देखो इतिहास का सूरज
डूब रहा है
समय की घाटी में
देवता
धर्म की किताबों में
जा छुपे हैं
महापुरुष
गमलो में
उगने की तैयारी में हैं
घरों की दीवारों पर
चढ़ते मनीप्लांट
अमरबेल में बदल गए हैं
ज़ेहन की दीवारों पर
काई जम आई है
शास्त्रों के साथ
दियासलाई रखी है
महान मस्तिष्क
बह गए वेश्यालय के बाहर
पेशाबघरों में
सच की रात
छा रही है
सच जो काले हैं
अंधेरे से
रोशनी जो झूठी थी
खत्म हो गई है
हमारे समय के सच
व्याभिचारी बूढ़े से
घिनौने
आज़ादी से अश्लील
लोकतंत्र से
तानाशाह
गाभिन पागल महिला से
विद्रूप
ही तो हैं
आओ चलें कूद जाएं
समय की नदी में
इतिहास के
डूबते सूरज के साथ
मयंक सक्सेना
Monday, December 19, 2011
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बहुत दिनों बाद यहाँ कुछ देखने को मिला।
ReplyDeleteमयंक जी, नमस्कार।
ReplyDeleteआपकी रचना ने मेरे विचारों को सम्बल दिया,
इसके लिये आपका आभार एवं सुन्दर प्रस्तुति
के लिये बधाई...........
http://dineshjanjagrati.blogspot.com/