Tuesday, June 1, 2010

एक शापित नास्तिक का बयान

नास्तिक से पहली गलती ये हुई कि वह बिग बैंग का उल्लेख देख कर वह एक आस्तिक के ब्लाग पर जा पहुँचा। उस ने दूसरी गलती ये की कि उस ने पोस्ट पढ़ ली और तीसरी गलती ये हुई कि उस ने उस पर टिप्पणी करते हुए एक प्रश्न लिख दिया। अब आप ही सोचें, आखिर एक गलती माफ की जा सकती है, दूसरी गलती में मामूली सजा दी जा सकती है। लेकिन तीसरी तो पूरी तरह से अक्षम्य होती है। आखिर कठोर दंड मिलना तो नास्तिक ने ही तय कर लिया था, भला उस से बचता कैसे? वैसे आप को बता दें कि उस नास्तिक ने वहाँ टिप्पणी क्या की थी? तो लीजिए आप भी पढ़ लीजिए.....
क्या कुरआन (उस के) आने से पहले के तमाम सिद्धांतों की नकल मात्र है? बिगबैंग का सिद्धांत तो सांख्य में कुरआन के सैंकड़ों बरस पहले से है, जो एक अनीश्वरवादी दर्शन है।

अब ये नास्तिक जी का एक मासूम सवाल ही था। पर इस में तीन गलतियाँ शामिल थीं। माफ तो कैसे किया जाता। आस्तिक ब्लागर ने अपना स्पष्टीकरण दिया .....

इस पोस्ट में मैंने बिग बैंग को पूरी तरह सही नहीं माना है बल्कि कुरआन और कुछ और पुराने ज्ञान के आधार पर इस सिद्धांत में सुधार की कोशिश की है।

आस्तिक ब्लागर जी कोई अकेले तो आस्तिक नहीं? सारी दुनिया आस्तिकों से भरी पड़ी है। दूसरे आस्तिक जी को उन का यह स्पष्टीकरण दुनिया के तमाम आस्तिकों की कमजोरी लगा। उन्हों ने सोचा तीन गलतियों की सजा शाप से कम तो हो नहीं सकती तो उन्हों ने एक लम्बा-चौड़ा, भारी-भरकम शाप दे डाला। जरा आप भी गौर फरमाइए इस शाप पर .......
 @ वकील साहब! ईश्वर ने ही मनुष्य को बुद्धि दी है। वह उससे सोचता है और ब्रह्माण्ड के रहस्यों को सुलझाने की कोशिश करता है और वह किसी सत्य नियम को पा लेता है । और वही नियम हज़ारों मील दूर की अजनबी भाषा में सैकड़ों साल पहले की किताब में लिखा मिलता है तो क्या सचमुच यह इसी तरह नज़रअन्दाज़ कर देने के लायक़ है? जैसे कि आज आप कर रहे हैं । हज़रत मुहम्मद साहब भारत नहीं आये और न ही वे संस्कृत बोलते थे। तब सांख्य का अरबी भाषा में अनुवाद भी नहीं था। वे पढ़े लिखे भी नहीं थे फिर भी उनके द्वारा जो सत्य बताया गया उसे आप स्वीकारने के बजाए नकार रहे हैं ?
ठीक है, आज आपको मालिक ने नकारने का अधिकार दिया है लेकिन मौत आपको एक ऐसी दुनिया में ले जाएगी जहां आप सत्य को नकारने की दशा में न होंगे लेकिन तब आपका मानना आपके काम न आएगा। आप की रीत को देखकर जो भी गुमराह होगा उसका पाप भी आप पर ही पड़ेगा।
दुनिया में भी आप आदमी को 120 बी (दुष्प्रेरणा)का मुल्ज़िम ठहराते हैं । परलोक में आप पर दूसरी धाराओं के साथ यह धारा भी लगेगी , अब इस का नम्बर वहां चाहे दूसरा ही क्यों न हो?

अब शापित हो जाने के बाद नास्तिक जी के पास क्या चारा बचा था? उन्हों ने शाप को शिरोधार्य कर लिया। लेकिन अपनी बात कहते हुए चलिए आप ये बात भी पढ़ लीजिए.......
यूँ तो मैं आप की बेवजह मुझे पापी घोषित करने वाली बात का उत्तर देना जरूरी नहीं समझता। लेकिन इस वजह से कि आप एक इंसान हैं बराबरी से दो बात कहना चाहता हूँ।
कुऱआन आप का विश्वास है, उसे खुदा ने भेजा है यह आप का विश्वास है। इस्लाम का पहला सबक है आँख मूंद कर पहले ईमान लाओ। यह आप का यक़ीन है। आप उसे मानते हैं। हम आप की कद्र करते हैं कि आप अपने विश्वासों पर अटल हैं। लेकिन हम भी अपने विश्वासों पर अटल हैं जिन की बुनियाद आँख मूंद कर यकीन करना नहीं है बल्कि तर्क हैं। हम विश्वास की बिना पर नहीं बल्कि नए तथ्यों और तर्कों की बिना पर अपने विश्वासो मे सुधार करने को भी तैयार रहते हैं। जिस तरह हम आप की कद्र करते हैं आप को भी तर्क आधारित विश्वासों पर हमारे डटे रहने की कद्र करना चाहिए।
मैं इस पर विश्वास नहीं करता कि ईश्वर ने ही मनुष्य को बुद्धि दी है।
-कि हज़रत मुहम्मद साहब भारत नहीं आये। (तो फिर हजरतबल में किसका बाल सुरक्षित है?)  वे संस्कृत जानते भी हों तो किस से बोलते और किसे समझाते? (वहाँ कोई समझने वाला तो होता।) सांख्य को जानने के लिए किसी भाषा की जरूरत नहीं थी। वह कानों कान अनेक भाषाओं में पूरी दुनिया में फैला है। वह इस कदर दुनिया में व्याप्त हुआ कि एक अनपढ़ और अंगूठा छाप भी उस का इतना ज्ञान रखता है कि वह सांख्य पर पूरी क्लास ले सकता है। आप अनवरत पर सांख्य से संबद्ध पोस्टो में यह सब पढ़ सकते हैं।
नकारने का अधिकार मुझे किसी ने नहीं दिया है वह तो हमेशा से इंसान के पास मौजूद था। उन्हों ने ही ईमान के नाम पर उसे खो दिया। मैं मौत के बाद की जिन्दगी में उसी तरह यकीन नहीं करता जैसे भगत सिंह नहीं करता था।  मेरे पास किसी जन्नत का किसी हूर का लालच नहीं है तो मेरे पास किसी दोजख के दंड का भय भी नहीं है। आप किसे दोजख के दंड का भय दिखा रहे है। वे कमजोर इंसान हैं जो इन काल्पनिक डरों से डरते हैं वे डरते डरते सारी जिन्दगी काट देते हैं, वे इन्सानियत का कोई भला नहीं कर सकते। वे ही कर सकते हैं जो किसी से नहीं डरते उस काल्पनिक खुदा से भी नहीं जो इंसान ने खुद अपने लिए गढ़ा और उस का गुलाम हो गया।  मैं किसी दुष्प्रेरणा का दोषी नहीं हूँ। न ही मैं पाप और पुण्य को मानता हूँ।
खु
दा को नकारने वाला भगतसिंह ही था जिस ने अपने को सोच-समझ कर यह जानते हुए कि जो वह करने जा रहा है उस की सजा मौत है,खुद को कौम के लिए कुर्बान कर दिया। यह जज्बा किसी खुदा से डरने वाले कै पास नहीं हो सकता। अगर आप की सोच सही है औऱ मेरी गलत तो भी आप की सोच के मुताबिक भगत सिंह को भी खुदा को नकारने के लिए दोजख मिली होगी तो मैं भी उस दोजख में जाने को तैयार हूँ। कम से कम वहाँ मैं उस जहीन इंसान से मिल कर उसके कदम तो चूम सकूंगा।

9 comments:

  1. हा-हा-हा द्विवेदी साहब , जहां तक आस्तिक लोग मर्यादा के अन्दर बात करे तो कभी-कभार पंगे लेने में कोई बुराई नहीं, मैं भी कभी-कभी ऐसे पंगे ले लेता हूँ !

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  2. :-)आपके पीछे नरक जाने वालों में हम भी हैं.

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  3. भैया नास्तिक, आप कुछ भी कर लो... जिसे आपकी बात नहीं माननी है वह नहीं मानेगा.
    आप भी राजकपूर के माफिक तीसरी कसम खा लो की अब आगे से किसी आस्तिक के ब्लौग पर माउस नहीं धरूंगा.

    और मेरी राय में बिग बैंग का विचार सबसे उन्नत और आधुनिक विचारों में से है जिसे न तो पांच हज़ार साल पुराने दर्शन और न ही किसी धर्म की अंतिम किताब की गवाही चाहिए.

    दुनिया ऐसे ही आस्तिकों से भरी है. ज्यादा दूर क्यों जाएँ, भौतिकी के नोबल पुरस्कार प्राप्त कुछ वैज्ञानिक यह मानते हैं की ईश्वर ने सृष्टि को सात दिनों में ही रचा है. अब बोलो, क्या कल्लोगे.

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  4. ये आप भी कहाँ कहाँ का झमेला पाल लेते हैं! जनाब जो कर/कह भये हैं वह छद्म विज्ञान की श्रेणी में आता है !

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  5. हा हा हा हा, क्या समय आ गया है। अंधतापूर्ण आचरण की पराकाष्ठा हो रही है।

    प्रमोद ताम्बट
    भोपाल
    www.vyangya.blog.co.in

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  6. Kal do blogs par kuchh kavita-paNktiyaN padhiN jo prasaNgik lagiN. HalaNki mujhe nahiN lagta ki ye dharm-vishesh se sambaNdhit haiN, fir bhi ADMIN ko aisa lagta hai to unheN pura adhikar hai ki inheN hata deN--

    ख़ुदा को खोद-खोद के कोई राम मर गया
    सरस्वती के जिस्म से एक धर्म डर गया


    औरत के चेहरे से डर-डर के ख़ुदा
    अपनी तस्वीर देख कर मर गया


    सुना है दोनों तरफ कुछ लोग अब भी जीते हैं
    सुना है सच्चा राम अब भी मज़े में है
    सुना है असली ख़ुदा अपने दम पे ज़िन्दा है


    तथास्तु!
    आमीन!


    - सैन्नी अशेष
    (http://snowaborno.blogspot.com/)
    2-
    ''''हम सब खुदा का झूठ हैं.
    क्या मोंत आखिरी खुदा देगी
    खुदा ने कुरान लिखा.........
    मैने इंसान लिखा................''''

    ''''मुझे इंसानों से खौफ आता है..
    मैं बहुत खौफजदा हूँ..
    मै लम्बे सफर को निकल जाऊं तो ?
    इंसानी कुरान कहाँ है ?
    ढूंढना,पूंछना और मुझे छाप देना...
    --पाकिस्तान की मशहूर शायरा सारा शगुफ्ता
    (http://www.chaumasa.com/frmNewsComment.aspx?newsId=52)

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  7. बाकी तो भाइ लोग कह ही चुके हैं…बाकी दोज़ख वाले मामले में हम आपके साथ हैं…

    जिसमें लाखों बरस की हूरें हों
    ऐसी जन्नत का क्या करे कोई!!

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  8. द्विवेदी जी
    अब सच कहूँ तो कुछ समझ ही नहीं आया! वैसे जब सब लोग नरक और स्वर्ग पर कब्ज़ा ज़माने की सोच रहे हैं तो मै सोचता हूँ की मुझे ये दुनिया ही देदी जाए अपना मन इधर ही लगता है!
    मुझे समझ नहीं आता की विज्ञानं को आस्था के साथ लोग क्यों जोड़ते हैं आस्था साबित करने की ज़रूरत भी क्या है किसी को ! यार या तो तार्किक हो लो या आस्थ्वान दोनों हाथ में लड्डू लेने के चक्कर में ना खुदा ही मिलेगा ना विसाले सनम

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  9. सर, सांख्य आगे जा कर योग से क्योंकर जुड या जोडा गया; इस पर भी संभव हो सके तो जरूर प्रकाश डालें.

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