मैं तुम्हें नहीं मानता
जाओ कर लो
जो बन पड़े
होगे तुम सर्वशक्तिमान
तुम्हारी मूर्तियां
मुझे कला के तौर पर
तो लुभाती हैं
पर लगवा नहीं पाई
कभी पूजा पाठ में ध्यान
तुम्हारे आस्थावान
भक्तों की
क्रूर यातनाएं बताती हैं मुझे
कि तुम वाकई हो
कितने महान
तुम दिखाई नहीं देते है
ये जो प्रश्नचिह्न है
अस्तित्व पर
तुम्हारे उपासकों के लिए है
सर्वोपरि प्रमाण
जितना दबाव डालते हैं
तुम्हारे पूजक मुझ पर
मेरी आस्था
मेरे तुमको न मानने में
होती रही उतनी बलवान
मैं नहीं मानता
तुमको कि हो तुम
कहीं भी
जाओ तुम
होगे खुद के भगवान....
Wednesday, August 4, 2010
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अलग तेवर हैं कविता के.
ReplyDelete
ReplyDeleteविचारणीय बिन्दु है।
…………..
अंधेरे का राही...
किस तरह अश्लील है कविता...
कौन है जो दबाव डालते हैं
ReplyDeleteकरते रहते है परेशान
और आपकी आस्था
उसको न मानने में
होती रही उतनी बलवान?
इस बार आपके लिए कुछ विशेष है...आइये जानिये आज के चर्चा मंच पर ..
ReplyDeleteआप की रचना 06 अगस्त, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपने सुझाव देकर हमें प्रोत्साहित करें.
http://charchamanch.blogspot.com
आभार
अनामिका
अच्छी भावाव्यक्ति |बधाई
ReplyDeleteआशा
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteतुम्हारी मूर्तियां
मुझे कला के तौर पर
तो लुभाती हैं
पर लगवा नहीं पाई
कभी पूजा पाठ में ध्यान
.
Realistic poem!!!
ReplyDeleteमज़ा ही आ गया पढकर...
ReplyDeleteसच में ज़ोरदार...मयंक साहब अगली कविता का इंतज़ार रहेगा...
साथ ही ये भी बता दूँ कि मैं भी नास्तिक हूँ....
Good
Deleteओह ! बहुत सुन्दर. मैं भी तो यही कहती हूँ.
ReplyDeleteजितना दबाव डालते हैं
ReplyDeleteतुम्हारे पूजक मुझ पर
मेरी आस्था
मेरे तुमको न मानने में
होती रही उतनी बलवान..
ak sacche nastik ki kattar abhivyakti....
सामाजिक वैषम्य का वैचारिक उत्कर्ष ।
ReplyDeletebhaayi jaan agr yeh likhne ke liyen likhaa he to bhut khub likhaa he lekin yeh aek vichardhara he to jnaab aap khud khud ke saath mzaaq kr rhe hen khud khud ko dhoka de rhe hen kyunki khudaa ko maanne se inkar kr aap khud hi uske hone ke astitv ko svikaar kr rhe hen vichaardhaara ko bdlo maataa pitaa ke aadr me aastha rkho ptni bchchon se prem kro nhin ho to premikaa bnaao khud baa khud khud kaa yeh vichar ghinona or jhuntaa lgne lgegaa. akhtar khan akela kota rajsthan
ReplyDeleteठीक बात!
ReplyDeleteagar wo aasthawan bhakat hai to krur yatnaaye de hi nahi sakta....iska matlab wo bhakat nahi hai sirf dhongi hone ka natak kar raha hai....na hi ye realistic poem hai...actually God na to murtiyo me hai na hi un logo me jo God k naam par galat kaam karte hai....isse to un logo ka naam kharab hona chahiye.....God k astitva par nishaan kyo laga diye jate hai..please tell me....Archana...
ReplyDeletemai akhtar khan ji se puri tarah sahmat hu....thanks Archana
ReplyDeleteमैं जानता था कि भक्त लोग ज़रूर आएंगे....अगर आपको लगता है वो है तो मुझे उसमें आस्था रखने की सलाह न दें....अपने विश्वास पर क़ायम रहें...क्योंकि मैंने अपनी रचना में कहीं भी आस्तिकों आस्था त्यागने का संदेश नहीं दिया है....देखते हैं आपके ईश्वर में मुझे आस्तिक बनाने की शक्ति है या नहीं...
ReplyDeleteअख्तर जी माता पिता का आदर भी करता हूं....और सबसे प्रेम भी....क्या इसके लिए आस्तिक होना ज़रूरी है...और नास्तिक होने का मतलब बेहूदा और बदतमीज़ होना है....सोचिएगा....क्या ईश्वर को मानने से ही मानवीय गुण आते हैं....तो ज़्यादातर क्रूर लोग भी ईश्वर को मानते हैं....
मयंक जी, फेसबुक पर कहाँ हैं आप? मुझे आपकी जरूरत है !
Deleteयहाँ पर मुझसे मिलिए मैं आपकी राह देख रहा हूँ।
https://www.facebook.com/DharmendraGoogle
nahi aapne meri bat ko samjha nahi mayank ji.......mai ye nahi kah rahi ki aap aastik ban jaye....maine aapko aastik ban jane ki advice kab di mayank ji....na hi ye kaha ki nastik hone ka arth behuda ya badtamij hona hai.....please meri bato ka galat arth n lagaye...mere msg ko dyan se pade.....na hi mera intention aapke dil ko dukhana hai....mera arth sirf itna hai ki logo k galat karam or logo ki kahi galat bato or kahe gaye galat artho ko God se kyo jod diya jata hai....aap bahut ache insaan hai...mene ye nahi kaha ki aap galat hoge....pls ise discussion bane rahne dijiye...kisi b bat ko personally mat lijiye....
ReplyDeletechaliye mayank ji aisa laga gaise koe sathi mil gaya ho....mayak ji mujhe lagta hai ki astik log hun nastiko ki bhavnaon ko hi nhi samajh pate....
ReplyDeletesabse pahle to hume enhe batana hoga ki humari nazar me astha ka matlb hi hai andhkar ki trf badhna....jaha pe sare julm sitam ko us bhagwan ke upar chhor dete ho... jab ki agr do pl ko unki bhagwan ko man v le to wo v yahi kehta hai ki karm karo.... yani wo kuch v nahi hai humare karm ke bina.........yani ki humara karm hi humara bhag wan hai, sahi galat ka bhed kr galt ka pratirodh karna hi bhagwan hai....baki purv janm ,pichle karm bhagwan ki saja,ye sab sochna kayarta ka pratik.....
Haa magr jo log astik hai unme v kuchh log karm ko hi bhagwan mante hai.... hume or unme fark kewal etna hai ki wo murti puja karte hai or hum nastik nhi...
जितना दबाव डालते हैं
ReplyDeleteतुम्हारे पूजक मुझ पर
मेरी आस्था
मेरे तुमको न मानने में
होती रही उतनी बलवान
bahut khoob :)
welcome to
मिश्री की डली ज़िंदगी हो चली
mujhe accha laga.
ReplyDeletewelcom
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeletebhut sahi kaha mayank ji aapne...
ReplyDeletewww.jaagrity.blogspot.com
ReplyDeletebahut theek baat kahi mayank bhai ne.
ReplyDeletebharat me pattharon ko pujte hai isi liye inka dimag me bhi patthar pad gaye hai.
beleif your self विश्वास सेल्फ़ करो जो जी रहे हो वो सबसे बड़ा भगवान हैंअत पिता ही भगवान ये प्रकृति ही भगवान का रूप है. हर पल खुशी से जियो यही जीना है.दुनिय को बदलना हमारा कम नही है खुद मई बदलाव करो.किसी के परभाव मे आना अपनी शांति खोना हैऽस्सिम शांति का अनुभव होना ही जीवन है .visit www.chatpapa.com
ReplyDeleteNice
ReplyDeletesach me ye bhagwaan or dharm hi insaan ko insaan nhi banne nhi deta h..
ReplyDeleteबहुत खूब शेयरिंग ...
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