Sunday, September 12, 2010

गणपति बप्पा : ईश्वर कहीं नहीं, सिवा इन्सानी दिमाग के


          दुनिया के सबसे अनोखे देव इस समय भारतवर्ष के कुछ गली कूचों में आ बिराजे हैं, भक्त समाज अपने दिमाग की खिड़कियाँ बंदकर उनकी भक्ति में लीन हो गया है। आठ दस दिन बाद इन्हें नदी तालाबों में विसर्जित कर प्रदूषण बढ़ाया जाएगा।
          भारतीयों की उदारता का कोई जवाब नहीं है। वे प्रत्येक असंभव बात पर आँख बंदकर विश्वास कर लेते हैं यदि उसमें ईश्वर की महिमा मौजूद हो। पार्वती जी ने अपने शरीर के मैल से एक पुतला बनाया और नहाने की क्रिया के दौरान कोई ताकाझांकी ना करे इसलिए उस पुतले में प्राण फूँक कर उसे पहरे पर बिठा दिया। ऐसा कितना मैल पार्वती जी के शरीर से निकला होगा इस प्रश्न पर ना जाकर यह सोचा जाए कि पुतले में कैसे कोई प्राण फूँक सकता है, लेकिन चूँकि वे भगवान शिव की पत्नी थीं सो उनके लिए सब संभव था। दूसरा प्रश्न, भगवान की पत्नी को भी ताकाझांकी का डर ! बात कुछ पचती नहीं। किसकी हिम्मत थी जो इतने क्रोधी भगवान की पत्नी की ओर नहाते हुए ताकझांक करता !
          खैर, ज़ाहिर है कि चूँकि पुतला तत्काल ही बनाया गया था सो वह शिवजी को कैसे पहचानता ! पिता होने का कोई भी फर्ज़ उन्होंने उस वक्त तक तो निभाया नहीं था ! माता के आज्ञाकारी पुतले ने शिवजी को घर के अन्दर घुसने नहीं दिया तो शिवजी ने गुस्से में उसकी गरदन उड़ा दी। उस वक्त कानून का कोई डर जो नहीं था। पार्वती जी को पता चला तो उन्होंने बड़ा हंगामा मचाया और ज़िद पकड़ ली की अभी तत्काल पुतले को ज़िदा किया जाए, वह मेरा पुत्र है। शिवजी को पार्वती जी की ज़िद के आगे झुकना पड़ा परन्तु भगवान होने के बावजूद भी वे गुड्डे का सिर वापस जोड़ने में सक्षम नहीं थे। सर्जरी जो नहीं आती थी। परन्तु शरीर विज्ञान के नियमों को शिथिल कर अति प्राकृतिक कारनामा करने में उन्हें कोई अड़चन नहीं थी, आखिर वे भगवान थे। उन्होंने हाल ही में जनी एक हथिनी के बच्चे का सिर काटकर उस पुतले के धड़ से जोड़ दिया। ना ब्लड ग्रुप देखने की जरूरत पड़ी ना ही रक्त शिराओं, नाड़ी तंत्र की भिन्नता आड़े आई। यहाँ तक कि गरदन का साइज़ भी समस्या नहीं बना। पृथ्वी पर प्रथम देवता गजानन का अविर्भाव हो गया।
          प्रथम देवता की उपाधि की भी एक कहानी बुज़र्गों के मुँह से सुनी है। देवताओं में रेस हुई। जो सबसे पहले पृथ्वी के तीन चक्कर लगाकर वापस आएगा उसे प्रथम देवता का खिताब दिया जाएगा। उस वक्त पृथ्वी का आकार यदि देवताओं को पता होता तो वे ऐसी मूर्खता कभी नहीं करते। गणेशजी ने सबको बेवकूफ बनाते हुए पार्वती जी के तीन चक्कर लगा दिए और देवताओं को यह मानना पड़ा कि माँ भी पृथ्वी तुल्य होती है। गणेश जी को उस दिन से प्रथम देवता माना जाने लगा। बुद्धि का देवता भी उन्हें शायद तभी से कहा जाने जाता है, उन्होंने चतुराई से सारे देवताओं को बेवकूफ जो बनाया। आज अगर ओलम्पिक में अपनी मम्मी के तीन चक्कर काटकर कोई कहें कि हमने मेराथन जीत ली तो रेफरी उस धावक को हमेशा के लिए दौड़ने से वंचित कर देगा।  आज का समय होता तो मार अदालतबाजी चलती, वकील लोग गणेश जी के जन्म की पूरी कहानी को अदालत में चेलेन्ज करके माँ-बेटे के रिश्ते को ही संदिग्ध घोषित करवा देते।
          बहरहाल, इस बार भारत में गणेशजी ऐसे समय में बिराजे हैं जबकि दुनिया में ईश्वर है या नहीं बहस तेज हो गई है। इस ब्रम्हांड को ईश्वर ने बनाया है कि नहीं इस पर एक वैज्ञानिक ने संशय जताया जा रहा है जिसे पूँजीवादी प्रेस प्रचारित कर रहा है। जो सत्य विज्ञान पहले से ही जानता है और जिसे जानबूझकर मानव समाज से छुपाकर रखा गया है, उसे इस नए रूप में प्रस्तुत करने के पीछे क्या स्वार्थ हो सकता है सोचने की बात यह है। क्या विज्ञान की सभी शाखाओं को समन्वित कर प्रकृति विश्व ब्रम्हांड एवं मानव समाज के सत्यों को पहले कभी उद्घाटित नहीं किया गया ? किया गया है, परन्तु यह काम मार्क्सवाद ने किया है, इसीलिए वह समस्त विज्ञानों का विज्ञान है, परन्तु चूँकि वह शोषण से मुक्ति का भी विज्ञान है, इसलिए उसे आम जनता से दूर रखा जाता है। द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद-ऐतिहासिक भौतिकवाद को लोगों से छुपाकर रखा जाता है, जबकि अगर कोई सचमुच सत्य को खोजना चाहता है तो इस सर्वोन्नत विज्ञान को जानना बहुत ज़रूरी है।
          लोग ईश्वर की खोज के पीछे पड़े हैं। हम कहते हैं कि ईश्वर की समस्त धारणाएँ धर्म आधारित हैं, तो पहले यह खोज कीजिए कि धर्म कहाँ से आया, कैसे आया। धार्मिक मूल्य अब इस जम़ाने में मौजू है या नहीं। मध्ययुगीन धार्मिक मूल्यों के सामने आधुनिक मूल्यों का दमन क्यों किया जाता है। यदि आप यह समझ गए कि अब आपको मध्ययूगीन धार्मिक मूल्यों की जगह नए आधुनिक मूल्यों की आवश्यकता है जो वैज्ञानिक सत्यों पर आधारित हों, तो ईश्वर की आपको कोई ज़रूरत नहीं पडे़गी।
          एक मोटी सी बात लोगों के दिमाग में जिस दिन आ जाएगी कि ईश्वर ने मनुष्य को नहीं बनाया बल्कि मनुष्य ने ईश्वर को बनाया है, सारे अनसुलझे प्रश्न सुलझ जाऐंगे। क्योंकि पदार्थ (मस्तिष्क) इस सृष्टी में पहले आया, विचार बाद में। ईश्वर मात्र एक विचार है, उसका वस्तुगत अस्तित्व कहीं, किसी रूप में नहीं है, सिवा इन्सान के दिमाग के। 


32 comments:

  1. अबे यह क्या तफ्री है?

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  2. अबे यह क्या तफ्री है?

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  3. अबे यह क्या तफ्री है?

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  4. अबे यह क्या तफ्री है?

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  5. अबे यह क्या तफ्री है?

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  6. अबे यह क्या तफ्री है?

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  7. अबे यह क्या तफ्री है?

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  8. विज्ञानं तो कुछ ऐसा ही कहता है ..

    मुस्कुराना चाहते है तो यहाँ आये :-
    (क्या आपने भी कभी ऐसा प्रेमपत्र लिखा है ..)
    (क्या आप के कंप्यूटर में भी ये खराबी है .... )
    http://thodamuskurakardekho.blogspot.com

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  9. महत्वपूर्ण आलेख। यदि मनुष्य को ईश्वर ने बनाया होता तो उस का रूप एक ही होता। उसे मनुष्यों ने अपनी जरूरत के मुताबिक बनाया। उस के इसी लिए बहुरूप हैं जो जरूरत के मुताबिक बदलते भी रहते हैं।

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  10. सही में ईश्वर की परिभाषा अब बदल गयी है ...

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  11. sahi kaha , ..actually thing is thaat ye sab (GOD)aapke mental level se upar ki cheej hai .............aap to bas brown earch and bloe sky ke beech me hi raho

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  12. विचारणीय आलेख.




    हिन्दी के प्रचार, प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है. हिन्दी दिवस पर आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं साधुवाद!!

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  13. किसी को मेरी टिप्पड़ी पढ़ कर अफ़सोस हुआ तो सोचा की व्यक्ख्या कर दूँ

    सबसे पहले तो इस चिट्ठे की भाषा और शैली विचारात्मक नहीं उपहासात्मक है ......और इसका सीधा सीधा अर्थ यही हुआ की यह चिटठा भी(या कम से कम यह वाली पोस्ट ) किसी गंभीर चर्चा या निष्कर्ष तक पहुचने के लिए नहीं अपितु अपने पूर्वाग्रहों को सिद्ध करने के लिए और अपने 'प्रगतिशीलता' और 'वैज्ञानिक सोच' की दुकान चलने के उद्देशा के लिए ही है |

    अब इस चिट्ठे के दो (कु)तर्कों का उत्तर देना चाहूँगा
    १ -"परन्तु भगवान होने के बावजूद भी वे गुड्डे का सिर वापस जोड़ने में सक्षम नहीं थे। सर्जरी जो नहीं आती थी।" अगर आपका हाथ भी कट दिया जाये और ४ घंटे से ज्यादा समय बीत जाये तो आपका शरीर आपके उस कटे हुए हाथ के साथ बाह्य पदार्थ की भाती व्यव्हार करेगा | हाँ अगर ४ घंटे से कम समय हुआ है तो हाथ वापस जोड़ा जा सकता है |(हो सकता अहि घंटे ४ से कम या ज्यादा हो मैं एक अभियंता हूँ चिकित्सक नहीं परन्तु तथ्य सही है )

    २- "परन्तु शरीर विज्ञान के नियमों को शिथिल कर अति प्राकृतिक कारनामा करने में उन्हें कोई अड़चन नहीं थी, आखिर वे भगवान थे"
    सूअर का ह्रदय और बन्दर का लीवर मानव में लगाने की कोशिशें चल रही है ....आप ये क्यूँ नहीं आन सकते की उनका विज्ञान आज के विज्ञानं से ज्यादा उन्नत था |

    और हाँ १ और बात ..............."आज का समय होता तो मार अदालतबाजी चलती, वकील लोग गणेश जी के जन्म की पूरी कहानी को अदालत में चेलेन्ज करके माँ-बेटे के रिश्ते को ही संदिग्ध घोषित करवा देते"

    अगर आपने अल्लाह , खुदा या मुहम्मद के बारे में ऐसा कुछ लिखा होता तो आपके के विरुद्ध फ़तवा तो निकल ही चूका होता .हो सकता है आप जिन्दा न होते

    मुझे नास्तिकों से कोई समस्या नहीं है क्यूँकी हमारी संस्कृति , हमारे संस्कार और हमारी धार्मिकता हमे सिखाती है आदर करना विचारधाराओं में अंतर का .....परन्तु हम भी आपके ह्रदय में आस्तिकों के प्रति आदर का भाव देखना चाहते हैं तभी चर्चाये हो पाएंगी अन्यथा आप लिख deejiye आपने चिट्ठे के शीर्ष में की याहाँ केवल एकतरफा चर्चाएँ होती हैं और आस्तिकों को यहाँ आने की कोई आवश्यकता नहीं है |

    सर्वे भवन्तु सुखिन सर्वे सन्तु निरामयः
    सर्वे भद्राणि पश्यन्तु , माँ कश्चित् दुःख भागभवेत

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    1. क्या इतना उन्नत विज्ञानं था तब कि पुतले में जान दाल दे. हद होती गप्पबाज़ी की. मुझे तो आप ही पूर्वाग्रहों से ग्रसित लग रहे हो

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    2. भयानक विज्ञान हाहाहाहा शरीर के मैल में जान डाला जा सकता था पर काटे सर का (मतलब हमारे scholar बाबु के हिसाब से 4 घंटे लेट) वाले को जोड़ा नहीं जा सकता था

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  14. Ankit ji padh likh le, thode bade ho jaye fir baat karenge.

    Drishtikon

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  15. mai ankit ji se puri tarah sahmat hu.....actually maine galat blog ko join kar liya.....bilkul sahi kaha h aapne ki yaha sirf aastiko ka sawagat hai....waise acha kar rahe h aap ki aastiko ka aana band kar rahe h bcoz koi b intellectual person aisi abusing language pad hi nahi sakta....aur ek bat mai yaha clear karna chahti hu ki maine aapko behuda or badtamij nahi kaha mayank ji....mature or intellectual talk me kabi b abusing language or behudi talk ki jagah nahi hoti....waise b God ko sajhna or un tak pahuchna normal or scientist logo k bute ki bat hi nahi hai....waha dimag ki koi jagah nahi hai jo hum jaise dimagi log befijul k kam karne k aadi hote hai....GOD IS VERY FAR FROM NORMAL OR WORLDLY THINGS....NOBODY CAN REACH OR TOUCH GOD'S MIRACULOUS INVENTIONS N THINGS...thanks Archana.....

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    1. Understanding god is beyond normal people. ऐसी बाते कर कर के ही धर्म के ठेकेदार आम जनता को उल्लू बनाते रहे है. अब तो सुधर जाओ

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  16. aapne meri ek or jahah kiye gaye coment ko teek se nahi samjha....waha maine aapko aastik hone k liye nahi kaha na hi ye kaha ki aap nastik hai to aap ache huan being nahi h....mayak ji...jab hum koi blog likh rahe h to obviously us par comment b aayenge to usse dyan se padna humari duty ban jati hai....ye understood hota hai...so maine aapki feelings hurt karne k liye wo comment nahi likha tha bt aapka ye post padkar sari bat samjh me aa gai ki wakai yaha nastik hi teek hai bcoz koi b intellectual n mindful ful person n heartful person ise pad tak nahi sakta....so sorry... aap mere kisi b comment k bhaavo ko samjh nahi sake...thanks Archana

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  17. ईश्वर ने मनुष्य को नहीं बनाया बल्कि मनुष्य ने ईश्वर को बनाया है\//
    बिलकुल सही फ़रमाया आपने.zindagi खुदा का अस्तित्व बेदिमाग वालों की वजह से ही जिन्दा है....मगर क्या करें अब उसकी लाश से बदबू उठने लगी है...इसकी वजह से ना जाने कितने दिमाग ख़राब और नाकारा हो कर अपने ही भाइयों का खून निकाल रहे हैं.........

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  18. इस चिट्ठे की शुरुआत में ही मैंने कहा था कि अगर हम सदस्य भी एक दूसरे की बातों पर खुलकर असहमति व्यक्त करें तो एक बेहतर लोकतांत्रिक ज़मीन की रचना होगी। मैं यहां अंकित जी और अर्चना जी की बात से सहमत हूं कि भाषा उपहासात्मक न हो तो बेहतर है। हांलांकि कभी-कभार परेशानी या अतिरेक में मैं भी ऐसी भाषा लिख देता हूं पर दृष्टिकोण जी से साझा करना चाहूंगा कि बाद में महसूस करता हूं कि अंततः ऐसी भाषा से दूरियां ही बढ़ती हैं और मित्र हमारी बातों पर विचार करने के बजाय उन्हें सिरे से झटक देते हैं। मेरा यह भी मानना है कि अपने गुट की बात का हर हाल में समर्थन करना और तर्क देने की बजाय कोई भी दूसरा ढंग अपनाना भी एक तरह की कट्टरता और सांप्रदायिकता है, भले हमारे साथ मार्क्सवाद या ओशो रजनीश जैसे खुले समझे जाने वाले दिमागों के नाम हों।
    ये मेरे बेहद निजी विचार हैं और किसी को ठेस पहुंचाने के लिए नहीं बल्कि बात-चीत को आगे बढ़ाने के लिए हैं।

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  19. "एक मोटी सी बात लोगों के दिमाग में जिस दिन आ जाएगी कि ईश्वर ने मनुष्य को नहीं बनाया बल्कि मनुष्य ने ईश्वर को बनाया है, सारे अनसुलझे प्रश्न सुलझ जाऐंगे। क्योंकि पदार्थ (मस्तिष्क) इस सृष्टी में पहले आया, विचार बाद में। ईश्वर मात्र एक विचार है, उसका वस्तुगत अस्तित्व कहीं, किसी रूप में नहीं है, सिवा इन्सान के दिमाग के।
    " यह भी बार बार पढ़ने पर ही विचार का रूप लेगा ।

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  20. धार्मिक विचारों कि असरदार आलोचना है यह..
    लेकिन मेरे ख्याल से हमें महज़ धर्म कि आलोचना से आगे बढ़कर यह भी समझना होगा कि विज्ञान के अभूतपूर्व विकास के बावजूद ऐसा क्यों है कि हम नास्तिक अभी भी अल्पसंख्यक ही हैं.?आखिर ऐसा क्यों है कि ईश्वर का विचार लोगों के दिमाग से जाने का नाम तक नहीं ले रहा है, बल्कि यूं कहें कि इसकी पैठ और गहरी होती चली जा रही है ? क्या कभी ऐसा वक़्त आएगा कि समाज का बहुलांश नास्तिक होगा?
    मैंने इस सवालों को समझने का प्रयास अपने नए ब्लॉग पर किया है. कृपया इसे पढ़कर अपने कमेंट्स दें..
    http://revolutionary-flame.blogspot.com/

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  21. नास्तिकता इश्वर की सत्ता का अस्वीकार है या मिथकों की आलोचना. ध्यान रहे कि मिथक के स्वरूप में बदलाव होता रहता है. अत: इश्वर के अस्वीकार के बहस में उसका उपयोग सावाधानिपुर्वाक करे.
    pratipakshi.blogspot.com

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  22. एक और सम्भावना पर विचार करके देखिये
    कहीं नास्तिकता एक मनोरोग तो नहीं जो पेट के ज्यादा भर जाने के कारण हो जाता हो
    कहीं ऐसा तो नहीं की ये करने के लिए कुछ न रह जाने पर उत्पन्न विचार हो
    या अहंकार की चरम सीमा को पर कर जाने पर इश्वर को ही नकारने की परिवित्ति तो नहीं ताकी अपने को सबसे ऊपर मान सकें ?

    चलिए एक बात बताइए
    कभी ७२ घंटों तक भूखे रहना पढ़ा है आपको?
    कभी ऐसा हुआ है की आपको प्यास लगी होऔर १० घंटों तक पानी भी न मिला हो ?
    कभी जून की तपती दुपहरी में मीलों तक नंगे पांव चंला पड़ा है ?
    कभी भयानक सर्दी सूती कपड़ों में ठिठुरते हुए सड़क पर बैठ कर रातें गुज़री हैं?
    कभी बरसात में भीगते हुए भूख से तड़पते हुए इस आशा में रत गुज़री है की कल सूरज निकलेगा और फिर शायद बरसात रुक जाये और शायद खाना भी मिल जाये ?

    नहीं न ? मुझे पता था .....अगर ऐया हुआ होता तो आपको इश्वर जरूर दिख गए होते

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    1. आपका तर्क गलत है. मुसीबत आने पर अगर कोई भगवान को मानने लगे तो वह नास्तिक नहीं कायर होगा. नास्तिक जानता है की उसे खुद ही समस्या से निपटाना है कोई भगवान बचाने नहीं आएगा

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    2. "शहीदे आजम भगत सिंह" का नाम सुना है आपने अगर सुना होता तो ऐसा ना कहते भुख, प्यास क्या फाँसी पर चढने से पहले भी भगवन का नाम नहीं लिया था।।।।

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  23. Not know about Atheism vathism but , i wanna learn science by master Ankit .
    don't be so personal but ur explanation in ur comment is such a childish attempt .

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  24. थोड़ी थोड़ी जानकारी तो हर चीज की है |थोड़ी थोड़ी | aur in last ankit ji pura jano naki thoda thoda ..

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  25. मैं आप सबको पहले ये बता दूं कि मैं ईश्वर के अस्तित्व में यकीन नहीं रखता. हालांकि मैं मानवता और दूसरे मनुष्यों के बारे में सदभावना रखने में यकीन ज़रूर रखता हूँ.

    @अंकित जी,
    मैं आपके इस कमेन्ट से सहमत नहीं हूँ
    नहीं न ? मुझे पता था .....अगर ऐसा हुआ होता तो आपको ईश्वर जरूर दिख गए होते
    अगर कोई व्यक्ति मौत के भय से इश्वर को मानता है, तो इस से
    भी तो इश्वर का इस्तित्व साबित नहीं होता !!

    मैं इस बात को नहीं नकारता कि हो सकता है उस वक़्त का विज्ञान आज के विज्ञान से बहुत आगे हो. मगर ये बात तो पूछनी बनती है, के शिवजी ने किसी इंसान का सर क्यों नहीं लगाया, किसी नवजात हाथी का सर ही क्यों लगाने की सोची.

    @दृष्टिकोण जी,
    आपकी जानकारी के लिए ये बता दूं, कि जब गणेश की ने अपने माता पिता की परिक्रमा कर के कथित पुरस्कार पाया था, वो इस बात का प्रतीक था, कि एक अच्छे पुत्र के लिए उसके माता पिता ही सारा संसार होते हैं.... और इस संसार के हर पुत्र को अपने माता पिता का उतना ही सम्मान करना चाहिए.
    और आपकी बात तो बिलकुल हास्यास्पद लगती है, आपने तो इस किस्से को बिलकुल literally ले लिया... इस कहानी के पीछे छुपे भाव को समझिए
    और इसको तो मैं सिर्फ एक कुतर्क ही कहूँगा - आज अगर ओलम्पिक में अपनी मम्मी के तीन चक्कर काटकर कोई कहें कि हमने मेराथन जीत ली तो रेफरी उस धावक को हमेशा के लिए दौड़ने से वंचित कर देगा। आज का समय होता तो मार अदालतबाजी चलती, वकील लोग गणेश जी के जन्म की पूरी कहानी को अदालत में चेलेन्ज करके माँ-बेटे के रिश्ते को ही संदिग्ध घोषित करवा देते।

    मैं ये नहीं कहता कि कथित कहानी में १% भी सत्य है या नहीं, परन्तु आज भी बच्चों को अच्छे संस्कार देने के लिए बच्चों को यही किस्से का उदहारण दिया जाता है.... और मुझे ऐसा लगता है कि बच्चे कहानी सुन कर उसे जल्दी अपने जीवन में ग्रहण करते हैं, बजाये इसके कि उन्हें आप सीधे सीधे कहें कि माता पिता का आदर करना चाहिए...

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  26. Mano to Devta,
    Na mano to paththar.
    • क्या तुम नहीं जानते तुम ही ईश्वर का मंदिर हो और ईश्वर की आत्मा तुममे रहती है - इंजील

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  27. बहुत ही उम्दा लेख. सत्य बोलना अगर किसी को उपहास जनक लगे तो यह लेखक की समस्या तो नहीं.

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