसास करते हैं और मुझे "क्षमादान" देते हैं.
आपका अपना नाचीज़ दोस्त रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा"
जवाब के लिए ये लिंक देखे
ReplyDeletehttp://jayatuhindurastra.blogspot.com/2010/09/blog-post_11.html
श्रीमान जी, क्या आप हिंदी से प्रेम करते हैं? तब एक बार जरुर आये. मैंने अपने अनुभवों के आधार ""आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें"" हिंदी लिपि पर एक पोस्ट लिखी है. मुझे उम्मीद आप अपने सभी दोस्तों के साथ मेरे ब्लॉग www.rksirfiraa.blogspot.com पर टिप्पणी करने एक बार जरुर आयेंगे. ऐसा मेरा विश्वास है.
ReplyDeleteश्रीमान जी, हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु सुझाव :-आप भी अपने ब्लोगों पर "अपने ब्लॉग में हिंदी में लिखने वाला विजेट" लगाए. मैंने भी कल ही लगाये है. इससे हिंदी प्रेमियों को सुविधा और लाभ होगा.
Chootiye !!
ReplyDeleteप्रिय दोस्तों! क्षमा करें.कुछ निजी कारणों से आपकी पोस्ट/सारी पोस्टों का पढने का फ़िलहाल समय नहीं हैं,क्योंकि 20 मई से मेरी तपस्या शुरू हो रही है.तब कुछ समय मिला तो आपकी पोस्ट जरुर पढूंगा.फ़िलहाल आपके पास समय हो तो नीचे भेजे लिंकों को पढ़कर मेरी विचारधारा समझने की कोशिश करें.
ReplyDeleteदोस्तों,क्या सबसे बकवास पोस्ट पर टिप्पणी करोंगे. मत करना,वरना......... भारत देश के किसी थाने में आपके खिलाफ फर्जी देशद्रोह या किसी अन्य धारा के तहत केस दर्ज हो जायेगा. क्या कहा आपको डर नहीं लगता? फिर दिखाओ सब अपनी-अपनी हिम्मत का नमूना और यह रहा उसका लिंक प्यार करने वाले जीते हैं शान से, मरते हैं शान से
श्रीमान जी, हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु सुझाव :-आप भी अपने ब्लोगों पर "अपने ब्लॉग में हिंदी में लिखने वाला विजेट" लगाए. मैंने भी लगाये है.इससे हिंदी प्रेमियों को सुविधा और लाभ होगा.क्या आप हिंदी से प्रेम करते हैं? तब एक बार जरुर आये. मैंने अपने अनुभवों के आधार आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें हिंदी लिपि पर एक पोस्ट लिखी है.मुझे उम्मीद आप अपने सभी दोस्तों के साथ मेरे ब्लॉग एक बार जरुर आयेंगे. ऐसा मेरा विश्वास है.
क्या ब्लॉगर मेरी थोड़ी मदद कर सकते हैं अगर मुझे थोडा-सा साथ(धर्म और जाति से ऊपर उठकर"इंसानियत" के फर्ज के चलते ब्लॉगर भाइयों का ही)और तकनीकी जानकारी मिल जाए तो मैं इन भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने के साथ ही अपने प्राणों की आहुति देने को भी तैयार हूँ.
अगर आप चाहे तो मेरे इस संकल्प को पूरा करने में अपना सहयोग कर सकते हैं. आप द्वारा दी दो आँखों से दो व्यक्तियों को रोशनी मिलती हैं. क्या आप किन्ही दो व्यक्तियों को रोशनी देना चाहेंगे? नेत्रदान आप करें और दूसरों को भी प्रेरित करें क्या है आपकी नेत्रदान पर विचारधारा?
यह टी.आर.पी जो संस्थाएं तय करती हैं, वे उन्हीं व्यावसायिक घरानों के दिमाग की उपज हैं. जो प्रत्यक्ष तौर पर मनुष्य का शोषण करती हैं. इस लिहाज से टी.वी. चैनल भी परोक्ष रूप से जनता के शोषण के हथियार हैं, वैसे ही जैसे ज्यादातर बड़े अखबार. ये प्रसार माध्यम हैं जो विकृत होकर कंपनियों और रसूखवाले लोगों की गतिविधियों को समाचार बनाकर परोस रहे हैं.? कोशिश करें-तब ब्लाग भी "मीडिया" बन सकता है क्या है आपकी विचारधारा?
लीगल सैल से मिले वकील की मैंने अपनी शिकायत उच्चस्तर के अधिकारीयों के पास भेज तो दी हैं. अब बस देखना हैं कि-वो खुद कितने बड़े ईमानदार है और अब मेरी शिकायत उनकी ईमानदारी पर ही एक प्रश्नचिन्ह है
ReplyDeleteमैंने दिल्ली पुलिस के कमिश्नर श्री बी.के. गुप्ता जी को एक पत्र कल ही लिखकर भेजा है कि-दोषी को सजा हो और निर्दोष शोषित न हो. दिल्ली पुलिस विभाग में फैली अव्यवस्था मैं सुधार करें
कदम-कदम पर भ्रष्टाचार ने अब मेरी जीने की इच्छा खत्म कर दी है.. माननीय राष्ट्रपति जी मुझे इच्छा मृत्यु प्रदान करके कृतार्थ करें मैंने जो भी कदम उठाया है. वो सब मज़बूरी मैं लिया गया निर्णय है. हो सकता कुछ लोगों को यह पसंद न आये लेकिन जिस पर बीत रही होती हैं उसको ही पता होता है कि किस पीड़ा से गुजर रहा है.
मेरी पत्नी और सुसराल वालों ने महिलाओं के हितों के लिए बनाये कानूनों का दुरपयोग करते हुए मेरे ऊपर फर्जी केस दर्ज करवा दिए..मैंने पत्नी की जो मानसिक यातनाएं भुगती हैं थोड़ी बहुत पूंजी अपने कार्यों के माध्यम जमा की थी.सभी कार्य बंद होने के, बिमारियों की दवाइयों में और केसों की भागदौड़ में खर्च होने के कारण आज स्थिति यह है कि-पत्रकार हूँ इसलिए भीख भी नहीं मांग सकता हूँ और अपना ज़मीर व ईमान बेच नहीं सकता हूँ.
मेरा बिना पानी पिए आज का उपवास है आप भी जाने क्यों मैंने यह व्रत किया है.
ReplyDeleteदिल्ली पुलिस का कोई खाकी वर्दी वाला मेरे मृतक शरीर को न छूने की कोशिश भी न करें. मैं नहीं मानता कि-तुम मेरे मृतक शरीर को छूने के भी लायक हो.आप भी उपरोक्त पत्र पढ़कर जाने की क्यों नहीं हैं पुलिस के अधिकारी मेरे मृतक शरीर को छूने के लायक?
मैं आपसे पत्र के माध्यम से वादा करता हूँ की अगर न्याय प्रक्रिया मेरा साथ देती है तब कम से कम 551लाख रूपये का राजस्व का सरकार को फायदा करवा सकता हूँ. मुझे किसी प्रकार का कोई ईनाम भी नहीं चाहिए.ऐसा ही एक पत्र दिल्ली के उच्च न्यायालय में लिखकर भेजा है. ज्यादा पढ़ने के लिए किल्क करके पढ़ें. मैं खाली हाथ आया और खाली हाथ लौट जाऊँगा.
मैंने अपनी पत्नी व उसके परिजनों के साथ ही दिल्ली पुलिस और न्याय व्यवस्था के अत्याचारों के विरोध में 20 मई 2011 से अन्न का त्याग किया हुआ है और 20 जून 2011 से केवल जल पीकर 28 जुलाई तक जैन धर्म की तपस्या करूँगा.जिसके कारण मोबाईल और लैंडलाइन फोन भी बंद रहेंगे. 23 जून से मौन व्रत भी शुरू होगा. आप दुआ करें कि-मेरी तपस्या पूरी हो
Mujhe ye samajh main hi nahi aata ki bharat jaise mahan desh main tum jaise murkh log kis ne paida karna chalu kar diya hai meri baat suno
ReplyDelete1)Sanskrit main aadmi ke penis ko Shishna kehte hai linga nahi
2)Shiva linga ka matlab hota hai subtle body wo body jo formless ho jiska aakar na ho
siva kw linga ki nahi unke formless body ki pooja hoti hai nastiko tum sahi main murkh ho isliye to itihas se tuhara naam mit gaya akal lagao kam chalo
world Human Organization New Light True Pledger Philosophic Country-India
ReplyDeleteआप के विचारो का जवाब हमारे इस ब्लॉग में मिलेगा
www.satyayugkaaagman.blogspot.com
SANJAY BETA ASHIRVAAD
ReplyDeleteLEKH BAHOOT ACHCHA LAGA DADI TO NASTIK HAI MOORTI POOJA MAI NAHIN VISHVAASH KARTEE AAZ PANE POTE KO DIKHAAVOONGI
DHANYVAAD
GUDDO DADI CHICAGO SE
@ manish
ReplyDeleteMain jab aastik se naastik bana to mere saath aisa kuch nahi hua..baaki aap bhi samajhdaar hain..aapke saath jo hua aap uska sahi vishleshan kar sakte hain..
मैं नास्तिक उन्हें मानता हूँ जो बिना तर्क एवं बुद्धि के किसी भी बात
ReplyDeleteको इसलिये मानते हैं कि वह हमारी धर्म-पुस्तक में लिखी है। जो
लोग तर्क एवं बुद्धि के आधार पर सत्य को स्वीकार करते हैं वही
सच्चे आस्तिक हैं, ऐसे लोगों को नास्तिक कहना तर्क, बुद्धि एवं
सत्य का अपमान करना है।
मानवता के अतिरिक्त अन्य कोई धर्म नहीं है अज्ञानतावश जिन्हैं
हम धर्म कहते हैं, वास्तव में वे धर्म नहीं, अपितु सम्प्रदाय मात्र
हैं। यदि ईश्वर है, तो वह प्रकृति के अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं है।
ईश्वर के अन्य रूप मानव की मात्र कल्पनायें हैं।
मैनें अपने इस तरह के विचारों को कविता का रूप देने का प्रयास
किया है। कृपया मेरे blog पर आकर पक्ष या प्रतिपक्ष में प्रतिक्रिया
देकर मेरा मार्ग-दर्शन करें।
har vishay ke paksh aur vipaksh mein hajaro baate mil jati hai...sabhi ki vyaktigat soch...dharmik aasthao ke vishyon par maine jyada padha nhi....jaise jaise badi huyi naturally hi pooja path mein jyada vishvas nahin raha...kyonki mere logical mind mein kai baate fit nahin hoti...nastik nahin hun par bas itna kahungi...humanity and ahinsa are the best religions..jitna inka palan kar sakti hun karti hun...aur sabse badi baat in do dharmo ke palan se dimag shant rahta hai..vyarth ke paksh vipaksh ke vichaar nahin aate...
ReplyDeleteमनुष्य अस्तित्व में कैसे आया क्या आपके पास इसके कोई स्पष्ट और पक्के सबूत हैं, वैज्ञानिक भी पक्के सबूत नहीं दे पाए हैं इस बारे में, वो सिर्फ अनुमान लगते हैं,
ReplyDeleteतो आप जैसे नास्तिक के पास भी कोई सबूत नहीं हैं ईश्वर के होने या ना होने के, वैसे भी हमारा देश कई सौ सालो तक ग़ुलाम रहा हैं, कितनी सभ्यताएं चली गयी, न जाने कितने पुस्तक ग्रन्थ नष्ट किये गए हैं भारतवर्ष के,
एक काम करिए आप मनोवैज्ञानिक या नास्तिक या modern लोग मेहंदीपुर वाले बालाजी के मंदिर जाइये , शायद कुछ समझ में आये आपको..........
बहुत ही उम्दा लेख लिखा है. अपने अन्धविश्वासो से हमने जितनी अपनी हंसी पूरी दुनिया में उडवाई है उतनी शायद ही किसी अन्य देश ने उडवाई हो.
ReplyDeleteसंस्कॄत मे लिंग का अर्थ प्रतीक हैं और शिव निराकार शक्ति के रूप मे न अंत न आदी शून्य मय और विश्व के बीच के रहस्यमय की पूजा हमे प्राप्त होती हैं कलियुग मे ये भी होगा.अर्थ का अनर्थ बनाते हैं सभी.संस्कृत मे लिंग का अर्थ हैं प्रतीक.और कलियुग के अनुसार संस्कृत मे उस समय शिश्न याने आज की समय मे उसे लिंग कहते हैं.भगवान कोई फ़र्क नही पड़ता पर पढ़े लिखे लोग यदि ग्रंथों का अध्यात्म और वेदों को जान लेंगे तो शिवलिंग को समज लेंगे.
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