tag:blogger.com,1999:blog-23564336211081416672024-03-13T00:06:57.732-07:00नास्तिकों का ब्लॉग|| नास्ति दत्तम् नास्ति हूत्तम् नास्ति परलोकम् इति ||adminhttp://www.blogger.com/profile/10011215816123607995noreply@blogger.comBlogger25125tag:blogger.com,1999:blog-2356433621108141667.post-66870764203618969382014-03-23T01:44:00.005-07:002014-08-30T01:43:36.882-07:00भगत सिंह, नास्तिकता और साम्यवाद.<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhp1qnya_B7n87mY-llnMNV5C2K6XHjShhr2kiD149Fvo0RTHZWrHQGbtJaBg9SOY_McJAGhNdRNBMsnjlvYUrhKCu-fG4PBi4cD3dJkLVNMpZPsl4i8JGDHlY6gFHN1CQBahdn4LDyPf-2/s1600/bhagat+sinh.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhp1qnya_B7n87mY-llnMNV5C2K6XHjShhr2kiD149Fvo0RTHZWrHQGbtJaBg9SOY_McJAGhNdRNBMsnjlvYUrhKCu-fG4PBi4cD3dJkLVNMpZPsl4i8JGDHlY6gFHN1CQBahdn4LDyPf-2/s1600/bhagat+sinh.jpg" height="320" width="242" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<span class="userContent" data-ft="{"tn":"K"}">व्यक्तित्व
मूल्यांकन करने के कौन से औजार होने चाहिए , आने वाला समय इतिहास को किस
दृष्टी से देखता है , व्यक्ति विशेष की सक्रियतों के मूल्यांकन के लिए कौन
सी पद्धति अपनाई जानी चाहिए? यह आज के समय का, और कदाचित बीते हुए भूत की
व्याख्या के लिए भी एक महत्वपूर्ण सवाल है। यह प्रश्न सिर्फ इसलिए ही
आवश्यक नही की यह हमें वस्तुगतता की अनवरत यात्रा पर ले जाता है , यह अतीत
और समकालीन परिस्थितिओं के मूल्यांकन क<span class="text_exposed_show">ा
सही तरीका सिखाता है वरन यह इसलिए भी आवश्यक है की यह समकालीन और भावी
प्रतिभाओं को सही और गलत के मध्य, सार्थक और निरर्थक क्रियाकलापों के मध्य
अंतर बताता है , बदलाओं की ज़मीं तैयार करता है, व्यक्तिगत चेष्टाओं को समाज
से जोड़ता है व्यष्टि से समिष्टि तक विचारों के संक्रमण की दिशा तय करता है
और उसके परिणाम भी निर्धारित करता है.इसलिए यह अत्यंत आवश्यक है की
व्यक्ति विशेष की सक्रियताओं/चेष्टाओं को एक सुरचित पैमाने में वस्तुगत
दृष्टिकोण के साथ मूल्यांकित किया जाये.<br /> <br /> यह पद्धति कई चीजों को
ध्यान में रखकर क्रियान्वित की जाती है . समकालीन समाज के राजनैतिक,
सामाजिक,राज्याश्रित /संवैधानिक नियम (कानूनी ) ,आर्थिक और धार्मिक
वातावरण का तत्कालीन समाज पर प्रभाव, व्यक्ति विशेष द्वारा की गई हस्तक्षेप
की प्रणाली से इस वातावरण का सम्बन्ध एवं इस हस्तक्षेप से वातावरणिक चरों
में उत्पन्न गति का अध्ययन इस पद्धति का महत्वपूर्ण एवं एकमात्र आधार होता
है . इस आधार किया गया मूल्यांकन हमें किसी भी देशकाल से सम्बंधित
व्यक्ति, घटना अथवा विचार की सही भूमिका और प्रासंगिकता से अवगत करा सकता
है . वह व्यक्ति, घटना अथवा विचार यदि भूतकाल से सबद्ध है तो हम वर्तमन
समय में उसकी भूमिका के प्रभाव की व्याख्या कर सकते हैं अन्यथा इसी प्रणाली
को आधार बना कर हम वर्तमान समय की किसी सक्रियता की भूमिका का भविष्य
में प्रभाव निर्धारित कर सकते हैं . <br /> <br /> अब कहने की जरुरत नही कि आज
यह सब बातें उसी तेईस वर्षीय युवा के लिए स्मरण आ रही है जिसने बिना हिंसा
प्रदर्शन के एक देश की तथाकथित असेम्बली में विस्फोट कि योजना को अंजाम
देकर वैश्विक परिवर्तनकामी राजनीती के फ़लक पर अपना नाम नक्षत्रों से
दैदीप्यमान शब्दों में उकेर दिया। ऐसे योद्धा की सक्रियताओं पर प्रकाश
डालने , उनकी राजनीती और उनके द्वारा विरोध के लिए इस्तेमाल कि गई
प्रनालिओं पर चर्चा के लिए एवं उनके मनस्वी व्यक्तित्वों पर टिप्पणी करने
के लिए किसी दक्ष लेखक को भी शब्दों का अभाव, उपमाओं का अकाल और संकल्पनाओ
का सूखा झेलना पड़ सकता है, मुझमे भी यह क्षमता नही है .एक अंदेशा यह भी की
महामानवों की तरह पूजित व्यक्तित्व का निरपेक्ष मूल्यांकन शायद बहुसंख्यक
को नागवार गुजरे और लोग आक्रोशित हों। </span></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<span class="userContent" data-ft="{"tn":"K"}"><span class="text_exposed_show">बहुधा यह देखा गया है कि साधारणतया
आभामंडल के प्रभाव का सहारा हम इसलिए लेते हैं कि उस व्यक्ति को महान घोषित
करके अपने कर्त्तव्यों कि इतिश्री कर लें। भगत सिंह के बारे में भी यह
कमोबेश सच है। कभी संसदीय वामपंथ भी उनकी उपलब्धियों और दिशा का सही उपयोग
भारतीय जनता के हित में न कर पाया , और अब इसकी उम्मीद भी नही है. <br /> <br />
देखना होगा कि उस भारतीय युवा क्रन्तिकारी ने परतंत्र भारत में अंग्रेजी
शासन के विरोध के लिए उस वक्त प्रचलित तरीकों को दरकिनार करके विरोध के
नितांत नए हथियार अपनाये . जिसने स्वतंत्रता और क्रांति को नयी परिभाषा दी,
परिवर्तन की संस्कृति को नए अर्थ दिए वह कोई कुशल कूटनीतिग्य नही था फिर
भी उसने नीति -ज्ञेयता को नए आयाम दिए. युद्ध की पारिवेशिक क्रूरता से
घिरे भारत में नैतिक - अनैतिक की देशव्यापी बहस का आगाज किया . यह आज का
दिन उसी तेइस वर्षीय युवा को समर्पित है जिसने क्रांति को इन शब्दों में
परिभाषित किया।"<br /> <br /> <b>"By "Revolution", we mean the ultimate
establishment of an order of society which may not be threatened by such
breakdown, and in which the sovereignty of the proletariat should be
recognized and a world federation should redeem humanity from the
bondage of capitalism and misery of imperial wars." (Statement of S.
Bhagat Singh and B.K. Dutt in the Assembly Bomb Case)<br /> </b><br /> "क्रांति
से हमारा तात्पर्य समाज की ऐसी व्यवस्था की स्थापना जिसमें किसी प्रकार के
अव्यवस्था का भय न हो, जिसमें मज़दूर वर्ग के प्रभुत्व को मान्यता दी जाए,
और उसके फलस्वरूप विश्व संघ पूंजीवाद के बंधनों, दुखों तथा युद्धों की
मुसीबतों से मानवता का उद्वार कर सके."</span></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span class="userContent" data-ft="{"tn":"K"}"><span class="text_exposed_show"><br /> <b>आज यह बार - बार दोहराए जाने कि जरुरत है कि भगत सिंह दूरदर्शी थे। समानतावादी थे। साम्यवादी थे। </b></span></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span class="userContent" data-ft="{"tn":"K"}"><span class="text_exposed_show"><br />
जब लोगों के लिए पराधीन भारत में अंग्रेजी शासकों के विरोध की भावना धर्म
से प्रेरित थी वे नास्तिक थे। हम जानते हैं कि चापेकर भाइयों आदि के
स्वतंत्रता आंदोलन की दिशा हिंदुत्व की भावना से प्रेरित थी और ऐसा होना
स्वाभाविक भी था पर वे (भगत सिंह) दूरगामी और साफ़ दृष्टि वाले ऐसे विचारक
थे जो शोषण के लिए पूंजीवाद के अंत को एकमात्र तरीका मानते थे . खैर , इस
सन्दर्भ में अधिक जानकारी के लिए आप प्रोफ़ेसर चमनलाल की पुस्तक "भगत सिंह
और उनके साथियों के दस्तावेज " पढ़ सकते हैं। मैं इसके संदर्भो का जिक्र
नही कर रही न ही इस टिप्प्णी का यह प्रयोजन है .</span></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<span class="userContent" data-ft="{"tn":"K"}"><span class="text_exposed_show">जहाँ अन्य सब के लिए
अंग्रेज विदेशी आक्रमणकारी भर थे जिन्हें इस देश से बाहर निकल कर धर्म
द्वारा निर्देशित राज्य की स्थापना ही एकमात्र उद्देश्य एवं स्वपन था भगत
सिंह ने विचारों में , कार्यकलापों में धार्मिक प्रभाव की उपस्थिति की हर
संभावना को ख़ारिज किया है . उनके द्वारा लिखित महत्वपूर्ण दस्तावेज
"मैं नास्तिक क्यों हूँ " में उनके विचारों की स्पष्ट छाप हमें देखने को
मिलती है . फिर सवाल यह उठता है क्या ऐसी प्रेरणा थी जिसने धर्मिक कारणों
से इतर किसी और कारन से उस तेइस वर्षीय युवक को असेम्बली में बम विस्फोट
कर के फांसी पर चढ़ जाने को प्रेरित किया. जैसा की भगत सिंह खुद मानते थे की
पहले वे एक रूमानी क्रन्तिकारी थे इस वजह से उनके द्वारा लिखित बाद में
दस्तावेजों पर ध्यान केन्द्रित करना ही उन्हें विचारों को समझने का उचित
स्रोत हो सकता है। कहना न होगा एक व्यक्ति के रूप में वे समझ गए थे कि
उपनिवेशवाद वस्तुतः पूंजीवाद का ही एक हथियार है, इसलिए उन्होंने केवल
स्वतंत्रता पर नही क्रांति पर जोर दिया।<br /> <br /> तमाम निष्कर्षों को देखते
हुए कहा जा सकता है , भारतीय साम्यवाद के उन अप्रतिम योद्धा को फिर से
समझे जाने कि जरुरत है , उन्हें सही तरीके से जनता के मध्य ले की जरुरत
है। <br /> <br /> तो फिर से इस परिभाषा को याद करना होगा "By Revolution, we
mean the ultimate establishment of an order of society which may not be
threatened by such breakdown, and in which the sovereignty of the
proletariat should be recognized and a world federation should redeem
humanity from the bondage of capitalism and misery of imperial wars.
“This is our ideal, and with this ideology as our inspiration, we have
given a fair and loud enough warning."</span></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span class="userContent" data-ft="{"tn":"K"}"><span class="text_exposed_show"><br /> - लवली गोस्वामी </span></span> </div>
</div>
adminhttp://www.blogger.com/profile/10011215816123607995noreply@blogger.com13tag:blogger.com,1999:blog-2356433621108141667.post-18227514238218736242013-05-10T04:57:00.000-07:002013-05-10T04:57:28.194-07:00ईश्वर सब देख रहा है!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<i><span style="font-size: x-small;">व्यंग्य</span></i><br />
<br />
पता नहीं कौन लोग रहें होंगे, कैसे लोग रहे होंगे जिन्होंने ईश्वर को बनाया। और बनाए रखने के लिए तरह-तरह की स्थापनाएं और दलीलें खड़ी कीं। मैं जब कभी इन तर्कों की ज़द में आ जाता हूं, मेरी हालत विचित्र हो जाती है। ईश्वरवालों का कहना है कि ईश्वर हर जगह मौजूद है, वह सब कुछ देख रहा है। थोड़ी देर को मैं मान लूं कि यह बात सही है तो! होगा क्या ?<br />
मैं बाथरुम में नहा रहा हूं। एकाएक मुझे याद आता है कि बाथरुम में मैं अकेला नहीं हूं, कोई और भी है। कोई मुझे टकटकी लगाकर देख रहा है! और ख़ुद दिख नहीं रहा है। यानि कि बदले में मैं कुछ भी नहीं कर सकता। हे ईश्वर, यह तू क्या कर रहा है!? कई दिन बाद तो साफ़ पानी आया है नलके में और तू ऊपर खूंटी पर चढ़कर बैठ गया! मैनर्स भी कोई चीज़ होती है, कृपानिधान! एक दिन तो ढंग से नहा लेने दे!<br />
<br />
आपको याद होगा जब आप अपने एक परिचित के घर पाखाने में विराजमान थे, चटख़नी ख़राब थी, किसीने बिना नोटिस दिए दरवाज़ा खोल दिया और आप पानी-पानी हो गए थे। और इधर तो टॉयलेट में ईश्वर मेरे साथ है! अब क्या करुं! यह सर्वत्रविद्यमान किसी भी ऐंगल से आपको देख सकता है-ऊपर से, नीचे से, दायें से, बायें से...कहीं से भी। मन होता है कि क्यों न पटरी किनारे खेत में चलकर बैठा जाए! अब बचा ही क्या! सारी प्रायवेसी की तो ऐसी की तैसी फेर दी ईश्वर महाराज ने।<br />
<br />
यह ग़ज़ब फ़िलॉस्फ़ी है कि ईश्वर सब कुछ देख रहा है और कह कुछ भी नहीं रहा। इससे ही बल मिलता होगा कर्मठ लोगों को। वह आदमी भी तो कर्मठ है जो सिंथेटिक दूध बना रहा है। वह बना रहा है और ईश्वर बनाने दे रहा है। तो सीधी बात है ईश्वर उसके साथ है। तो डरना किससे है फिर !? इसीलिए वह मज़े से होली-दीवाली पर छोटे डब्बेवालों को इंटरव्यू देता है। मुंह पर ढाटा क्यों बांध रखा है इसने!? शायद प्रतीकात्मक शर्म है यह! वरना तो उसे पता ही है कि चैनलवाले और देखने वाले, सभी ईश्वर के माननेवाले हैं। मैं सिंथेटिक दूध बनाता हूं तो ये सिंथेटिक ख़बरें बनाते हैं। सब एक ही ख़ानदान के चिराग़ हैं, एक ही ईश्वर की संतान हैं।<br />
ऐसे कर्मठ लोग भरे पड़े हैं हर धंधे में। ईश्वर उनको देख रहा है मगर कह कुछ भी नहीं रहा! करने का तो फिर सवाल ही कहां आता है!<br />
<br />
ईश्वर को यह बात अजीब लगे कि न लगे, मुझे बहुत अजीब लगती है।<br />
<br />
-संजय ग्रोवर<br />
<br />
<div>
<br /></div>
</div>
Sanjay Groverhttp://www.blogger.com/profile/14146082223750059136noreply@blogger.com164tag:blogger.com,1999:blog-2356433621108141667.post-62548826398624996792013-04-17T23:49:00.002-07:002013-04-17T23:49:46.237-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, 'Helvetica Neue', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19px;">प्रभु जी से ...</span><br style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, 'Helvetica Neue', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19px;" /><br style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, 'Helvetica Neue', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19px;" /><span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, 'Helvetica Neue', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19px;">प्रभु जी ,</span><br style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, 'Helvetica Neue', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19px;" /><span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, 'Helvetica Neue', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19px;">मेरे अवगुण चित में धरते हो तो</span><br style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, 'Helvetica Neue', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19px;" /><span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, 'Helvetica Neue', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19px;">धरो</span><br style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, 'Helvetica Neue', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19px;" /><span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, 'Helvetica Neue', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19px;">जो जी में आये</span><br style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, 'Helvetica Neue', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19px;" /><span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, 'Helvetica Neue', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19px;">करो</span><br style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, 'Helvetica Neue', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19px;" /><br style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, 'Helvetica Neue', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19px;" /><span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, 'Helvetica Neue', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19px;">प्रभुजी बौखला गए</span><br style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, 'Helvetica Neue', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19px;" /><span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, 'Helvetica Neue', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19px;">नौच डाला सौम्य शांत मुखौटा</span><br style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, 'Helvetica Neue', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19px;" /><span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, 'Helvetica Neue', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19px;"> वार किया "बिलों द बेल्ट"वाला</span><br style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, 'Helvetica Neue', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19px;" /><span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, 'Helvetica Neue', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19px;">और चीखे</span><br style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, 'Helvetica Neue', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19px;" /><span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, 'Helvetica Neue', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19px;">तो लो</span><br style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, 'Helvetica Neue', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19px;" /><span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, 'Helvetica Neue', Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19px;">झेलो और मरो </span></div>
हरीश करमचंदाणीhttp://www.blogger.com/profile/07560678438638512429noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-2356433621108141667.post-3317588069354471392012-06-16T22:04:00.000-07:002012-06-16T09:33:48.658-07:00और तब ईश्वर का क्या हुआ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #999900; font-size: large; font-weight: bold;">और तब ईश्वर का क्या हुआ?</span><br />
<span style="font-size: medium;"><span style="color: #cc0000;">स्टीवन वाइनबर्ग</span></span><span style="font-size: medium;"> </span></div>
<span style="font-size: medium;">
</span> <br />
<div style="text-align: center;">
( यह आलेख <a href="http://main-samay-hoon.blogspot.in/" target="_blank">‘समय के साये में’</a> से साभार यहां प्रस्तुत किया जा रहा है - मोडेरेटर )</div>
<hr style="height: 2px; width: 100%;" />
<span style="color: #996633; font-style: italic;"></span><br />
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #996633; font-style: italic;">(
1933 में पैदा हुए अमेरिका के विख्यात भौतिक विज्ञानी स्टीवन वाइनबर्ग,
अपनी अकादमिक वैज्ञानिक गतिविधियों के अलावा, विज्ञान के लोकप्रिय और
तार्किक प्रवक्ता के रूप में पहचाने जाते हैं। उन्होंने इसी संदर्भ में
काफ़ी ठोस लेखन कार्य किया है। कई सम्मान और पुरस्कारों के अलावा उन्हें
भौतिकी का नोबेल पुरस्कार भी मिल चुका है।</span></div>
<span style="color: #996633; font-style: italic;"></span><br />
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #996633; font-style: italic;">प्रस्तुत
आलेख में वाइनबर्ग ईश्वर और धर्म पर जारी बहसों में एक वस्तुगत वैज्ञानिक
दृष्टिकोण को बखूबी उभारते हैं, और अपनी रोचक शैली में विज्ञान के अपने
तर्कों को आगे बढ़ाते हैं। इस आलेख में उन्होंने कई महत्त्वपूर्ण प्रसंगों
का जिक्र करते हुए, अवैज्ञानिक तर्कों और साथ ही छद्मवैज्ञानिकता को भी
वस्तुगत रूप से परखने का कार्य किया है तथा कई चलताऊ वैज्ञानिक नज़रियों पर
भी दृष्टिपात किया है। कुलमिलाकर यह महत्त्वपूर्ण आलेख, इस बहस में
तार्किक दिलचस्पी रखने वाले व्यक्तियों के लिए एक जरूरी दस्तावेज़ है,
जिससे गुजरना उनकी चेतना को नये आयाम प्रदान करने का स्पष्ट सामर्थ्य रखता
है। )</span></div>
<span style="color: #996633; font-style: italic;">
</span><br />
<hr style="height: 2px; width: 100%;" />
<span style="font-size: medium;"><span style="font-weight: bold;"> </span> </span><br />
<span style="text-align: justify;"> तुम जानते हो पोर्ट ने कहा और उसकी आवाज़ फिर रहस्यमय हो गई, जैसा प्रायः
किसी शांत जगह पर लंबे अंतराल पर कही गई बातों से प्रतीत होता है।</span><br />
<div style="text-align: justify;">
यहां आकाश बिल्कुल अलग है। जब भी मैं उसे देखता हूं, मुझे ऐसा महसूस होता
है जैसे कोई ठोस वस्तु हो जो हम लोगों को पीछे की हर चीज़ से रक्षा कर रही
हो।</div>
<div style="text-align: justify;">
किट ने हल्के से कांपते हुए पूछा - पीछे की हर चीज़ से?</div>
<div style="text-align: justify;">
हाँ</div>
<div style="text-align: justify;">
लेकिन पीछे है क्या? उसकी आवाज़ एकदम धीमी थी।</div>
<div style="text-align: justify;">
मेरा अनुमान है, कुछ भी नहीं। केवल अंधेरा। घनी रात।</div>
<div style="text-align: justify;">
- पॉल बोल्स, द शेल्टरिंग स्काई</div>
<div style="text-align: justify;">
स्वर्ग
ईश्वर के गौरव की घोषणा करते हैं और यह आकाश उनके दस्तकारी की प्रस्तुति
है। राजा डेविड या जिसने भी ये स्त्रोत लिखे हैं, उन्हें ये तारे किसी
अत्यंत क्रमबद्ध अस्तित्व के प्रत्यक्ष प्रमाण प्रतीत हुए होंगे, जो हमारी
चट्टानों, पेड़ों और पत्थरों वाली नीरस सांसारिक दुनिया से काफ़ी अलग रही
होगी। डेविड के दिनों की तुलना में सूरज और अन्य तारों ने अपनी विशेष
स्थिति खो दी है। अब हम समझते हैं कि ये ऐसे चमकते गैसों के गोले हैं जो
गुरुत्वाकर्षण बल के कारण परस्पर बंधे हैं और अपने -अपने केन्द्र में चलने
वाली उष्मानाभिकीय प्रतिक्रियाओं से उत्सर्जित ऊष्मा के दबाब के कारण सिमट
जाने से बचे हुए हैं। ये तारे हमें ईश्वर के गौरव के बारे में उतना ही
बताते हैं जितना कि हमारे आसपास पाये जाने वाले धरती के पत्थर।</div>
<div style="text-align: justify;">
ईश्वर
की दस्तकारी में कुछ विशेष अन्तर्दृष्टि प्राप्त करने के लिए अगर प्रकृति
में कुछ चीज़ों की खोज करनी हो तो निश्चित ही वह होगा प्रकृति के अंतिम
नियम। इन नियमों को जानकर हम मालिक होंगे उन नियमों की किताब के जो तारों
और पत्थरों और हर अन्य चीज़ को नियंत्रित करते हैं। इसीलिए यह स्वाभाविक है
कि स्टीफन हॉकिंग ने प्रकृति के नियमों को ईश्वर के दिमाग़ की संज्ञा दी
है। एक अन्य भौतिकविद चार्ल्स मिजनर ने भी भौतिक विज्ञान और रसायन विज्ञान
के परिप्रेक्ष्यों की तुलना करते हुए इसी तरह की भाषा का प्रयोग किया, एक
कार्बनिक रसायनज्ञ इस प्रश्न के जवाब में कि बानवे तत्व क्यों हैं और ये
कब बने, यह कह सकता है कि- कोई दूसरा ही इसका जवाब दे सकता है। लेकिन किसी
भौतकविद से अगर पूछा जाए कि यह दुनियां क्यों कुछ भौतिक नियमों का अनुसरण
करने और शेष का अनुसरण नहीं करने के लिए बनाई गई है? तो वह जवाब दे सकता
है- ईश्वर जाने। आइन्सटीन ने एक बार अपने सहायक अर्न्स्ट स्ट्रास से कहा
था- मुझे यह जानने की इच्छा है कि दुनिया की रचना में ईश्वर के पास कोई
विकल्प मौजूद थे या नहीं। एक अन्य मौके पर वे भौतिकी के उपक्रम ( विषय )
के उद्देश्य का वर्णन करते हुए कहते हैं- "इसका उद्देश्य न केवल यह जानना
है कि प्रकृति कैसी है और वह कैसे अपना कार्य संपादित करती है बल्कि उस
आदर्शमय और दंभपूर्ण लगने वाले उद्देश्य को जहां तक संभव हो प्राप्त करना
है- जिनके तहत हम यह भी जानना चाहते हैं कि प्रकृति ऐसी ही क्यों है और
दूसरी तरह की क्यों नहीं है।...इस प्रकार यह् अनुभव होता है, जिसे यूं कहा
जाए कि ईश्वर ख़ुद इन संबंधों को जैसे वे हैं इससे अलग किसी तरीके से
व्यवस्थित नहीं कर सकते थे"। वैज्ञानिक अनुभव का यही प्रोमिथीयन तत्व है।
मेरे लिए हमेशा से यही वैज्ञानिक प्रयास का विशिष्ट जादू रहा है।</div>
<div style="text-align: justify;">
आइन्स्टीन
का धर्म इतना अस्पष्ट था कि मुझे संदेह है, और उनके यूं कहा जाए से स्पष्ट
होता है, कि उनका यह कथन नए रूपक की तरह है। भौतिक विज्ञान इतना मूलभूत है
कि भौतिक विज्ञानियों के लिए यह् रूपक स्वाभाविक ही है। धर्म तत्वज्ञ पॉल
टिलिच ने पाया कि वैज्ञानिकों में केवल भौतिक विज्ञानी ही बिना किसी उलझन
के ईश्वर शब्द का उपयोग करने में सक्षम हैं। किसी का धर्म चाहे जो हो या
बिना धर्म के भी प्रकृति के अंतिम नियमों को ईश्वर के दिमाग़ के रूप में
बताना एक अत्यंत सम्मोहक रूपक है।</div>
<div style="text-align: justify;">
इस संबध में मेरा सामना हुआ एक
विचित्र सी जगह पर वाशिंगटन के रेबर्न हाउस ऑफिस बिल्डिंग में। जब मैं
वहां १९८७ में विज्ञान, अंतरिक्ष और प्रोद्योगिकी की हाउस समिति के सामने
सुपरकन्डक्टिंग सुपर कोलाइडर ( एस.एस.सी.) प्रोजेक्ट के पक्ष में साक्ष्य
के लिए उपस्थित हुआ। मैंने जिक्र क्या कि किस प्रकार प्राथमिक कणों के
हमारे अध्ययन के दौरान हम नियमों की खोज कर रहे हैं और ये नियम लगातार और
ज़्यादा सुसंगत और सार्वभौम होते जा रहे हैं और हमें यह आभास होने लगा है
कि यह मात्र संयोग नहीं है। हमने यह भी बताया कि इन नियमों में एक व्यापक
सुसंगठन ( सौन्दर्य ) है जो विश्व की संरचना में गहरे छिपे सुसंगठन को
प्रतिबिंबित करता है। मेरी टिप्पणी के बाद अन्य साक्ष्यों ने भी बयान दिये
और समिति के सदस्यों ने प्रश्न भी पूछे। इसके बाद वहां समिति के दो
सदस्यों, एक इलियॉनस के रिपब्लिकन प्रतिनिधि हैरिस डब्लू फावेल जो सुपर
कोलाइडर प्रोजेक्ट् के कुलमिलाकर पक्षधर थे, और दूसरे पेनसिल्वानिया के
रिपब्लिकन प्रतिनिधि डॉन रिटर एक् पूर्व धातुकीय अभियंता जो कांग्रेस में
प्रोजेक्ट के धुर विरोधियों में से थे, के बीच एक बहस छिड़ गई।</div>
<div style="text-align: justify;">
मि. फावेल - बहुत-बहुत धन्यवाद, मैं आप सभी के साक्ष्यों का आभारी हूं। यह
बहुत अच्छा था। अगर कभी मुझे किसी को एस.एस.सी. की जरूरत के बारे में
समझाना होगा तो यह निश्चित है कि में आपके साक्ष्यों का सहारा लूंगा। यह
बहुत लाभदायक होगा। मैं कभी-कभी सोचता हूं कि हमारे पास कोई एक शब्द होता
जो यह सब बयान कर देता। पर यह लगभग असंभव है। मेरा अनुमान है कि शायद डॉ.
वाईनबर्ग इसके कुछ निकट पहुंचे थे। मैं एकदम निश्चित तो नहीं कह सकता पर
मैंने यह लिख लिया है। उन्होंने कहा है कि उनका अनुमान है कि यह सब संयोग
नहीं है कि कुछ नियम हैं जो पदार्थ को नियंत्रित करते हैं। और मैंने तुरंत
लिखा कि क्या यह हमें ईश्वर को खोजने में मदद करेगा? यह तय है कि आपने यह
दावा नहीं किया, लेकिन् निश्चित ही यह विश्व को और अधिक समझने में हमें
बहुत सक्षम बनायेगा।</div>
<div style="text-align: justify;">
मि. रिटर - क्या महाशय ने इस विषय में कुछ कहा? अगर ये इस पर कुछ प्रकाश डालें तो मैं कहूंगा कि...</div>
<div style="text-align: justify;">
मि. फावेल - मैं ऐसा दावा नहीं कर रहा हूं।</div>
<div style="text-align: justify;">
मि. रिटर - अगर यह मशीन वह सब करेगी तो मैं निश्चित ही इसके पक्ष में खड़ा रहूंगा। </div>
<div style="text-align: justify;">
मेरे
विवेक ने मुझे इस विचार-विनिमय में पड़ने से रोक दिया, क्योंकि मैं नहीं
समझता कि कांग्रेस के सदस्य यह जानने के लिए उत्सुक थे कि एस.एस.सी.
प्रोजेक्ट में ईश्वर की खोज के बारे में मैं क्या सोचता हूं और इसलिए भी
भी क्योंकि मुझे नहीं लगा कि इसके बारे में मेरे विचार जानना प्रोजेक्ट के
लिए फायदेमंद होता।</div>
<div style="text-align: justify;">
कुछ लोगों का ईश्वर के बारे में दृष्टिकोण इतना
व्यापक और लचीला होता है कि यह निश्चित, अवश्यम्भावी है कि वे जहां भी
ईश्वर को देखना चाहेंगे उन्हें वहीं पा लेते हैं। हम प्रायः सुनते हैं कि
"ईश्वर अंतिम सत्य है" या "यह विश्व ही ईश्वर है"। वस्तुतः किसी भी अन्य
शब्द की तरह ईश्वर का भी वही अर्थ निकाला जा सकता है जो हम चाहते हैं। अगर
आप कहना चाहते हैं कि "ईश्वर ऊर्जा है" तो आप ईश्वर को कोयले के एक टुकड़े
में पा सकते हैं। लेकिन यदि शब्दों का हमारे लिए महत्त्व है तो हमें उन
रूपों की कद्र करनी होगी जिनमें उनका इतिहास से उपयोग होता आया है, और
ख़ासकर हमें उन विशिष्टताओं की रक्षा करनी होगी जो शब्दों के अर्थों को
अन्य शब्दों में विलीन हो जाने से बचाते हैं।</div>
<div style="text-align: justify;">
इसी स्थिति में मुझे
लगता है कि "ईश्वर" शब्द का अगर कुछ भी उपयोग है तो इसका अर्थ ईश्वर के
रूप में ही लिया जाना चाहिए। वे जो रचयिता हैं और नियम बनाते हैं,
जिन्होंने केवल प्रकृति के नियमों और विश्व को ही स्थापित नहीं किया है
बल्कि अच्छे और बुरे के मापदण्ड़ भी निर्धारित किये हैं, ऐसा व्यक्तित्व जो
हमारी गतिविधियों से संबद्ध, संक्षेप में ऐसे जो हमारे आराध्य हो सकते
हैं। यह स्पष्ट होना चाहिए कि इन विषयों पर बहस करते हुए मैं अपना
दृष्टिकोण रख रहा हूं और इस अध्याय में किसी ख़ास विशेषता का दावा नहीं
करता। यही वो ईश्वर है जो पूरे इतिहास पुरुषों और नारियों के लिए
महत्त्वपूर्ण रहे हैं। वैज्ञानिक और अन्य लोग कभी-कभी "ईश्वर" शब्द का
उपयोग इतने अमूर्त और असम्बद्ध अर्थों में करते हैं कि प्रकृति के नियमों
और "उन" में कोई अंतर नही रह जाता। आइन्सटीन ने एक बार कहा था कि "मेरा
विश्वास उस स्पीनोजा के ईश्वर पर है जो सभी वस्तुओं की क्रमबद्ध समरसता के
रूप में प्रकट होता हैं। मैं उस ईश्वर को नहीं मानता जो मनुष्य की
गतिविधियों और उनके भाग्य से हितबद्ध है"। लेकिन ‘क्रमबद्धता’ या ‘समरसता’
की जगह अगर हम ‘ईश्वर’ शब्द का प्रयोग करें तो इससे क्या फ़र्क पड़ेगा, इस
इल्ज़ाम से बचने के अलावा कि ईश्वर है ही नहीं। ऐसे तो इस प्रकार से
‘ईश्वर’ शब्द के प्रयोग के लिए हर व्यक्ति स्वतंत्र है, पर मुझे लगता है
कि इससे ईश्वर की अवधारणा और महत्त्वपूर्ण हो जाती है, गलत साबित नहीं
होती।</div>
<div style="text-align: justify;">
क्या हम प्रकृति के अंतरिम नियमों में हितबद्ध ईश्वर को पा
सकते हैं? यह प्रश्न कुछ बेतुका सा लगता है। केवल इसलिए नहीं कि हम अब तक
अंतिम नियमों को नहीं जान पाये हैं, बल्कि इसलिए ज़्यादा कि यह कल्पना करना
भी मुश्किल है कि ऐसे अंतिम सिद्धांतों को प्राप्त भी किया जा सकता है
जिनकी और गहन सिद्धांतों की मदद से व्याख्या करने की जरूरत ना पड़े। लेकिन
यह प्रश्न चाहे कितना भी अधूरा हो, इस पर कौतूहल ना होना असंभव है कि क्या
हम अंतिम सिद्धांत में अपने गंभीरतम सवालों का जवाब हितबद्ध ईश्वर के
कारनामों का कोई प्रतीक ढूंढ़ पाएंगे? मेरा अनुमान है कि हम ऐसा नहीं कर
पाएंगे।</div>
<div style="text-align: justify;">
विज्ञान के इतिहास से हमारे सभी अनुभव एक विपरीत दिशा में,
एक रूखे अवैयक्तिक प्रकृति के नियमों की ओर अग्रसर हैं। इस पथ पर पहला
पहला महत्तवपूर्ण कदम था आकाश ( स्वर्ग ) का रहस्योद्घाटन। इससे जुड़े
महानायकों को तो हर कोई जानता है। कॉपरनिकस, जिन्होंने प्रस्तावित किया कि
विश्व ( यूनिवर्स ) के केन्द्र में पृथ्वी नहीं है। गैलीलियो, जिन्होंने
यह् सिद्ध किया कि कॉपरनिकस सही था। ब्रूनो, जिनका अनुमान था कि सूरज
असंख्य तारों में से केवल एक तारा है और न्यूटन जिन्होंने दिखाया कि एक ही
गति और गुरुत्वाकर्षण के नियम सौरमंड़ल और पृथ्वी पर स्थित वस्तुओं पर लागू
होते हैं। मेरे विचार में महत्त्वपूर्ण क्षण वह था जब न्यूटन ने यह अवलोकन
किया कि जो नियम पृथ्वी के चारों ओर चन्द्रमा की गति को नियंत्रित करता है
वही पृथ्वी की सतह पर किसी वस्तु का गिरना भी निर्धारित करता है। हमारी (
२०वीं ) शताब्दी में आकाश के रहस्योद्घाटन को एक कदम और आगे बढ़ाया
अमेरिकन खगोलविद् एडविन हबॅल ने। उन्होंने एन्ड्रोमिडा नीहारिका ( नेबूला
) की दूरी मापकर यह सिद्ध किया कि यह नीहारिका, और निष्कर्षतः ऐसी ही
हजारों अन्य नीहारिकाएं, हमारी आकाशगंगा के मात्र बाहरी हिस्से नहीं हैं
बल्कि वे ख़ुद में कई आकाशगंगा हैं और हमारी आकाशगंगा की तरह प्रभावशाली भी
हैं। आधुनिक ब्रह्मांड़ विज्ञानी कापर्निकन ( सिद्धांत ) की भी बात करते
हैं, जिसके अनुसार कोई भी ब्रह्मांड़ शास्त्रीय सिद्धांत जो हमारी
आकाशगंगा को विश्व में एक विशेष स्थान देता हो उसे गंभीरता से नहीं लिया
जा सकता।</div>
<div style="text-align: justify;">
जीवन के रहस्यों पर से भी पर्दा उठा है। जस्टन वॉन लीबिग
व अन्य कार्बनिक रसायनज्ञों ने उन्नीसवीं सदी के प्रारंभ में यह प्रदर्शित
किया कि जीवन से संबंधित रसायनों, जैसे यूरिक एसिड, के प्रयोगशाला
संश्लेषण की कोई सीमा नहीं है। सबसे महत्त्वपूर्ण खोज चार्ल्स डार्विन और
अल्फ्रेड रसेल वैलेस की थी, जिन्होंने दर्शाया कि सजीव वस्तुओं की
आश्चर्यजनक क्षमताओं का क्रमिक विकास स्वाभाविक चयन प्रक्रिया द्वारा बिना
किसी बाह्य योजना या निर्देशन के हो सकता है। रहस्योद्घाटन की यह
प्रक्रिया इस शताब्दी में और तेज हो गई है जब जैव रसायन और आणविक जीव
विज्ञान के क्षेत्र में सजीव वस्तुओं के क्रिया-कलापों की व्याख्या में
लगातार सफलताएं हासिल हो रही हैं।</div>
<div style="text-align: justify;">
भौतिक विज्ञान की किसी अन्य खोज
की तुलना में जीवन के रहस्यों से पर्दा उठाने का धार्मिक संवेदनशीलता पर
दूरगामी प्रभाव पड़ा। यह आश्चर्य की बात नहीं है कि भौतिकी और खगोल विज्ञान
के क्षेत्र में खोज नहीं, बल्कि जीव-विज्ञान में न्यूनीकरण ( रिडक्शनिज्म
) और क्रम विकास ( इवोल्यूशन ) के सिद्धांत सबसे ज़्यादा दुराग्रहपूर्ण
विरोधों को जन्म देते रहे हैं।</div>
<div style="text-align: justify;">
वैज्ञानिकों में भी यदा-कदा उस
जैवशक्तिवाद ( वाइटलिज्म ) के संकेत मिलते हैं, जिसका मत है कि जैविक
प्रक्रियाओं की व्याख्या भौतिकी और रसायन के आधार पर नहीं की जा सकती।
यद्यपि इस शताब्दी में जीव-विज्ञानी ( न्यूनीकरण विरोधियों, जैसे
अर्न्स्ट् मेयर, सहित ) कुल मिलाकर जैवशक्तिवाद से मुक्ति की दिशा में
अग्रसर है, लेकिन १९४४ तक भी इरविन शॉडिंगर ने अपनी प्रसिद्ध् व्हाट इज
लाइफ ( जीवन क्या है ) में तर्क दिया कि जीवन की भौतिक संरचना के बारे में
इतनी जानकारियां हैं कि यह सही-सही इंगित किया जा सकता है कि क्यों आज का
भौतिक विज्ञान जीवन को व्याख्यायित नहीं कर सकता। उनका तर्क था कि
आनुवंशिक सूचनाएं जो जीव-जंतुओं को नियंत्रित करती हैं बहुत ही स्थायी
होती हैं जिन्हें जिन्हें क्वान्टम और सांख्यिकीय यांत्रिकी में वर्णित
त्वरित और लगातार बदलावों वाले संसार में समायोजित नहीं किया जा सकता।
शॉडिंगर की गलती को आणविक जीव-विज्ञानी मैक्स पेरुज ने चिन्हित किया,
जिन्होंने अन्य चीज़ों के अलावा हीमोग्लोबिन की रचना पर भी काम किया था।
शॉडिंगर ने इन्जाइम-उत्प्रेरण नाम रासायनिक प्रक्रिया द्वारा उत्पन्न किये
जा सकने वाले स्थायित्व पर ध्यान नहीं दिया था।</div>
<div style="text-align: justify;">
आज क्रमिक विकास के सबसे ज़्यादा सम्माननीय अकादमिक आलोचक कैलिफोर्निया
विश्वविद्यालय के ‘स्कूल ऑफ लॉव’ के प्रोफ़ेसर फिलीप जॉनसन माने जा सकते
हैं। जॉनसन स्वीकार करते हैं कि क्रमिक विकास हुआ है और यह कभी-कभी
स्वाभाविक चयन प्रक्रिया द्वारा होता है, लेकिन वे तर्क पेश करते हैं कि
ऐसा कोई ‘अकाट्य प्रायोगिक प्रमाण’ नहीं है जिससे यह साबित हो कि क्रमिक
विकास किसी ईश्वरीय योजना से निर्देशित नहीं होता। वास्तव में यह प्रमाणित
करने की आशा करना मूर्खता होगा कि ऐसी कोई अलौकिक शक्ति नहीं है जो कुछ
उत्परिवर्तनों ( म्यूटेशन ) के पक्ष में और कुछ के विरोध में पलड़ा नहीं
झुका देती। लेकिन ठीक यही बात किसी भी वैज्ञानिक सिद्धांत के लिए कही जा
सकती है, न्यूटन या आइन्सटीन के गति के नियमों से सौरमंड़ल पर सफलतापूर्वक
लागू करने में ऐसा कुछ भी नहीं है जो हमें यह मानने से रोके कि कुछ
धूमकेतु बीच-बीच में किसी अलौकिक शक्ति से हल्का सा धक्का पा लेते हैं। यह
अत्यंत स्पष्ट है कि जॉनसन यह मुद्दा निष्पक्ष उदारमति सोच के तहत नहीं
उठाते हैं बल्कि उन धार्मिक कारणों से उठाते हैं जिनका जीवन के लिए तो वे
महत्त्व समझते हैं पर धूमकेतु के लिए नहीं। लेकिन किसी भी प्रकार का
विज्ञान इसी तरह आगे बढ़ सकता है कि पहले यह मान लिया जाए कि कोई अलौकिक
हस्तक्षेप नहीं है और फिर यह देखा जाए कि इस मान्यता के तहत हम कितना आगे
बढ़ सकते हैं।</div>
<div style="text-align: justify;">
जॉनसन का तर्क है कि प्राकृतिक क्रम-विकास, वह
क्रमिक-विकास जो प्रकृति की दुनिया से बाहर किसी सृष्टिकर्ता के निर्देशन
या हस्तक्षेप को शामिल नहीं करता, वास्तव में, जीव-जातियों ( स्पीसीज ) की
उत्पत्ति की बहुत अच्छी व्याख्या प्रस्तुत नहीं करता। मुझे लगता है कि वे
यहां गलती कर बैठते हैं क्योंकि वे उन समस्याओं को महसूस नहीं कर रहे हैं
जिनका सामना किसी भी वैज्ञानिक सिद्धांत को हमारे अवलोकनों का स्पष्टीकरण
देते हुए हमेशा करना पड़ता है। स्पष्ट गलतियों को छोड दिया जाए, तो भी
हमारी गणनाएं और अवलोकन कुछ ऐसी मान्यताओं पर आधारित होती हैं जो उस
सिद्धांत, जिसकी परीक्षा की हम कोशिश कर रहे होते हैं, की वैधता की सीमा
से बाहर होती हैं। कभी ऐसा नहीं था जब न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के
सिद्धांत या अन्य किसी भी सिद्धांत पर आधारित गणनाएं सभी अवलोकनों से पूरी
तरह मेल खाती हों। आज के जीवाश्म विज्ञानियों और क्रमिक विकासपंथी
जीवविज्ञानियों के लेखन में हम उस स्थिति को पहचान सकते हैं जिससे भौतिक
विज्ञान में हम वाकिफ़ हैं, यानि की प्राकृतिक क्रमिक-विकास के सिद्धांत
जीव विज्ञानियों के लिए अत्यंत ही सफल सिद्धांत हैं, फिर भी इसके
स्पष्टिकरण का कार्य अभी समाप्त नहीं हुआ है। मुझे लगता है यह सिद्धांत एक
अत्यंत महत्त्वपूर्ण खोज है जिससे हम जीवविज्ञान और भौतिकविज्ञान दोनों ही
क्षेत्रों में बिना किसी अलौकिक हस्तक्षेप की परिकल्पना के दुनिया की
व्याख्या बहुत आगे तक कर सकते हैं।</div>
<div style="text-align: justify;">
दूसरे संदर्भ में, मैं सोचता
हूं जॉनसन सही हैं। उनका तर्क है, जैसा कि सभी समझते हैं, कि प्राकृतिक
क्रमिक विकास के सिद्धांत और धर्म में एक विसंगति है, और जो वैज्ञानिक और
शिक्षाविद इससे इनकार करते हैं उनके सामने वे चुनौती पेश करते हैं। वे आगे
शिकायत करते हैं कि प्राकृतिक क्रमिक विकास और ईश्वर के अस्तित्व में तभी
तालमेल संभव है, अगर ईश्वर शब्द का अर्थ हम उस प्रथम कारण से ज़्यादा न लें
जो प्रकृति के नियमों को स्थापित करने और स्वाभाविक प्रक्रिया को लागू
करने के बाद आगे की गतिविधियों से विरत हो जाता है।</div>
<div style="text-align: justify;">
आधुनिक क्रमिक
विकास के सिद्धांत और हितबद्ध ईश्वर में विश्वास के बीच की विसंगति मुझे
तर्क की विसंगति नहीं लगती। कोई यह कल्पना कर सकता है कि ईश्वर ने प्रकृति
के नियमों को रचा और क्रमिक विकास की प्रक्रिया को इस उद्देश्य से स्थापित
किया कि एक दिन स्वाभाविक चयन प्रक्रिया के द्वारा आप और हम प्रकट होंगे।
वास्तविक विसंगति दृष्टि की है। आखिर ईश्वर उन नर नारियों के दिमाग़ की
पैदाइश नहीं है जिन्होंने अनन्त दूरदर्शी प्रथम कारणों की परिकल्पना की,
बल्कि उन दिलों की खोज है जो हितबद्ध ईश्वर के लगातार हस्तक्षेप के लिए
लालायित थे।</div>
<div style="text-align: justify;">
धार्मिक रूढ़ीवादी यह समझते हैं, जैसा कि उनके उदारवादी
विरोधी नहीं समझ पाते, कि विद्यालयों ( पब्लिक स्कूल ) में क्रमिक विकास
के शिक्षण की बहस में कितनी बड़ी चीज़ दाव पर लगी है। १९८३ में, टेक्सस से
आने के थोड़े दिनों बाद, उस अधिनियम पर टेक्सस सीनेट के समक्ष गवाही देने
के लिए मुझे आमंत्रित किया गया, जिसके अनुसार राज्य द्वारा खरीदी हुई
माध्यमिक विद्यालयों की पाठ्य-पुस्तकों में क्रमिक विकास के सिद्धांत के
पठन-पाठन की तब तक मनाही थी, जब तक उतना ही महत्त्व सृष्टिवाद को न दिया
जाए। समिति के एक सदस्य ने मुझसे पूछा कि राज्य क्रमिक विकास जैसे
वैज्ञानिक सिद्धांत के शिक्षण को कैसे मदद दे सकता है जो धार्मिक
विश्वासों से इतना खिलवाड़ करता है। मैने जवाब दिया कि नास्तिकता से
भावनात्मक रूप से जुडे लोगों के लिए जीव-विज्ञान में शिक्षण के लिए
उपयुक्त महत्त्व से ज़्यादा महत्त्व क्रमिक विकास पर कम महत्त्व देने में
है। यह जन विद्यालयों का काम नहीं है कि वे वैज्ञानिक सिद्धांतों के
धार्मिक प्रभावों के पक्ष या विपक्ष में अपने को शामिल करें। मेरे उत्तर
ने सीनेटर को संतुष्ट नहीं किया क्योंकि वह मेरी तरह, जानता था कि जीव
विज्ञान के पाठ्यक्रम में क्रमिक विकास के सिद्धांत पर उपयुक्त जोर देने
का क्या प्रभाव पड़ेगा। ज्योंही मैंने समिति कक्ष से बाहर कदम रखा, वह
बुदबुदाया-"अभी ईश्वर स्वर्ग में है।" ऐसा हो सकता है, लेकिन लड़ाई में जीत
हमारी हुई। टेक्सस के माध्यमिक स्कूल की पाठ्यपुस्तकों में केवल आधुनिक
क्रमिक विकास के सिद्धांत को शामिल करने की छूट ही नहीं मिली बल्कि इसे
शामिल करना अब अनिवार्य हो गया है और वह भी सृष्टि के बारे में बकवास के
बिना। लेकिन ऐसी बहुत सी सारी जगहें हैं ( खासकर आज के इस्लामिक देशों में
) जहां यह लड़ाई अभी जीती जानी है और कहीं भी यह गारंटी नहीं है कि यह जीत
कायम रहेगी।</div>
<div style="text-align: justify;">
हम प्रायः सुनते हैं कि विज्ञान और धर्म में कोई विरोध
नहीं है। उदाहरण के लिए जॉनसन की पुस्तक की विवेचना करते हुए स्टीफन गोल्ड
कहते हैं कि ‘विज्ञान और धर्म एक-दूसरे के विरोध में खड़े नहीं होते,
क्योंकि विज्ञान तथ्यात्मक सच्चाइयों से नाता जोड़ता है, जबकि धर्म मानव को
नैतिकता से’। बहुत सी बातों पर में गोल्ड़ से सहमत हूं किंतु मुझे लगता है
वे दूसरी दिशा में चले गये हैं। धर्म के अर्थ की परिभाषा, धार्मिक लोगों
के वास्तविक विश्वास की परिधि में ही की जा सकती है और दुनिया के धार्मिक
लोगों को के विशाल बहुमत को यह जानकर आश्चर्य होगा कि धर्म का तथ्यात्मक
सच्चाइयों से कुछ लेना-देना नहीं है।</div>
<div style="text-align: justify;">
लेकिन गोल्ड़ के विचार
वैज्ञानिकों और धार्मिक उदारपंथियों के बीच बहुत प्रचलित हैं। लेकिन मुझे
लगता है कि यह धर्म के उस स्थान से जहां कभी वह विराजमान था, पीछे हटने का
महत्त्वपूर्ण संकेत है। एक समय था जब हर नदी में बिना एक जलपरी के और हर
पेड़ में बिना एक वन देवी के प्रकृति की व्याख्या नहीं की जा सकती थी।
उन्नीसवीं शताब्दी तक भी पेड़ और जंतुओं की संरचना सृष्टिकर्ता के
प्रत्यक्ष प्रमाण के रूप में देखी जाती थी। आज भी प्रकृति की ऐसी अनंत
वस्तुएं हैं जिनकी व्याख्या हम नहीं कर सकते, लेकिन हम उन सिद्धांतों को
जानते हैं जो उनकी कार्य-पद्धति को नियंत्रित करते हैं। आज वास्तविक
रहस्यों के लिए हमें ब्रह्मांड विज्ञान औए प्राथमिक-कण भौतिकी की तह में
जाना पड़ेगा। उन लोगों के लिए जो धर्म और विज्ञान में कोई विरोध नहीं
देखते, विज्ञान द्वारा कब्जा की गई ज़मीन से धर्म के पीछे हटने की
प्रक्रिया लगभग पूरी हो चुकी है।</div>
<div style="text-align: justify;">
इस ऐतिहासिक अनुभव से सीख लेते
हुए, हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि यद्यपि प्रकृति के अंतिम नियमों में
हमें विशेष सौन्दर्य के दर्शन् होंगे, लेकिन जीवन या बुद्धि के लिए यहां
कोई विशेष जगह नहीं होगी। आगे चलकर, मूल्य या नैतिकता के मापदंड़ नहीं
बनेंगे और इसीलिए हमें ईश्वर का कोई संकेत नहीं मिलेगा, जो इन चीज़ों पर ही
टिके हुए हैं। यह चीज़े कहीं और भले मिल जाएं, पर प्रकृति के नियमों में
नहीं।</div>
<div style="text-align: justify;">
मुझे यह स्वीकार करना होगा कि प्रकृति कभी-कभी जरूरत से
ज़्यादा खूबसूरत लगती है। मेरे घर के कार्यालय की खिड़की के सामने एक
हैकबेरी का पेड़ है। उस पर बार-बार आयोजित सुसभ्य पक्षियों का समारोह -
नीलकंठ, पीले गले वाले वाईरोज और सबसे प्यारे कभी-कभी पहुंचने वाले लाल
कार्डिनल। यद्यपि मैं अच्छी तरह समझता हूं कि किस प्रकार चमकीले रंग की
पंखुड़ियां अपने साथी जोड़े को आकर्षित करने की प्रतिद्वंदता में विकसित
हुए, फिर भी यह कल्पना किये बिना नहीं रहा जा सकता कि यह सारा सौन्दर्य
हमारी सुविधा के लिए बनाया गया है। लेकिन यह भी तय है कि पक्षियों और
पेड़ों के ईश्वर को, जन्म से ही अंग-भंग करने वाले या कैंसर देने वाला
ईश्वर भी बनना पड़ेगा।</div>
<div style="text-align: justify;">
सहस्त्राब्दियों से धार्मिक लोग ईशशास्त्र
में उलझे हुए हैं। उनके सामने वह समस्या खड़ी है कि एक अच्छे ईश्वर द्वारा
शासित मानी जाने वाली दुनिया में दुखों का अस्तित्व क्यों है। अलग-अलग
दैनिक योजनाओं की कल्पना कर उन्होंने इस समस्या के कई विलक्षण हल निकालें
हैं। इन समाधानों पर मैं तर्क नहीं करूंगा और न ही अपनी ओर से एक और
समाधान प्रस्तुत करूंगा। विध्वंस की यादों ने मुझे ईश्वर के मनुष्यों के
प्रति रवैयों को नयायपूर्ण बताने की कोशिशों से विमुख कर दिया है। अगर कोई
ईश्वर है जिनके पास मनुष्यों के लिए खास योजनाएं हैं तो हमारे लिए अपने इस
भाव को छिपाये रखने के लिए वे इतना कष्ट क्यों मोल ले रहे हैं? मुझे तो यह
अगर अपवित्र नहीं तो कठोर लगेगा कि ऐसे ईश्वर की हम अपने प्रार्थनाओं में
फिक्र करें।</div>
<div style="text-align: justify;">
अंतिम नियमों के प्रति मेरे कठोर दृष्टिकोण से सभी
वैज्ञानिक सहमत नहीं होंगे। मैं किसी को नहीं जानता जो स्पष्ट रूप से यह
कहे कि देवता के अस्तित्व के प्रमाण हैं। लेकिन बहुत सारे वैज्ञानिक
प्रकृति में बुद्धियुक्त जीवन की एक विशेष स्थिति के लिए अवश्य तर्क देते
हैं। वस्तुतः यह तो हर कोई जानता है कि जीवविज्ञान और मनोविज्ञान का
अध्ययन अपनी-अपनी परिधि में होना चाहिए, न कि प्राथमिक-कण-भौतिकी के
संदर्भ में। लेकिन यह बुद्धि या जीवन के लिए किसी विशेष स्थिति का द्योतक
नहीं है, क्योंकि यही बात रसायन विज्ञान और द्रवगति विज्ञान के संबंध में
भी सही है। दूसरी ओर, यदि हम अभिमुखी व्याख्याओं के मिलनबिंदु पर अंतिम
नियमों में बुद्धियुक्त जीवन की विशेष भूमिका खोजें तो हम यह निष्कर्ष
निकालेंगे कि वे सृष्टिकर्ता, जिन्होंने ये नियम बनाए, हमलोगों में खास
दिलचस्पी रखते थे।</div>
<div style="text-align: justify;">
जॉन व्हीलर इस तथ्य से काफ़ी प्रभावित हैं कि
क्वान्टम यांत्रिकी की मानक कोपेनहेगन व्याख्या के अनुसार किसी भौतिक
प्रणाली में स्थान, ऊर्जा का संवेग जैसे गुणमापकों ( तत्वों ) का एक
निश्चित मान तब तक नहीं बताया जा सकता जब तक कि किसी पर्यवेक्षक के यंत्र
से इन्हें माप न लिया जाए। व्हीलर के लिए क्वांटम यांत्रिकी सार्थकता के
लिए एक प्रकार के बुद्धियुक्त जीवन को विश्व में दिखना ही नहीं बल्कि उसके
हर हिस्से में फैल जाना चाहिए ताकि विश्व की भौतिक स्थिति के बारे में
सूचना का हर बिट प्राप्त किया जा सके। मेरे हिसाब से व्हीलर के निष्कर्ष
प्रत्यक्षवाद के मत को अत्यंत गंभीरता से लेने के खतरे का अच्छा उदाहरण
प्रस्तुत करते हैं। प्रत्यक्षवाद का तर्क है कि विज्ञान को उन्हीं चीज़ों
तक अपने आपको सीमित रखना चाहिए जिनका हम अवलोकन कर सकते हैं। मैं और मेरे
अन्य भौतिक विज्ञानी क्वान्टम यांत्रिकी की दूसरी यथार्थवादी पद्धति को
वरीयता देते हैं जो तरंग फलन के आधार पर प्रयोगशालाओं और पर्यवेक्षकों,
साथ ही साथ, अणुओं और परमाणुओं की व्याख्या कर सकता है, जो नियमों द्वारा
नियंत्रित होते हैं और इस बात पर वस्तुगत रूप से निर्भर नहीं रहते कि
पर्यवेक्षक मौजूद है या नहीं।</div>
<div style="text-align: justify;">
कुछ वैज्ञानिक इस बात पर बहुत जोर देते हैं कि कुछ मौलिक स्थिरांकों का
मान विश्व में बुद्धियुक्त जीवन की मौजूदगी के अनुकूल है। अब तक यह स्पष्ट
नहीं हो पाया है कि इस अवलोकन के पीछे कुछ ठोस आधार हैं, लेकिन अगर ऐसा हो
तो भी यह आवश्यक रूप से किसी दैवीय उद्देश्य के क्रियान्वयन की ओर इंगित
नहीं करता। बहुत सारे आधुनिक ब्रह्मांड़-विज्ञान के सिद्धांतों में प्रकृति
के ये तथाकथित स्थिरांक ( जैसे कि प्राथमिक कणों की मात्रा ) स्थान और समय
के साथ, और यहां तक कि विश्व के तरंग फलन के पद से दूसरे पद तक में बदल
जाते हैं। अगर यह सही भी है, तो जैसा कि हम देख चुके हैं, एक वैज्ञानिक
विश्व के उसी हिस्से में रहकर प्रकृति के नियमों का अध्ययन कर सकता है
जहां स्थिरांकों को बुद्धियुक्त जीवन के क्रमिक विकास के अनुकूल मान
प्राप्त होते हैं।</div>
<div style="text-align: justify;">
सादृश्य के लिए हम एक उदाहरण लेते हैं। मान
लीजिए कि एक ग्रह है जिसका नाम है प्राइम पृथ्वी। यह हमारी पृथ्वी से हर
तरह से अभिन्न है, सिर्फ़ इसके अलावा कि उस ग्रह के मनुष्यों ने बिना खगोल
विज्ञान को जाने भौतिकी के विज्ञान को विकसित किया है जैसे कि हमारी
पृथ्वी पर है ( उदाहरण के लिए, कोई यह कल्पना कर सकता है कि प्राइम पृथ्वी
की सतह शाश्वत रूप से बादलों से घिरी रहती है )। प्राइम पृथ्वी के छात्र
भौतिक विज्ञान की की पाठ्यपुस्तक के पीछे भौतिक स्थिरांकों की सारणी
अंकित पाएंगे। इस सारणी में प्रकाश की गति, इलेक्ट्रॉन की मात्रा, आदि-आदि
लिखी होंगी। और एक अन्य मौलिक स्थिरांक लिखा होगा जिसका मान १.९९ कैलोरी
उर्जा प्रति वर्ग सेंटीमीटर होगा जो प्राइम पृथ्वी की सतह पर किसी अनजान
बाह्य स्रोत से आने वाली उर्जा की माप होगी। पृथ्वी पर यह सूर्य-स्थिरांक
कहलाती है क्योंकि हम जानते हैं कि यह उर्जा हमें सूर्य से प्राप्त होती
है।</div>
<div style="text-align: justify;">
लेकिन प्राइम पृथ्वी पर किसी के पास यह जानने की विधि नहीं
होगी कि यह उर्जा कहां से आती है और यह स्थिरांक यही मान क्यों ग्रहण करता
है। प्राइम पृथ्वी के कुछ वैज्ञानिक इस पर जोर दे सकते हैं कि स्थिरांक का
मापा गया यह मान जीवन के प्रकट होने के लिए अत्यंत अनुकूल है। अगर प्राइम
पृथ्वी २ कैलोरी प्रति मिनट प्रति वर्ग सेंटीमीटर से ज़्यादा या कम उर्जा
प्राप्त करता तो समुद्रों का पानी या तो भाप या बर्फ होता और प्राइम
पृथ्वी पर द्रव जल या अन्य उपयुक्त विकल्प जिसमें जीवन विकसित हो सके, की
कमी हो जाती। भौतिक विज्ञानी इससे यह निष्कर्ष निकाल सकते थे कि १.९९
कैलोरी प्रति मिनट प्रति वर्ग सेंटीमीटर का यह स्थिरांक ईश्वर द्वारा
मनुष्यों की भलाई के लिए किया गया है। प्राइम पृथ्वी के कुछ संशयवादी
भौतिक विज्ञानी यह तर्क कर सकते थे कि ऐसे स्थिरांकों की व्याख्या
अंतत्वोगत्वा भौतिकी के अंतिम नियमों से की जा सकेगी और यह एकमात्र संयोग
है कि वहां इसका मान जीवन के अनुकूल है। वास्तव में दोनों ही गलत होते।</div>
<div style="text-align: justify;">
जब
प्राइम पृथ्वी के निवासी आखिर में खगोल विज्ञान विकसित कर लेते, तब वे
जानते कि उनका ग्रह भी एक सूरज से ९.३ करोड़ मील दूर है जो प्रति मिनट ५६
लाख करोड़ कैलोरी उर्जा उत्सर्जित करता है। और वे यह भी देखते कि दूसरे
ग्रह जो उनके सूरज से ज़्यादा निकट हैं इतने गर्म हैं कि वहां जीवन पैदा
नहीं हो सकता तथा बहुत सारे ग्रह जो उनके सूरज से ज़्यादा दूर हैं वे इतने
ठंड़े है कि वहां जीवन की संभावना नहीं है। और इसीलिए दूसरे तारों का चक्कर
लगा रहे अनन्त ग्रहों में से एक छोटा अनुपात ही जीवन के अनुकूल है। जब वे
खगोल वोज्ञान के बारे कुछ सीखते तभी प्राइम पृथ्वी पर तर्क करने वाले
भौतिक वैज्ञानी यह जान पाते कि जिस दुनिया में वे रह रहे हैं वह लगभग २
कैलोरी प्रति मिनट प्रति वर्ग सेंटीमीटर ऊर्जा प्राप्त करती है क्योंकि
कोई और तरह की दुनिया नहीं हो सकती जिसमें वे रह सकें। हम लोग विश्व के इस
हिस्से में प्राइम पृथ्वी के उन निवासियों की तरह हैं जो अब तक खगोल
विज्ञान के बारे में नहीं जान पाए हैं, लेकिन हमारी दृष्टि से दूसरे ग्रह
और सूरज नहीं बल्कि विश्व के अन्य हिस्से ओझल हैं।</div>
<div style="text-align: justify;">
हम अपने तर्क को
और आगे बढायेंगे। जैसा कि हमने पाया है कि भौतिकी के सिद्धांत जितने
ज़्यादा मौलिक होते हैं उसका ताल्लुक हमसे उतना ही कम होता है। एक उदाहरण
लें, १९२० के प्रारंभ में ऐसा सोचा जाता था कि केवल इलेक्ट्रॉन और प्रोटोन
ही प्राथमिक कण हैं। उस समय यह माना जाता था कि ये ही घटक है जिससे हम और
हमारी दुनिया बनी है। जब नये कण जैसे न्यूट्रॉन की खोज हुई तो पहले यह मान
लिया गया कि वे इलेक्ट्रॉन और प्रोटोन से ही बने होंगे। लेकिन आज के तत्व
बिल्कुल भिन्न हैं। </div>
<div style="text-align: justify;">
अब हम यह निश्चित रूप से नहीं कह सकते कि
प्राथमिक कणों से हमारा क्या तात्पर्य है, पर हमने यह महत्त्वपूर्ण सीख ली
है कि सामान्य पदार्थों में इन कणों की उपस्थिति उनकी मौलिकता के बारे में
कुछ नहीं बताती। लगभग सभी कण प्रभाव क्षेत्र ( फ़िएल्द् ) जो आधुनिक कणों
और अंतर्क्रियाओं के मानक मॉडल में प्रकट होते हैं, का इतनी तेजी से ह्रास
होता है कि सामान्य पदार्थ में वे अनुपस्थित होते हैं और मानव जीवन में
कोई भूमिका अदा नहीं करते। इलेक्ट्रॉन हमारी दैनन्दिनी दुनिया का एक
आवश्यक हिस्सा हैं, जबकि म्यूऑन और रॉउन नामक कण हमारे जीवन में कोई
महत्त्व नहीं रखते, फिर भी सिद्धांतों में उनकी भूमिका के अनुसार
इलेक्ट्रॉन को म्यूऑन और रॉउन से किसी भी प्रकार से ज़्यादा मौलिक नहीं कहा
जा सकता और व्यापक रूप में कहा जाए तो किसी वस्तु का हमारे लिए महत्व और
प्रकृति के नियमों के लिए उसके महत्व के बीच सहसंबंध की खोज किसी ने कभी
नहीं की है।</div>
<div style="text-align: justify;">
वैसे, विज्ञान की खोजों से ईश्वर के बारे में जानकारी
हासिल करने की उम्मीद ज़्यादातर लोगों ने नहीं पाली होगी। जॉन पॉल्किंगहाम
ने एक ऐसे धर्म-विज्ञान के पक्ष में भावपूर्ण तर्क दिये हैं जो मानव
विवेचना की परिधि के अंदर हों, पर जिसमें विज्ञान का भी घर हो। यह धर्म
विज्ञान धार्मिक अनुभवों, जैसे रहस्य का उद्घाटन ( ज्ञान प्राप्ति ), पर
आधारित हो, ठीक उसी तरह जैसे विज्ञान प्रयोग और अवलोकन पर आधारित होता है,
उन्हें उन अनुभवों की गुणात्मकता का आत्म-परीक्षण करना होगा। लेकिन दुनिया
के धर्मों के अनुयायियों का बहुतायत ख़ुद के धार्मिक अनुभवों पर नहीं बल्कि
दूसरों के कथित अनुभवों द्वारा उद्घाटित सत्य पर निर्भर करता है। ऐसा
सोचा जा सकता है कि यह सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानियों के दूसरों के
प्रयोगों पर निर्भरता से भिन्न नहीं है। लेकिन दोनों में एक महत्वपूर्ण
अंतर है। हजारों अलग-अलग भौतिक विज्ञानियों की अंतर्दृष्टि भौतिक
वास्तविकता की एक संतोषजनक ( पर अधूरा ) समान समझ पर अभिकेन्द्रित हुई है।
इसके विपरीत, ईश्वर या अन्य चीज़ों के बारे में धार्मिक रहस्योद्घाटनों से
उपजे विवरण एकदम भिन्न दिशाओं में संकेत करते हैं। हम आज भी, हजारों
सालों के ब्रह्मवैज्ञानिक विश्लेषण के बावज़ूद, धार्मिक उद्घाटनों से मिली
शिक्षा की किसी साझा समझ के निकट भी नहीं है।</div>
<div style="text-align: justify;">
धार्मिक अनुभवों और
वैज्ञानिक प्रयोग के बीच एक और फर्क है। धार्मिक अनुभव से प्राप्त ज्ञान
काफ़ी संतोषप्रद हो सकता है। इसके विपरीत, वैज्ञानिक पर्यवेक्षण से प्राप्त
विश्व-दृष्टिकोण अमूर्त और निर्वैयक्तिक होता है। विज्ञान से इतर, धार्मिक
अनुभव जीवन में एक उद्देश्य के विशाल ब्रह्मांडीय नाटक में अपनी भूमिका
निभाने के लिए सुझाव पेश कर सकते हैं। और जीवन के पश्चात एक निरन्तरता को
बनाए रखने के लिए ये हनसे वादा करते हैं इन्हीं कारणों से मुझे लगता है कि
धार्मिक अनुभव से प्राप्त ज्ञान पर इच्छाजनित सोच की अमिट छाप होती है।</div>
<div style="text-align: justify;">
१९७७
की अपनी पुस्तक द फर्स्ट थ्री मिनट्स ( पहले तीन मिनट ) में मैंने एक
अविवेकपूर्ण टिप्पणी की थी कि जितना ही हम इस विश्व को समझते जाते हैं,
उतना ही यह निरर्थक लगता है। मेरा यह मतलब नहीं था कि विज्ञान हमें सिखाता
है कि यह विश्व निरर्थक है, बल्कि यह बताना था कि विश्व ख़ुद किसी लक्ष्य
की ओर इशारा नहीं करता। मैंने तत्काल यह जोड़ा था कि ऐसे रास्ते हैं जिसमें
हम अपने आप अपने जीवन के लिए एक अर्थ ढूंढ़ सकते हैं, जैसे कि विश्व को
समझने का प्रयास, लेकिन क्षति तो हो चुकी थी। उस मुहावरे ने तब से मेरा
पीछा किया है।</div>
<div style="text-align: justify;">
हाल में एलन लाइटमैन और रॉबर्ट ब्रेबर ने सत्ताइस
ब्रह्मांड़ विज्ञानियों और भौतिकी विज्ञानियों के साक्षात्कार प्रकाशित
किये हैं। इनमें से ज़्यादातर विज्ञानियों से अपने साक्षात्कार के अन्त में
पूछा गया कि वे उस वक्तव्य के बारे में क्या सोचते हैं? विभिन्न विशेषणों
के साथ, दस साक्षात्कार देने वाले मुझसे सहमत थे और तेरह असहमत। लेकिन इन
तेरह में से तीन इसलिए असहमत थे क्योंकि वे नहीं समझ पाए कि विश्व में कोई
किसी अर्थ की आशा क्यों करेगा? हॉवर्ड के खगोलविज्ञानी मारग्रेट गेलर ने
पूछा - ....इसका कोई अर्थ क्यों होना चाहिए? कौन सा अर्थ? यह तो एकमात्र
भौतिक प्रणाली है इसमें अर्थ कैसा? मैं उस वक्तव्य से एकदम अचंभित हूं।
प्रिन्सटन के खगोलविज्ञानी जिम पीबल्स ने उत्तर दिया मैं यह मानने को
तैयार हूं कि हम बहते हुए और फैंके हुए हैं। ( पीबल्स को भी अंदाज़ था कि
मेरे लिए वह एक बुरा दिन था ) प्रिन्सटन के दूसरे खगोलविज्ञानी एडविन
टर्नर मुझसे सहमत थे, किंतु उनका अनुमान था कि मैंने यह टिप्पणी पाठक को
नाराज़ करने के उद्देश्य से की थी। एक अच्छी प्रतिक्रिया टेक्सस
विश्वविद्यालय के मेरे सहकर्मी, खगोलविज्ञानी गेरार्ड द वाकोलियर्स की थी।
उन्होंने कहा कि वे सोचते हैं कि मेरा उत्तर नोस्टालजिया पैदा करने वाला
था। कि वास्तव में यह वैसा ही था- उस दुनिया के लिए जहां स्वर्ग ईश्वर के
गौरव की घोषणा करते हैं, वह् नोस्टालजिया पैदा करने वाला ही था।</div>
<div style="text-align: justify;">
लगभग
एक सौ पचास वर्ष पहले मैथ्यू आर्नोल्ड ने समुद्र की लौटती हुई लहरों में
धार्मिक विश्वास के पीछे हटते कदमों के दर्शन किये थे और जल की ध्वनि में
उदासी का गीत सुना था। प्रकृति के नियमों में किसी चिन्तित सृष्टिकर्ता
द्वारा तैयार योजना, जिसमें मनुष्य कुछ खास भूमिका में होते, को देख पाना
कितना दिलचस्प होता। लेकिन ऐसा कर पाने में अपनी असमर्थता में मुझ उस
उदासी का अहसास हो रहा है। हमारे वैज्ञानिक सहकर्मियों में से कुछ ऐसे हैं
जो कहते हैं कि उन्हें प्रकृति के चिंतन से उसी आध्यात्मिक संतोष की
प्राप्ति होती है जो औरों को परम्परागत रूप से किसी हितबद्ध ईश्वर में
विश्वास से मिलता है। उनमें से कुछ को तो ठीक वैसा ही अहसास भी होता होगा।
मुझे नहीं होता और मुझे नहीं लगता कि यह प्रकृति के नियमों की पहचान करने
में सहायक होगा, जैसा कि आइन्सटाइन ने एक प्रकार के दूरस्थ और निष्प्रभावी
ईश्वर को मानकर किया। इस धारणा को युक्तिसंगत दिखाने के लिए ईश्वर की समझ
को हम जितना परिमार्जित करते हैं, यह उतना ही निरर्थक लगता है।</div>
<div style="text-align: justify;">
आज
के वैज्ञानिकों में इन मसलों पर सोचने वालों में मैं शायद कुछ लीक से हटकर
हूं। चाय या दोपहर के भोजन के चन्द मौकों पर जब बातचीत मुद्दों को छूती
है, तो मेरे मित्र भौतिक विज्ञानियों में से ज़्यादातर की सबसे तीखी
प्रतिक्रिया हल्के आश्चर्य और मनोविनोद के रूप में व्यक्त होती है जिसमें
यह भाव होता है कि अब भी कोई क्या इन मुद्दों को गंभीरता से लेता है। बहुत
सारे भौतिक विज्ञानी अपनी नृजातीय पहचान बनाए रखने के लिए, और विवाह और
अंत्येष्टि के मौकों पर इसका उपयोग करने के लिए, अपने अभिभावकों के
विश्वास से नाममात्र का नाता जोड़े रहते हैं लेकिन इनमें से शायद ही कोई
उसके धर्मतत्व पर विचार करता है। मैं ऐसे दो व्यापक सापेक्षता पर काम करने
वाले वैज्ञानिकों को जानता हूं जो समर्पित रोमन कैथोलिक हैं। बहुत सारे
सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी हैं जो यहूदी रिवाजों के अनुपालक हैं। एक
प्रायोगिक भौतिक विज्ञानी हैं जिनका ईसाई-धर्म में पुनर्जन्म हुआ है। एक
सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी जो समर्पित मुस्लिम हैं, और एक गणितज्ञ भौतिक
विज्ञानी हैं जिनका इंगलैंड के गिरजाघर में पुरोहिताभिषेक हुआ है।
निस्संदेह अन्य अत्यंत धार्मिक भौतिक विज्ञानी होंगे जिन्हें मैं नहीं
जानता या जो अपना मत ख़ुद तक ही सीमित रखते हैं। लेकिन मैं इतना अपने
अवलोकनों के आधार पर कह सकता हूं कि आज ज़्यादातर भौतिक विज्ञानी धर्म में
पर्याप्त रुचि नहीं रखते और उन्हें व्यावहारिक नास्तिक कहा जा सकता है।</div>
<div style="text-align: justify;">
कट्टरपंथियों और धार्मिक रूढ़िवादियों की अपेक्षा उदारपंथी, वैज्ञानिकों से
अपने रुख़ में एक मायने में ज़्यादा दूर हैं। धार्मिक रूढ़ीवादी, वैज्ञानिकों
की तरह, कम से कम जिन चीज़ों पर विश्वास करते हैं, उसके बारे में बतायेंगे
कि ऐसा वे इसलिए करते हैं क्योंकि वही सत्य है, न कि इसलिए क्योंकि वह
अच्छा है या ख़ुश करता है। लेकिन, बहुत सारे धार्मिक उदारपंथी यह सोचते हैं
कि अलग-अलग लोग अलग-अलग परस्पर सम्बद्ध चीज़ों पर विश्वास कर सकते हैं, और
उनमें से कोई भी गलत नहीं होता जब तक कि उनका विश्वास उनके काम आता है। एक
पुनर्जन्म में विश्वास करता है तो दूसरा स्वर्ग और नरक में, तीसरा यह मान
सकता है कि मृत्यु के बाद आत्मा समाप्त हो जाती है। लेकिन कोई भी तब तक
गलत नहीं कहा जा सकता जब तक कि उन्हें इन विश्वासों में आध्यात्मिक संतोष
की तेज़ धार मिलती है। सुसान सॉनटैग के मुहावरे में कहें- यह मुझे बर्ट्रेड
रसेल के उस अनुभव की कहानी की याद दिलाता है, जब् १९१८ में युद्ध का विरोध
करने पर उन्हें जेल में डाल दिया गया था। जेल के नित्यकर्म के बाद जेलर ने
रसेल से उनका धर्म पूछा। रसेल ने जवाब दिया कि वे अज्ञेयवादी हैं। कुछ
क्षण के लिए जेलर भौंचक्का रह गया, फिर उसका चहरा खिला और वह बोल पड़ा-
मेरा अनुमान है यह एकदम ठीक है। हम सभी एक ही ईश्वर की पूजा करते हैं।
क्या ऐसा नहीं है?</div>
<div style="text-align: justify;">
वुल्फगैंग पॉली से एक बार पूछा गया कि क्या वे
सोचते हैं कि वह अमुक अत्यंत कुविचारित शोध-पत्र गलत था। उन्होंने जवाब
दिया कि ऐसा वर्णन उसके लिए काफ़ी नर्म होगा। वह शोध-पत्र तो गलत भी नहीं
था। मैं सोचता हूं कि रूढ़ीवादी जिस पर विश्वास करते हैं वह गलत है। लेकिन
कम से कम, विश्वास करने का मतलब क्या है, वे यह तो नहीं भूले। धार्मिक
उदारवादी तो मुझे गलत भी नहीं लगते।</div>
<div style="text-align: justify;">
हम प्रायः सुनते हैं कि धर्म
के संबंध में धर्मतत्व शास्त्र उतना महत्वपूर्ण नहीं है- महत्वपूर्ण है कि
यह हमें जीवन में कैसे मदद करता है। घोर आश्चर्य। ईश्वर का अस्तित्व और
उसकी प्रकृति, दया और पाप तथा स्वर्ग और नरक महत्वपूर्ण नहीं है। मेरा
अंदाज़ है कि लोग अपने माने हुए धर्म के धर्मतत्वशास्त्र को इसलिए
महत्वपूर्ण नहीं मानते क्योंकि वे ख़ुद यह स्वीकार नहीं कर पाते कि वे किसी
में विश्वास नहीं करते। लेकिन पूरे इतिहास के दौरान और आज भी दुनिया के कई
हिस्सों में लोगों ने एक् धर्मतत्वशास्त्र या दूसरे में विश्वास किया है
और उनके लिए यह बहुत महत्वपूर्ण रहा है।</div>
<div style="text-align: justify;">
धार्मिक उदारपंथ के
बौद्धिक निस्तेज से कोई निराश हो सकता है, लेकिन यह रूढ़ीवादी कट्टर धर्म
है जिसने क्षति पहुंचाई है। निस्संदेह इसके महान नैतिक और कलात्मक योगदान
भी हैं। लेकिन मैं यहां यह तर्क नहीं करूंगा कि एक तरफ़ धर्म के इन अवदानों
और दूसरी तरफ़ धर्मयुद्ध और ज़िहाद एवं धर्म परीक्षण और सामूहिक हत्या की
लंबी निर्मम कहानी के बीच हमें किस प्रकार संतुलन बैठाना चाहिए। लेकिन इस
बात पर मैं अवश्य जोर देना चाहूंगा कि इस तरह से संतुलन बैठाते हुए यह मान
लेना सुरक्षित नहीं है कि धार्मिक अत्याचार और पवित्र धर्म युद्ध सच्चे
धर्म के विकृत रूप हैं। मेरे विचार से यह धर्म के प्रति उस मनोभाव का
दुष्परिणाम है, जिसमें गहरा आदर और ठोस निष्ठुरता का सम्मिश्रण है। दुनिया
के महान धर्मों में से कई यह सिखाते हैं कि ईश्वर एक विशेष धार्मिक
विश्वास रखने और पूजा के एक खास रूप को अपनाने का आदेश देता है। इसलिए
इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि कुछ लोग जो इन शिक्षाओं को गंभीरता से
लेते हैं वे किन्हीं धर्मनिरपेक्ष मूल्यों जैसे सहिष्णुता, करुणा या
तार्किकता की तुलना में इन दैनिक आदेशों को निष्ठापूर्वक सबसे ज़्यादा
महत्व दें।</div>
<div style="text-align: justify;">
एशिया और अफ्रीका में धार्मिक उन्माद की काली ताकतें
अपनी जड़ मजबूत करती जा रही है और पश्चिम के धर्मनिरपेक्ष राज्यों में भी
तार्किकता और सहिष्णुता सुरक्षित नहीं है। इतिहासकार ह्यू ट्रेवर-रोपर ने
कहा कि सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दी में यह विज्ञान के उत्साह का फैलाव
ही था जिसने अंततोगत्वा यूरोप में डायनों का जलाना समाप्त कर दिया। हमें
एक स्वस्थ दुनिया के संरक्षण के लिए फिर से विज्ञान के प्रभाव पर भरोसा
करना होगा। वैज्ञानिक ज्ञान की निश्चितता नहीं बल्कि अनिश्चितता ही उसे इस
भूमिका के लिए अनुकूल बनाती है। वैज्ञानिकों द्वारा पदार्थ के बारे में
अपनी समझ, जिसका प्रत्यक्ष अध्ययन प्रयोगशाला में प्रयोगों द्वारा हो सकता
है, बार-बार बदलते हुए देखने के बावज़ूद, धार्मिक परम्परा या पवित्र
ग्रंथों द्वारा पदार्थ के उस ज्ञान, जो मानवीय अनुभव से परे है, के दावे
को गंभीरता से कौन लेगा?</div>
<div style="text-align: justify;">
निश्चित रूप से, दुनिया की तकलीफ़ों को
बढ़ाने में विज्ञान का भी अपना योगदान है। लेकिन सामान्य तौर पर विज्ञान एक
दूसरे को मारने का साधन भर उपलब्ध कराता है, उद्देश्य नहीं। यहां विज्ञान
के प्राधिकार का उपयोग आतंक को जायज ठहराने के लिए होता रहा है जैसे कि
नाज़ी वंशवाद या सुजनन-विज्ञान ( ऎउगेन्-इच्स् ), वहां विज्ञान को भ्रष्ट
किया गया है। कार्ल पॉपर ने कहा है- यह एकदम स्पष्ट है कि तार्किकता नहीं
बल्कि अतार्किकता, धर्मयुद्धों के पहले और बाद में, राष्ट्रीय शत्रुता और
आक्रमण के लिए जिम्मेदार रही है। लेकिन कोई युद्ध वैज्ञानिक के लिए
वैज्ञानिकों की पहल पर लड़ा गया हो, यह् मुझे नहीं मालूम।</div>
<div style="text-align: justify;">
दुर्भाग्यवश,
मुझे नहीं लगता कि युक्तिसंगत दलील पेश करने से तार्किकता की वैज्ञानिक
पद्धति को स्थापित करना संभव है। डेविड ह्यूम ने बहुत पहले बताया था कि
सफल विज्ञान के पुराने अनुभवों के समर्थन में हम बहस की उस तर्क पद्धति की
प्रामाणिकता मानकर चलते हैं जिसे हम स्थापित करना चाहते हैं। इस प्रकार
सभी तर्कपूर्ण बहसों को केवल तर्कपद्धति को अस्वीकार कर मात दिया जा सकता
है। इसलिए. अगर हमें प्रकृति के नियमों में आध्यात्मिक सुख नहीं मिलता, तो
भी हम इस प्रश्न से नहीं बच सकते हैं कि इसकी खोज अन्य जगहों पर एक या
दूसरे प्रकार के आध्यात्मिक प्राधिकार में या धार्मिक विश्वास को स्वतंत्र
रूप से बदल कर हम क्यों नहीं कर सकते?</div>
<div style="text-align: justify;">
विश्वास करना है या नहीं
करना है, इसका निर्णय पूरी तरह हमारे हाथ में नहीं है। अगर मैं सोचूं कि
यदि मैं चीन के बादशाह का उत्तराधिकारी होता तो मैं ज़्यादा सुखी और सभ्य
होता, लेकिन मैं अपनी इच्छाशक्ति पर चाहे जितना जोर डालूं मुझे यह विश्वास
नहीं हो सकता, ठीक उसी तरह जैसे मेरे दिल की धड़कन को रोकने की चाहत ऐसा
नहीं कर सकती। तब भी, ऐसा लगता है कि बहुत सारे लोग अपने विश्वास को थोड़ा
नियंत्रित करते हैं और उन्हीं विश्वासों को चुनते हैं जो उन्हें लगता है
कि उन्हें अच्छा और खुश रखेगा।</div>
<div style="text-align: justify;">
यह नियंत्रण कैसे कार्यान्वित होता
है, इसका मेरी जानकारी में सबसे दिलचस्प वर्णन जार्ज ऑरवेल के उपन्यास
१९८४ में मिलता है। नायक विन्सटन स्मिथ अपनी डायरी में लिखता है- दो धन दो
चार होता है, यह कहने की छूट की मुक्ति है। धर्म परीक्षक ओब्रायन इसे एक
चुनौति के रूप में लेता है और उसकी सोच को मजबूरन बदलने के लिए उपाय करता
है। उत्पीड़न में स्मिथ यह कहने के लिए पूरी तरह तैयार है कि दो धन दो पांच
होता है, लेकिन ओब्रायन केवल यह नहीं चाहते थे। अंत में जब दर्द बर्दाश्त
के बाहर हो जाता है, तो उससे बचने के लिए स्मिथ अपने को आप को एक क्षण के
लिए यह विश्वास दिलाता है कि दो धन दो पांच ही होते हैं। ओब्रायन उस क्षण
संतुष्ट हो जाते हैं और उत्पीड़न रोक दिया जाता है। ठीक इसी प्रकार अपने और
अपने चहेतों की संभावित मृत्यु से सामना होने का दर्द् हमें अपने
विश्वासों में फेरबदल के लिए मजबूर करता है, ताकि हमारा दर्द कम हो जाए।
पर सवाल उठता है कि अगर हम अपने विश्वासों में इस तरह से समझौता करने में
सक्षम हैं, तो ऐसा क्यों ना किया जाए?</div>
<div style="text-align: justify;">
मुझे इसके खिलाफ़ कोई
वैज्ञानिक या तार्किक कारण नहीं दिखलाई पड़ता कि हम अपने विश्वासों में
समझौता करके- नैतिकता और मर्यादा के लिए, कुछ सांत्वना हासिल क्यों ना
करें! हम उसका क्या करें जिसने खुद को यह विश्वास दिला दिया हो कि उसे तो
एक लॉटरी मिलनी ही है क्योंकि उसे रुपयों की बहुत-बहुत जरूरत है? कुछ लोग
भले उसके क्षणिक विशाल ख्वाब से ईर्ष्या रखते हों पर ज़्यादातर लोग यह
सोचेंगे कि वह एक वयस्क और तार्किक मनुष्य की सही भूमिका में, चीज़ों को
वास्तविकता की कसौटी पर देख पाने में, असफल है। जिस प्रकार उम्र के साथ
बढ़ते हुए, हम सभी को यह सीखना पड़ता है कि लॉटरी जैसी साधारण चीज़ों के बारे
में ख्वाबपूर्ण सोच के लोभ से कैसे बचा जाए, ठीक उसी प्रकार हमारी प्रजाति
को उम्र के साथ बढ़ते हुए यह सीखना पड़ेगा कि हम किसी प्रकार के विराट
ब्रह्मांड़ीय नाटक में किसी हीरो की भूमिका में नहीं हैं।</div>
<div style="text-align: justify;">
फिर भी,
मैं एक मिनट के लिए भी यह नहीं सोचता कि मृत्यु का सामना करने के लिए धर्म
जो सांत्वना देता है, विज्ञान वह उपलब्ध कराएगा। इस अस्तित्ववादी चुनौति
का मेरी जानकारी में सबसे बढ़िया विवरण ७०० ईस्वी के आसपास पूज्य बेडे
द्वारा रचित पुस्तक् द इक्लेजियास्टिक हिस्ट्री ऑफ द इंग्लिश ( अंग्रेजों
का गिरजा-संबंधी इतिहास ) में है। बेडे ने लिखा है कि नॉर्थम्ब्रीया के
राजा एडविन ने ६२७ ईस्वी में यह तय करने के लिए कि उनके राज्य में कौनसा
धर्म स्वीकारा जाए, एक परिषद की बैठक बुलाई, जिसमें राजा के प्रमुख
दरबारियों में से एक ने निम्नलिखित भाषण दिया: </div>
<div style="text-align: justify;">
" हे महाराज!
जब हम पृथ्वी पर मनुष्य के आज के जीवन की तुलना उस समय से करते हैं जिसकी
कोई जानकारी हमारे पास नहीं है, तो हमें लगता है जैसे एक अकेली मैना,
शाही-दावत वाले हॉल में द्रुत उड़ान भर रही हो, जहां आप किसी जाड़े की रात
में अपने नवाबों और दरबारियों के साथ दावत में बैठे हों। ठीक बीच में, हॉल
में आनन्दमयी गर्मी प्रदान करने के लिए आग जल रही हो और बाहर जाड़े की
तूफ़ानी बारिश या बर्फ का प्रकोप हो। मैना हॉल के एक दरवाज़े से होते हुए
दूसरे दरवाज़े तक द्रुत उड़ान भर रही है। जब तक वह अंदर है, बर्फीले तूफ़ान
से सुरक्षित है। लेकिन कुछ क्षणों के आराम के बाद, वह उसी कड़ाके की ठंड़
वाली दुनिया में, जहां से वह आई थी, हमारी दृष्टि से ओझल हो जाती है। इसी
तरह, आदमी थोड़े समय के लिए पृथ्वी पर दिखता है। इस जीवन के पहले क्या हुआ
और बाद में क्या होगा, इसके बारे में हम कुछ नहीं जानते।"</div>
<div style="text-align: justify;">
बेडे और
एडविन की तरह इस विश्वास से बच पाना मुश्किल है कि उस दावत वाले हॉल के
बाहर हम लोगों के लिए कुछ अवश्य होगा। इस ख्याल को तिलांजलि देने का साहस
ही उस धार्मिक सांत्वना का छोटा सा विकल्प है और यह भी संतुष्टि से विहीन
नहीं है।</div>
<br />
<hr style="height: 2px; width: 100%;" />
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red;">स्टीवन वाइनबर्ग का यह आलेख यहां से डाउनलोड़ किया जा सकता है:</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-weight: bold;"><a href="http://www.mediafire.com/?dpqunoef4dkftqd" target="_blank">और तब ईश्वर का क्या हुआ? - स्टीवन वाइनबर्ग</a> </span></div>
<hr style="height: 2px; width: 100%;" />
<br /></div>adminhttp://www.blogger.com/profile/10011215816123607995noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-2356433621108141667.post-70824349788756920772011-12-26T18:09:00.000-08:002011-12-26T04:38:42.119-08:00शंकराचार्य का रचनाकर्म : एक समीक्षा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #cc0000;">( इस ब्लॉग की सदस्या लवली गोस्वामी का यह
महत्त्वपूर्ण आलेख </span><span style="color: #cc0000;">गर्भनाल पत्रिका के दिसंबर
अंक में ‘शंकराचार्य का रचनाकर्म : विज्ञानवादी दृष्टि से एक समीक्षा’</span><span style="color: #cc0000;">’
शीर्षक से प्रकाशित हुआ है। यहां उस आलेख का मूल प्रारूप साभार प्रस्तुत
किया जा रहा है। - मोडेरेटर )</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://3.bp.blogspot.com/-l4wnfY6EwDY/Tvd1lkv_UfI/AAAAAAAAABs/IikowGQlf3o/s1600/troy_metope.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="163" src="http://3.bp.blogspot.com/-l4wnfY6EwDY/Tvd1lkv_UfI/AAAAAAAAABs/IikowGQlf3o/s200/troy_metope.jpg" width="200" /></a></div>
<div style="text-align: justify;">
आधुनिक समय में जब दर्शन अपनी पुरातन सीमाएं लांघकर सुविकसित और सुसंगत
हो चुका है, यह आवश्यक है कि भारतीय दर्शन की समीक्षा की जाए और इसमें
उपस्थित बुद्धिवादी, वस्तुगत और तर्कपरक चिंतन और चिंतकों के विचारों को
जनता के समक्ष रखा जाए जिससे कि वे इससे लाभान्वित हो सकें. भारतीय दर्शन
की समीक्षा विज्ञान आधारित दृष्टि और तर्क के आधार पर करने पर हमें ज्ञात
होता है कि यहाँ दर्शन का एक समृद्ध इतिहास रहा है और तार्किक चिंतन को
प्रश्रय देने वाले कई मत और संप्रदाय रहे हैं. वहीं दूसरी ओर तर्कपूर्ण
चिंतन और ज्ञान की निंदा करने वाले और विश्व की भ्रमपूर्ण व्याख्या करने
वाले दार्शनिकों की भी कोई कमी नही रही है. इस लेख का विषय शंकराचार्य के
रचनाकर्म की इसी दृष्टि से समीक्षा करने और तर्कपरक बुद्धिवादी चिंतन के
प्रति उनके दृष्टिकोण की व्याख्या करना है.<br />
<br />
शंकाराचार्य वेदांत
के अद्वैत मत के व्याख्याकार थे. इनका जन्म केरल के मालबार क्षेत्र के
कालड़ी नामक स्थान पर शिवगुरु नम्बूदरी के यहाँ हुआ था. बत्तीस वर्ष की
आयु में इनकी मृत्यु हुई. शंकराचार्य ने महर्षि बादरायण के सुप्रसिद्ध
ब्रह्मसूत्र पर भाष्य लिखने के अतिरिक्त ग्यारह उपनिषदों तथा गीता पर भी
भाष्य रचे एवं इन्होंने बौद्ध महायानियों की रणनीति का अनुसरण करते हुए
देश के चारो कोनों में चार मठ स्थापित किये.इन्होंने ब्रह्मसूत्र पर लिखे
अपने प्रसिद्ध भाष्य में वेदान्त को नया विस्तार दिया एवं अद्वैत वेदान्त
के पूर्व व्याख्याकार आचार्य गौड़पाद के दर्शन को सुविकसित रूप प्रदान किया.</div>
<br />
<u><b style="color: #674ea7;"><span style="font-size: small;">शंकर और उनकी सामाजिक दृष्टि</span></b></u><br />
<br />
<div style="text-align: justify;">
हम
जानते हैं की एक धर्म शास्त्र प्रणेता के रूप में मनु के विचार शूद्रों के
प्रति विद्वेषपूर्ण थे. शंकर का निरपेक्ष मूल्यांकन उन्हें एक ऐसे
दार्शनिक के रूप में सामने रखता है, जो मनु द्वारा प्रतिपादित उसी
ब्राह्मणवादी विचारधारा के प्रतिनिधि विदित होते हैं. उनके दृष्टिकोण में
सामान्य लोगों एवं उनके द्वारा भौतिकता को सम्मान देने की परम्परा के
प्रति गहरे विद्वेष की भावना है. शूद्रों के तथाकथित ज्ञान प्राप्ति के
अधिकार को ख़ारिज करने के लिए ग्रन्थ ब्रह्मसूत्र-भाष्य के एक खंड में वे
मनु के उस अनुच्छेद को उद्धृत करते हैं, जिसमे मनु ने शूद्रों के प्रति
अपने घृणापूर्ण विचार व्यक्त किये हैं. शंकर उत्तर देते हैं कि शूद्र इस
दार्शनिक गूढ़ ज्ञान के अधिकारी क्यों नही हैं, शंकर कहते हैं -<br />
<br />
<span style="color: #b45f06;">इतश्च न शूद्रस्याधिकारः यदस्य स्मृतेः श्रवणाध्ययनार्थप्रति प्रतिषेधो</span><br />
<span style="color: #b45f06;">भवति। वेदश्रवणप्रतिषेधः , वेदाध्ययनप्रतिषेधः , तदर्थज्ञानानुष्ठानयो च</span><br />
<span style="color: #b45f06;">प्रतिषेधः शूद्रस्य स्मर्यते । श्रवणप्रतिषेधस्तावत् - ’अथ हास्य</span><br />
<span style="color: #b45f06;">वेदमुपश्रृण्वतस्त्रपुजतुभ्यां श्रोत्रप्रतिपूरणम् ’ इति: ’पद्यु ह वा</span><br />
<span style="color: #b45f06;"> एतच्छमशनं यच्छूद्रस्तस्माच्छूद्रसमीपे नाध्येतव्यम् ’ इति च।</span><br />
<br />
<span style="color: #b45f06;">अत एवाध्ययनप्रतिषेधः। यस्य हि समीपेऽपि नाध्येतव्यं भवति, स</span><br />
<span style="color: #b45f06;">कथमश्रुतमधीयीत। भवति च -- वेदोच्चारणे जिह्वावाच्छेदः , धरणे शरीरभेद</span><br />
<span style="color: #b45f06;">इति । अत एव चार्थावर्थज्ञानानुष्ठानयोः प्रतिषेधो भ वति -- ’ न शूद्राय</span><br />
<span style="color: #b45f06;"> मतिं दद्यात् ’ इति , द्विजातीनामध्ययनमिज्या दानम् इति च।</span> </div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #351c75;">(ब्रह्मसूत्र भाष्य ॥१.३.३८॥</span><br />
<br />
अर्थात
- शूद्र का इस कारण भी अधिकार नहीं है कि मनु स्मृति उन्हें वेद के
अध्ययन, वेद-श्रवण और वैदिक विषयों के निष्पादन से भी वर्जित करती है.
निम्नलिखित अवतरण के अनुसार उन्हें वेद श्रवण से वर्जित किया गया है.<br />
<br />
<span style="color: #b45f06;">- जो (शूद्र) वेदों को सुने, उसके कानों मे सीसा और लाख (पिधला हुआ) भर देना चाहिए.</span><br />
<span style="color: #b45f06;">- शूद्र श्मशान (के समान) हैं, इसलिए शूद्रों के निकट (वेदों का) पाठ नही करना चाहिए.</span><br />
<br />
इस
प्रकार एक शूद्र के लिए वेदाध्ययन वर्जित है, अतः जब शूद्रों के निकट
वेदों का पाठ भी नही किया जा सकता तब भला वह वेदाध्ययन कैसे कर सकता
है?(अर्थात नही कर सकता). आगे और भी..<br />
<br />
<span style="color: #b45f06;">- जो (शूद्र) वेदों का उच्चारण करे उसकी जीभ काट ली जानी चाहिए और जो वेदों को धारण करे उसका शरिर मध्य से चीर दिया जाना चाहिए.</span><br />
<br />
इस प्रकार वेद श्रवण और वेदाध्ययन का निषेध वैदिक विषयों के ज्ञानार्जन का भी निषेध है.<br />
<br />
<span style="color: #b45f06;">- शूद्र को ज्ञान प्रदान नही किया जाना चाहिए - द्विजों को ही अध्ययन, और दान प्राप्ति का अधिकार है.</span><br />
<br />
इस
प्रकार शंकर सामान्य श्रमिको को दर्शन के अध्ययन से रोकने की मनु की
व्यवस्था को आगे बढ़ाते हुए सत्ता पक्ष के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का उत्तम
प्रमाण पाठकों के समक्ष रखते हैं. उन सभी अनुच्छेदों को यहाँ उद्धृत करने
का कोई औचित्य नही है जिनमें शंकर ने मनु की प्रशंसा करते हुए उन्हें एक
ऐसा स्मृतिकार बताया है जिस पर किसी वेदांती दार्शनिक को निर्भर रहना
चाहिए. यहाँ इस बात को छोड़ भी दिया जाए कि इन नियमों की परिणति क्या होती
होगी और इनका पालन किस हद तक किया जाता होगा तब भी इन्हें शंकर द्वारा
उद्धृत किया जाना भर ही उनकी तथाकथित "मानवता दृष्टि" के सत्तापक्षीय
विद्वानों द्वारा प्रायोजित भ्रम की धज्जियाँ उडाता है. हम स्पष्ट देख
सकते हैं कि परोक्ष रूप से शंकर के दर्शन का ध्येय मनु के अमानवीय और
विद्वेषपूर्ण समाजशास्त्र को बौद्धिक संरक्षण देना ही है. इसक एक ऊदाहरण
तब देखने को मिलता है जब सांख्य जो एक भौतिकवादी हिन्दू दर्शन है का
उल्लेख करते हुए शंकर कहते हैं कि ...<br />
<br />
<span style="color: #b45f06;">"मनुना च....सर्वात्मवदर्शनं प्रशंसता कापिलं मतं निन्द् यत इति गम्यते।</span><br />
<span style="color: #b45f06;">कापिलस्य तंत्रस्य वेद विरुद्धत्वं वेदानुसारिमनुवचनविरुद्धत्वं च...।" </span> </div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #351c75;">(ब्रह्मसूत्र भाष्य(स्मृत्य धिकरणम् ॥२.११॥))</span><br />
<br />
अर्थात
- जहाँ मनु ने ..सर्वात्मत्व दर्शन की प्रशंसा की है, वहीं अप्रत्यक्ष रूप
से कपिल के मत की निंदा की है. कपिल का तंत्र वेदों और वेदों का अनुसरण
करने वाले मनु के वचनों के विरुद्ध है. जाहिर होता है शंकर के मन में मनु
के प्रति सम्मान और सहानुभूति की भावना है जो उन्हें भौतिकवादी दर्शनों की
निंदा करने पर विवश करती है और वे निष्पक्ष नही रह पाते. यहाँ से एक
निष्कर्ष यह भी निकलता है कि सांख्य दर्शन जिसके प्रणेता कपिल मुनि थे
मूलतः एक अवैदिक दर्शन था. वे अपनी दार्शनिक कृति में लोकायतों के मत
का भी खंडन प्रस्तुत करते हैं. पर इन भौतिकवादी दर्शनों के खंडन से पूर्व
वे मनु को उद्धृत करना नहीं भूलते जिससे कि पाठक उनके दर्शन की श्रेष्ठता
स्वीकारने के लिए तर्कपुर्ण चितंन के पुर्व ही विवश हो जाए.</div>
<br />
<u><b style="color: #674ea7;">भौतिकता और प्रत्यक्ष ज्ञान के प्रति शंकर का दृष्टिकोण</b></u><br />
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://3.bp.blogspot.com/-HIypbaEdahc/Tvd11MJxFDI/AAAAAAAAAB4/J5PGbmEPU6k/s1600/images.jpeg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="200" src="http://3.bp.blogspot.com/-HIypbaEdahc/Tvd11MJxFDI/AAAAAAAAAB4/J5PGbmEPU6k/s200/images.jpeg" width="165" /></a></div>
<div class="gmail_quote" style="text-align: justify;">
यथार्थ
अथवा भौतिकता ही सैद्धान्तिकता की कसौटी होती है. प्रत्येक सैद्धांतिक
स्थापना का परीक्षण उसके प्रति व्यावहारिक उपागम को अपनाकर ही किया जा
सकता है. शंकर ज्ञान के सभी प्रमुख स्रोतों जैसे तर्क, प्रमाण, व्यावहारिक
ज्ञान और कारणता को ख़ारिज करते हैं. ज्ञान के इन स्रोतों की अस्वीकृति
उनके भौतिक विश्व और विज्ञान के प्रति उनकी तिरस्कारपूर्ण दृष्टि की एक
बानगी उनके सुप्रसिद्ध ब्रह्मसूत्र भाष्य में मिलती है. अपने शारीरक-भाष्य
का आरम्भ वे वैज्ञानिक दृष्टिकोण, तर्कबुद्धि और प्रमाण की उपयोगिता के
व्यंगपूर्ण खंडन और तिरस्कार से करते हैं। शंकर किसी भी प्रकार के
प्रत्यक्ष ज्ञान की उपेक्षा करते हुए स्वप्न और भ्रम के आधार पर जगत की
भौतिकता को असत्य प्रमाणित करने का प्रयास करते हैं. इस प्रकार वे जगत के
प्रति एक अवैज्ञानिक और उपेक्षापूर्ण दृष्टिकोण स्थापित करने का प्रयास
करते दृष्टिगत होते हैं. इसी प्रकार तर्क के प्रति उनके रवैये में एक अजीब
सा बेतुकापन है. ब्रह्मसूत्र भाष्य में तर्क के प्रति दिए गए उनके कथनों
का निचोड़ यह है कि तर्क का कोई उचित आधार नही होता. हर विद्वान दूसरे
विद्वान के तर्कों को काट कर नए तर्क स्थिर करता है. इस प्रकार यह क्रम
चलता रहता है. नए तर्क दिए जाते हैं और अंततः वह भी गलत साबित होते हैं.
यहाँ शंकर ज्ञान प्राप्ति में संशय की भूमिका को लगभग ख़ारिज करते हुए
आस्था को जीवन का आधार बनाने की पूर्वपीठिका तैयार करते दृष्टिगत होते
हैं.हम देखते हैं कि व्यावहारिक सत्य की जाँच के लिए तर्क की उपयोगिता को
ख़ारिज करने के उपरांत भी वे उतने प्रबल तरीके से आस्था पक्षपोषण नही कर
पाते जितने की अन्य भाववादी दार्शनिक करते हैं, वे मायावाद कि व्याख्या मे
भी बहुत कुशलता नही दिखा पाते, जबकि यथार्थवादी चिंतन का भी भारत में
समृद्ध इतिहास है जिसकी एक बानगी हमें वात्स्यायन के दार्शनिक ग्रन्थ
न्याय-सूत्र में मिलती है. वात्स्यायन कहते हैं -<br />
<br />
<span style="color: #b45f06;">"बुद्ध् या विवेचनाद् भावानां याथात्म्योपलब्धिः, यदस्ति यथा च यत्नास्ति</span><br />
<span style="color: #b45f06;">यथा च तत्सर्व प्रमाणत उपलब्ध्या सिध्यति, या च प्रमाणत उपलब्धिस्तद्</span><br />
<span style="color: #b45f06;">बुद्ध् या विवेचनं भावानाम् , तेन सर्वशास्त्राणी सर्वकर्माणि सर्वे च</span><br />
<span style="color: #b45f06;"> शरीरिणां व्यवहारा व्याप्ताः। परी़क्षमाणो हि बुद्ध् याऽध्यवस्यति</span><br />
<span style="color: #b45f06;">इदमस्तीति तत न सर्वभावानुपपतिः ।"</span> </div>
<div class="gmail_quote" style="text-align: justify;">
<span style="color: #351c75;">(न्याय सूत्र (४) २/२७)</span><br />
<br />
अर्थात
- यह मानना होगा की बुद्धि के द्वारा परीक्षण करके ही वस्तुओं की वास्तविक
प्रवृत्ति का बोध होता है. बुद्धि द्वारा परीक्षण और प्रमाण द्वारा
वस्तुओं के संज्ञान के सिवा दूसरा कोई अर्थ नही है. प्रमाण द्वारा संज्ञान
के आधार पर ही निर्धारित किया जा सकता है कि कौन सी वस्तु अस्तित्वमान है
और किस प्रकार अस्तित्वमान है या कौन सी वस्तु अस्तित्वहीन है और किस अर्थ
में अस्तित्वहीन है. प्रमाणों द्वारा वस्तुओं का ज्ञान ही सभी शाखाओं और
जीव धारियों की सभी गतिविधियों एवं व्यवहार का आधार है. सूक्ष्म रूप से
वस्तुओं की जाँच पड़ताल करने वाला दर्शनवेत्ता बुद्धि के आधार पर ही
वस्तु के अस्तित्व का निर्धारण करता है. अतः यह तर्क प्रस्तुत करना
निरर्थक है कि बुद्धि से किसी वस्तु का ज्ञान नही होता फिर यदि ऐसा है भी,
तो भी इस तर्क का कोई आधार नही है कि वास्तविक जगत अस्तित्व शून्य है.<br />
<br />
यहां
इस विषय पर चर्चा करना हमार उद्देश्य नहीं है जिन पठकों को इस विषय मे
रूची हो वे न्याय सूत्र का पाठन कर सकते हैं, हम इसे यहीं छोडकर शंकर पर
वापस लौटते हैं.<br />
<br />
शंकर का मानना है की प्रत्यक्ष ज्ञान इन्द्रियों
पर आधारित है इसलिए संवेदन के आधार पर निर्मित होता है, इसलिए यह भ्रम है.
कारण तर्क विज्ञान के प्रति अपने मंतव्य रखते हुए शंकर उतने मजबूत तर्क
पाठकों के आगे नही रख पाते अथवा नही रखना चाहते जितने कि अन्य भाववादी
दार्शनिक जैसे नागार्जुन और बुद्धपालित आदि देते हैं. कहा जा सकता है कि
उन्हें इस बात का संज्ञान तो है ही कि अगर वे तर्क से विरोधियों को
पराजित नही भी कर पाए तो भी राज्य सत्ता तर्क विज्ञान के पक्षधरों का
उपचार करने के लिए के लिए मनु द्वारा बताये मार्गों की व्यवस्था कर ही
देगी. उनके तर्कबुद्धि और प्रमाण के अस्वीकरण के लिए दिए गए तर्कों में
तथ्य कम व्यंग और पूर्वाग्रह युक्त तल्खी अधिक है. शंकर स्पष्ट घोषणा करते
हैं कि तर्क बुद्धि का उपयोग केवल स्मृतिओं (वह भी मनु द्वारा रचित) में
लिखे गए सूत्रवाक्यों को सही साबित करने के लिए किया जा सकता है.<br />
<br />
<u><b style="color: #674ea7;">शंकर और लोकायत का खंडन</b></u><br />
<br />
शंकर के लोकायत के विरुद्ध तर्क बहुत ही लचर और बेसिरपैर की आपत्तियों से भरे पड़े है. शंकर लिखते हैं कि-<br />
<br />
<span style="color: #b45f06;">"नत्वेतदस्ति यदुक्तम- अव्यतिरेको देहादात्मन इति, व्यतिरेक एवास्य</span><br />
<span style="color: #b45f06;"> देहाद् भवितुमर्हति, तद् भावाभावित्वात्। यदि देहभावे भावात् देह</span><br />
<span style="color: #b45f06;">धर्मत्वम् आत्मधर्माणां मन्येत -- ततो देहभावेऽपि अभावात् अतद्धर्मत्वमेव</span><br />
<span style="color: #b45f06;">एषां किं न मन्येत? देहधर्मवैलक्षण्यात् । ये हि देहधर्मा रुपादय: , ते</span><br />
<span style="color: #b45f06;">यावद्देहं भवन्ति; प्राणचेष्टादयस्तु सत्यपि देहे मृतावस्थायां न भवन्ति;</span><br />
<span style="color: #b45f06;"> देहधर्माश् च रुपादयस्ते यावद् देहं भवन्ति। प्राणचेष्टादयस्तु सत्यपि</span><br />
<span style="color: #b45f06;">देहे मृतावस्थायां न भवन्ति; देहधर्माश्च रुपादयः परैरप्युपलभ्यन्ते, न</span><br />
<span style="color: #b45f06;">त्वात्मधर्माश्चैतन्यस्मृत्या</span><wbr style="color: #b45f06;"></wbr><span style="color: #b45f06;">दयः। </span></div>
<div class="gmail_quote" style="text-align: justify;">
<span style="color: #351c75;">( ब्रह्मसूत्र भाष्य ॥(३)३/५४॥)</span><br />
<br />
स्वतंत्र
अनुवाद की शैली में इसका अर्थ है कि - शरीर और आत्मा की अभिन्नता की बात
तर्क संगत नही है. इसके विपरीत शरीर को आत्मा से भिन्न देखना सही है, कारण
की अपनी उपस्थिति के बावजूद इसमें अनुपस्थित रहने का गुण विद्यमान है.
शरीर के कथित गुण (यहाँ लोकायतियों के कथन की ओर इशारा है ) के रूप में
चेतना स्वयं शरीर की उपस्थिति के बाद भी अनुपस्थित रहती है (यहाँ शंकर का
तात्पर्य शव से हैं) इस प्रकार शरीर की उपस्थिति के समय आत्मा के जो लक्षण
दृष्ट होते हैं उनके आधार पर यह माना जाता है कि ये शरीर के ही गुण हैं,
(यह लोकायत मत का मूल आधार है जिसकी ओर शंकर इशारा कर रहे हैं) परन्तु यदि
यह बात होती तब यह स्वीकार करने में क्या कठिनाई है कि शरीर की उपस्थिति
के बाद भी (शव में) यह गुण (चेतना) अनुपस्थित है तब चेतना को शरीर से अलग
क्यों न माना जाए? आत्मा (चेतना) के गुणों और शरीर के गुणों में जो
भिन्न्नता दृष्ट होती है उसके आधार पर यह स्वीकार्य है. अतएव जब तक शरीर
है तब तक शरीर के गुण रूप रंग आदि दिखाई देते हैं और मृत्यु के बाद शरीर
में इच्छा शक्ति और प्राणशक्ति आदि नही दिखाई पड़ते हैं दूसरे लोग इन्हें
नही देख पाते इसलिए शरीर के गुणों जैसे रूप रंग आदि के लिए कही गई बात
चेतना और स्मृति के बारे में नही कही जा सकती.<br />
<br />
हम इस तर्क के
आधार कितने सबल हैं इसे जांचने का प्रयत्न करते हैं. जैसा कि जाहिर होता
है शंकर का मुख्य तर्क जो लोकयातिओं के प्रति है वह है कि अगर चेतना (जिसे
शंकर कई बार स्मृति, इच्छाशक्ति और प्राणशक्ति भी कहते हैं) शरीर का गुण
होती तब वह शव में क्यों नही उपस्थित रहती? यह लोकयातिओं के पक्ष का
अतिसरलीकरण है जो शंकर कर रहे हैं, यह मूलतः न्याय-वैशेषिकों का तर्क
है जो शंकर बिना किसी परिवर्तन के उनसे लेकर लोकायत का खंडन करना चाहते
हैं. यह अलग बात है कि इस तर्क से खुद उनकी दार्शनिक विचारधारा जिसके
अनुसार "विशुद्ध चित ही सत्य है और जगत भ्रम अथवा माया है" का भी खंडन हो
रहा है, क्योंकि यह तर्क उपयोग करने के लिए शंकर को यह मानना होगा कि शरीर
जैसी कोई भौतिक वस्तु है और रूप रंग उसका गुण अथवा लक्षण हैं. इस प्रकार
स्वयं उनका प्रतिपादित भाववाद असंगतता के भंवर में फंसता नजर आता है, यहाँ
उनकी असंगतता जांचना मेरा ध्येय नही है इसलिए मैं अपने मुख्य बिंदु पर
लौटती हूँ जो लोकयातितों के प्रति उनके तर्क की सबलता की जाँच करना है ।<br />
<br />
शंकर
अपने विश्लेषण के आधार पर तर्क करते हैं कि शव में चेतना क्यों नही दिखाई
देती. जहाँ लोकायत के अनुयायी चेतना को शरीर (देह) का गुण बताते हैं. वहीं
शरीर की जगह शव को रखकर शंकर उनके दर्शन का विकृत रूप पाठकों के समक्ष
रखकर लोकायतिओं को गंवार बताते हैं. कटाक्ष करने और प्रतिपक्षी की छवि
विकृत करने के अपने उतावलेपन में शंकर इस तथ्य को पूर्णतः विस्मृत
करते दृष्ट होते हैं कि लोकायत के विश्वोत्पत्ति विज्ञान में शरीर की
परिभाषा क्या है. उपलब्ध प्रमाणों के अनुसार लोकायत के अनुयायी चेतना की
तुलना मद शक्ति से करते हुए अपना मत रखते थे. लोकायत मत के आधारभूत नियमो
को समझने के लिए हम यहाँ इस उदाहरण की सप्रसंग व्याख्या करेंगे। जैसा की
हम जनते है कि लोकायत मत के अनुसार केवल पदार्थ (भूत द्रव्य) सत्य है और
विश्व की अन्य सभी वस्तुओं का उदय (चेतना का भी) पदार्थ से ही हुआ है.
शरीर का निर्माण भी उन्ही चार प्रमुख भौतिक तत्वों अर्थात जल, पृथ्वी,
वायु और अग्नि से मिलकर होता है. शरीर के निर्माण के लिए विशेष सहकारी
कारण की आवश्यकता होती है जैसे की मद्य निर्माण के लिए आवश्यक सामग्री
जुटा कर एक साथ रख देने भर से उनसे मद शक्ति उत्पन्न नही हो जाती उसी
प्रकार उपरोक्त चारों पदार्थों को एक साथ रख भर देने से चेतना उत्पन्न नही
हो जाती. लोकायत मत के अनुसार यह एक प्रकार का असाधारण रूपांतरण है जो
पदार्थ के स्वभाव और रूपांतरण के लिए आवश्यक परिस्थितिओं की अनुकूलता पर
निर्भर है. लोकायत मत पदार्थ के असाधारण रूपांतरण की जिस व्याख्या के आधार
पर शरीर को परिभाषित करता है उस आधार पर शव को शरीर की संज्ञा नही दी जा
सकती. लोकायतिओं के अनुसार भली भांति पोषित शरीर में ही चेतना का
विकास होता है. जिस असाधारण रूपांतरण की प्रक्रिया से शरीर में चेतना का
निर्माण होता है, शव उस प्रक्रिया के विघटन का उदाहरण है. यह विस्मृत करते
हुए शंकर लोकयातिओं के तर्क का अति सरलीकरण करते हैं जो एक दार्शनिक के
लिए किसी प्रकार न्याय संगत नही माना जा सकता है. इस तर्क का एक हिस्सा
जहाँ यह इंगित करता है कि जहाँ शरीर (लोकयातियों द्वारा उल्लेखित शर्तों
के अनुसार) उपस्थित होता है, चेतना उपस्थित होती है वहीँ दूसरी और यह भी
विदित होता है कि जहाँ शरीर उपस्थित नही होता वहां चेतना किसी प्रकार भी
दृष्ट नही होती इसका कोई एक उदाहरण भी इस संसार में नही दृष्टिगोचर होता
है. शंकर तर्क के दूसरे हिस्से पर क्या कहते हैं यह जानना रोचक होगा
..शंकर कहते हैं कि -<br />
<br />
<span style="color: #b45f06;">" पतितेऽपि कदचिदस्मिन्देहे देहन्तरसंचारेणात्मधर्मा अनुवर्तेरन् "</span><br />
<span style="color: #351c75;">(ब्रह्मसूत्र भाष्य (३ ) ३/५४ )</span><br />
<br />
अर्थात
- देह का पतन होने पर कदाचित कदाचित आत्मा के गुण (जैसे चेतना, स्मृति,
अनुभव क्षमता आदि) दूसरे शरीर में संचार से अनुवृत हो सकते हैं (यहाँ शंकर
ऐसी संभावना व्यक्त कर रहे हैं). "कदाचित" शब्द यहाँ एक तथाकथित अपूर्व
ब्रम्हज्ञानी की हिचकिचाहट का स्पष्ट परिचय दे रहा है. ध्यातव्य तथ्य यह
है कि शंकर इसे ढृढ़ता के साथ क्यों नही स्वीकार रहे की मृत्यु के बाद
चेतना के गुण दूसरे शरीर में संचारित होते हैं. इसका कारन यह है कि शंकर
यह किसी प्रमाण के आधार पर प्रमाणित नही कर पाते इस लिए उन्होंने यह
स्पष्ट तरीके से स्वीकार करने मे हिचकिचाहट दिखाई. दूसरी ओर इसी तर्क का
दूसरा हिस्सा जिसे शंकर ने अछूता छोड़ दिया वह है शरीर की अनुपस्थिति में
चेतना का दृष्टिगोचर होना. शंकर इस पक्ष को भी चालाकी से छोड़ते हुए अपना
ध्यान लोकायतिओं को कोसने और अपमानित करने में लगाये रखते हैं. यह उनकी
बौद्धिक दुर्बलता का ही परिचय देता है. इसी प्रकार कई जगह उनके तर्क बौद्ध
दार्शनिकों से उधार लिए प्रतीत होते हैं. ध्यातव्य हो की शंकर, गौड़पाद के
प्रशिष्य थे जिन्होंने अपना अदवैत वेदान्त दर्शन बौद्ध सम्प्रदाय के
महायानियों से प्रेरित होकर रचा था. शंकर अपने शारीरक भाष्य में उन्हें
"वेदान्तार्थसम्प्रदायविद् भिराचार्येः" (ब्रम्हसूत्र भाष्य ॥२.१.९॥ )कहकर
संबोधित करते हैं. शंकराचार्य के तर्कों कि महायानिओं से साम्यता के कारण
अनेक लोग शकंर को "प्रच्छन्न-बौद्ध" भी कहते हैं.<br />
<br />
आज के
विज्ञान सम्मत युग में ज्ञानयुक्त तर्कपरक चिन्तन अपनी सबल उपस्थिति दर्ज
करा रहा है, धीरे-धीरे अंधविश्वासों और अज्ञानता का उन्मूलन हो रहा है इन
सब के मध्य एक पुनरुत्थानवादी आग्रही लेखकों का तबका ऐसा भी है जो पुरातन
ज्ञान और दर्शन की आड़ लेकर अंधविश्वासों, अज्ञानता और व्यक्तिगत भाववादी
अनुभवों के फलस्वरूप उत्पन हुए भ्रम को सत्य के रूप में स्थापित करने के
कुत्सित प्रयास मे लिप्त हैं. इन लोगों की स्पष्ट मान्यता है कि विज्ञान
को आंकड़ों की गणना और पूंजीपति वर्ग के हितों तक सीमित रहना चाहिए.
विज्ञान कोई जीवन दर्शन नहीं देता उसे समकालीन समाज में फैली
रुढियों/अंधविश्वासों से बचते हुए ही अपना कार्य करना चाहिए. समाज विरोधी
पूंजीपति वर्ग के नुमाइंदे विज्ञान और वैज्ञानिक विचारधारा को दूषित करने
के दो तरीके अपनातें हैं - प्रथम तो विज्ञान की रहस्यात्मक भ्रमपूर्ण
व्याख्या और द्वितीय विज्ञान पर मानवता विरोधी होने का आरोप. वहीं दूसरी
ओर अन्धविश्वास और जड़पंथी विचारधारा को समकालीन समाज में स्थापित करने के
लिए वे इसी विज्ञान का सहारा लेते हैं और सदियों पूर्व भी जिन
अंधविश्वासों को हमारे पूर्वज पूर्णतया ख़ारिज कर गए थे उनकी वैज्ञानिक
व्याख्याएं करते हैं. इन दोनों प्रवृत्तियों के जवाब के लिए इतिहास की
विज्ञानवादी विचारधारा का सामने आना जितना आवश्यक है, उतनी ही जरुरत इस
बात की है कि वैसे दर्शन और दार्शनिक जो भ्रमपूर्ण चिन्तन और आस्था का
प्रचार करते थे उनकी वास्तविकता जनता के समक्ष रखी जाए. आज आवश्यकता उन
सम्प्रदायों की शिक्षा के प्रचार-प्रसार की है जिन्होंने जन-सामान्य का
पक्ष लेते हुए शासक वर्ग द्वारा जबरदस्ती थोपे गए दर्शन को नकारा था.
अन्धविश्वास और जड़मति विचारों की एकमात्र (और संभवतः सबसे मजबूत भी) जगह
इतिहास ही है, अतः आज आवश्यकता इस बात की है कि सभी विचारधाराओं का
पुनर्मूल्यांकन किया जाए जिससे विज्ञानवादी सोच को बढ़ावा दिया जा सके और
भ्रमों को सत्य की तरह स्थापित करने की प्रवृत्ति को मुँह-तोड़ जवाब दिया
जा सके. यह सच है की ऐसा करने के लिए अधिसंख्यक की आस्थाओं के विरुद्ध
जाना होगा परन्तु यह ध्यान रखा जाना चहिए कि वस्तुगत सत्य जो भ्रम से
मुक्त करने की कुव्वत रखता है, आस्थाओं के विपरीत ही होता है. अब तय
मनुष्य को करना है कि उसे निरपेक्ष दृष्टि और सापेक्ष विश्लेषण जनित
वास्तविकता का ज्ञान चाहिए या फिर भ्रम आच्छादित आस्था का फलक? आस्थाओं के
चोटिल होने के भय के कारण अगर सत्य पर भ्रमों का पर्दा पड़ा रहा तो यह
प्राचीन भारतीय विज्ञानियों के साथ अन्याय होगा. अधिसंख्यक जनता के मध्य
भ्रमपूर्ण परिदृश्य के निर्माण को रोकने के लिए यह जितना आवश्यक है की
भारतीय दर्शन की विज्ञानवादी धारा का प्रचार प्रसार किया जाए उतना ही
आवश्यक यह भी है की भारत के बौद्धिक विकास में बाधक विचारों और विचारकों
की समीक्षा विज्ञानवादी दृष्टि से की जाए. एवं उनके कुत्सित मंतव्यों को
जनता के समक्ष रखा जाए.</div>
<div class="gmail_quote" style="text-align: justify;">
</div>
<span style="color: #990000; font-family: Tahoma;">- <span style="font-weight: bold;">लवली गोस्वामी</span></span></div>adminhttp://www.blogger.com/profile/10011215816123607995noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-2356433621108141667.post-73243053594993408842011-12-19T08:12:00.001-08:002011-12-19T08:12:50.663-08:00इतिहास का डूबता सूरज...देखो इतिहास का सूरज<br />डूब रहा है<br />समय की घाटी में<br />देवता<br />धर्म की किताबों में<br />जा छुपे हैं<br />महापुरुष<br />गमलो में<br />उगने की तैयारी में हैं<br />घरों की दीवारों पर<br />चढ़ते मनीप्लांट<br />अमरबेल में बदल गए हैं<br />ज़ेहन की दीवारों पर<br />काई जम आई है<br />शास्त्रों के साथ<br />दियासलाई रखी है<br />महान मस्तिष्क<br />बह गए वेश्यालय के बाहर<br />पेशाबघरों में<br />सच की रात<br />छा रही है<br />सच जो काले हैं<br />अंधेरे से<br />रोशनी जो झूठी थी<br />खत्म हो गई है<br />हमारे समय के सच<br />व्याभिचारी बूढ़े से<br />घिनौने<br />आज़ादी से अश्लील<br />लोकतंत्र से<br />तानाशाह<br />गाभिन पागल महिला से<br />विद्रूप<br />ही तो हैं<br />आओ चलें कूद जाएं<br />समय की नदी में<br />इतिहास के<br />डूबते सूरज के साथ<br /><br />मयंक सक्सेनाUnknownnoreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2356433621108141667.post-89513203189319515442011-04-22T07:35:00.000-07:002011-04-23T05:18:33.315-07:00भारत में विज्ञान का इतिहास और भौतिकवाद<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><h1 class="ha" style="font-weight: normal; text-align: justify;"><span style="font-size: medium;"><span class="hP" id=":wk"><span class="il">भारत</span> <span class="il">में</span> <span class="il">विज्ञान</span> का इतिहास और भौतिकवाद</span></span></h1><div style="text-align: justify;"><span style="color: #cc0000;">( इस ब्लॉग की सदस्या लवली गोस्वामी का यह महत्त्वपूर्ण आलेख समयांतर के मार्च २०११ के अंक में ‘भारत में विज्ञान’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ है। यहां उस आलेख का मूल प्रारूप साभार प्रस्तुत किया जा रहा है। - मोडेरेटर )</span></div><br />
<div style="text-align: justify;"></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgFgNZlXOAHqFrGZGEJXdAvvPyXoLvc56EjYGB7OtfPzrApGOKhOoBNU9A58UEVVLGycl9IcIi2YJPTjdwrYvGKqnjQZAu78PIUxdEDW2M9ZASjVLQ25ZSn088KQQX52LDHKcgFdIycQbRR/s1600/images.jpeg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgFgNZlXOAHqFrGZGEJXdAvvPyXoLvc56EjYGB7OtfPzrApGOKhOoBNU9A58UEVVLGycl9IcIi2YJPTjdwrYvGKqnjQZAu78PIUxdEDW2M9ZASjVLQ25ZSn088KQQX52LDHKcgFdIycQbRR/s1600/images.jpeg" /></a></div><div style="text-align: justify;"><span style="font-family: Tahoma;"><span class="il">भारत</span> <span class="il">में</span> <span class="il">विज्ञान</span> का एक समृद्ध इतिहास रहा है। कई आधुनिक विद्वान ऐसा प्रचार करते हैं कि <span class="il">भारत</span> <span class="il">में</span> समस्त चिंतन धर्म केन्द्रित रहा है और प्राचीन <span class="il">भारत</span> <span class="il">में</span> <span class="il">विज्ञान</span> के प्रति कोई आकर्षण नहीं था। परन्तु रसायन <span class="il">विज्ञान</span></span>, <span style="font-family: Tahoma;">चिकित्सा शास्त्र और गणित ज्योतिष के उपलब्ध ग्रन्थ इस बात को सिरे से ख़ारिज करते हैं। वहीं कई विद्वान इस मत का समर्थन करते भी नजर आते हैं कि <span class="il">विज्ञान</span> मूलतः वैदिक </span>(<span style="font-family: Tahoma;">प्रकारांतर से उपनिषद</span>) <span style="font-family: Tahoma;">दर्शन के संरक्षण <span class="il">में</span> फला फूला है</span>, (<span style="font-family: Tahoma;">यह उक्ति गणित ज्योतिष के लिए अंशत</span>: <span style="font-family: Tahoma;">सही हो सकती है</span>) <span style="font-family: Tahoma;">ये दोनों ही बातें कल्पना मूलक हैं।</span><br />
<br />
<span style="font-family: Tahoma;">अब प्रश्न यह उठता है की <span class="il">भारत</span>ीय <span class="il">विज्ञान</span> विषयक स्रोत साहित्य आज ह<span class="il">में</span> जिस रूप <span class="il">में</span> उपलब्ध है</span>, <span style="font-family: Tahoma;">वह प्रथम दृष्टया अपने उपलब्ध रूप <span class="il">में</span> उपरोक्त दोनों मतों की पुष्टि करता सा प्रतीत होता है। फिर सत्य का अन्वेषण किस प्रकार किया जाए </span>? <span style="font-family: Tahoma;">क्या <span class="il">विज्ञान</span> के विशुद्ध परलोक विरोधी भौतिकवादी दृष्टिकोण ने मायावादियों को भयभीत नहीं किया होगा </span>? <span style="font-family: Tahoma;">यदि हाँ तो इसका <span class="il">विज्ञान</span> पर क्या प्रभाव हुआ </span>? <span style="font-family: Tahoma;"><span class="il">विज्ञान</span> जो पूर्णतः एक भौतिकवादी विषय है</span>, <span style="font-family: Tahoma;">क्या अपने शुद्ध परलोक विरोधी और जनपक्षीय विचारधारा के कारण <span class="il">विज्ञान</span> राज्य पोषित भाववादियों <span class="il">में</span> मान्य हुआ होगा </span>? <span style="font-family: Tahoma;">हम जानते हैं कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अर्थ ही कार्य</span>-<span style="font-family: Tahoma;">कारण के बीच स्पष्ट सम्बन्ध का अवलोकन होता है। फिर प्रश्न यह है कि वेदान्त विरोधी दृष्टिकोण के साथ <span class="il">विज्ञान</span> किस प्रकार उत्कर्ष पर पहुंचा। उस<span class="il">में</span> वेदान्त के तत्व कैसे आए </span>? <span style="font-family: Tahoma;">प्रारंभिक उत्कर्ष के बाद उसके पतन की क्या वजहें थी </span>? <span style="font-family: Tahoma;">आज जो <span class="il">विज्ञान</span> विषयक ग्रन्थ ह<span class="il">में</span> उपलब्ध है</span>, <span style="font-family: Tahoma;">वे किस सीमा तक अपने मूल स्वर <span class="il">में</span> हैं </span>? <span style="font-family: Tahoma;">कई प्रश्न उठते हैं</span>, <span style="font-family: Tahoma;">जिनका उत्तर देने का प्रयास इस लेख <span class="il">में</span> आगे किया गया है।</span></div><br />
<div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><span style="font-family: Tahoma;">आज जो <span class="il">विज्ञान</span> विषयक स्रोत साहित्य ह<span class="il">में</span> उपलब्ध है</span>, <span style="font-family: Tahoma;">उस पर विज्ञानेतर विचारों और मतों का उबा देने वाला घालमेल किया गया और कई ऐसे क्षेपक जोड़े गए जो उसके मूल स्वर से एकदम भिन्न और हा्स्यास्पद होने की प्रतीति देते हैं। परन्तु इन ग्रंथों का बुद्धिपूर्वक और सतर्क अध्ययन ह<span class="il">में</span> हमारे पूर्वजों की वस्तुपरक और भौतिकवादी धारणा का स्पष्ट परिचय देता है। इस कथन के पक्षपोषण के लिए अब आगे हम उपलब्ध प्राचीन <span class="il">भारत</span>ीय वैज्ञानिक ग्रंथों के मूल स्वर का भौतिक वादी विचार धारा से पोषित होने का का प्रमाण देंगे।</span></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><br />
</div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><span style="font-family: Tahoma;"> सर्वप्रथम प्रश्न उत्पन्न होता है</span>, <span style="font-family: Tahoma;">कि प्राचीन <span class="il">भारत</span> <span class="il">में</span> वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हमारा तात्पर्य क्या होना चाहिए। हम जानते हैं कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अर्थ विशुद्ध तात्विक दृष्टिकोण है</span>, <span style="font-family: Tahoma;">जिस<span class="il">में</span> कारण और परिणाम के मध्य संबंधों के अध्ययन का स्पष्ट विवेचन किया जाता है । प्रकृति</span>, <span style="font-family: Tahoma;">पृथ्वी और मनुष्य के उत्पति के सम्बन्ध <span class="il">में</span> दी गई व्याख्याओं <span class="il">में</span> प्रत्यक्षता को सर्वोपरि रखा जाता है । अब अगला प्रश्न यह है कि वैदिक दर्शन <span class="il">में</span> तर्क और जगत की भौतिकता को क्या स्थान प्राप्त है। इस प्रश्न के स्पष्ट विवेचन से ही ह<span class="il">में</span> <span class="il">विज्ञान</span> के मूलाधार का परिचय प्राप्त हो सकता है।</span></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><br />
</div><div></div><div style="color: #000099; margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"></div><div style="text-align: justify;"></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><u><b style="color: #000099;"><span style="font-family: Tahoma;">वेदान्त <span class="il">में</span> भौतिकता का स्थान</span></b></u><span style="font-family: Tahoma;"></span></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><span style="font-family: Tahoma;"><br />
</span></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><span style="font-family: Tahoma;">प्राचीनतम उपलब्ध वैदिक साहित्य ऋग्वेद है। इस<span class="il">में</span> भाववादी दर्शन के चिन्ह स्पष्ट नहीं हैं</span>। <span style="font-family: Tahoma;">यह अपेक्षाकृत सरल धर्म संक्रमणात्मक गोत्रीय जनजाति सामाजिक व्यवस्था को प्रतिबिंबित करता है। इस<span class="il">में</span> यज्ञ देवताओं को प्रसन्न करने के लिए भेंट और बलियाँ देने पर सबसे अधिक जोर दिया गया है। इस<span class="il">में</span> मंदिरों का भी उल्लेख नही मिलता। ऐसी प्रतीति होती है कि यज्ञ घर <span class="il">में</span> ही अथवा किसी खुली जगह पर विशेष वेदिका बनाकर किए जाते थे । प्रतिमाओं का भी कोई स्पष्ट उल्लेख नही है। यह ग्रन्थ मुख्यतः आदिम मनुष्यों के सामूहिक दैनिक जीवन संबंधित कार्यों का उल्लेख करता है जो आज के आधुनिक विद्वानों के लिए आदि पूर्वजों की जीवन शैली और उनके कार्यकलापों को समझने की कुंजी बना हुआ है ।</span></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><br />
</div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><span style="font-family: Tahoma;"> कहा जा सकता है कि ऋग्वेद कहीं से भौतिकता का विरोधी नहीं प्रतीत होता</span>. <span style="font-family: Tahoma;">भौतिकता विरोधी भाववादी दर्शन की पहली झलक ह<span class="il">में</span> उपनिषद काल <span class="il">में</span> मिलती है</span>. <span style="font-family: Tahoma;">इस समय राज्य सत्ता भी पूर्ण गति से परिपक्वता की ओर अग्रसर थी और राज्य की सत्ता को अक्षुण रखने के लिए सामान्य जनता को परलोक</span>, <span style="font-family: Tahoma;">आत्मा के अस्तित्व </span>, <span style="font-family: Tahoma;">मृत्यु के बाद जीवन</span>, <span style="font-family: Tahoma;">संसार की भौतिकता </span>( <span style="font-family: Tahoma;">प्रकारांतर से सामाजिकता</span>) <span style="font-family: Tahoma;">और सामाजिक सरोकारों के प्रति घृणा</span>, <span style="font-family: Tahoma;">आदि पर विश्वाश के लिए प्रेरित किया जा रहा था। इसी काल <span class="il">में</span> सभी पुरातन वैज्ञानिक दृष्टिकोण से युक्त ग्रंथो पर भाववादी मत थोपने का प्रयास किया गया। लेख <span class="il">में</span> हम आगे देखेंगे कि इस कार्य <span class="il">में</span> राज्य के संरक्षक</span>/<span style="font-family: Tahoma;">विचारक कितने सफल रहे । इस तथ्य को उद्धृत करने के पीछे मेरा मंतव्य सिर्फ भाववाद से राज्य सत्ता के सम्बन्ध की ओर पाठकों का ध्यान आकृष्ट करने का था।</span></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><br />
</div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><span style="font-family: Tahoma;">उपनिषद काल के प्रमुख वेदांती दार्शनिकों ने जगत की भौतिकता को निरर्थक बताने के लिए मुख्यतः दो युक्तिओं का प्रयोग किया है </span>- <span style="font-family: Tahoma;">तर्क बुद्धि</span>, <span style="font-family: Tahoma;">प्रमाण और प्रत्यक्ष ज्ञान </span>(<span style="font-family: Tahoma;">प्रकारांतर से भौतिकता</span>) <span style="font-family: Tahoma;">की अस्वीकृति एवं कार्य</span>-<span style="font-family: Tahoma;">कारण सिद्धांत का खंडन जो <span class="il">विज्ञान</span> का आधार भी है। उपरोक्त कथन के सत्यापन के लिए हम आगे औपनिषद काल के कई प्रसिद्द राज्य पोषित वेदांती दार्शनिकों का इस विषय पर विचारों का विवरण प्रस्तुत करेंगे।</span></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><br />
</div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><span style="font-family: Tahoma;"> प्रसिद्ध भाववादी विद्वान शंकर का दर्शन जिसे शारीरक नाम से संबोधित किया जाता है एक प्रखर भौतिकता विरोधी दर्शन था। </span>"<span style="font-family: Tahoma;">शारीरक</span>" (<span style="font-family: Tahoma;">वि० </span>[<span style="font-family: Tahoma;">सं० शरीर</span>+<span style="font-family: Tahoma;">कन्</span>-<span style="font-family: Tahoma;">अण्</span>]) <span style="font-family: Tahoma;">संज्ञा <span class="il">में</span> औपनिषद दर्शन का जो परिचय मिलता है वह संसार और भौतिकता के प्रति उनके दृष्टिकोण की स्पष्ट घोषणा है। शारीरक शब्द शरीर शब्द से बना है जिसमे कन् प्रत्यय लगाया गया है</span>, <span style="font-family: Tahoma;">इस प्रत्यय से अपकर्ष का बोध होता है। इसी प्रकार शारीरक शब्द से दोष से भरे शरीर का बोध होता है। वेदान्त </span>(<span style="font-family: Tahoma;">उपनिषद</span>) <span style="font-family: Tahoma;">दर्शन के लिए इस नामकरण का कारण यह है कि शुद्ध चित्त अथवा आत्मा शरीर रूपी दूषित कारा <span class="il">में</span> कैद होती है और मृत्यु मुक्ति है। यह इस दर्शन का मूल स्वर है</span>. <span style="font-family: Tahoma;">यह दर्शन मृत्यु को महिमंडित करता है और ज्ञान के सभी भौतिक स्रोतों को अस्वीकृत</span>। <span style="font-family: Tahoma;">इसके कई उदाहरण दिए जा सकते हैं</span>। <span style="font-family: Tahoma;">याज्ञवल्क्य जो एक प्रमुख वेदांती दार्शनिक थे</span>, <span style="font-family: Tahoma;">बृहदारण्यक उपनिषद </span>(<span style="font-family: Tahoma;">बृहदारण्यक उपनिषद </span>(<span style="font-family: Tahoma;">४</span>) <span style="font-family: Tahoma;">४२ </span>) <span style="font-family: Tahoma;"><span class="il">में</span> इस दर्शन के मूल स्वर को एक मरणासन्न व्यक्ति के स्पृहणीय वर्णन द्वारा प्रस्तुत करते हैं</span>, <span style="font-family: Tahoma;">क्योंकि उनका मत था कि वह मरता हुआ व्यक्ति शरीर के बंधन से उत्तरोतर छुटकारा प्राप्त करता जा रहा है। यह एक आग्रही विद्वान का जगत की भौतिकता और संसार के प्रति अवहेलना की दृष्टि का स्पष्ट प्रमाण है</span>।</div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><br />
</div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><span style="font-family: Tahoma;">अब हम तर्क विद्या के प्रति इन दार्शनिकों की घृणा पर दृष्टिपात करते हैं। अद्वैत वेदांत दार्शनिक शंकर स्पष्ट लिखते हैं की तर्क</span>-<span style="font-family: Tahoma;">वितर्क द्वारा तत्व ज्ञान होना असंभव है</span>, <span style="font-family: Tahoma;">तर्क की सार्थकता सिर्फ इतनी है कि उसका उपयोग धर्म शास्त्रों <span class="il">में</span> लिखी गई बातों को सत्य सिद्ध करने के लिए किया जाए</span>। <span style="font-family: Tahoma;">इन्ही विचारों के कारण शंकराचार्य ने तर्क</span>, <span style="font-family: Tahoma;">प्रमाण और अनुभवजन्य प्रत्यक्ष ज्ञान को अविद्या की श्रेणी <span class="il">में</span> रख छोड़ा है </span>(<span style="font-family: Tahoma;">शंकर अध्याय </span>- <span style="font-family: Tahoma;">भव्य</span>)। <span style="font-family: Tahoma;">यहाँ एक तथ्य ध्यान देने योग्य है</span>, <span style="font-family: Tahoma;">शंकर निर्विवाद रूप से प्रतिभाशाली थे। वे सांसारिकता को सिरे से खारिज करने के स्थान पर लौकिकता को स्थान देते हुए पारलौकिकता को सर्वोच्च सत्य बताते हैं</span>। <span style="font-family: Tahoma;">यह उनकी दूरदर्शिता ही दर्शाता है</span>, <span style="font-family: Tahoma;">परन्तु फिर भी वे भाववाद को अपने दर्शन से निकाल नही पाते और अंततः भौतिकता का अस्वीकरण करके पारलौकिकता को एकमात्र सत्य के रूप <span class="il">में</span> स्थापित कर जाते हैं</span>।</div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><br />
</div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><span style="font-family: Tahoma;">वहीं दूसरी ओर प्राचीन नीतिशास्त्र के रचयिता मनु ने तर्क विद्याविदों के विरुद्ध कठोर क़ानूनी नियम लागू करने को कहा है</span>. <span style="font-family: Tahoma;">उन्होंने स्पष्ट घोषणा की है कि किसी भी व्यक्ति को इन नास्तिकों </span>(<span style="font-family: Tahoma;">पाखंडी</span>:), <span style="font-family: Tahoma;">वर्णधर्म</span>/<span style="font-family: Tahoma;">वेद विरुद्ध आचरण करने वालों </span>(<span style="font-family: Tahoma;">विकर्मस्थ</span>:), <span style="font-family: Tahoma;">पाखंडियों </span>(<span style="font-family: Tahoma;">वैडाल वृतिकों</span>) <span style="font-family: Tahoma;">और हेतुकों </span>(<span style="font-family: Tahoma;">तर्क शास्त्रियो</span>) <span style="font-family: Tahoma;">से बात तक नही करनी चाहिए</span>। <span style="font-family: Tahoma;">यहाँ ध्यातव्य है कि स्मृतिकार मूलतः उस वर्ग से सम्बंधित है जिसकी पहुँच सत्ता प्रतिष्ठान तक है</span>, <span style="font-family: Tahoma;">और राज्य सत्ता के दबाव के कारण जनसामान्य उनके द्वारा निर्मित नियमो को मानने के लिए बाध्य है। ऐसे कई उदाहरण दिए जा सकते हैं। इस स्थान पर हम भाववादी</span>/<span style="font-family: Tahoma;">मायावादी दर्शनवेत्ताओं और स्मृतिकारों को वैचारिक स्तर पर एक साथ देख सकते हैं। फर्क सिर्फ यह है कि स्मृतिकार तर्क <span class="il">में</span> विश्वाश न करने की बात को राजाज्ञा की तरह </span>"<span style="font-family: Tahoma;">घोषित </span>" <span style="font-family: Tahoma;">करते हैं और दार्शनिक तत्व मीमांसक तर्क करने वालों के प्रति निंदा की भावना को पुष्ट करने का पूर्वाग्रह ग्रसित दार्शनिक आधार खोजते हैं।</span></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><br />
</div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><span style="font-family: Tahoma;"> संक्षेप <span class="il">में</span> कह सकते हैं कि उपनिषद दर्शन को पूर्ण रूप से राज्याश्रय प्राप्त था और राज्य अपनी सत्ता के संरक्षण हेतु जनसामान्य को भ्रमित करने और अन्धविश्वाश के सृजन के लिए कटिबद्ध था। जहाँ एक तरफ इसके लिए उसने धर्मशास्त्रियों</span>/<span style="font-family: Tahoma;">विचारकों से भौतिकवादी तर्कशास्त्रियों का सामाजिक</span>/<span style="font-family: Tahoma;">वैचारिक बहिष्कार करवाया वहीं दूसरी ओर नीतिशास्त्रियों ने तर्कशास्त्रियों के लिए नैतिक आचार संहिता के उलंघन के अपराध <span class="il">में</span> दंड की व्यवस्था की। यह तथ्य उपनिषद दर्शन के भौतिकता विरोधी और प्रकारांतर से जनविरोधी होने का सबसे महत्वपूर्ण प्रमाण है।</span></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><br style="color: #000099;" /></div><div style="color: #000099; margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><u><b><span style="font-family: Tahoma;">चिकित्सा </span><span style="font-family: Tahoma;"><span class="il">विज्ञान</span> विषयक स्रोत साहित्य</span></b></u></div><div style="color: #000099; margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><span style="font-family: Tahoma;">अब हम प्राचीन <span class="il">विज्ञान</span> विषयक स्रोत साहित्य देखते हैं। चिकित्सा <span class="il">विज्ञान</span> के दो प्रमुख प्राचीन ग्रन्थ आज हमारे पास उपलब्ध हैं </span>- <span style="font-family: Tahoma;">चरक संहिता और सुश्रुत संहिता। चरक संहिता <span class="il">में</span> जो चिकित्सा पद्धति है</span>, <span style="font-family: Tahoma;">वह द्रव्य</span>/<span style="font-family: Tahoma;">औषध और अन्नपान पर आधारित है। शल्य चिकित्सा की आवश्यकता केवल कुछ ही स्थानों पर बताई गई है। इसके विपरीत सुश्रुत संहिता मुख्यतः शल्य चिकित्सा पर बल देती है। इन दोनों संहिताओं <span class="il">में</span> प्राचीन चिकित्सकों द्वारा दिए गए कथनों <span class="il">में</span> पर्याप्त विरोधाभाष है जैसे एक स्थान पर लिखा है </span>- <span style="font-family: Tahoma;">देवगोब्राह्मणगुरुवृद्ध सिद्धाचार्यानचेत् </span>(<span style="font-family: Tahoma;">चरक संहिता </span>iv.4.12) <span style="font-family: Tahoma;">अर्थात देवता</span>, <span style="font-family: Tahoma;">गौ</span>, <span style="font-family: Tahoma;">ब्रह्मण</span>, <span style="font-family: Tahoma;">गुरु</span>, <span style="font-family: Tahoma;">सिद्ध पुरुष तथा आचार्य की पूजा करनी चाहिए। पर वहीं दूसरी ओर चिकित्सकों द्वारा एक अन्य परिच्छेद <span class="il">में</span> गौ मांस को भक्षण योग्य खाद्य पदार्थ <span class="il">में</span> रखा गया है और पुष्टिकारक बताया गया है।</span></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><span style="font-family: Tahoma;">ग्व्यं केवलवातेषु पीनसे विषमज्वरे। शुष्ककासश्रमत्य अग्निमांसक्षयहितं च तत्॥</span></div><div style="text-align: justify;"></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><span style="font-family: Tahoma;"> </span>(<span style="font-family: Tahoma;">सुश्रुत संहिता </span>i.<span style="font-family: Tahoma;">४२</span>.<span style="font-family: Tahoma;">३ काशी संस्कृत सीरिज संस्करण</span>)</div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><span style="font-family: Tahoma;">अर्थात गौ का मांस केवल वातजन्य रोगों <span class="il">में</span></span>, <span style="font-family: Tahoma;">पीनस रोग <span class="il">में</span></span>, <span style="font-family: Tahoma;">विषम ज्वर <span class="il">में</span></span>, <span style="font-family: Tahoma;">सूखी खांसी <span class="il">में</span></span>, <span style="font-family: Tahoma;">परिश्रम वाले कार्य करने पर</span>, <span style="font-family: Tahoma;">भस्मक रोग <span class="il">में</span></span>, <span style="font-family: Tahoma;">मांसक्षयजन्य रोग <span class="il">में</span> लाभप्रद होता है। एक अन्य प्रसंग ब्रह्मचर्य का है। जहां एक ओर चरक संहिता ब्रह्मचर्य को मोक्ष के एकमात्र मार्ग की तरह बताती है</span>, <span style="font-family: Tahoma;">वहीं दूसरी ओर पूर्णतः भौतिकवादी दृष्टि से वाजीकरण नाम के अध्याय <span class="il">में</span></span>, <span style="font-family: Tahoma;">जो चार उप अध्यायों <span class="il">में</span> बँटा है संभोग क्षमता बढ़ने के लिए रसायन सेवन का निर्देश देती हुए स्पष्ट स्थापना देती है की </span>"<span style="font-family: Tahoma;">प्रकामं च निषेवेत मैथुन शिशिरागमे</span>..". <span style="font-family: Tahoma;">यह और इस तरह के कई उदाहरण हैं जिससे साफ जाहिर होता है की इन ग्रंथों की रचना करने वाला कोई भाव वादी तो नही ही हो सकता है। </span></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><span style="font-family: Tahoma;"><br />
</span></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><span style="font-family: Tahoma;">कालांतर <span class="il">में</span> इस ग्रन्थ की उत्पति वेदान्त से बताने के लिए इनपर बलपूर्वक औपनिषद दर्शन को थोपा गया है।</span> <span style="font-family: Tahoma;">इस ग्रन्थ का मूल स्वर पूर्णतया भौतिकवादी है जिसपर भाववाद का मुल्लमा चढ़ाने की व्यर्थ कोशिशें की गई है</span>। <span style="font-family: Tahoma;">जहाँ वेदांती दार्शनिक शरीर के प्रति अवमानना की भावना रखते हैं और आत्मा को शरीर से पृथक बताते हैं वही चरक संहित स्पष्ट शब्दों <span class="il">में</span> यह उल्ल्लेख करती है की </span>- <span style="font-family: Tahoma;">शरीरं ह्यस्य मूलं</span>, <span style="font-family: Tahoma;">शरीर मूलश्व पुरुषो भवती</span> - <span style="font-family: Tahoma;">अर्थात पुरुष का शरीर ही मूल है और शरीर मूल वाला ही पुरुष है</span>। <span style="font-family: Tahoma;">यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है की यह पुरुष कोई प्रत्यय नही है, सुश्रुत संहिता स्पष्ट उल्लेख करती है की यह पुरुष पंचभूतों से बना हुआ है, जो स्पष्टवक्ता आद्य भौतिवादियों लोकायतों के मत से मिलता है।</span></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><span style="font-family: Tahoma;"> यहाँ उल्लेखनीय है की लोकायतों का स्पष्ट मत था </span>- <span style="font-family: Tahoma;">पृथिव्यापस्तेजो तत्वानि</span>, <span style="font-family: Tahoma;">अर्थात पृथ्वी</span>, <span style="font-family: Tahoma;">जल</span>, <span style="font-family: Tahoma;">अग्नि और वायु ये चार ही तत्व हैं</span>, <span style="font-family: Tahoma;">और </span>"<span style="font-family: Tahoma;">भूतान्येव चेतयन्ते</span>.." <span style="font-family: Tahoma;">अर्थात ये चार भूत ही चेतना पैदा करते हैं</span>। <span style="font-family: Tahoma;">ये भौतिकवादी दार्शनिक शरीर को ही आत्मा मानते थे</span>। <span style="font-family: Tahoma;">हमारे प्राचीन चिकित्सक जहाँ रोगों की मुक्ति के लिए प्रतिबद्ध थे और उन्होंने इसके लिए </span>"<span style="font-family: Tahoma;">देव व्यापाश्रय भेषज </span>" <span style="font-family: Tahoma;">के स्थान पर </span>"<span style="font-family: Tahoma;">युक्ति व्यापाश्रय भेषज </span>" <span style="font-family: Tahoma;">को महत्व दिया</span>। <span style="font-family: Tahoma;">युक्ति </span>(<span style="font-family: Tahoma;"> तर्कपूर्ण निर्णय </span>) <span style="font-family: Tahoma;">को चिकित्सा का आधार बताया। वहीं पूरे वेदान्त दर्शन <span class="il">में</span> दर्शनशास्त्र की निंदा और स्मृतियों <span class="il">में</span> तर्क की निंदा और तर्कशास्त्रियों के बहिष्कार और दंड की घोषणाएं की जाती रहीं</span>। <span style="font-family: Tahoma;">रोग की मुक्ति को कर्म सिद्धांत के विरुद्ध देखा जाता था, इस कारण चिकित्सा कर्म <span class="il">में</span> लगे व्यक्तियों की निंदा करने <span class="il">में</span> उपनिषद रचयिता बढ़</span>-<span style="font-family: Tahoma;">चढ़ कर लगे रहे</span>। <span style="font-family: Tahoma;">यजुर्वेद <span class="il">में</span> चिकित्सा कर्म <span class="il">में</span> लगे मनुष्यों की निंदा की गई। आगे इस प्रक्रिया <span class="il">में</span> आपस्तंब गौतम से लेकर कुल्लूक भट्ट जैसे परवर्ती भाववादी व्याख्याकारों तक सभी ने अपनी पूर्ण प्रतिभा का प्रदर्शन किया</span>।</div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"></div><div style="color: #000099; margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><b><u><span style="font-family: Tahoma;">प्रारम्भिक वेदांत साहित्य अर्थात वेद <span class="il">में</span> चिकित्सक का स्थान</span></u></b></div><div style="color: #000099; margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><span style="font-family: Tahoma;">यहाँ एक तथ्य का उल्लेख आवश्यक है की ऋग्वेद <span class="il">में</span> अश्विनी कुमारों की उनकी चिकित्सा कौशल के लिए भूरी भूरी प्रशंसा की गई है और अथर्ववेद का एक महत्वपूर्ण अंश चिकित्सा विद्या से सम्बंधित है</span>। <span style="font-family: Tahoma;">इस<span class="il">में</span> मुख्यतः तंत्र मंत्र और टोने-टोटकों का उल्लेख है</span>. <span style="font-family: Tahoma;">यह किस प्रकार संभव हुआ होगा इसका उत्तर बहुत ही साधारण है जैसा की पहले उल्लेख किया जा चूका है प्रारंभिक ऋग्वैदिक काल <span class="il">में</span> राज्य व्यवस्था का उदय नही हुआ था और इस कारन भाव वादी दर्शन का कोई स्पष्ट प्रभाव इन प्राचीन ग्रंथो <span class="il">में</span> नही दृष्टिगोचर होता</span>। <span style="font-family: Tahoma;">यह मुख्यतः यजुर्वेद के काल से आरम्भ हुआ, अब जिन अश्विनी कुमारों की स्तुति की गई थी उन्हें हीन दृष्टि से देखा जाने लगा, उन्हें </span>"<span style="font-family: Tahoma;">देवता </span>" <span style="font-family: Tahoma;">के पद से पदच्युत कर दिया गया।</span> <span style="font-family: Tahoma;">यह उस व्यापक सामाजिक राजनीतिक परिवर्तन का परोक्ष प्रमाण है जो राज्यसत्ता और मायावाद </span>(<span style="font-family: Tahoma;">भाव वाद </span>) <span style="font-family: Tahoma;">की उत्पति से <span class="il">विज्ञान</span> के विरोध को प्रमाणित करती है</span>। <span style="font-family: Tahoma;">यह तथ्य शासक वर्ग का भौतिक वादी विचार धारा से विरोध भी, अप्रत्यक्ष रूप से प्रमाणित करता है।</span></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><span style="font-family: Tahoma;"><br />
</span></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><span style="font-family: Tahoma;">राज्य सत्ता के उदय के साथ दृश्य बदलता है, जहाँ आदिम चिकित्सकों </span>(<span style="font-family: Tahoma;">अश्विनी कुमारों</span>) <span style="font-family: Tahoma;">के चिकित्सा कौशल की प्रशंसा की जाती थी, वह निंदा <span class="il">में</span> बदलती है</span>। <span style="font-family: Tahoma;">राज्य का उदय चिकित्सकों के प्रति</span>, <span style="font-family: Tahoma;">जो जनसामान्य के हितैषी और कर्म फल और पूर्व जन्म की भाववादी व्याख्या के विरुद्ध थे, घृणा का नया अध्याय खोलता है</span>। <span style="font-family: Tahoma;">स्मृतिकार, धर्म</span> <span style="font-family: Tahoma;">शास्त्रकार यह घोषणा करते हैं कि यह कार्य केवल अंत्यजो को करना चाहिए</span>, <span style="font-family: Tahoma;">वैदिक विचारधारा के समर्थकों को चाहिए की जिस भूभाग <span class="il">में</span> उनकी संख्या अपरिमित हो यह पेशा अपनाने की किसी को सुविधा न दी जाए</span>।</div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><span style="font-family: Tahoma;">इस प्रकार अथर्ववेद का अंश मुख्यतः इस विद्या का आरंभिक रूप माना जा सकता है</span>। <span style="font-family: Tahoma;">अथर्ववेद के समय चिकित्सा का जो तरीका प्रचलित था वह बहुत ही पिछड़ा एवं टोने टोटके पर आधारित था</span>। <span style="font-family: Tahoma;">वे लोग समाज के आदिम चरण <span class="il">में</span> रह रहे थे और तत्कालीन उपलब्ध ज्ञान के आधार पर रोगों के निवारण के लिए टोने टोटके जादू और तंत्र मंत्र पर आश्रित थे</span>। <span style="font-family: Tahoma;">अथर्ववेद <span class="il">में</span> जिन औषधियों की चर्चा मिलती है वे मुख्यतः शत्रु द्वारा किये अथवा कराये गए जादू टोने से रक्षा हेतु ताबिजो </span>(<span style="font-family: Tahoma;">रक्षा कवचों </span>)<span style="font-family: Tahoma;">के रूप <span class="il">में</span> उपयोग किये जाते थे</span>। <span style="font-family: Tahoma;">यह मुख्यतः इस तथ्य को प्रमाणित करता है की चिकित्सा कर्म उन दिनों अपने पुरातन स्वरुप <span class="il">में</span> था और उन आदिम पूर्वजों <span class="il">में</span> जादुई </span>- <span style="font-family: Tahoma;">धर्मिक क्रियाकलाप के रूप <span class="il">में</span> प्रचलित था</span>। <span style="font-family: Tahoma;">यह जादू टोना मुख्यतः आदिवासी समाज का गुण माना जाता है</span>।</div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><span style="font-family: Tahoma;">इस ग्रन्थ <span class="il">में</span> आयुर्वेद की प्राचीनतम जड़े मिलने के कारण ही, इसे वेद समूह का अंग मानने से श्रेणीबद्ध समाज के चिंतकों ने इंकार किया</span>। <span style="font-family: Tahoma;">परवर्ती काल के ब्राह्मण ग्रंथो ने भी वेदत्रयी को ही प्रतिष्ठा दी</span>, <span style="font-family: Tahoma;">अथर्ववेद को घृणा की दृष्टि से देखा</span>। <span style="font-family: Tahoma;">तैत्तिरीय संहिता <span class="il">में</span> भी ऋक्</span> (<span style="font-family: Tahoma;">ऋग्वेद </span>), <span style="font-family: Tahoma;">सामन्</span> (<span style="font-family: Tahoma;">सामवेद </span>) , <span style="font-family: Tahoma;">यजु</span>: (<span style="font-family: Tahoma;">यजुर्वेद</span>) <span style="font-family: Tahoma;">का ही उल्लेख है</span>। <span style="font-family: Tahoma;">शतपथ ब्रह्मण की भी यही स्थिति है या तो इसे घृणा से देखा गया है या फिर इसका उल्लेख जरुरी नही समझा गया</span>। <span style="font-family: Tahoma;">वर्णाश्रम व्यवस्था के पोषकों ने भी </span><span style="font-family: Tahoma;">अथर्ववेद</span><span style="font-family: Tahoma;"> को वेद मानाने से सिर्फ इसलिए इंकार किया क्योंकि चिकित्सा शास्त्र की जड़े उस तक जाती थी</span>। <span style="font-family: Tahoma;">जिस चिकित्सा कर्म को इस वेद <span class="il">में</span> स्थान दिया गया, वही इसके श्रेणीबद्ध समाज <span class="il">में</span> असम्मान का कारण बना</span>।</div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><br />
</div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><span style="font-family: Tahoma;">वेदांत दर्शन <span class="il">में</span> इसकी अवमानना इस हद तक बढ़ आई की जब मध्यकाल <span class="il">में</span> <span class="il">भारत</span>ीय दर्शन विषयक सर्वमत संग्रह तैयार हुआ तो उसमे स्पष्ट घोषणा की गई कि जो व्यक्ति अथर्ववेद <span class="il">में</span> आस्था रखेगा वह वैसे ही अनादर का भागी माना जायेगा जैसा की नास्तिक या भौतिकवादी माने जाते हैं</span>। <span style="font-family: Tahoma;">इस ग्रन्थ <span class="il">में</span> चावार्कों के सन्दर्भ <span class="il">में</span> यह बात कही गई है कि चावार्कों के अनुसार अथवर्वेद और गांधर्व वेद ही वेद माने जाने चाहिए</span>। <span style="font-family: Tahoma;">वहीं दूसरी और नास्तिकों द्वारा अनुमोदित होने के कारण इस वेद को परवर्ती वेदांती व्याख्याकारों ने घृणा की दृष्टि से देखा और इसकी अवमानना की</span>। </div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><br />
</div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><span style="font-family: Tahoma;">अथर्व वेद के सम्मान के पतन का यह प्रकरण दो तथ्यों को प्रमाणित करता है, नास्तिकों द्वारा अनुमोदित की गई हर कृति को मायावादियों ने या तो नष्ट कर दिया और जिन्हें नष्ट करना संभव न हो सका उन्हें भाव वादी विचारधारा <span class="il">में</span> प्रक्षिप्त करने तथा उनकी अवमानना की घोषणा का पूर्ण प्रबंध कर दिया</span>। <span style="font-family: Tahoma;">सम्पूर्ण उपनिषद साहित्य <span class="il">में</span> एक भी ऐसे ऋषि का नाम नही मिलता तो चिकित्सक हो और विद्या शाखाओं <span class="il">में</span> जिन विद्याओं को प्रतिष्ठा की दृष्टि से देखा जाता था उनमे आयुर्वेद का नाम नदारद है</span>। <span style="font-family: Tahoma;">ज्यों-ज्यों राज्य पोषित वर्ण व्यवस्था सुदृढ होती गई चिकित्सा शास्त्र के प्रति घृणा बढ़ती गई भौतिकवाद को बलपूर्वक नष्ट किया जाता रहा और इसके परिणाम स्वरुप <span class="il">विज्ञान</span> का पूर्ण विनाश हो गया</span>। <span style="font-family: Tahoma;">आयुर्वेद आचार्यों का मानना था की मनुष्य का शरीर उसी सूक्ष्म विश्व का प्रतिनिधित्व करता है जो पंच महाभूतों से निर्मित है</span>, <span style="font-family: Tahoma;">और रोगों का कारण इन्ही आधारभूत द्रवों <span class="il">में</span> असंतुलन की स्थिति है</span>। <span style="font-family: Tahoma;">वे लोग स्पष्ट घोषणा करते हैं कि युक्तिपरक चिकित्सा से ही रोगमुक्ति संभव है और प्रत्यक्षता को वे ज्ञान प्राप्त करने के साधन के रूप <span class="il">में</span> गिनाते हैं।</span></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><span style="font-family: Tahoma;"> यहाँ बार बार उपनिषद दर्शन से तर्क और प्रत्यक्ष ज्ञान के विरोध को दोहराने की आवश्यकता नही रह जाती। </span><span style="font-family: Tahoma;">आधुनिक विद्वान वेदान्त से आयुर्वेद की उत्पति बताते समय इस तथ्य को विस्मृत करके अपनी जनविरोधी मानसिकता का परिचय देने <span class="il">में</span> कोई कोर कसर नही छोड़ते। इसी कारण किसी प्राचीन स्रोत ग्रन्थ के अध्ययन के लिए नीर क्षीर का विवेक अत्यंत आवश्यक है</span>, <span style="font-family: Tahoma;">ग्रंथ के मूल के साथ जो संसोधन किये गए हैं उन्हें ध्यान <span class="il">में</span> रखना ही एकमात्र सूत्र है जो ह<span class="il">में</span> प्राचीन <span class="il">भारत</span> <span class="il">में</span> <span class="il">विज्ञान</span> और उससे भौतिकवाद के सम्बन्ध का स्पष्ट परिचय दे सकता है और प्राचीन <span class="il">भारत</span>ीय <span class="il">विज्ञान</span> एवं चिंतन पर लौकिकता विरोधी होने के दाग को धो सकता है</span>। <span style="font-family: Tahoma;">इन स्रोत ग्रंथो <span class="il">में</span> ऐसे कई विरोधाभास भरे पड़े हैं, इन सब पर एक एक कर लिखने की न आवश्यकता है न ही प्रासंगिकता।</span></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><span style="font-family: Tahoma;">आधुनिक खोजकर्ताओं ने प्रमाणित कर दिया है की प्राचीन चिकित्सा सम्बंधित स्रोत ग्रन्थ चरक संहिता के रचयिता चरक कोई एक मनुष्य न होकर प्राचीन <span class="il">भारत</span> का एक घुमंतू </span>(<span style="font-family: Tahoma;">भ्रमणशील</span>) <span style="font-family: Tahoma;">संप्रदाय था </span>(<span style="font-family: Tahoma;">जिन सुधि पाठकों को इस विषय <span class="il">में</span> रूचि है वे देवी प्रसाद चट्टोपाध्याय कृत ग्रन्थ </span>Science and Society in Ancient India <span style="font-family: Tahoma;">का अध्ययन कर सकते हैं</span>)। <span style="font-family: Tahoma;">यह मान्यता इस आधार पर भी सटीक है की अथर्ववेद के एक लुप्त संशोधित संस्करण को चारण वैद्य कहा जाता था</span>। <span style="font-family: Tahoma;">चरक संहिता के उपलब्ध रूप <span class="il">में</span> उसके इतिहास पर दी गई जानकारी के अनुसार एक प्राचीन वैद्य का नाम आता है जो वैज्ञानिक विचारधारा के प्रति पूर्ण समर्पित था</span>। <span style="font-family: Tahoma;">भरद्वाज नामक ऋषि मूलतः एक स्वभाव वादी थे</span>, <span style="font-family: Tahoma;">चरक संहिता भी मूल रूप से द्रव्यों के स्वभाव का अध्ययन करती है। यह स्वभाववाद मुख्यतः इन्ही भौतिकवादी लोकयातियों का मत माना जाता है</span>.<span style="font-family: Tahoma;">इस प्रकार इस तथ्य <span class="il">में</span> कोई संदेह नही कि प्राचीन चिकित्सक मुख्यतः भौतिकवादी थे जिनका वैदिक परम्परा से कोई सम्बन्ध नही था</span>। <span style="font-family: Tahoma;">फिर प्रश्न यह उठता है की ये भौतिकवादी कौन थे </span>? <span style="font-family: Tahoma;">उनका मूलस्थान क्या था </span>? <span style="font-family: Tahoma;">इस प्रश्न का उत्तर हम आगे देखेंगे।</span></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><br />
</div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"></div><div style="text-align: justify;"></div><div style="color: #000099; margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><u><b><span style="font-family: Tahoma;">तंत्र <span class="il">में</span> देहवाद </span>, <span style="font-family: Tahoma;">भौतिकता और <span class="il">विज्ञान</span></span></b></u></div><div style="color: #000099; margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><br />
</div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><span style="font-family: Tahoma;">जिन क्षेत्रों <span class="il">में</span> भाववादी दर्शन और ब्रह्मणवाद का प्रभाव कम था वहां मनुष्य के अस्तित्व के प्रश्न और संसार के उत्पति के प्रश्न को सुलझाने का काम तर्क द्वारा हुआ है</span>। <span style="font-family: Tahoma;">इस तथ्य को प्राचीन <span class="il">भारत</span>ीय दर्शनों <span class="il">में</span> से एक सांख्य का अध्ययन करके जाना जा सकता है। </span><span style="font-family: Tahoma;">हम सब जानते हैं कि शंकर ने सांख्य को अवैदिक मत बताया है</span>। <span style="font-family: Tahoma;">प्राचीन परम्परा के अनुसार सांख्य कपिल के विचारों का प्रतिनिधित्व करता है।</span> <span style="font-family: Tahoma;">कपिल इस देश के उतरी क्षेत्र अर्थात बंगों</span>, <span style="font-family: Tahoma;">मागधों और चेरों के क्षेत्र के रहने वाले थे और यह स्थान गंगा सागर जाने वाले मार्ग पर था</span>। <span style="font-family: Tahoma;">कपिल का ग्राम कपिलवस्तु <span class="il">भारत</span> के उत्तरपूर्व <span class="il">में</span> हैं</span>, <span style="font-family: Tahoma;">इसी क्षेत्र <span class="il">में</span> तंत्र वाद के अवशेष आज तक विद्यमान हैं</span>। <span style="font-family: Tahoma;">सांख्य तंत्रवाद का विकसित रूप है</span>। <span style="font-family: Tahoma;">इस तथ्य का उल्लेख सिर्फ इसलिए किया गया की आगे जब हम तंत्रवाद से <span class="il">विज्ञान</span> के सम्बन्ध का विवेचन करेंगे तो <span class="il">विज्ञान</span> के आधार विचारों को जानने <span class="il">में</span> और उसमे निहित मूल विचारधारा को समझाने <span class="il">में</span> ह<span class="il">में</span> आसानी होगी</span>।</div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><br />
</div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><span style="font-family: Tahoma;">इसी क्रम <span class="il">में</span> सबसे पहले हम <span class="il">भारत</span> <span class="il">में</span> रसविद्या</span> (<span style="font-family: Tahoma;">रसायन शास्त्र </span>) <span style="font-family: Tahoma;">से तंत्रवाद के सम्बन्ध का अवलोकन करते हैं</span>। "<span style="font-family: Tahoma;">ब्रह्मांडे ये गुणा</span>: <span style="font-family: Tahoma;">संति ते तिष्ठान्ति कलेवरे </span>..." <span style="font-family: Tahoma;">अर्थात मानव देह सूक्ष्म ब्रह्मांड है। यह निष्कर्ष तंत्रवाद का है</span>। <span style="font-family: Tahoma;">इनके मत को देहवाद इस कारण कहा जाता है क्योंकि इन्होंने देह से इतर किसी सत्ता के अस्तित्व को नाकारा है</span>। <span style="font-family: Tahoma;">शरीर <span class="il">में</span> इसी रूचि के कारण भौतिकवादी <span class="il">विज्ञान</span> <span class="il">में</span> योगदान करने <span class="il">में</span> सफल हो पाए जैसे रसायन <span class="il">विज्ञान</span> </span>, <span style="font-family: Tahoma;">आयुर्<span class="il">विज्ञान</span> <span class="il">विज्ञान</span> आदि</span>। <span style="font-family: Tahoma;">जबकि देह की उपेक्षा के कारन भाववादी शरीर रचना ज्ञान एवं द्रव्य ज्ञान के प्रति उदासीन बने रहे</span>। <span style="font-family: Tahoma;">यहाँ यह तथ्य ध्यातव्य हो कि <span class="il">भारत</span>ीय रसायन <span class="il">विज्ञान</span> के पौराणिक ग्रन्थ इन्ही प्राचीन भौतिकवादियों के लिखे हुए हैं।</span></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"></div><div style="text-align: justify;"></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><span style="font-family: Tahoma;">रसायन शास्त्र की दृष्टि से सबसे अधिक महत्वपूर्ण ग्रन्थ ईसवी सन की आठवीं शताब्दी का है जिसका नाम है रसरत्नाकर</span>। <span style="font-family: Tahoma;">विद्वानों ने ऐसे और भी कई ग्रंथो की सूचि बनाई है जिनमे रसरत्नाकर, रसाणर्व</span>, <span style="font-family: Tahoma;">काक चन्देश्वरी मततंत्र</span>, <span style="font-family: Tahoma;">रसेन्द्रचिंतामणि आदि हैं।</span> <span style="font-family: Tahoma;">तांत्रिक रस<span class="il">विज्ञान</span>ियों ने न केवल रसायन के ये सुप्रसिद्ध ग्रन्थ लिखे बल्कि उन्होंने वास्तविक प्रयोगशालाओं <span class="il">में</span> कई यंत्रों का अविष्कार भी किया जैसे दोल यंत्रम</span>, <span style="font-family: Tahoma;">स्वेदनी यंत्रम</span>, <span style="font-family: Tahoma;">पातन यंत्रम</span>, <span style="font-family: Tahoma;">धूप यंत्रम </span>, <span style="font-family: Tahoma;">कोष्ठी यंत्रम</span>, <span style="font-family: Tahoma;">विद्याधर यंत्रम</span>, <span style="font-family: Tahoma;">तिर्यक पातन यंत्रम आदि हैं।</span> <span style="font-family: Tahoma;">यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है की तांत्रिक रस विज्ञानियों ने न केवल इनका अविष्कार किया वरन इनके उपयोग को सैद्धांतिक रूप भी दिया और यह स्पष्ट घोषणा भी की</span> - <span style="font-family: Tahoma;">उपरोक्त प्रयोग मैंने अपने हांथो से किये हैं</span>, <span style="font-family: Tahoma;">ये केवल सुनी सुनाई बातो को आधार बना कर नही लिखे गए हैं और इनका उपयोग जन कल्याण के लिए किया जायेगा</span> (History of chemistry in ancient and medieval India - <span style="font-family: Tahoma;">लेखक </span>- Priyadaranjan Rây, Prafulla Chandra Rāy)। <span style="font-family: Tahoma;">इस वाक्य से दो बाते स्पष्ट होती है प्रथम तो यह की प्रयोगकर्ता तांत्रिक ने प्रत्यक्ष ज्ञान के आधार पर अपने निष्कर्ष लिखे हैं, द्वितीय इस वाक्य <span class="il">में</span> उसकी जनता के प्रति सेवा भाव और प्रतिबद्धता का स्पष्ट संकेत प्राप्त होता है</span>।</div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;">हम जानते हैं कि <span style="font-family: Tahoma;"><span class="il">भारत</span> <span class="il">में</span> मायावादियों</span>/<span style="font-family: Tahoma;">प्रत्यय वादियों के विरुद्ध और पदार्थ से जगत की उत्पति के सिद्धांत के समर्थक मुख्यतः तीन मतावलंबी थे। प्रथम लोकायत मत के प्रतिनिधि जो बाद <span class="il">में</span> चार्वाक के नाम से प्रसिद्द हुए। वे न तो अदृष्ट <span class="il">में</span> विश्वाश करते थे न ही भौतिक विश्व से अलग किसी परलोक को मान्यता देते थे। यह एक पूर्णत भौतिकवादी सिद्धांत है जिसके अनुसार चार तत्व </span>(<span style="font-family: Tahoma;">भूत </span>) <span style="font-family: Tahoma;">पृथ्वी</span>, <span style="font-family: Tahoma;">जल</span>, <span style="font-family: Tahoma;">अग्नि और वायु से पूरे संसार की रचना हुई बताई जाती है</span>। <span style="font-family: Tahoma;">ये उनकी स्पष्ट मान्यता थी की मानव शरीर का निर्माण भी संसार की तरह इन्ही चार महाभूतों से होता है। </span><span style="font-family: Tahoma;">द्वितीय, प्रधान अथवा प्रकृति का सिद्धांत, यह सांख्य मत के नाम से प्रसिद्ध है जो अवैदिक और लोकायत की अपेक्षा सुस्पष्ट तरीके से <span class="il">भारत</span>ीय भौतिकवादी चिंतन प्रणाली के अनुरूप है। आधुनिक विद्वानों ने इसका उद्भव तंत्र से बताया है</span>, <span style="font-family: Tahoma;">शंकर इसके खंडन के क्रम <span class="il">में</span> वेदान्त दर्शन का सबसे प्रमुख विरोधी बताने की स्थिति <span class="il">में</span> पहुँच जाते हैं। तृत्तीय मत परमाणु वादियों का माना जाता है जिनमे मुख्यतः न्याय</span>-<span style="font-family: Tahoma;">वैशेषिक प्रमुख हैं। इनमे लोकयातिकों को मूलतः जनसामान्य का दर्शन माना जाता है और </span>लोकायत मत और परवर्ती भौतिकवादी दर्शन सांख्य का उद्भव तंत्र से हुआ माना जाता है।</div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"></div><div style="color: #000099; margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><b><u><span style="font-family: Tahoma;"><span class="il">विज्ञान</span> के संरक्षक के रूप <span class="il">में</span> नास्तिक भौतिकवादी</span></u></b></div><div style="color: #000099; margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><br />
</div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><span style="font-family: Tahoma;">वेदान्त की प्रत्ययवादी विचारधारा <span class="il">में</span> <span class="il">विज्ञान</span> के लिए कोई जगह नही थी। <span class="il">भारत</span>ीय वेदांती आदर्शवादियों ने जहाँ स्पष्ट घोषणा की है की विश्व के होने का एकमात्र कारण कोई अलौकिक शक्ति है। अर्थात विशुद्ध चित्त ही अंतिम सत्य है। इसे कई संज्ञाओं से नवाजा गया है जैसे अंत</span>:<span style="font-family: Tahoma;">करण</span>, <span style="font-family: Tahoma;">परम ब्रह्मा</span>, <span style="font-family: Tahoma;">चेतना पुंज आदि। <span class="il">भारत</span>ीय मायावादी</span>/<span style="font-family: Tahoma;">प्रत्ययवादी चेतना या विचार को ही विश्व के होने का कारण मानते हैं। यह संज्ञाएँ भिन्न भिन्न आदर्शवादी दार्शनिकों के लिए अलग </span>- <span style="font-family: Tahoma;">अलग हो सकती है परन्तु हमारा ध्यान इस तथ्य पर होना चाहिए की जिन दार्शनिकों ने विशुद्ध रूप से प्रत्यय</span> (<span style="font-family: Tahoma;">विचार </span>) <span style="font-family: Tahoma;">को जगत का आधार बताया और जगत की भौतिकता को तिरस्कार-पूर्ण दृष्टि से देखा उन सब <span class="il">में</span> कौन सी धारणा सर्वनिष्ठ है</span>? <span style="font-family: Tahoma;">उत्तर साफ है जब किसी विचार को जगत का आधार बताना हो तब जगत की भौतिकता को बलपूर्वक नकारना आवश्यक हो जाता है</span>। <span style="font-family: Tahoma;">यहीं इस तथ्य को भी स्पष्ट समझा जा सकता है की जब राजनितिक कारणों से कोई दर्शनवेता अनुभूत जगत को मिथ्या साबित करने का प्रयास करे तो उसका सर्वाधिक तीव्र प्रहार इसी भौतिकता पर होगा</span>, <span style="font-family: Tahoma;">और इसके लिए वह प्रत्यक्षता और तर्क की विश्वसनीयता पर प्रश्न उठाएगा</span>।</div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><span style="font-family: Tahoma;"><span class="il">भारत</span>ीय भाववादी दार्शनिकों ने इसी युक्ति का प्रयोग किया भी है जैसा की हम लेख <span class="il">में</span> पहले देख चुके हैं।</span> <span style="font-family: Tahoma;">अनुभव, विवेक और तर्क को अस्वीकार करते हुए <span class="il">भारत</span>ीय मायावाद के समर्थक भी रहस्यात्मक भाव समाधी की आत्म मुग्धता और विभ्रम की स्थिति को अंतिम आध्यात्मिक सत्य बताते हैं यह सर्वज्ञात तथ्य है एवं यहाँ हमारे विवेचन का विषय नही है इन्द्रियों और संवेदनो द्वारा जो अनुभूत करते हैं वह निर्विवाद रूप से जगत की भौतिकता और सत्यता को प्रमाणित करता है। अब सवाल है फिर वे कौन से लोग थे जिन्होंने <span class="il">विज्ञान</span> को तमाम विरोधों और उग्र प्रतिक्रियात्मक कार्यवाही के बावजूद जीवित रखा </span>? <span style="font-family: Tahoma;">इसका जवाब साफ है वे भौतिकवादी ही थे जिन्होंने देहवाद को प्रश्रय दिया और <span class="il">विज्ञान</span> के उत्कर्ष को सुनिश्चित किया</span>। <span style="font-family: Tahoma;">परन्तु जब आदिम सामुदायिक गण-लोकतंत्र व्यवस्था का पतन हुआ एवं राज्य सत्ता का प्रभाव बढ़ा और मायावाद को प्रतिष्ठा हासिल हुई और <span class="il">विज्ञान</span> को प्रश्रय देने वाली विचारधारा शेष न रही</span>, <span style="font-family: Tahoma;">तब वैज्ञानिक ग्रंथों <span class="il">में</span> धर्म और परलोक के कचड़े को ठूंस कर उसे वेदांती रूप देने का प्रयास किया गया</span>। <span style="font-family: Tahoma;">यह राज्य सत्ता के बंधक के रूप <span class="il">में</span> <span class="il">विज्ञान</span> और भौतिकवादियों के विचारों को दिया गया दंड था </span>, <span style="font-family: Tahoma;">जो </span>"<span style="font-family: Tahoma;">विजेता के न्याय</span>" <span style="font-family: Tahoma;">को परिभाषित करता है</span>। <span style="font-family: Tahoma;">यहाँ ध्यातव्य है की महा<span class="il">भारत</span> के शांति पर्व </span>(<span style="font-family: Tahoma;">अध्याय </span>-<span style="font-family: Tahoma;">१०७ </span>) <span style="font-family: Tahoma;"><span class="il">में</span> गणों के लोक तंत्र का उल्लेख युधिष्ठिर के किसी प्रश्न के उत्तर <span class="il">में</span> भीष्म करते हैं और अथर्व वेद <span class="il">में</span> भी इसी लोकतंत्र का गुणगान करते हुए आदेश दिया गया है </span>..</div><div style="text-align: justify;"></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><span style="font-family: Tahoma;"> हे राजन</span>, <span style="font-family: Tahoma;">तुझे राज्य के लिए सभी प्रजाजन चुने एवं स्वीकारें</span></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"> (<span style="font-family: Tahoma;">अथर्व वेद </span>,<span style="font-family: Tahoma;">तृतीय कांड</span>, <span style="font-family: Tahoma;">सूक्त ४ </span>,<span style="font-family: Tahoma;">श्लोक २ </span>)</div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><span style="font-family: Tahoma;">कहा जा सकता है की अथर्ववेद के समाज के सम्मानीय तबके <span class="il">में</span> हुई अवमानना के पीछे शुद्ध राजनीतिक कारण थे जब लोकतंत्र का पूर्णतः विनाश हुआ जनता के हित को परिभषित करती भौतिकवाद को प्रश्रय देती हर कृति का मूल स्वर या तो भाव वाद <span class="il">में</span> प्रक्षिप्त कर दिया गया या जिन्हें प्रक्षिप्त न किया जा सके उन्हें समूल नष्ट कर दिया गया। लोकायत के कई नष्ट ग्रन्थ जिनका उल्लेख कई बौद्ध ग्रंथों <span class="il">में</span> खंडनार्थ किया गया है इसका ज्वलंत उदहारण है</span>।</div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><br />
</div><div style="color: #000099; margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><u><b><span style="font-family: Tahoma;"><span class="il">विज्ञान</span> एक बंधक के रूप <span class="il">में</span></span></b></u></div><div style="color: #000099; margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><br />
</div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><span style="font-family: Tahoma;"><span class="il">विज्ञान</span> राज्यपोषित भाववाद के सामने किस प्रकार पंगु हुआ इसका एक उदाहरण ह<span class="il">में</span> खगोल <span class="il">विज्ञान</span> </span>(<span style="font-family: Tahoma;">ज्योतिष</span>) <span style="font-family: Tahoma;">के दो प्रसिद्ध विद्वानों वराहमिहिर और ब्रह्मगुप्त के स्रोत साहित्य के अध्ययन से प्राप्त होता है। सर्वज्ञात तथ्य है कि अलबरुनी </span>(<span style="font-family: Tahoma;">दसवीं शताब्दी</span>) <span style="font-family: Tahoma;">ने <span class="il">भारत</span> आकर इन दोनों के <span class="il">विज्ञान</span> विषयक स्रोत साहित्य का अध्ययन किया था और उसने वराहमिहिर की तुलना <span class="il">में</span> ब्रह्मगुप्त को अधिक बड़ा विद्वान बताया था। अलबरुनी स्पष्ट लिखते हैं कि <span class="il">भारत</span>ीय गणित ज्योतिषियों को सूर्यग्रहण और चन्द्रग्रहण के वैज्ञानिक कारण का ज्ञान था </span>(<span style="font-family: Tahoma;">एडवर्ड सची </span>ii.107<span style="font-family: Tahoma;">। हिंदी अनुवाद रजनीकांत शर्मा</span>, <span style="font-family: Tahoma;">आदर्श हिंदी पुस्तकालय </span>- 1967)<span style="font-family: Tahoma;">। उसने लिखा </span>- <span style="font-family: Tahoma;"><span class="il">‘भारत</span>ीय वैज्ञानिक जानते हैं की पृथ्वी की छाया से चंद्रग्रहण और चन्द्र की छाया से सूर्यग्रहण होता है। इसी तथ्य पर उन्होंने ज्योतिष सम्बन्धी ग्रंथों <span class="il">में</span> अपने परिसंख्यानों की नीव रखी है।’ अलबरुनी को यह बात बहुत विचित्र प्रतीत होती है कि एक तरफ ये दोनों <span class="il">विज्ञान</span>ी प्रत्यक्ष ज्ञान और कार्य </span>- <span style="font-family: Tahoma;">कारण सम्बन्ध के आधार पर अपने निष्कर्ष लिखते हैं और दूसरी तरफ तात्कालीन समाज <span class="il">में</span> प्रचलित ग्रहण सम्बन्धी पुरोहित पोषित मिथकों जिन<span class="il">में</span> ग्रहण का कारण राहु</span>-<span style="font-family: Tahoma;">केतु को बताया गया है</span>, <span style="font-family: Tahoma;">को समर्थन और सम्मान देते नजर आते हैं।</span></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><br />
</div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><span style="font-family: Tahoma;"> अलबरुनी कहते हैं </span>- <span style="font-family: Tahoma;">‘मिथकीय कथा का समर्थन करने से पहले वाराह मिहिर खुद को एक ऐसे <span class="il">विज्ञान</span>ी के रूप <span class="il">में</span> सामने लाते हैं</span>, <span style="font-family: Tahoma;">जो इस मिथकीय कथा को न मानकर शुद्ध वैज्ञानिक दृष्टि से कार्य</span>-<span style="font-family: Tahoma;">कारण सम्बन्ध के आधार पर ग्रहण के वैज्ञानिक कारण की विवेचना करते हैं</span>, <span style="font-family: Tahoma;">परन्तु उसके ठीक बाद वह उस मिथकीय कथा का उल्लेख भी करते हैं।’ इसका कारण बताते हुए अलबरुनी कहते हैं </span>- <span style="font-family: Tahoma;">‘वराह मिहिर क्योंकि ब्राह्मणों थे और खुद को उनसे अलग न कर पाने की दशा <span class="il">में</span> उसने वैज्ञानिक विवेचन को मिथकीय आवरण से ढंका है</span><span style="font-family: Tahoma;">।’ अल बरुनी आगे कहते हैं </span>- <span style="font-family: Tahoma;">‘फिर भी वे दोष देने योग्य नही हैं क्योंकि उनकी विवेचन सत्य के दृढ आधार पर खड़ा है और तमाम अन्य बातों के बावजूद वे स्पष्ट रूप से सत्य कह देते हैं।’ यह छठी शताब्दी का आरम्भिक काल माना जाता है। ब्रह्मगुप्त के काल तक राज्यसत्ता की जड़ें और मजबूत हो चुकी थीं और <span class="il">विज्ञान</span> पर अवैज्ञानिक मायावादी विचारधारा का दबाव भी बहुत बढ़ चुका था।</span></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><br />
</div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><span style="font-family: Tahoma;">इस काल <span class="il">में</span> <span class="il">विज्ञान</span>ेतर विचारधारा के समर्थक यह समझ चुके थे कि अगर <span class="il">विज्ञान</span> का प्रभाव बढ़ता रहा प्रकृति की घटनाओं को कार्य</span>-<span style="font-family: Tahoma;">कारण सम्बन्ध और प्रत्यक्ष ज्ञान के आधार पर विवेचित जाता रहा तो अन्धविश्वास और पारलौकिकता की अवधारणा को <span class="il">विज्ञान</span> से चुनौती मिलनी ही है और इससे उनके द्वारा अर्थोपार्जन एवं राज्य सत्ता के संरक्षण हेतु फैलाये गए मायावाद को हानि हो सकती है। इस कारण वे बहुत सतर्क हो चुके थे और <span class="il">विज्ञान</span> के दमन के लिए प्रतिबद्ध भी। इसीलिए ब्रह्मगुप्त ने अपनी अनुपम कृति ब्रह्म सिद्धांत की प्रारंभिक पंक्तियों <span class="il">में</span> ही प्रतिविचार धारा को मान्यता प्रदान की</span>।</div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><span style="font-family: Tahoma;">कई आधुनिक विद्वानों का मत है कि हो सकता है यह अंश बाद <span class="il">में</span> क्षेपक के रूप <span class="il">में</span> जोड़े गए हों। अलबरुनी का स्पष्ट मत है कि ब्रह्मगुप्त जो इस कृति की रचना के समय मात्र ३० वर्ष के थे</span>, <span style="font-family: Tahoma;">ने अपनी प्राणों की रक्षा के लिए <span class="il">विज्ञान</span>ेतर विचारधारा के सामने आत्म समर्पण कर दिया हो। यहाँ तक कि अलबरुनी इस घटना की तुलना सुकरात को दिए गए विष से करते हैं जो उन्हें धर्म सत्ता के विरुद्ध जाने के अपराध <span class="il">में</span> दिया गया था। यह स्थिति गणित ज्योतिष और ज्यामिति की थी जो किसी न किसी रूप से वेद विद्या से सबद्ध रही थी। जब विज्ञानेतर विचारधारा का प्रभाव इन विद्याओं पर इतना भयंकर पड़ा तब चिकित्सा शास्त्र जैसा विषय जो मूलत</span>: <span style="font-family: Tahoma;">घुमंतू जनजातियों के द्वारा विकसित था और जनता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की स्पष्ट घोषणा किये बैठा था</span>, <span style="font-family: Tahoma;">उस पर पड़े प्रभाव की कल्पना सहज ही की जा सकती है। आज उपलब्ध चिकित्सा <span class="il">विज्ञान</span> एवं रस<span class="il">विज्ञान</span> सम्बन्धी स्रोत साहित्य के अध्ययन से हम स्पष्ट रूप से उन पर आरोपित </span><span style="font-family: Tahoma;"><span class="il">विज्ञान</span>ेतर</span><span style="font-family: Tahoma;"> कचरे की जाँच और पहचान कर सकते हैं।</span></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><span style="font-family: Tahoma;">यह साबित करने के लिए इतने प्रमाण पर्याप्त होंगे कि <span class="il">विज्ञान</span> न कभी धर्म की छत्रछाया <span class="il">में</span> था और ना ही प्राचीन <span class="il">भारत</span>ीय ज्ञान को प्रतिविचारधरा द्वारा आरोपित सिद्धांतों के आलोक <span class="il">में</span> देखा जाना चाहिए। वे स्पष्टवादी भौतिकवादी ही थे जिन्होंने प्राचीन <span class="il">भारत</span> <span class="il">में</span> <span class="il">विज्ञान</span> की लौ को तमाम विरोधों और अपमान के बाद भी जलाए रखा। वे नास्तिकता को पोषित करते रहे और <span class="il">विज्ञान</span> इसी आलोक <span class="il">में</span> तब तक फूलता</span>-<span style="font-family: Tahoma;">फलता रहा जब तक राज्य सत्ता इसके दमन के लिए पूर्ण प्रतिबद्ध न हुई। अंततः <span class="il">विज्ञान</span> का गला इसी मायावादी विचारधारा के नुमाइंदों ने राज्यसत्ता के पूर्ण समर्थन के आलोक <span class="il">में</span> घोंटा और राज्य सत्ता के पूर्ण विकास के साथ ही <span class="il">विज्ञान</span> का भी पूर्ण रूप से पतन हो गया। यह वही वक्त था जब राज्य सत्ता अपने पूर्ण दमनकारी अवस्था <span class="il">में</span> थी और जनतंत्र का पूर्ण विनाश हो चुका था। इसी सन्दर्भ <span class="il">में</span> हम यह भी देख सकते हैं कि जिन देशों <span class="il">में</span> लोकतंत्र <span class="il">भारत</span> से पहले आया वहां <span class="il">विज्ञान</span> का स्तर आज <span class="il">भारत</span> के सापेक्ष अधिक आगे है। </span></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><span style="font-family: Tahoma;"></span></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><span style="font-family: Tahoma;"><br />
</span></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><span style="font-family: Tahoma;"><span class="il">विज्ञान</span> मूलतः जनकल्याण और मानवता वाद की पैरवी करता है इसी प्रकार कहा जा सकता है <span class="il">विज्ञान</span> को फलने</span>-<span style="font-family: Tahoma;">फूलने के लिए लोकतान्त्रिक और सजग समाज की आवश्यकता होती है परन्तु शायद यह हमारा दुर्भाग्य ही है की आज भी <span class="il">भारत</span> <span class="il">में</span> पुनरुत्थानवादी ताकतें <span class="il">विज्ञान</span> के भौतिकवादी दृष्टिकोण का पुरजोर विरोध कर रही हैं। कई अवैज्ञानिक मतों को और अंधविश्वासों को <span class="il">विज्ञान</span> का नाम दिया जा रहा है। प्रत्यक्षता की अवहेलना की जा रही है और वैज्ञानिक सोच के प्रति घृणा फ़ैलाने</span>, <span style="font-family: Tahoma;"><span class="il">विज्ञान</span> को गरीबी</span>, <span style="font-family: Tahoma;">विनाश</span>, <span style="font-family: Tahoma;">युद्ध आदि के लिए दोषी ठहराने का प्रपंच रचा जा रहा है। आधुनिक ज्ञान जो पुरातन का ही विकसित स्वरुप है, की अवहेलना घातक हो सकती है. <span class="il">भारत</span> को कभी अपनी वैज्ञानिक खोजों के लिए विश्व भर <span class="il">में</span> प्रतिष्ठा प्राप्त थी। यदि हम उस प्रतिष्ठा को वापस पाना चाहते हैं तों ह<span class="il">में</span> भ्रमों और अन्धाविश्वासों की तथाकथित वैज्ञानिक व्याख्याओं से परहेज करना चाहिए और प्रत्यक्षता और कार्य कारण समबन्ध के आधार पर किये गए वस्तुगत विवेचन को ही मान्यता देनी चाहिए शायद तब ही हम <span class="il">भारत</span> की प्रतिष्ठा को वापस पा सकेंगे। </span></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><span style="font-family: Tahoma;"><br />
</span></div><div style="text-align: justify;"></div><div style="margin-bottom: 0cm; text-align: justify;"><span style="font-family: Tahoma;">- <span style="font-weight: bold;">लवली गोस्वामी</span></span></div></div>adminhttp://www.blogger.com/profile/10011215816123607995noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-2356433621108141667.post-72301789408044892812011-03-01T22:00:00.000-08:002011-03-01T22:00:15.401-08:00क्या लिंग पूजन भारतीय संस्कृति है ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:PunctuationKerning/> <w:ValidateAgainstSchemas/> <w:SaveIfXMLInvalid>false</w:SaveIfXMLInvalid> <w:IgnoreMixedContent>false</w:IgnoreMixedContent> <w:AlwaysShowPlaceholderText>false</w:AlwaysShowPlaceholderText> <w:Compatibility> <w:BreakWrappedTables/> <w:SnapToGridInCell/> <w:WrapTextWithPunct/> <w:UseAsianBreakRules/> <w:DontGrowAutofit/> </w:Compatibility> <w:BrowserLevel>MicrosoftInternetExplorer4</w:BrowserLevel> </w:WordDocument> </xml><![endif]--><!--[if gte mso 9]><xml> <w:LatentStyles DefLockedState="false" LatentStyleCount="156"> </w:LatentStyles> </xml><![endif]--><!--[if gte mso 10]> <style>
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgBRF2UncJrb5Ce2pq-Zzr_MpFxg411CMP_nHeZ4YTWZckaRHb1X-aV553QAEnYDEvO3Zgzm0_v0jSswa6T2lR5MA8f173UM3wZdOkpE_SwDvXoci1EQr_X6rJJFbx6atMZgmUtB7dn7T3B/s1600/Shivling.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgBRF2UncJrb5Ce2pq-Zzr_MpFxg411CMP_nHeZ4YTWZckaRHb1X-aV553QAEnYDEvO3Zgzm0_v0jSswa6T2lR5MA8f173UM3wZdOkpE_SwDvXoci1EQr_X6rJJFbx6atMZgmUtB7dn7T3B/s1600/Shivling.jpg" /></a></div><div class="MsoNormal" style="mso-layout-grid-align: none; mso-pagination: none; text-align: justify; text-autospace: none;"><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13.0pt; mso-bidi-font-family: Raghindi;"> <span style="mso-tab-count: 1;"> </span></span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13.0pt;">आज 'शिवरात्री' है। एक ऐसे भगवान की पूजा आराधना का दिन जिसे आदि शक्ति माना जाता है, जिसकी तीन आँखें हैं और जब वह मध्य कपाल में स्थित अपनी तीसरी आँख खोलता है तो दुनिया में प्रलय आ जाता है। इस भगवान का रूप बड़ा विचित्र है। शरीर पर मसान की भस्म, गले में सर्पों का हार, कंठ में विष, जटा में गंगा नदी तथा माथे में प्रलयंकर ज्वाला है। बैल को उन्होंने अपना वाहन बना रखा है। </span></div><div class="MsoNormal" style="mso-layout-grid-align: none; mso-pagination: none; text-align: justify; text-autospace: none;"><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13.0pt; mso-bidi-font-family: Raghindi;"><span style="mso-tab-count: 1;"> </span></span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13.0pt;">भारत में तैतीस करोड़ देवी देवता हैं, मगर यह देव अनोखा है। सभी देवताओं का मस्तक पूजा जाता है, चरण पूजे जाते हैं, परन्तु इस देवता का </span><span style="font-family: "Arial Unicode MS"; font-size: 13.0pt;"></span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13.0pt;">'लिंग' पूजा जाता है।</span><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13.0pt; mso-bidi-font-family: Raghindi;"> </span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13.0pt;">बच्चे</span><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13.0pt; mso-bidi-font-family: Raghindi;">—</span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13.0pt;">बूढ़े</span><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13.0pt; mso-bidi-font-family: Raghindi;">—</span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13.0pt;">नौजवान, स्त्री</span><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13.0pt; mso-bidi-font-family: Raghindi;">—</span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13.0pt;">पुरुष, सभी बिना किसी शर्म लिहाज़ के , योनी एवं लिंग की एक अत्यंत गुप्त गतिविधि को याद दिलाते इस</span><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13.0pt; mso-bidi-font-family: Raghindi;"> </span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13.0pt;">मूर्तिशिल्प को पूरी श्रद्धा से पूजते हैं और उपवास भी रखते हैं।</span></div><div class="MsoNormal" style="mso-layout-grid-align: none; mso-pagination: none; text-align: justify; text-autospace: none;"><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13.0pt; mso-bidi-font-family: Raghindi;"><span style="mso-tab-count: 1;"> </span></span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13.0pt;">यह भगवान जिसकी बारात में भूत</span><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13.0pt; mso-bidi-font-family: Raghindi;">—</span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13.0pt;">प्रेत</span><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13.0pt; mso-bidi-font-family: Raghindi;">—</span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13.0pt;">पिशाचों जैसी काल्पनिक </span><span style="font-family: "Arial Unicode MS"; font-size: 13.0pt;"></span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13.0pt;">शक्तियाँ शामिल होती हैं</span><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13.0pt; mso-bidi-font-family: Raghindi;">,</span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13.0pt;"> एक ऐसा शक्तिशाली देवता जो अपनी अर्धांगिनी के साथ एक हज़ार वर्षों तक संभोग करता है और जिसके वीर्य स्खलन से हिमालय पर्वत का निर्माण हो जाता है। एक ऐसा भगवान जो चढ़ावे में भाँग</span><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13.0pt; mso-bidi-font-family: Raghindi;">—</span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13.0pt;">धतूरा पसंद करता है और विष पीकर नीलकण्ठ कहलाता है।</span><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13.0pt; mso-bidi-font-family: Raghindi;"> </span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13.0pt;">ओफ्फो</span><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13.0pt; mso-bidi-font-family: Raghindi;">— </span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13.0pt;">और भी न जाने क्या</span><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13.0pt; mso-bidi-font-family: Raghindi;">—</span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13.0pt;">क्या विचित्र बातें इस भगवान के बारे में प्रचलित हैं जिन्हें सुन</span><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13.0pt; mso-bidi-font-family: Raghindi;">—</span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13.0pt;">जानकर भी हमारे देश के लोग पूरी श्रद्धा से इस तथा</span><span style="font-family: "Arial Unicode MS"; font-size: 13.0pt;"></span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13.0pt;">कथित शक्ति की उपासना में लगे रहते है।</span></div><div class="MsoNormal" style="mso-layout-grid-align: none; mso-pagination: none; text-align: justify; text-autospace: none;"><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13.0pt; mso-bidi-font-family: Raghindi;"><span style="mso-tab-count: 1;"> </span></span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13.0pt;">हमारी पुरा कथाओं में इस तरह के बहुत से अदृभुत चरित्र और उनसे संबधित अदृभुत कहानियाँ है</span><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13.0pt; mso-bidi-font-family: Raghindi;"> </span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13.0pt;">जिन्हें पढ़कर हमारे पुरखों की कल्पना शक्ति पर आश्चर्य होता है। सारी दुनिया ही में एक समय विशेष में ऐसी फेंटेसियाँ लिखी गईं जिनमें वैज्ञानिक तथ्यों से परे कल्पनातीत पात्रों, घटनाओं के साथ रोचक कथाओं का तानाबाना बुना गया है। सभी देशों में लोग सामंती युग की इन कथाओं को सुन</span><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13.0pt; mso-bidi-font-family: Raghindi;">—</span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13.0pt;">सुनकर ही बड़े हुए हैं जो वैज्ञानिक चिंतन के अभाव में बेसिर पैर की मगर रोचक हैं। परन्तु, कथा</span><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13.0pt; mso-bidi-font-family: Raghindi;">—</span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13.0pt;">कहानियों के पात्रों को जिस तरह से हमारे देश में देवत्व प्रदान किया गया है, अतीत के कल्पना संसार को ईश्वर की माया के रूप में अपना अंधविश्वास बनाया गया है, वैसा दुनिया के दूसरे किसी देश में नहीं देखा जाता। अंधविश्वास किसी न किसी रूप में हर देश में मौजूद है मगर भारत में जिस तरह से विज्ञान को ताक पर रखकर अंधविश्वासों को पारायण, जप</span><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13.0pt; mso-bidi-font-family: Raghindi;">—</span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13.0pt;">तप, व्रत</span><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13.0pt; mso-bidi-font-family: Raghindi;">—</span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13.0pt;">त्योहारों के रूप में किया जाता है यह बेहद दयनीय और क्षोभनीय है।</span></div><div class="MsoNormal" style="mso-layout-grid-align: none; mso-pagination: none; text-align: justify; text-autospace: none;"><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13.0pt; mso-bidi-font-family: Raghindi;"><span style="mso-tab-count: 1;"> </span></span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13.0pt;">देश की आज़ादी के समय गाँधी के तथाकथित 'सत्य'</span><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13.0pt; mso-bidi-font-family: Raghindi;"> </span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13.0pt;">का ध्यान इस तरफ बिल्कुल नहीं गया। नेहरू से लेकर देश की प्रत्येक सरकार ने विज्ञान के प्रचार</span><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13.0pt; mso-bidi-font-family: Raghindi;">-</span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13.0pt;">प्रसार, शिक्षा और भारतीय जनमानस के बौद्धिक विकास में किस भयानक स्तर की लापरवाही बरती है, वह इन सब कर्मकांडों में जनमानस की</span><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13.0pt; mso-bidi-font-family: Raghindi;">,</span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13.0pt;"> दिमाग ताक पर रखकर की</span><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13.0pt; mso-bidi-font-family: Raghindi;"> </span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13.0pt;">जा</span><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13.0pt; mso-bidi-font-family: Raghindi;"> </span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13.0pt;">रही</span><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13.0pt; mso-bidi-font-family: Raghindi;"> </span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13.0pt;">गंभीरतापूर्ण भागीदारी से पता चलता है। आम जनसाधारण ही नहीं पढ़े लिखे शिक्षित</span><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13.0pt; mso-bidi-font-family: Raghindi;"> </span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13.0pt;">दीक्षित लोग भी जिस तरह से आँख मूँदकर <a href="http://vedictoap.blogspot.com/2010/07/blog-post_27.html">'शिवलिंग'</a> को भगवान मानकर उसकी आराधना में लीन दिखाई देते हैं, वह सब देखकर इस देश की हालत पर बहुत तरस आता है।</span></div><div class="MsoNormal" style="mso-layout-grid-align: none; mso-pagination: none; text-align: justify; text-autospace: none;"><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13.0pt; mso-bidi-font-family: Raghindi;"><span style="mso-tab-count: 1;"> </span></span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13.0pt;">यह भारतीय संस्कृति है! अंधविश्वासों का पारायण भारतीय संस्कृति है ! वे तथाकथित शक्तियाँ, जिन्होंने तथा</span><span style="font-family: "Arial Unicode MS"; font-size: 13.0pt;"></span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13.0pt;">कथित रूप से विश्व रचा, जो वस्तुगत रूप से अस्तित्व में ही नहीं हैं, उनकी पूजा</span><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13.0pt; mso-bidi-font-family: Raghindi;">-</span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13.0pt;">उपासना भारतीय संस्कृति है! जो लिंग 'मूत्रोत्तसर्जन' अथवा 'कामवासना' एवं 'संतानोत्पत्ति' के अलावा किसी काम का नही, उसकी आराधना, पूजन, नमन भारतीय संस्कृति है?</span></div><div class="MsoNormal" style="mso-layout-grid-align: none; mso-pagination: none; text-align: justify; text-autospace: none;"><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13.0pt; mso-bidi-font-family: Raghindi;"><span style="mso-tab-count: 1;"> </span></span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13.0pt;">चिंता का विषय है !! कब भारतीय जनमानस सही वैज्ञानिक चिंतन दृष्टि सम्पन्न होगा !! कब वह सृष्टी में अपने अस्तित्व के सही कारण जान पाएगा!! कब वह इस सृष्टि से काल्पनिक शक्तियों को पदच्यूत कर अपनी वास्तविक शक्ति से संवार पाएगा ?</span></div></div>दृष्टिकोणhttp://www.blogger.com/profile/04188505785072572983noreply@blogger.com100tag:blogger.com,1999:blog-2356433621108141667.post-49705317143689956152011-02-06T07:53:00.000-08:002011-02-06T07:53:09.249-08:00क्या ईश्वर मोहल्ले का दादा है !?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">सरल मेरा दोस्त है। अपनी सरलता की ही वजह से मेरा दुश्मन भी है। मौलिक है, नास्तिक है, विद्रोही है। जाहिर है ऐसे आदमी के रिश्ते सहज ही किसी से नहीं बनते। बनते हैं तो तकरार, वाद-विवाद, तूतू मैंमैं भी लगातार बीच में बने रहते हैं। यानि कि रिश्ता टूटने का डर लगातार सिर पर लटकता रहता है।<br />
अभी हाल ही में सरल के दो बहनोईयों का निधन 6-8 महीनों के अंतराल में हो गया। कुछेक मित्रों की प्रतिक्रिया थोड़ी दिल को लगने वाली तो थी पर सरल को वह स्वाभाविक भी लगी। संस्कारित सोच के अपने दायरे होते हैं। मित्रों का इशारा था कि अब भी तुम्हारी समझ में नहीं आया कि तुम ईश्वर को नहीं मानते, इसलिए यह सब हुआ ?<br />
<br />
यह सोच सरल के साथ मुझे भी बहुत अजीब लगी। <br />
<br />
पहली अजीब बात तो यह थी कि सरल माने न माने पर उसके दोनों बहनोई ईश्वर में पूरा विश्वास रखते थे। फिर ईश्वर ने सरल के किए का बदला उसके बहनोईयों और बहिन-बच्चों से क्यों लिया ? <br />
<br />
दूसरी अजीब बात मुझे यह लगी कि अगर ईश्वर को न मानने से आदमी इस तरह मर जाता है तो फिर ईश्वर को मानने वाले को तो कभी मरना ही नहीं चाहिए ! वैसे अगर सब कुछ ईश्वर के ही हाथ में है तो ईश्वर नास्तिकों को बनाता ही क्यों है !? पहले बनाता है फिर मारता है ! ऐसे ठलुओं-वेल्लों की तरह टाइम-पास जैसी हरकतें कम-अज़-कम ईश्वर जैसे हाई-प्रोफाइल आदमी (मेरा मतलब है ईश्वर) को तो शोभा नहीं देतीं। <br />
<br />
इससे भी अजीब बात यह है कि ईश्वर क्या किसी मोहल्ले के दादा की तरह अहंकारी और ठस-बुद्धि है जो कहता है कि सालो अगर मुझे सलाम नहीं बजाओगे तो जीने नहीं दूंगा ! मार ही डालूंगा ! क्या ईश्वर किसी सतही स्टंट फिल्म का माफिया डान है कि तुम्हारे किए का बदला मैं तुम्हारे पूरे खानदान से लूंगा ! <br />
<br />
क्या ईश्वर को ऐसा होना चाहिए ?<br />
<br />
ईश्वर को मानने वालों की सतही सोच ने उसे किस स्तर पर ला खड़ा किया है! <br />
<br />
वैसे अगर ईश्वर वाकई है तो क्या उसे यह अच्छा लगता होगा !?<br />
<br />
<a href="http://samwaadghar.blogspot.com/2009/06/blog-post_16.html">संवादघर पर पूर्व-प्रकाशित</a></div>Sanjay Groverhttp://www.blogger.com/profile/14146082223750059136noreply@blogger.com68tag:blogger.com,1999:blog-2356433621108141667.post-41249529819464773602010-10-15T04:29:00.001-07:002010-10-15T04:43:44.798-07:00सिर्फ़ इसलिये नही थे भगतसिंह नास्तिक..<p style="text-indent: 1.27cm; margin-bottom: 0cm; font-weight: bold;"><span><span lang="hi-IN">क्रांतिकारियों को सम्मान देने की परम्परा में जिस तरह हमारे स्वतंत्रता संग्राम के अन्य सेनानियों का सम्मान किया जाता है एवं उनका स्मरण किया जाता है </span></span><span lang="en-GB">, </span><span><span lang="hi-IN">भगतसिंह का परिचय भी उसी तरह केवल एक स्वतंत्रता सेनानी या समाजवादी क्रान्तिकारी के रूप में दिया जाता है । एक मार्क्सवादी विचारक व चिंतक के रूप में भगतसिंह के परिचय से या तो हम अनजान हैं या अनजान रहना चाहते हैं । यहाँ तक तो फिर भी ठीक है लेकिन भगतसिंह के व्यक्तित्व का एक तीसरा पक्ष भी है जो उनके लेख “ मैं नास्तिक क्यों हूँ “ कि वज़ह से प्रकाश में आया । इस पक्ष से लगभग देश का बहुत बड़ा वर्ग अनजान है ।</span></span></p> <p style="text-indent: 1.27cm; margin-bottom: 0cm; font-weight: bold;"><span><span lang="hi-IN">भगतसिंह के व्यक्तित्व के इस पक्ष के अप्रकाशित रहने का सबसे बड़ा कारण इस पक्ष से किसी भी व्यकि को उसका राजनैतिक लाभ न होना है । भगतसिंह की मार्क्सवादी विचारधारा का एक वर्ग उल्लेख तो करता है लेकिन उनके नास्तिक होने न होने से किसीको कोई फ़र्क नहीं पड़ता है । भगत सिंह की मृत्यु </span></span><span lang="en-GB">23 </span><span><span lang="hi-IN">वर्ष की उम्र में हुई इस बात का उल्लेख केवल इसी संदर्भ में किया जाता है कि इतनी कम उम्र में उनके भीतर स्वतंत्रता प्राप्ति की आग थी और जोश था लेकिन उनके नास्तिक होने को लेकर यही उम्र अपरिपक्वता के सन्दर्भ में इस्तेमाल की जाती है । ऐसा कहा जाता है कि इस उम्र में भी धर्म या ईश्वर को लेकर कहीं कोई समझ बनती है </span></span><span lang="en-GB">, </span><span><span lang="hi-IN">या भगतसिंह के संदर्भ में ज़्यादा से ज़्यादा यह कहा जाता है कि यदि भगतसिंह जीवित रहते तो वे भी पूरी तरह आस्तिक हो जाते । </span></span> </p> <p style="text-indent: 1.27cm; margin-bottom: 0cm; font-weight: bold;"><span><span lang="hi-IN">इस तरह से भगतसिंह के नास्तिक होने का बहुत गैरज़िम्मेदाराना ढंग से उल्लेख कर दिया जाता है । लेकिन यदि भगतसिंह का लेख “ मैं नास्तिक क्यों हूं “ पढ़ा जाए तो वह इस विषय में बहुत सारे प्रश्नों के उत्तर देता है । भगतसिंह ने यह लेख न किसी अहंकार में लिखा न ही उम्र और आधुनिकता के फेर में । वे इस लेख में धर्म और नास्तिकवाद की विवेचना के साथ साथ पूर्ववर्ती क्रान्तिकारियों की धर्म व ईश्वर सम्बन्धी धारणा का उल्लेख भी करते है । भगतसिंह ने इस बात का आकलन किया था कि उनके पूर्ववर्ती क्रांतिकारी अपने धार्मिक विश्वासों में दृढ़ थे । धर्म उन्हें स्वतन्त्रता के लिये लड़ने की प्रेरणा देता था और यह उनकी सहज जीवन पद्धति में शामिल था । </span></span> </p> <p style="text-indent: 1.27cm; margin-bottom: 0cm; font-weight: bold;"><span><span lang="hi-IN">यह लोग उन्हें गुलाम बनाने वाले साम्राज्यवादियों से धर्म के आधार पर घृणा नहीं करते थे </span></span><span lang="en-GB">, </span><span><span lang="hi-IN">इसलिये कि वास्तविक स्वतंत्रता का अर्थ वे जानते थे और धर्म तथा अज्ञात शक्ति में विश्वास उन्हे स्वतंत्रता हेतु लड़ने के लिए प्रेरित करता था । इसके विपरीत साम्राज्यवादियों ने धर्म और ईश्वर में श्रद्धा को उनकी कमज़ोरी माना और इस आधार पर उनमें फूट डालने का प्रयास किया । इतिहास इस बात का गवाह है कि वे इसमें सफल भी हुए ।</span></span></p> <p style="text-indent: 1.27cm; margin-bottom: 0cm; font-weight: bold;"><span><span lang="hi-IN">भगतसिंह तर्क और विवेक को जीवन का आधार मानते थे । उनकी मान्यता थी कि धर्म और ईश्वर पर आधारित जीवन पद्धति मनुष्य को शक्ति तो अवश्य देती है लेकिन कहीं न कहीं किसी बिन्दु पर वह चुक जाता है । इसके विपरीत नास्तिकता व भौतिकवाद मनुष्य को अपने भीतर शक्ति की प्रेरणा देता है । इस शक्ति के आधार पर उसके भीतर स्वाभिमान पैदा होता है और वह किसी प्रकार के समझौते नहीं करता है । भगतसिंह इस बात को भी समझ गए थे कि धर्म का उपयोग सत्ताधारी शोषण हेतु करते हैं । यह वर्गविशेष के लिए एक हथियार है और वे ईश्वर का अनुचित उपयोग आम जनता में भय के निर्माण हेतु करते हैं ।</span></span></p> <p style="text-indent: 1.27cm; margin-bottom: 0cm; font-weight: bold;"><span><span lang="hi-IN">इस लेख में भगतसिंह इस बात को स्वीकार करते हैं कि वे प्रारम्भ में नास्तिक नहीं थे । उनके दादा व पिता आर्यसमाजी थे और प्रार्थना उनके जीवन का एक अंग था । जब उन्होनें क्रांतिकारियों का साथ देना शुरू किया तब वे सचिन्द्रनाथ सान्याल के सम्पर्क में आए जो स्वयं आस्तिक थे । काकोरी कांड के क्रांतिकारियों को भी उन्होनें देखा कि वे अन्तिम दिन तक प्रार्थना करते रहे । रामप्रसाद बिस्मिल आर्यसमाजी थे तथा राजन लाहिरी साम्यवाद का अध्ययन करने के बावज़ूद गीता पढ़ते थे ।</span></span></p> <p style="text-indent: 1.27cm; margin-bottom: 0cm; font-weight: bold;"><span><span lang="hi-IN">भगतसिंह कहते हैं कि इस समय तक वे भी आदर्शवादी क्रांतिकारी थे लेकिन फिर उन्होनें अध्ययन की शुरुआत की । उन्होनें बाकनिन को पढ़ा </span></span><span lang="en-GB">, </span><span><span lang="hi-IN">मार्क्स को पढ़ा । फिर उन्होने लेनिन व ट्राटस्की के बारे में पढ़ा </span></span><span lang="en-GB">, </span><span><span lang="hi-IN">निर्लंब स्वामी की पुस्तक “ कॉमन सेन्स “ पढ़ी । इस बात को सभी जानते हैं कि वे फ़ाँसी के तख्ते पर जाने से पूर्व भी अध्ययन कर रहे थे । इस तरह बुद्ध </span></span><span lang="en-GB">, </span><span><span lang="hi-IN">चार्वाक आदि विभिन्न दर्शनों के अध्ययन के पश्चात अपने विवेक के आधार पर वे नास्तिक बने । </span></span> </p> <p style="text-indent: 1.27cm; margin-bottom: 0cm; font-weight: bold;"><span><span lang="hi-IN">यद्यपि इस बात को लेकर उनकी अपने साथियों से बहस भी होती थी । </span></span><span lang="en-GB">1927 </span><span><span lang="hi-IN">में जब लाहौर में उन्हें गिरफ़्तार किया गया तब उन्हें यह हिदायत भी दी गई कि वे प्रार्थना करें । उनका तर्क था कि नास्तिक होना आस्तिक होने से ज़्यादा कठिन है । आस्तिक मनुष्य अपने पुनर्जन्म में सुख भोगने की अथवा स्वर्ग में सुख व ऐश्वर्य प्राप्त करने की कल्पना कर सकता है । किंतु नास्तिक व्यक्ति ऐसी कोई झूठी कल्पना नहीं करता । वे जानते थे कि जिस क्षण उन्हे फ़ांसी दी जाएगी और उनके पाँवों के नीचे से तख्ता हटाया जाएगा वह उनके जीवन का आखरी क्षण होगा और उसमे बाद कुछ शेष नहीं बचेगा । वे सिर्फ अपने जीवन के बाद देश के स्वतंत्र होने की कल्पना करते थे और स्वयं के जीवन का यही उद्देश्य भी मानते थे । </span></span> </p> <p style="text-indent: 1.27cm; margin-bottom: 0cm;"><span style="font-weight: bold;"><span lang="hi-IN">भगत सिंह ने यह लेख जेल में रहकर लिखा था और यह </span></span><span style="font-weight: bold;" lang="en-GB">27 </span><span style="font-weight: bold;"><span lang="hi-IN">सितम्बर </span></span><span style="font-weight: bold;" lang="en-GB">1931 </span><span style="font-weight: bold;"><span lang="hi-IN">को लाहौर के अखबार “ द पीपल “ में प्रकाशित हुआ । इस लेख में भगतसिंह ने ईश्वर कि उपस्थिति पर अनेक तर्कपूर्ण सवाल खड़े किये हैं और ऐतिहासिक भौतिकवाद के अनुसार इस संसार के निर्माण </span></span><span style="font-weight: bold;" lang="en-GB">, </span><span style="font-weight: bold;"><span lang="hi-IN">मनुष्य के जन्म </span></span><span style="font-weight: bold;" lang="en-GB">, </span><span style="font-weight: bold;"><span lang="hi-IN">मनुष्य के मन में ईश्वर की कल्पना के साथ साथ संसार में मनुष्य की दीनता </span></span><span style="font-weight: bold;" lang="en-GB">, </span><span style="font-weight: bold;"><span lang="hi-IN">उसके शोषण </span></span><span style="font-weight: bold;" lang="en-GB">, </span><span><span lang="hi-IN"><span style="font-weight: bold;">दुनिया</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">में</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">व्याप्त</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">अराजकता</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">और</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">और</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">वर्गभेद</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">की</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">स्थितियों</span> <span style="font-weight: bold;">का</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">भी</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">विश्लेषण</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">किया</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">है</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">।</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">भगतसिंह</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">को</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">अगर</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">सम्पूर्ण</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">रूप</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">में</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">जानना</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">है</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">तो</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">यह</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">लेख</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">पढ़ना</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">आवश्यक</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">है</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">। - <a href="http://www.blogger.com/profile/09435360513561915427">शरद कोकास </a></span><br /></span></span></p><p style="text-indent: 1.27cm; margin-bottom: 0cm;"><span><span lang="hi-IN">===============================</span></span></p> <p style="text-indent: 1.27cm; margin-bottom: 0cm;">प्रत्येक मनुष्य को, जो विकास के लिए खड़ा है, रूढ़िगत विश्वासों के हर पहलू की आलोचना तथा उन पर अविश्वास करना होगा और उनको चुनौती देनी होगी.<br />प्रत्येक प्रचलित मत की हर बात को हर कोने से तर्क की कसौटी पर कसना होगा. यदि काफ़ी तर्क के बाद भी वह किसी सिद्धांत या दर्शन के प्रति प्रेरित होता है, तो उसके विश्वास का स्वागत है.<br /><br />उसका तर्क असत्य, भ्रमित या छलावा और कभी-कभी मिथ्या हो सकता है. लेकिन उसको सुधारा जा सकता है क्योंकि विवेक उसके जीवन का दिशा-सूचक है.<br /><br />लेकिन निरा विश्वास और अंधविश्वास ख़तरनाक है. यह मस्तिष्क को मूढ़ और मनुष्य को प्रतिक्रियावादी बना देता है. जो मनुष्य यथार्थवादी होने का दावा करता है उसे समस्त प्राचीन विश्वासों को चुनौती देनी होगी.<br /><br />यदि वे तर्क का प्रहार न सह सके तो टुकड़े-टुकड़े होकर गिर पड़ेंगे. तब उस व्यक्ति का पहला काम होगा, तमाम पुराने विश्वासों को धराशायी करके नए दर्शन की स्थापना के लिए जगह साफ करना.<br /><br />यह तो नकारात्मक पक्ष हुआ. इसके बाद सही कार्य शुरू होगा, जिसमें पुनर्निर्माण के लिए पुराने विश्वासों की कुछ बातों का प्रयोग किया जा सकता है.<br /><br />जहाँ तक मेरा संबंध है, मैं शुरू से ही मानता हूँ कि इस दिशा में मैं अभी कोई विशेष अध्ययन नहीं कर पाया हूँ.<br /><br />एशियाई दर्शन को पढ़ने की मेरी बड़ी लालसा थी पर ऐसा करने का मुझे कोई संयोग या अवसर नहीं मिला.<br /><br />लेकिन जहाँ तक इस विवाद के नकारात्मक पक्ष की बात है, मैं प्राचीन विश्वासों के ठोसपन पर प्रश्न उठाने के संबंध में आश्वस्त हूँ.<br /><br />मुझे पूरा विश्वास है कि एक चेतन, परम-आत्मा का, जो कि प्रकृति की गति का दिग्दर्शन एवं संचालन करती है, कोई अस्तित्व नहीं है.<br /><br />हम प्रकृति में विश्वास करते हैं और समस्त प्रगति का ध्येय मनुष्य द्वारा, अपनी सेवा के लिए, प्रकृति पर विजय पाना है. इसको दिशा देने के लिए पीछे कोई चेतन शक्ति नहीं है. यही हमारा दर्शन है.<br /><br />जहाँ तक नकारात्मक पहलू की बात है, हम आस्तिकों से कुछ प्रश्न करना चाहते हैं-(i) यदि, जैसा कि आपका विश्वास है, एक सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक एवं सर्वज्ञानी ईश्वर है जिसने कि पृथ्वी या विश्व की रचना की, तो कृपा करके मुझे यह बताएं कि उसने यह रचना क्यों की?<br /><br />कष्टों और आफतों से भरी इस दुनिया में असंख्य दुखों के शाश्वत और अनंत गठबंधनों से ग्रसित एक भी प्राणी पूरी तरह सुखी नहीं.<br /><br />कृपया, यह न कहें कि यही उसका नियम है. यदि वह किसी नियम में बँधा है तो वह सर्वशक्तिमान नहीं. फिर तो वह भी हमारी ही तरह गुलाम है.<br /><br />कृपा करके यह भी न कहें कि यह उसका शग़ल है.<br /><br />नीरो ने सिर्फ एक रोम जलाकर राख किया था. उसने चंद लोगों की हत्या की थी. उसने तो बहुत थोड़ा दुख पैदा किया, अपने शौक और मनोरंजन के लिए.<br /><br />और उसका इतिहास में क्या स्थान है? उसे इतिहासकार किस नाम से बुलाते हैं?<br /><br />सभी विषैले विशेषण उस पर बरसाए जाते हैं. जालिम, निर्दयी, शैतान-जैसे शब्दों से नीरो की भर्त्सना में पृष्ठ-के पृष्ठ रंगे पड़े हैं.<br /><br />एक चंगेज़ खाँ ने अपने आनंद के लिए कुछ हजार ज़ानें ले लीं और आज हम उसके नाम से घृणा करते हैं.<br /><br />तब फिर तुम उस सर्वशक्तिमान अनंत नीरो को जो हर दिन, हर घंटे और हर मिनट असंख्य दुख देता रहा है और अभी भी दे रहा है, किस तरह न्यायोचित ठहराते हो?<br /><br />फिर तुम उसके उन दुष्कर्मों की हिमायत कैसे करोगे, जो हर पल चंगेज़ के दुष्कर्मों को भी मात दिए जा रहे हैं?<br /><br />मैं पूछता हूँ कि उसने यह दुनिया बनाई ही क्यों थी-ऐसी दुनिया जो सचमुच का नर्क है, अनंत और गहन वेदना का घर है?<br /><br />सर्वशक्तिमान ने मनुष्य का सृजन क्यों किया जबकि उसके पास मनुष्य का सृजन न करने की ताक़त थी?<br /><br />इन सब बातों का तुम्हारे पास क्या जवाब है? तुम यह कहोगे कि यह सब अगले जन्म में, इन निर्दोष कष्ट सहने वालों को पुरस्कार और ग़लती करने वालों को दंड देने के लिए हो रहा है.<br /><br />ठीक है, ठीक है. तुम कब तक उस व्यक्ति को उचित ठहराते रहोगे जो हमारे शरीर को जख्मी करने का साहस इसलिए करता है कि बाद में इस पर बहुत कोमल तथा आरामदायक मलहम लगाएगा?<br /><br />ग्लैडिएटर संस्था के व्यवस्थापकों तथा सहायकों का यह काम कहाँ तक उचित था कि एक भूखे-खूँख्वार शेर के सामने मनुष्य को फेंक दो कि यदि वह उस जंगली जानवर से बचकर अपनी जान बचा लेता है तो उसकी खूब देख-भाल की जाएगी?<br /><br />इसलिए मैं पूछता हूँ, ‘‘उस परम चेतन और सर्वोच्च सत्ता ने इस विश्व और उसमें मनुष्यों का सृजन क्यों किया? आनंद लुटने के लिए? तब उसमें और नीरो में क्या फर्क है?’’<br /><br />मुसलमानों और ईसाइयों. हिंदू-दर्शन के पास अभी और भी तर्क हो सकते हैं. मैं पूछता हूँ कि तुम्हारे पास ऊपर पूछे गए प्रश्नों का क्या उत्तर है?<br /><br />तुम तो पूर्व जन्म में विश्वास नहीं करते. तुम तो हिन्दुओं की तरह यह तर्क पेश नहीं कर सकते कि प्रत्यक्षतः निर्दोष व्यक्तियों के कष्ट उनके पूर्व जन्मों के कुकर्मों का फल है.<br /><br />मैं तुमसे पूछता हूँ कि उस सर्वशक्तिशाली ने विश्व की उत्पत्ति के लिए छः दिन मेहनत क्यों की और यह क्यों कहा था कि सब ठीक है.<br /><br />उसे आज ही बुलाओ, उसे पिछला इतिहास दिखाओ. उसे मौजूदा परिस्थितियों का अध्ययन करने दो.<br /><br />फिर हम देखेंगे कि क्या वह आज भी यह कहने का साहस करता है- सब ठीक है.<br /><br />कारावास की काल-कोठरियों से लेकर, झोपड़ियों और बस्तियों में भूख से तड़पते लाखों-लाख इंसानों के समुदाय से लेकर, उन शोषित मजदूरों से लेकर जो पूँजीवादी पिशाच द्वारा खून चूसने की क्रिया को धैर्यपूर्वक या कहना चाहिए, निरुत्साहित होकर देख रहे हैं.<br /><br />और उस मानव-शक्ति की बर्बादी देख रहे हैं जिसे देखकर कोई भी व्यक्ति, जिसे तनिक भी सहज ज्ञान है, भय से सिहर उठेगा; और अधिक उत्पादन को जरूरतमंद लोगों में बाँटने के बजाय समुद्र में फेंक देने को बेहतर समझने से लेकर राजाओं के उन महलों तक-जिनकी नींव मानव की हड्डियों पर पड़ी है...उसको यह सब देखने दो और फिर कहे-‘‘सबकुछ ठीक है.’’ क्यों और किसलिए? यही मेरा प्रश्न है. तुम चुप हो? ठीक है, तो मैं अपनी बात आगे बढ़ाता हूँ.<br /><br />और तुम हिंदुओ, तुम कहते हो कि आज जो लोग कष्ट भोग रहे हैं, ये पूर्वजन्म के पापी हैं. ठीक है.<br /><br />तुम कहते हो आज के उत्पीड़क पिछले जन्मों में साधु पुरुष थे, अतः वे सत्ता का आनंद लूट रहे हैं.<br /><br />मुझे यह मानना पड़ता है कि आपके पूर्वज बहुत चालाक व्यक्ति थे.<br /><br />उन्होंने ऐसे सिद्धांत गढ़े जिनमें तर्क और अविश्वास के सभी प्रयासों को विफल करने की काफी ताकत है.<br /><br />लेकिन हमें यह विश्लेषण करना है कि ये बातें कहाँ तक टिकती हैं.<br /><br />न्यायशास्त्र के सर्वाधिक प्रसिद्ध विद्वानों के अनुसार, दंड को अपराधी पर पड़नेवाले असर के आधार पर, केवल तीन-चार कारणों से उचित ठहराया जा सकता है. वे हैं प्रतिकार, भय तथा सुधार.<br /><br />आज सभी प्रगतिशील विचारकों द्वारा प्रतिकार के सिद्धांत की निंदा की जाती है. भयभीत करने के सिद्धांत का भी अंत वही है.<br /><br />केवल सुधार करने का सिद्धांत ही आवश्यक है और मानवता की प्रगति का अटूट अंग है. इसका उद्देश्य अपराधी को एक अत्यंत योग्य तथा शांतिप्रिय नागरिक के रूप में समाज को लौटाना है.<br /><br />लेकिन यदि हम यह बात मान भी लें कि कुछ मनुष्यों ने (पूर्व जन्म में) पाप किए हैं तो ईश्वर द्वारा उन्हें दिए गए दंड की प्रकृति क्या है?<br /><br />तुम कहते हो कि वह उन्हें गाय, बिल्ली, पेड़, जड़ी-बूटी या जानवर बनाकर पैदा करता है. तुम ऐसे 84 लाख दंडों को गिनाते हो.<br /><br />मैं पूछता हूँ कि मनुष्य पर सुधारक के रूप में इनका क्या असर है? तुम ऐसे कितने व्यक्तियों से मिले हो जो यह कहते हैं कि वे किसी पाप के कारण पूर्वजन्म में गदहा के रूप में पैदा हुए थे? एक भी नहीं?<br /><br />अपने पुराणों से उदाहरण मत दो. मेरे पास तुम्हारी पौराणिक कथाओं के लिए कोई स्थान नहीं है. और फिर, क्या तुम्हें पता है कि दुनिया में सबसे बड़ा पाप गरीब होना है? गरीबी एक अभिशाप है, वह एक दंड है.<br /><br />मैं पूछता हूँ कि अपराध-विज्ञान, न्यायशास्त्र या विधिशास्त्र के एक ऐसे विद्वान की आप कहाँ तक प्रशंसा करेंगे जो किसी ऐसी दंड-प्रक्रिया की व्यवस्था करे जो कि अनिवार्यतः मनुष्य को और अधिक अपराध करने को बाध्य करे?<br /><br />क्या तुम्हारे ईश्वर ने यह नहीं सोचा था? या उसको भी ये सारी बातें-मानवता द्वारा अकथनीय कष्टों के झेलने की कीमत पर-अनुभव से सीखनी थीं? तुम क्या सोचते हो.<br /><br />किसी गरीब तथा अनपढ़ परिवार, जैसे एक चमार या मेहतर के यहाँ पैदा होने पर इन्सान का भाग्य क्या होगा? चूँकि वह गरीब हैं, इसलिए पढ़ाई नहीं कर सकता.<br /><br />वह अपने उन साथियों से तिरस्कृत और त्यक्त रहता है जो ऊँची जाति में पैदा होने की वजह से अपने को उससे ऊँचा समझते हैं.<br /><br />उसका अज्ञान, उसकी गरीबी तथा उससे किया गया व्यवहार उसके हृदय को समाज के प्रति निष्ठुर बना देते हैं.<br /><br />मान लो यदि वह कोई पाप करता है तो उसका फल कौन भोगेगा? ईश्वर, वह स्वयं या समाज के मनीषी?<br /><br />और उन लोगों के दंड के बारे में तुम क्या कहोगे जिन्हें दंभी और घमंडी ब्राह्मणों ने जान-बूझकर अज्ञानी बनाए रखा तथा जिन्हें तुम्हारी ज्ञान की पवित्र पुस्तकों-वेदों के कुछ वाक्य सुन लेने के कारण कान में पिघले सीसे की धारा को सहने की सज़ा भुगतनी पड़ती थी?<br /><br />यदि वे कोई अपराध करते हैं तो उसके लिए कौन ज़िम्मेदार होगा और उसका प्रहार कौन सहेगा?<br /><br />मेरे प्रिय दोस्तो. ये सारे सिद्धांत विशेषाधिकार युक्त लोगों के आविष्कार हैं. ये अपनी हथियाई हुई शक्ति, पूँजी तथा उच्चता को इन सिद्धान्तों के आधार पर सही ठहराते हैं.<br /><br />जी हाँ, शायद वह अपटन सिंक्लेयर ही था, जिसने किसी जगह लिखा था कि मनुष्य को बस (आत्मा की) अमरता में विश्वास दिला दो और उसके बाद उसका सारा धन-संपत्ति लूट लो.<br /><br />वह बगैर बड़बड़ाए इस कार्य में तुम्हारी सहायता करेगा. धर्म के उपदेशकों तथा सत्ता के स्वामियों के गठबंधन से ही जेल, फाँसीघर, कोड़े और ये सिद्धांत उपजते हैं.<br /><br />मैं पूछता हूँ कि तुम्हारा सर्वशक्तिशाली ईश्वर हर व्यक्ति को उस समय क्यों नहीं रोकता है जब वह कोई पाप या अपराध कर रहा होता है?<br /><br />ये तो वह बहुत आसानी से कर सकता है. उसने क्यों नहीं लड़ाकू राजाओं को या उनके अंदर लड़ने के उन्माद को समाप्त किया और इस प्रकार विश्वयुद्ध द्वारा मानवता पर पड़ने वाली विपत्तियों से उसे क्यों नहीं बचाया?<br /><br />उसने अंग्रेज़ों के मस्तिष्क में भारत को मुक्त कर देने हेतु भावना क्यों नहीं पैदा की?<br /><br />वह क्यों नहीं पूँजीपतियों के हृदय में यह परोपकारी उत्साह भर देता कि वे उत्पादन के साधनों पर व्यक्तिगत संपत्ति का अपना अधिकार त्याग दें और इस प्रकार न केवल सम्पूर्ण श्रमिक समुदाय, वरन समस्त मानव-समाज को पूँजीवाद की बेड़ियों से मुक्त करें.<br /><br />आप समाजवाद की व्यावहारिकता पर तर्क करना चाहते हैं. मैं इसे आपके सर्वशक्तिमान पर छोड़ देता हूँ कि वह इसे लागू करे.<br /><br />जहाँ तक जनसामान्य की भलाई की बात है, लोग समाजवाद के गुणों को मानते हैं, पर वह इसके व्यावहारिक न होने का बहाना लेकर इसका विरोध करते हैं.<br /><br />चलो, आपका परमात्मा आए और वह हर चीज़ को सही तरीके से कर दें.<br /><br />अब घुमा-फिराकर तर्क करने का प्रयास न करें, वह बेकार की बातें हैं. मैं आपको यह बता दूँ कि अंग्रेज़ों की हुकूमत यहाँ इसलिए नहीं है कि ईश्वर चाहता है, बल्कि इसलिए कि उनके पास ताक़त है और हम में उनका विरोध करने की हिम्मत नहीं.<br /><br />वे हमें अपने प्रभुत्व में ईश्वर की सहायता से नहीं रखे हुए हैं बल्कि बंदूकों, राइफलों, बम और गोलियों, पुलिस और सेना के सहारे रखे हुए हैं.<br /><br />यह हमारी ही उदासीनता है कि वे समाज के विरुद्ध सबसे निंदनीय अपराध-एक राष्ट्र का दूसरे राष्ट्र द्वारा अत्याचारपूर्ण शोषण-सफलतापूर्वक कर रहे हैं.<br /><br />कहाँ है ईश्वर? वह क्या कर रहा है? क्या वह मनुष्य जाति के इन कष्टों का मज़ा ले रहा है? वह नीरो है, चंगेज़ है, तो उसका नाश हो.<br /><br />क्या तुम मुझसे पूछते हो कि मैं इस विश्व की उत्पत्ति और मानव की उत्पत्ति की व्याख्या कैसे करता हूँ? ठीक है, मैं तुम्हें बतलाता हूँ. चार्ल्स डारविन ने इस विषय पर कुछ प्रकाश डालने की कोशिश की है. उसको पढ़ो.<br /><br />सोहन स्वामी की ‘सहज ज्ञान’ पढ़ो. तुम्हें इस सवाल का कुछ सीमा तक उत्तर मिल जाएगा. यह (विश्व-सृष्टि) एक प्राकृतिक घटना है. विभिन्न पदार्थों के, निहारिका के आकार में, आकस्मिक मिश्रण से पृथ्वी बनी.<br /><br />कब? इतिहास देखो. इसी प्रकार की घटना का जंतु पैदा हुए और एक लंबे दौर के बाद मानव. डारविन की ‘जीव की उत्पत्ति’ पढ़ो.<br /><br />और तदुपरांत सारा विकास मनुष्य द्वारा प्रकृति से लगातार संघर्ष और उस पर विजय पाने की चेष्टा से हुआ. यह इस घटना की संभवतः सबसे संक्षिप्त व्याख्या है.<br /><br />तुम्हारा दूसरा तर्क यह हो सकता है कि क्यों एक बच्चा अंधा या लँगड़ा पैदा होता है, यदि यह उसके पूर्वजन्म में किए कार्यों का फल नहीं है तो?<br /><br />जीवविज्ञान-वेत्ताओं ने इस समस्या का वैज्ञानिक समाधान निकाला है.<br /><br />उनके अनुसार इसका सारा दायित्व माता-पिता के कंधों पर है जो अपने उन कार्यों के प्रति लापरवाह अथवा अनभिज्ञ रहते हैं जो बच्चे के जन्म के पूर्व ही उसे विकलांग बना देते हैं.<br /><br />स्वभावतः तुम एक और प्रश्न पूछ सकते हो-यद्यपि यह निरा बचकाना है. वह सवाल यह कि यदि ईश्वर कहीं नहीं है तो लोग उसमें विश्वास क्यों करने लगे?<br /><br />मेरा उत्तर संक्षिप्त तथा स्पष्ट होगा-जिस प्रकार लोग भूत-प्रेतों तथा दुष्ट-आत्माओं में विश्वास करने लगे, उसी प्रकार ईश्वर को मानने लगे.<br /><br />अंतर केवल इतना है कि ईश्वर में विश्वास विश्वव्यापी है और उसका दर्शन अत्यंत विकसित.<br /><br />कुछ उग्र परिवर्तनकारियों (रेडिकल्स) के विपरीत मैं इसकी उत्पत्ति का श्रेय उन शोषकों की प्रतिभा को नहीं देता जो परमात्मा के अस्तित्व का उपदेश देकर लोगों को अपने प्रभुत्व में रखना चाहते थे और उनसे अपनी विशिष्ट स्थिति का अधिकार एवं अनुमोदन चाहते थे.<br /><br />यद्यपि मूल बिंदु पर मेरा उनसे विरोध नहीं है कि सभी धर्म, सम्प्रदाय, पंथ और ऐसी अन्य संस्थाएँ अन्त में निर्दयी और शोषक संस्थाओं, व्यक्तियों तथा वर्गों की समर्थक हो जाती हैं.<br /><br />राजा के विरुद्ध विद्रोह हर धर्म में सदैव ही पाप रहा है.<br /><br />ईश्वर की उत्पत्ति के बारे में मेरा अपना विचार यह है कि मनुष्य ने अपनी सीमाओं, दुर्बलताओं व कमियों को समझने के बाद, परीक्षा की घड़ियों का बहादुरी से सामना करने स्वयं को उत्साहित करने, सभी खतरों को मर्दानगी के साथ झेलने तथा संपन्नता एवं ऐश्वर्य में उसके विस्फोट को बाँधने के लिए-ईश्वर के काल्पनिक अस्तित्व की रचना की.<br /><br />अपने व्यक्तिगत नियमों और अविभावकीय उदारता से पूर्ण ईश्वर की बढ़ा-चढ़ाकर कल्पना एवं चित्रण किया गया.<br /><br />जब उसकी उग्रता तथा व्यक्तिगत नियमों की चर्चा होती है तो उसका उपयोग एक डरानेवाले के रूप में किया जाता है, ताकि मनुष्य समाज के लिए एक खतरा न बन जाए.<br /><br />जब उसके अविभावकीय गुणों की व्याख्या होती है तो उसका उपयोग एक पिता, माता, भाई, बहन, दोस्त तथा सहायक की तरह किया जाता है.<br /><br />इस प्रकार जब मनुष्य अपने सभी दोस्तों के विश्वासघात और उनके द्वारा त्याग देने से अत्यंत दुखी हो तो उसे इस विचार से सांत्वना मिल सकती है कि एक सच्चा दोस्त उसकी सहायता करने को है, उसे सहारा देगा, जो कि सर्वशक्तिमान है और कुछ भी कर सकता है.<br /><br />वास्तव में आदिम काल में यह समाज के लिए उपयोगी था. विपदा में पड़े मनुष्य के लिए ईश्वर की कल्पना सहायक होती है.<br /><br />समाज को इस ईश्वरीय विश्वास के विरूद्ध उसी तरह लड़ना होगा जैसे कि मूर्ति-पूजा तथा धर्म-संबंधी क्षुद्र विचारों के विरूद्ध लड़ना पड़ा था.<br /><br />इसी प्रकार मनुष्य जब अपने पैरों पर खड़ा होने का प्रयास करने लगे और यथार्थवादी बन जाए तो उसे ईश्वरीय श्रद्धा को एक ओर फेंक देना चाहिए और उन सभी कष्टों, परेशानियों का पौरुष के साथ सामना करना चाहिए जिसमें परिस्थितियाँ उसे पलट सकती हैं.<br /><br />मेरी स्थिति आज यही है. यह मेरा अहंकार नहीं है.<br /><br />मेरे दोस्तों, यह मेरे सोचने का ही तरीका है जिसने मुझे नास्तिक बनाया है. मैं नहीं जानता कि ईश्वर में विश्वास और रोज़-बरोज़ की प्रार्थना-जिसे मैं मनुष्य का सबसे अधिक स्वार्थी और गिरा हुआ काम मानता हूँ-मेरे लिए सहायक सिद्घ होगी या मेरी स्थिति को और चौपट कर देगी.<br /><br />मैंने उन नास्तिकों के बारे में पढ़ा है, जिन्होंने सभी विपदाओं का बहादुरी से सामना किया, अतः मैं भी एक मर्द की तरह फाँसी के फंदे की अंतिम घड़ी तक सिर ऊँचा किए खड़ा रहना चाहता हूँ.<br /><br />देखना है कि मैं इस पर कितना खरा उतर पाता हूँ. मेरे एक दोस्त ने मुझे प्रार्थना करने को कहा.<br /><br />जब मैंने उसे अपने नास्तिक होने की बात बतलाई तो उसने कहा, ‘देख लेना, अपने अंतिम दिनों में तुम ईश्वर को मानने लगोगे.’ मैंने कहा, ‘नहीं प्रिय महोदय, ऐसा नहीं होगा. ऐसा करना मेरे लिए अपमानजनक तथा पराजय की बात होगी.<br /><br />स्वार्थ के लिए मैं प्रार्थना नहीं करूँगा.’ पाठकों और दोस्तो, क्या यह अहंकार है? अगर है, तो मैं इसे स्वीकार करता हूँ। </p><p style="text-indent: 1.27cm; margin-bottom: 0cm;">----------------------------------------------------<br /></p> <p style="text-indent: 1.27cm; margin-bottom: 0cm;"><span style="color: rgb(204, 0, 0);">यह लेख </span><a style="color: rgb(204, 0, 0);" href="http://samkaleenjanmat.blogspot.com/2009/03/blog-post_24.html">समकालीन जनमत</a><span style="color: rgb(204, 0, 0);"> से साभार लिया गया है .....एवं इसपर लेख के आरम्भ में दी गई टिप्पणी कवि- आलोचक मित्र </span><a style="color: rgb(204, 0, 0);" href="http://kavikokas.blogspot.com/">श्री शरद कोकास</a><span style="color: rgb(204, 0, 0);"> द्वारा लिखी गई है। इस ब्लॉग के सदस्यों और पाठकों की ओर से हम उनका आभार प्रकट करते हैं - मोडरेटर . </span><br /></p>adminhttp://www.blogger.com/profile/10011215816123607995noreply@blogger.com16tag:blogger.com,1999:blog-2356433621108141667.post-87256017056074739262010-09-12T19:51:00.000-07:002010-09-12T19:51:34.361-07:00गणपति बप्पा : ईश्वर कहीं नहीं, सिवा इन्सानी दिमाग के<!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:PunctuationKerning/> <w:ValidateAgainstSchemas/> <w:SaveIfXMLInvalid>false</w:SaveIfXMLInvalid> <w:IgnoreMixedContent>false</w:IgnoreMixedContent> <w:AlwaysShowPlaceholderText>false</w:AlwaysShowPlaceholderText> <w:Compatibility> <w:BreakWrappedTables/> <w:SnapToGridInCell/> <w:WrapTextWithPunct/> <w:UseAsianBreakRules/> <w:DontGrowAutofit/> </w:Compatibility> <w:BrowserLevel>MicrosoftInternetExplorer4</w:BrowserLevel> </w:WordDocument> </xml><![endif]--><!--[if gte mso 9]><xml> <w:LatentStyles DefLockedState="false" LatentStyleCount="156"> </w:LatentStyles> </xml><![endif]--><!--[if gte mso 10]> <style>
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<span style="font-family: Mangal; font-size: 10pt;"></span><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjPuvKGI5jYRRCuH_tE7QxfnhI4Ne0ENuIumlNnGMb6EMDDE-RModouJiNH9RXHr9BVu0ObSF9yX0TQfzRkDIJ9CrGZTTj-LSvXQzE6PdhBgoNpxfk41hR4ZMw6PpW1l_E7Q1pt6XxNvtqu/s1600/Ganesh.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjPuvKGI5jYRRCuH_tE7QxfnhI4Ne0ENuIumlNnGMb6EMDDE-RModouJiNH9RXHr9BVu0ObSF9yX0TQfzRkDIJ9CrGZTTj-LSvXQzE6PdhBgoNpxfk41hR4ZMw6PpW1l_E7Q1pt6XxNvtqu/s320/Ganesh.jpg" /></a></div><div class="MsoNormal" style="text-align: justify;"><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13pt;"><span> </span></span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13pt;">दुनिया के सबसे अनोखे देव इस समय भारतवर्ष के कुछ गली कूचों में आ बिराजे हैं, भक्त समाज अपने दिमाग की खिड़कियाँ बंदकर उनकी भक्ति में लीन हो गया है। आठ दस दिन बाद इन्हें नदी तालाबों में विसर्जित कर प्रदूषण बढ़ाया जाएगा।</span></div><div class="MsoNormal" style="text-align: justify;"><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13pt;"><span> </span></span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13pt;">भारतीयों की उदारता का कोई जवाब नहीं है। वे प्रत्येक असंभव बात</span><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13pt;"> </span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13pt;">पर आँख बंदकर विश्वास कर लेते हैं यदि उसमें ईश्वर की महिमा मौजूद हो। पार्वती जी ने अपने शरीर के मैल से एक पुतला बनाया और नहाने की क्रिया के दौरान कोई ताकाझांकी ना करे इसलिए उस पुतले में प्राण फूँक कर उसे पहरे पर बिठा दिया। ऐसा कितना मैल पार्वती जी के शरीर से निकला होगा इस प्रश्न पर ना जाकर यह सोचा जाए कि पुतले में कैसे कोई प्राण फूँक सकता है</span><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13pt;">,</span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13pt;"> लेकिन चूँकि वे भगवान शिव की पत्नी थीं सो उनके लिए सब संभव था। दूसरा प्रश्न, भगवान की पत्नी को भी ताकाझांकी का डर ! बात कुछ पचती नहीं। किसकी हिम्मत थी जो इतने क्रोधी भगवान की पत्नी की ओर नहाते हुए ताकझांक करता !</span></div><div class="MsoNormal" style="text-align: justify;"><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13pt;"><span> </span></span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13pt;">खैर, ज़ाहिर है कि चूँकि पुतला तत्काल ही बनाया गया था सो वह शिवजी को कैसे पहचानता ! पिता होने का कोई भी फर्ज़ उन्होंने उस वक्त तक तो निभाया नहीं था ! माता के आज्ञाकारी पुतले ने शिवजी को घर के अन्दर घुसने नहीं दिया तो शिवजी ने गुस्से में उसकी गरदन उड़ा दी। उस वक्त कानून का कोई डर जो नहीं था। पार्वती जी को पता चला तो उन्होंने बड़ा हंगामा मचाया और ज़िद पकड़ ली की अभी तत्काल पुतले को ज़िदा किया जाए, वह मेरा पुत्र है। शिवजी को पार्वती जी की ज़िद के आगे झुकना पड़ा परन्तु भगवान होने के बावजूद भी वे गुड्डे का सिर वापस जोड़ने में सक्षम नहीं थे। सर्जरी जो नहीं आती थी। परन्तु शरीर विज्ञान के नियमों को शिथिल कर अति प्राकृतिक कारनामा करने में उन्हें कोई अड़चन नहीं थी, आखिर वे भगवान थे। उन्होंने हाल ही में जनी एक हथिनी के बच्चे का सिर काटकर उस पुतले के धड़ से जोड़ दिया। ना ब्लड ग्रुप देखने की जरूरत पड़ी ना ही रक्त शिराओं, नाड़ी तंत्र की भिन्नता आड़े आई। यहाँ तक कि गरदन का साइज़ भी समस्या नहीं बना। पृथ्वी पर प्रथम देवता गजानन का अविर्भाव हो गया।</span></div><div class="MsoNormal" style="text-align: justify;"><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13pt;"><span> </span></span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13pt;">प्रथम देवता की उपाधि की भी एक कहानी बुज़र्गों के मुँह से सुनी है। देवताओं में रेस हुई। जो सबसे पहले पृथ्वी के तीन चक्कर लगाकर वापस आएगा उसे प्रथम देवता का खिताब दिया जाएगा। उस वक्त पृथ्वी का आकार यदि देवताओं को पता होता तो वे ऐसी मूर्खता कभी नहीं करते। गणेशजी ने सबको बेवकूफ बनाते हुए पार्वती जी के तीन चक्कर लगा दिए और देवताओं को यह मानना पड़ा कि माँ भी पृथ्वी तुल्य होती है। गणेश जी को उस दिन से प्रथम देवता माना जाने लगा। बुद्धि का देवता भी उन्हें शायद तभी से कहा जाने जाता है</span><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13pt;">,</span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13pt;"> उन्होंने चतुराई से सारे देवताओं को बेवकूफ जो बनाया। आज अगर ओलम्पिक में अपनी मम्मी के तीन चक्कर काटकर कोई</span><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13pt;"> </span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13pt;">कहें कि हमने मेराथन जीत ली तो रेफरी उस धावक को हमेशा के लिए दौड़ने से वंचित कर देगा।<span> </span>आज का समय होता तो मार अदालतबाजी चलती</span><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13pt;">,</span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13pt;"> वकील लोग गणेश जी के जन्म की पूरी कहानी को अदालत में चेलेन्ज करके माँ-बेटे के रिश्ते को ही संदिग्ध घोषित करवा देते।</span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhYsYrOIWD_jGBKjYURcV5G5q50lRkm4XiueGs2aqfe5C516LaoxKqLDCnL_gDhNBjCW_UJ-p_6hVXVP7Gt1hb_g2c3D7VJyykqG3vRBg_KALkVRxfZTzvdlkcvM-gTZT1nPlIsHT-MKxt5/s1600/Univerce2.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhYsYrOIWD_jGBKjYURcV5G5q50lRkm4XiueGs2aqfe5C516LaoxKqLDCnL_gDhNBjCW_UJ-p_6hVXVP7Gt1hb_g2c3D7VJyykqG3vRBg_KALkVRxfZTzvdlkcvM-gTZT1nPlIsHT-MKxt5/s320/Univerce2.jpg" /></a></div><div class="MsoNormal" style="text-align: justify;"><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13pt;"><span> </span></span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13pt;">बहरहाल, इस बार भारत में गणेशजी ऐसे समय में बिराजे हैं जबकि दुनिया में <b>ईश्वर है या नहीं</b> बहस तेज हो गई है। इस ब्रम्हांड को ईश्वर ने बनाया है कि नहीं इस पर एक वैज्ञानिक ने संशय जताया जा रहा है जिसे पूँजीवादी प्रेस प्रचारित कर रहा है। जो सत्य विज्ञान पहले से ही जानता है और जिसे जानबूझकर मानव समाज से छुपाकर रखा गया है, उसे इस नए रूप में प्रस्तुत करने के पीछे क्या स्वार्थ हो सकता है सोचने की बात यह है। क्या विज्ञान की सभी शाखाओं को समन्वित कर प्रकृति विश्व ब्रम्हांड एवं मानव समाज के सत्यों को पहले कभी उद्घाटित नहीं किया गया ? किया गया है, परन्तु यह काम मार्क्सवाद ने किया है, इसीलिए वह समस्त विज्ञानों का विज्ञान है, परन्तु चूँकि वह शोषण से मुक्ति का भी विज्ञान है, इसलिए उसे आम जनता से दूर रखा जाता है। द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद-ऐतिहासिक भौतिकवाद को लोगों से छुपाकर रखा जाता है, जबकि अगर कोई सचमुच सत्य को खोजना चाहता है तो इस सर्वोन्नत विज्ञान को जानना बहुत ज़रूरी है।</span></div><div class="MsoNormal" style="text-align: justify;"><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13pt;"><span> </span></span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13pt;">लोग ईश्वर की खोज के पीछे पड़े हैं। हम कहते हैं कि ईश्वर की समस्त धारणाएँ धर्म आधारित हैं, तो पहले यह खोज कीजिए कि धर्म कहाँ से आया, कैसे आया। धार्मिक मूल्य अब इस जम़ाने में मौजू है या नहीं। मध्ययुगीन धार्मिक मूल्यों के सामने आधुनिक मूल्यों का दमन क्यों किया जाता है। यदि आप यह समझ गए कि अब आपको मध्ययूगीन धार्मिक मूल्यों की जगह नए आधुनिक मूल्यों की आवश्यकता है जो वैज्ञानिक सत्यों पर आधारित हों, तो ईश्वर की आपको कोई ज़रूरत नहीं पडे़गी।</span></div><div class="MsoNormal" style="text-align: justify;"><span style="font-family: Raghindi; font-size: 13pt;"><span> </span></span><span style="font-family: Mangal; font-size: 13pt;">एक मोटी सी बात लोगों के दिमाग में जिस दिन आ जाएगी कि <b>ईश्वर ने मनुष्य को नहीं बनाया बल्कि मनुष्य ने ईश्वर को बनाया है,</b> सारे अनसुलझे प्रश्न सुलझ जाऐंगे। क्योंकि पदार्थ (मस्तिष्क) इस सृष्टी में पहले आया, विचार बाद में। ईश्वर मात्र एक विचार है, उसका वस्तुगत अस्तित्व कहीं, किसी रूप में नहीं है, सिवा इन्सान के दिमाग के।</span><span style="font-family: Mangal; font-size: 10pt;"><span> </span></span></div><div class="MsoNormal"><br />
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</div>दृष्टिकोणhttp://www.blogger.com/profile/04188505785072572983noreply@blogger.com32tag:blogger.com,1999:blog-2356433621108141667.post-60082651129983282682010-09-04T23:17:00.000-07:002010-09-04T23:17:46.647-07:00शिक्षक दिवस : क्या शिक्षा के ज़रिए अज्ञान का अंधकार दूर ना कर पाने का भयानक अपराध ‘शिक्षकों’ के मथ्थे नहीं मढ़ा जाना चाहिए<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgrqxrG7EBSOz9m0LZow2CbmlmXJN510qS5p72cZ0qWtJkIt43EECkob8iLNFSGR39qBbRtT1PnnVkXlFcY8vuvPpgumgROiHBJY77vYlRmaBq9VA7RnXT5-JqmroDY7bejF9y2XCQhBEvJ/s1600/images.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgrqxrG7EBSOz9m0LZow2CbmlmXJN510qS5p72cZ0qWtJkIt43EECkob8iLNFSGR39qBbRtT1PnnVkXlFcY8vuvPpgumgROiHBJY77vYlRmaBq9VA7RnXT5-JqmroDY7bejF9y2XCQhBEvJ/s320/images.jpg" /></a></div><div style="text-align: justify;"> आज शिक्षक दिवस है। सारे अखबार या तो शिक्षकों की बदहाली अथवा प्रशंसा से भरे हुए हैं। अच्छी बात है, जो शिक्षक हमें एक सफल सामाजिक प्राणी बनाने के लिए अपनी रचनात्मक भूमिका निभाकर एक महान कार्य करता है, उसके प्रति कृतज्ञता का भाव प्रदर्शित करना एक सुशिक्षित व्यक्ति के लिए लाज़मी है और दूसरी और इस महती सामाजिक कार्य की जिम्मेदारी उठाने वाली महत्वपूर्ण इकाई के प्रति सरकार के असंवेदनशील रुख की भर्त्सना करना भी उतना ही ज़रूरी है।<br />
सरकार का शिक्षकों को दोयम दर्ज़े के सरकारी कर्मचारी की तरह ट्रीट करना, उनके वेतन, भत्तों, सुख-सुविधाओं के प्रति दुर्लक्ष्य करना, उन्हें जनगणना, पल्स पोलियों, चुनाव आदि-आदि कार्यों में उलझाकर शिक्षा के महत्वपूर्ण कार्य से विमुख करना, इनके अलावा और भी कुछ ऐसे मुद्दे हैं जो एक शिक्षक की भूमिका और महत्व को सिरे से खारिज करते से लगते हैं। लेकिन, इस सबसे परे, शिक्षकों की अपनी कमज़ोरियों, अज्ञान, कुज्ञान, अवैज्ञानिक चिंतन पद्धति, भ्रामक एवं असत्य धारणाओं के वाहक के रूप में समाज में सक्रिय गतिशीलता के कारण आम तौर पर मानव समाज का और खास तौर पर भारतीय समाज का कितना नुकसान हो रहा है, यह हमारे लिए बड़ी चिंता का विषय है।<br />
पिछले दो-तीन सौ साल मानव सभ्यता के करोड़ों वर्षों के इतिहास में, विज्ञान के विकास की स्वर्णिम समयावधि रही है। इस अवधि में प्रकृति, विश्व ब्रम्हांड एवं मानव समाज के अधिकांश रहस्यों पर से पर्दा उठाकर सभ्यता ने व्यापक क्रांतिकारी करवटें ली हैं। एक अतिप्राकृतिक सत्ता की अनुपस्थिति का दर्शन भी इसी युग में आविर्भूत हुआ है जिसकी परिणति दुनिया भर में मध्ययुगीन सामंती समाज के खात्में के रूप में हुई थी जिसका अस्तित्व ही ईश्वरीय सत्ता की अवास्तविक अवधारणा पर टिका हुआ था।<br />
भारतीय समाज में सामंती समाज की अवधारणाओं, मूल्यों का पूरी तौर पर पतन आज तक नहीं हो सका है और ना ही वैज्ञानिक अवधारणाओं की समझदारी, आधुनिक चिंतन, विचारधारा का व्यापक प्रसार ही हो सका है। बड़े आश्चर्य की बात है कि जिस समाज में ’सत्य-सत्य‘ का डोंड सामंती समय से ही पीटा जाता रहा हो उस समाज में ’सत्य‘ सबसे ज़्यादा उपेक्षित रहा है।<br />
हमें आज़ाद हुए 62 वर्ष से ज़्यादा हो गए, देश आज भी सामंत युगीय अज्ञान एवं कूपमंडूकता की गहरी खाई में पड़ा हुआ है। धर्म एवं भारतीय संस्कृति के नाम अवैज्ञानिक क्रियाकलापों कर्मकांडों का ज़बरदस्त बोलबाला हमारे देश में देखा जा सकता है। क्या शिक्षक का यह कर्त्तव्य नहीं था कि वह ’सत्यानुसंधान‘ के अत्यावश्यक रास्ते पर चलते हुए भारतीय समाज को इस अंधे कुएँ से बाहर निकालें ? क्या ’धर्म‘ की सत्ता को सिरे से ध्वस्त कर स्वतंत्रता, समानता, भाईचारे की संस्कृति को रोपने, वैज्ञानिक चिंतन पद्धति के आधार पर भारतीय समाज का पुनर्गठन करने की जिम्मेदारी ’शिक्षकों‘ की नहीं थी ? क्या शिक्षा के ज़रिए अज्ञान का अंधकार दूर ना कर पाने का भयानक अपराध ’शिक्षकों‘ के मथ्थे नहीं मढ़ा जाना चाहिए जिसने हमारे देश को सदियों पीछे रख छोड़ा है ? क्या मध्ययुगीन अवधारणाओं के दम पर विश्व गुरू होने का फालतू दंभ चूर चूर कर, वास्तव में ज्ञान की वह ’सरिता‘ प्रवाहित करना एक अत्यावश्यक ऐतिहासिक कार्य नहीं था जिसके ना हो सकने का अपराध किसी और के सिर पर नहीं प्रथमतः शिक्षकों के ही सिर पर है।<br />
अब भी समय है, प्रकृति मानव समाज एवं विश्व ब्रम्हांड के सत्य को गहराई में जाकर समझने और एकीकृत ज्ञान के आधार पर भारतीय समाज में व्याप्त अंधकार को दूर करने की लिए प्रत्येक शिक्षक आज भी अपनी भूमिका का निर्वाह कर सकता है, बशर्ते वह अपने तईं ना केवल ईमानदार हो बल्कि सत्य के लिए प्राण तक तजने को तैयार हो।</div>दृष्टिकोणhttp://www.blogger.com/profile/04188505785072572983noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-2356433621108141667.post-86458104452755499752010-08-04T08:16:00.000-07:002010-08-04T09:12:40.971-07:00होगे तुम भगवान...मैं तुम्हें नहीं मानता<br />जाओ कर लो<br />जो बन पड़े<br />होगे तुम सर्वशक्तिमान<br /><br />तुम्हारी मूर्तियां<br />मुझे कला के तौर पर<br />तो लुभाती हैं<br />पर लगवा नहीं पाई<br />कभी पूजा पाठ में ध्यान<br /><br />तुम्हारे आस्थावान<br />भक्तों की<br />क्रूर यातनाएं बताती हैं मुझे<br />कि तुम वाकई हो<br />कितने महान<br /><br />तुम दिखाई नहीं देते है<br />ये जो प्रश्नचिह्न है<br />अस्तित्व पर<br />तुम्हारे उपासकों के लिए है<br />सर्वोपरि प्रमाण<br /><br />जितना दबाव डालते हैं<br />तुम्हारे पूजक मुझ पर<br />मेरी आस्था<br />मेरे तुमको न मानने में<br />होती रही उतनी बलवान<br /><br />मैं नहीं मानता<br />तुमको कि हो तुम<br />कहीं भी<br />जाओ तुम<br />होगे खुद के भगवान....Unknownnoreply@blogger.com31tag:blogger.com,1999:blog-2356433621108141667.post-35352259473611411302010-07-27T23:51:00.000-07:002010-07-28T00:50:37.500-07:00OSHO: God Is Not a Solution - but a Problem<object height="344" style="background-image: url(http://i1.ytimg.com/vi/hhjOnYbKJJw/hqdefault.jpg);" width="425"><param name="movie" value="http://www.youtube.com/v/hhjOnYbKJJw&hl=en_US&fs=1"><param name="allowFullScreen" value="true"><param name="allowscriptaccess" value="always"><embed src="http://www.youtube.com/v/hhjOnYbKJJw&hl=en_US&fs=1" width="425" height="344" allowscriptaccess="never" allowfullscreen="true" wmode="transparent" type="application/x-shockwave-flash"></embed></object><br />
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</div><div><b><span class="Apple-style-span" style="font-size: x-large;"><span class="Apple-style-span" style="color: #45818e;">** <span class="Apple-style-span" style="font-size: x-large;">भगवान का शुक्र है कि वह नहीं है</span> ! **</span></span></b><br />
एक तो ये सज्जन विवादास्पद हैं। तिसपर यूट्यूब वालों का कुछ पता नहीं कब वीडियो हटाकर बोल दें कि भैय्या, वहीं आकर देख लो ! इसलिए चिंतन-मनन, बहस-मुबाहिसा जो करना हो, कर डालिए।</div>Sanjay Groverhttp://www.blogger.com/profile/14146082223750059136noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-2356433621108141667.post-15680119891848640292010-07-27T09:07:00.000-07:002010-07-27T09:07:17.313-07:00<span class="Apple-style-span" style="font-family: Verdana, sans-serif;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">इतनी सार्थक बहस शायद नास्तिक ही कर सकते हैं.</span></span>हरीश करमचंदाणीhttp://www.blogger.com/profile/07560678438638512429noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-2356433621108141667.post-80134657441188152412010-07-08T22:55:00.000-07:002010-07-08T23:09:16.456-07:00माधवाचार्य और लोकायत दर्शन<div style="text-align: justify;"><span>भारतीय</span> <span>दर्शन</span> <span>के</span> <span>इतिहास</span> <span>में</span> <span>भौतिकवाद</span> <span>और</span> <span>आदर्शवाद</span> <span>की</span> <span>दो</span> <span>परस्पर</span> <span>विरोधी</span> <span>धाराएँ</span> <span>एक</span> <span>साथ</span> <span>चलीं</span> <span>हैं</span> <span>।</span> <span>दार्शनिक</span> <span>एक</span> <span>के</span> <span>बाद</span> <span>एक</span> <span>आते</span> <span>गए</span> , <span>लेकिन</span> <span>उन्होंने</span> <span>किसी</span> <span>नए</span> <span>मत</span> <span>का</span> <span>प्रतिपादन</span> <span>न</span> <span>करके</span> <span>सिर्फ</span> <span>किसी</span> <span>प्राचीन</span> <span>दार्शनिक</span> <span>संप्रदाय</span> <span>से</span> <span>सहमति</span> <span>जताते</span> <span>हुए</span> <span>उसे</span> <span>बल</span> <span>प्रदान</span> <span>किया।</span> <span>उन्होंने</span> <span>स्वयं</span> <span>किसी</span> <span>नए</span> <span>संप्रदाय</span> <span>की</span> <span>नीव</span> <span>न</span> <span>रखकर</span> <span>ऐसा</span> <span>लिखा</span> <span>की</span> <span>यह</span> <span>पहले</span> <span>से</span> <span>वर्णित</span> <span>है</span> <span>और</span> <span>यहाँ</span> <span>सिर्फ</span> <span>इसका</span> <span>विस्तार</span> <span>अथवा</span> <span>खुलासा</span> <span>किया</span> <span>जा</span> <span>रहा</span> <span>है</span> <span>अर्थात</span> <span>मेरा</span> <span>कोई</span> <span>स्वतंत्र</span> <span>अस्तित्व</span> <span>है</span>, <span>ऐसा</span> <span>दावा</span> <span>किसी</span> <span>भी</span> <span>दार्शनिक</span> <span>द्वारा</span> <span>नही</span> <span>किया</span> <span>गया।</span> <span>उन्होंने</span> <span>अपने</span> <span>मत</span> <span>के</span> <span>संरक्षण</span> <span>के</span> <span>लिए</span> <span>उसे</span> <span>पोषित</span> <span>किया</span> <span>और</span> <span>विरोधी</span> <span>मत</span> <span>की</span> <span>आलोचना</span> <span>की</span>. <span>आज</span> <span>के</span> <span>कई</span> <span>आधुनिक</span> <span>विद्वान</span> <span>प्राचीन</span> <span>भारतीय</span> <span>भौतिकवाद</span> <span>के</span> <span>विवरण</span> <span>के</span> <span>लिए</span> <span>माधवाचार्य</span> <span>के</span> <span>सर्वदर्शन</span> <span>संग्रह</span> <span>पर</span> <span>आश्रित</span> <span>है</span>. <span>हम</span> <span>इस</span> <span>आलेख</span> <span>में</span> <span>यह</span> <span>जानने</span> <span>का</span> <span>प्रयास</span> <span>करेंगे</span> <span>की</span> <span>क्या</span> <span>इस</span> <span>ग्रन्थ</span> <span>को</span> <span>आधार</span> <span>बनाकर</span> <span>हमें</span> <span>किसी</span> <span>निष्कर्ष</span> <span>पर</span> <span>पहुंचना</span> <span>चाहिए</span>?.<br /><br /><span>माधवाचार्य</span> <span>या</span> <span>माधव</span> <span>विद्यारण्य</span>, <span>विजयनगर</span> <span>साम्राज्य</span> <span>के</span> <span>संस्थापक</span> <span>राजाओं</span> <span>के</span> <span>संरक्षक</span> <span>एवं</span> <span>दार्शनिक</span> <span>थे।</span> <span>उन्होने</span> <span>सर्वदर्शनसंग्रह</span> <span>की</span> <span>रचना</span> <span>की</span> <span>जो</span> <span>हिन्दुओं</span> <span>के</span> <span>दार्शनिक</span> <span>सम्प्रदायों</span> <span>के</span> <span>दर्शनों</span> <span>का</span> <span>संग्रह</span> <span>है।</span> <span>इसके</span> <span>अलावा</span> <span>उन्होने</span> <span>अद्वैत</span><br /><span>दर्शन</span> <span>के</span> '<span>पंचदशी</span>' <span>नामक</span> <span>ग्रन्थ</span> <span>की</span> <span>रचना</span> <span>भी</span> <span>की।</span> <span>उनका</span> <span>जन्म</span> <span>सन्</span> <span>१२६८</span> <span>में</span> <span>पम्पाक्षेत्र</span> (<span>वर्तमान</span> <span>हम्पी</span>) <span>में</span> <span>मायणाचार्य</span> <span>एवं</span> <span>श्रीमतीदेवी</span> <span>के</span> <span>यहाँ</span> <span>हुआ</span> <span>था।</span> <span>माधवाचार्य</span> <span>विद्यारण्य</span> <span>ने</span> <span>लोकायत</span> <span>को</span> <span>सबसे</span> <span>निम्न</span> <span>कोटि</span> <span>का</span> <span>दर्शन</span> <span>बताया</span> <span>है</span> <span>और</span> <span>अद्वैत</span> <span>वेदान्त</span> <span>को</span> <span>सबसे</span> <span>उत्कृष्ट।</span> <span>हमारे</span> <span>प्राचीन</span> <span>दार्शनिकों</span> <span>ने</span> <span>लोकदर्शन</span> <span>और</span> <span>भौतिकवादी</span> <span>दर्शन</span> <span>जिसे</span> <span>लोकायत</span> <span>कहा</span> <span>जाता</span> <span>है</span>, <span>के</span> <span>लिए</span> <span>जिस</span> <span>शब्द</span> <span>का</span> <span>प्रयोग</span> <span>किया</span> <span>वह</span> <span>है</span> "<span>चावार्क</span>" <span>या</span> "<span>बर्हस्पत्य</span>" <span>दर्शन।</span> <span>दार्शनिक</span> <span>माध्वाचार्य</span> <span>विद्यारण्य</span> <span>द्वारा</span> <span>लिखित</span> <span>भारतीय</span> <span>दर्शन</span> <span>के</span> <span>सारग्रन्थ</span> <span>सर्वदर्शन</span> <span>सग्रंह</span> <span>मे</span> <span>लिखे</span> <span>लोकायत</span> <span>के</span> <span>विवरण</span> <span>पर</span> <span>एक</span> <span>नजर</span> <span>डालने</span> <span>पर</span> <span>भौतिकवादियों</span> <span>के</span> <span>प्रति</span> <span>उनकी</span> <span>घृणा</span> <span>का</span> <span>हम</span> <span>स्पष्ट</span> <span>अवलोकन</span> <span>कर</span> <span>सकते</span> <span>हैं।</span><br /><br /><span>भौतिकवाद</span> <span>के</span> <span>विरोधियों</span> <span>ने</span> <span>जिन</span> <span>युक्तिओं</span> <span>से</span> <span>संदेहवादी</span> <span>और</span> <span>भौतिकवादी</span> <span>दर्शनों</span> <span>को</span> <span>भाववाद</span> <span>में</span> <span>प्रक्षिप्त</span> <span>करने</span> <span>का</span> <span>काम</span> <span>किया</span> <span>है</span>, <span>उनमें</span> <span>से</span> <span>एक</span> <span>यह</span> <span>भी</span> <span>है</span> <span>कि</span> <span>उसके</span> <span>सत्यापन</span> <span>के</span> <span>लिए</span> <span>वे</span> <span>यह</span> <span>तर्क</span> <span>देते</span> <span>हैं</span> <span>कि</span> <span>सर्वोच्च</span> <span>आध्यात्मिक</span> <span>सत्य</span> <span>का</span> <span>साक्षात्कार</span> <span>शनै</span>: - <span>शनै</span>: <span>ही</span> <span>करना</span> <span>उचित</span> <span>होता</span> <span>है</span> <span>इसलिए</span> <span>कई</span> <span>भाववादियों</span> <span>ने</span> <span>अपने</span> <span>ग्रंथों</span> <span>में</span> <span>दर्शन</span> <span>का</span> <span>विवरण</span> <span>भौतिकवाद</span> <span>के</span> <span>सिद्धांत</span> <span>से</span> <span>प्रारंभ</span> <span>करके</span> <span>अंततः</span> <span>तथाकथित</span> "<span>सर्वोंच्च</span> <span>आध्यात्मिक</span> <span>सत्य</span>" <span>तक</span> <span>पहुँचाने</span> <span>का</span> <span>मार्ग</span> <span>अपनाया</span> <span>है</span> <span>।</span> <span>यह</span> <span>एक</span> <span>चतुराई</span> <span>पूर्ण</span> <span>युक्ति</span> <span>है</span>, <span>जिससे</span> <span>की</span> <span>प्रतिपक्षी</span> <span>का</span> <span>तिरिस्कार</span> <span>करके</span> <span>उन्हें</span> <span>उपहास</span> <span>का</span> <span>पात्र</span> <span>बनाया</span> <span>जा</span> <span>सके।</span> <span>इसके</span> <span>पीछे</span> <span>यह</span> <span>तर्क</span> <span>भी</span> <span>दिया</span> <span>जाता</span> <span>है</span> <span>कि</span> <span>जिस</span> <span>दार्शनिक</span> <span>संप्रदाय</span> <span>का</span> <span>प्रतिनिधित्व</span> <span>लेखक</span> <span>कर</span> <span>रहा</span> <span>है</span> <span>उसे</span> <span>छोड़कर</span> <span>शेष</span> <span>दार्शनिक</span> <span>मान्यताएं</span> <span>एक</span> <span>श्रृंखला</span> <span>के</span> <span>रूप</span> <span>में</span> <span>हैं</span>, <span>जिनमे</span> <span>पहली</span> <span>कड़ी</span> <span>से</span> <span>अधिक</span> <span>उच्च</span> <span>कोटि</span> <span>की</span> <span>अध्यात्मिक</span> <span>व्याख्या</span> <span>दूसरी</span> <span>कड़ी</span> <span>में</span> <span>उपस्थित</span> <span>है</span> <span>।</span> <span>इसी</span> <span>प्रकार</span> <span>क्रमशः</span> <span>जो</span> <span>दर्शन</span> <span>अंत</span> <span>में</span> <span>है</span>, <span>वह</span> <span>सर्वोच्च</span> <span>है</span>, <span>शेष</span> <span>सब</span> <span>उस</span> <span>तक</span> <span>पहुचने</span> <span>के</span> <span>मार्ग</span> <span>भर</span> <span>है।</span> <span>माधवाचार्य</span> <span>के</span> <span>सर्वदर्शन</span> <span>संग्रह</span> <span>में</span> <span>भी</span> <span>यही</span> <span>युक्ति</span> <span>देखने</span> <span>को</span> <span>मिलती</span> <span>है</span> <span>उन्होंने</span> <span>वेदान्त</span> <span>को</span> <span>सबसे</span> <span>अंतिम</span><br /><span>में</span> <span>रखा</span> <span>है।</span> <span>कई</span> <span>आधुनिक</span> <span>विद्वान</span> <span>लोकायत</span> <span>मत</span> <span>के</span> <span>विवरण</span> <span>के</span> <span>लिए</span> <span>माधवाचार्य</span> <span>पर</span> <span>आश्रित</span> <span>रहे</span> <span>हैं।</span> <span>माधवाचार्य</span> <span>की</span> <span>लोकायत</span> <span>के</span> <span>प्रति</span> <span>मंसूबों</span> <span>में</span> <span>ईमानदारी</span> <span>है</span>, <span>इस</span> <span>तथ्य</span> <span>को</span> <span>मिथ्या</span> <span>साबित</span> <span>करने</span> <span>के</span> <span>लिए</span> <span>हमारे</span> <span>पास</span> <span>कई</span> <span>प्रमाण</span> <span>हैं।</span><br /><br /><span>माधवाचार्य</span> <span>और</span> <span>लोकायत</span> <span>मत</span> <span>के</span> <span>मूल</span> <span>काल</span> <span>में</span> <span>करीब</span> <span>दो</span> <span>हजार</span> <span>वर्षों</span> <span>का</span> <span>अंतर</span> <span>है।</span> <span>प्रारंभिक</span> <span>बौद्ध</span> <span>ग्रंथो</span> <span>कूटदंत</span> <span>सुत्त</span> <span>और</span> <span>ब्रह्मजाल</span> <span>सुत्त</span> <span>जैसे</span> <span>ग्रंथों</span> <span>में</span> <span>लोकायत</span> <span>मत</span> <span>का</span> <span>विवरण</span> <span>है</span>, <span>जिसमे</span> <span>शरीर</span> <span>और</span> <span>आत्मा</span> <span>को</span> <span>एक</span> <span>ही</span> <span>माना</span> <span>गया</span> <span>है</span>, <span>और</span> <span>इस</span> <span>मत</span> <span>का</span> <span>चलन</span> <span>बुद्ध</span> <span>के</span> <span>काल</span> <span>के</span> <span>पूर्व</span> <span>भी</span> <span>था।</span> <span>दूसरा</span> <span>जिसका</span> <span>उल्लेख</span> <span>पहले</span> <span>किया</span> <span>जा</span> <span>चुका</span> <span>है</span>, <span>माधवाचार्य</span> <span>विजय</span> <span>नगर</span> <span>के</span> <span>संस्थापकों</span> <span>के</span> <span>संरक्षक</span> <span>थे</span> <span>।</span> <span>यह</span> <span>समझा</span> <span>जाता</span> <span>है</span> <span>कि</span> <span>साम्राज्य</span> <span>स्थापित</span> <span>करने</span> <span>के</span> <span>लिए</span> <span>उन्होंने</span> <span>मध्य</span> <span>युग</span> <span>के</span> <span>एक</span> <span>मठ</span> <span>से</span> <span>धन</span> <span>प्राप्त</span> <span>किया</span> <span>था</span> <span>।</span> <span>अतः</span> <span>उनकी</span> <span>सहानूभूति</span> <span>का</span> <span>रुख</span> <span>शासक</span> <span>वर्ग</span> <span>के</span> <span>दर्शन</span> <span>अथवा</span> <span>वेदान्त</span> <span>के</span> <span>प्रति</span> <span>होना</span> <span>स्वाभाविक</span> <span>सा</span> <span>प्रतीत</span> <span>होता</span> <span>है।</span><br /><br /><span>माधवाचार्य</span> <span>ने</span> <span>अपने</span> <span>विरोधियों</span> <span>के</span> <span>प्रति</span> <span>जिस</span> <span>तर्क</span> <span>शैली</span> <span>का</span> <span>परिचय</span> <span>दिया</span> <span>है</span>, <span>वह</span> <span>विचित्र</span> <span>है</span> <span>।</span> <span>वे</span> <span>खुद</span> <span>को</span> <span>अपने</span> <span>विरोधियों</span> <span>का</span> <span>समर्थक</span> <span>बताते</span> <span>हुए</span> <span>उनकी</span> <span>तरफ</span> <span>से</span> <span>तर्क</span> <span>प्रस्तुत</span> <span>करते</span> <span>थे</span> <span>जबकि</span> <span>स्वयं</span> <span>उनके</span> <span>विचार</span> <span>भिन्न</span> <span>थे।</span> <span>इस</span> <span>प्रकार</span> <span>की</span> <span>शैली</span> <span>के</span> <span>कारण</span> <span>ही</span> <span>माधवाचार्य</span> <span>ने</span> <span>यह</span> <span>उल्लेख</span> <span>नहीं</span> <span>किया</span> <span>कि</span> <span>लोकायत</span> <span>मतानुयायी</span> <span>क्या</span> <span>तर्क</span> <span>प्रस्तुत</span> <span>करते</span> <span>हैं</span> <span>।</span> <span>वे</span> <span>इस</span> <span>बात</span> <span>में</span> <span>उलझे</span> <span>रहे</span> <span>की</span> <span>अगर</span> <span>वे</span> <span>लोकायतिक</span> <span>होते</span> <span>तो</span> <span>क्या</span> <span>कहते।</span> <span>उन्होंने</span> <span>वेदांती</span> <span>तर्क</span> <span>शैली</span> <span>को</span> <span>लोकयातिकों</span> <span>पर</span> <span>थोपा</span> <span>और</span> <span>अपने</span> <span>इच्छानुसार</span> <span>निष्कर्ष</span> <span>निकाल</span> <span>लाये।</span> <span>उदहारण</span> <span>के</span> <span>लिए</span> <span>एक</span> <span>प्रसंग</span> <span>का</span> <span>उल्लेख</span> <span>करना</span> <span>उचित</span> <span>होगा</span> - <span>स्वयं</span> <span>माधवाचार्य</span> <span>ने</span> <span>यह</span> <span>स्वीकार</span> <span>किया</span> <span>है</span> <span>कि</span> <span>लोकयातिओं</span> <span>ने</span> "<span>श्रुति</span>" <span>को</span> <span>पाखंडियों</span> <span>की</span> <span>कपट</span> <span>रचना</span> <span>बताया</span> <span>है।</span> <span>आगे</span> <span>वे</span> <span>फिर</span> <span>कहते</span> <span>हैं</span> <span>की</span> <span>लोकयातिओं</span> <span>ने</span> <span>अपने</span> <span>विचारों</span> <span>के</span> <span>समर्थन</span> <span>के</span> <span>लिए</span> <span>उपनिषद</span> <span>का</span> <span>उद्धरण</span> <span>दिया।</span> <span>यह</span> <span>दोनों</span> <span>बातें</span> <span>परस्पर</span> <span>विरोधाभास</span> <span>लिए</span> <span>हुए</span> <span>हैं।</span> <span>यह</span> <span>नितांत</span> <span>ही</span> <span>कल्पनामूलक</span> <span>बात</span> <span>है</span> <span>कि</span> <span>किसी</span> <span>मत</span> <span>का</span> <span>विरोध</span> <span>करने</span> <span>वाला</span> <span>उस</span> <span>मत</span><br /><span>में</span> <span>प्रयुक्त</span> <span>युक्तिओं</span> <span>का</span> <span>सहारा</span> <span>अपने</span> <span>कार्य</span> <span>के</span> <span>लिए</span> <span>लेगा।</span><br /><br /><span>माधवाचार्य</span> <span>के</span> <span>आभामंडल</span> <span>से</span> <span>परे</span> <span>जाकर</span> <span>जब</span> <span>हम</span> <span>अन्य</span> <span>ग्रंथों</span> <span>वर्णित</span> <span>लोकायत</span> <span>मत</span> <span>पर</span> <span>ध्यान</span> <span>केन्द्रित</span> <span>करते</span> <span>हैं</span> <span>तो</span> <span>कई</span> <span>बातें</span> <span>सामने</span> <span>आती</span> <span>है।</span> <span>उदाहरण</span> <span>के</span> <span>लिए</span> <span>शुक्रनीति</span> <span>सार</span> <span>में</span> <span>स्पस्ट</span> <span>लिखा</span> <span>है</span> <span>की</span> <span>नास्तिकों</span> (<span>लोकयातिओं</span> ) <span>के</span> <span>तर्क</span> <span>बहुत</span> <span>प्रबल</span> <span>हुआ</span> <span>करते</span> <span>थे</span> <span>और</span> <span>उनका</span> <span>रचनात्मक</span> <span>पक्ष</span> <span>भी</span> <span>था।</span> <span>नास्तिकों</span> <span>की</span> <span>मान्यता</span> "<span>सर्व</span> <span>स्वाभाविक</span> <span>मत</span> " <span>अर्थात</span> <span>ऐसा</span> <span>सिद्धांत</span> <span>जिसके</span> <span>अनुसार</span> <span>सब</span> <span>कुछ</span> <span>प्राकृतिक</span> <span>नियमों</span> <span>के</span> <span>अधीन</span> <span>है</span>, <span>एक</span> <span>प्रकार</span> <span>की</span> <span>रचनात्मकता</span> <span>लिए</span> <span>हुए</span> <span>है</span> <span>न</span> <span>कि</span> <span>जैसा</span> <span>विवरण</span> <span>माधवाचार्य</span> <span>ने</span> <span>दिया</span> <span>है</span>, <span>वैसा</span> <span>विध्वंसकारी।</span> <span>इसके</span> <span>अलावा</span> <span>कौटिल्य</span> <span>ने</span> <span>अपने</span> <span>अर्थशास्त्र</span> <span>में</span> <span>सांख्य</span> <span>और</span> <span>योग</span> <span>के</span> <span>साथ</span> <span>लोकायत</span> <span>का</span> <span>उल्लेख</span> <span>किया</span> <span>और</span> <span>इसे</span> <span>तर्क</span> <span>का</span> <span>विज्ञान</span> <span>अथवा</span> <span>आन्वीक्षिकी</span> <span>कहा।</span> <span>मिलिंद</span> <span>में</span> <span>कहानी</span> <span>के</span> <span>नायक</span> <span>नागसेन</span> <span>को</span> <span>लोकायत</span> <span>का</span> <span>ज्ञान</span> <span>प्राप्त</span> <span>है।</span> <span>हर्षचरित</span> (<span>कवेल</span> <span>और</span> <span>थामस</span> <span>द्वारा</span> <span>अनुदित</span>) <span>में</span> <span>जिसमे</span> <span>उपनिषद</span> <span>के</span> <span>अनुयायियों</span> <span>और</span> <span>लोकयातिओं</span> <span>को</span> <span>एक</span> <span>साथ</span> <span>संबोधित</span> <span>किया</span> <span>गया</span> <span>है।</span> <span>लोकयातियों</span> <span>को</span> <span>जिन</span> <span>विद्वानों</span> <span>के</span> <span>समकक्ष</span> <span>रखा</span> <span>गया</span> <span>है</span>, <span>उनमे</span> <span>उपनिषद</span> <span>के</span> <span>अनुयायिओं</span> <span>का</span> <span>होना</span> <span>यह</span> <span>प्रमाणित</span> <span>करता</span> <span>है</span> <span>कि</span> <span>विद्वजनो</span> <span>के</span> <span>मध्य</span> <span>लोकायत</span> <span>मत</span> <span>को</span> <span>वेदान्त</span> <span>दर्शन</span> <span>की</span> <span>तरह</span> <span>ही</span> <span>प्रतिष्ठा</span> <span>प्राप्त</span> <span>थी।</span> <span>इसी</span> <span>प्रकार</span> <span>एक</span> <span>अन्य</span> <span>पुस्तक</span> <span>विनय</span> <span>पिटक</span> <span>के</span> <span>चुल्लवग्ग</span> <span>में</span> <span>एक</span> <span>दृष्टान्त</span> <span>है</span>, <span>जिसमे</span> <span>किसी</span> <span>महात्मा</span> <span>द्वारा</span> <span>भिक्षुओं</span> <span>को</span> <span>लोकायत</span> <span>प्रणाली</span> <span>का</span> <span>अध्ययन</span> <span>करने</span> <span>से</span> <span>रोकने</span> <span>के</span> <span>लिए</span> <span>निर्देश</span> <span>दिए</span> <span>जा</span> <span>रहे</span><br /><span>हैं</span> <span>।</span> <span>यहाँ</span> <span>एक</span> <span>तथ्य</span> <span>ध्यातव्य</span> <span>है</span> <span>कि</span> <span>उन्होंने</span> <span>निम्न</span> <span>कोटि</span> <span>की</span> <span>अन्य</span> <span>विद्याओं</span> <span>के</span> <span>साथ</span> <span>बलि</span> <span>देने</span> <span>को</span> <span>भी</span> <span>रखा</span> <span>है।</span> <span>जो</span> <span>यह</span> <span>प्रमाणित</span> <span>करता</span> <span>है</span> <span>कि</span> <span>उपनिषद</span> <span>के</span> <span>अनुयायिओं</span> <span>को</span> <span>लोकयातिओं</span> <span>के</span> <span>समकक्ष</span> <span>रखा</span> <span>जाता</span> <span>था।</span> <span>यह</span> <span>माधवाचार्य</span> <span>द्वारा</span> <span>वर्णित</span> <span>विध्वंसकारी</span> <span>वितंडावादिओं</span> <span>के</span> <span>चित्र</span> <span>से</span> <span>तो</span> <span>कदापि</span> <span>मेल</span> <span>नही</span> <span>खाता।</span><br /><br /><span>उपरोक्त</span> <span>कई</span> <span>कारणों</span> <span>को</span> <span>ध्यान</span> <span>में</span> <span>रखते</span> <span>हुए</span> <span>हम</span> <span>कह</span> <span>सकते</span> <span>हैं</span> <span>कि</span> <span>माधवाचार्य</span> <span>द्वारा</span> <span>वर्णित</span> <span>लोकायत</span> <span>का</span> <span>विवरण</span> <span>प्रमाणिक</span> <span>नही</span> <span>है।</span> <span>माधवाचार्य</span> <span>लोकयातिओं</span> <span>को</span> <span>विध्वंसकारी</span> <span>बता</span> <span>रहे</span> <span>थे</span>, <span>वह</span> <span>तो</span> <span>कपोल</span> <span>कल्पित</span> <span>था</span> <span>ही</span>, <span>असल</span> <span>में</span> <span>उनका</span> <span>दृष्टिकोण</span> <span>स्वयं</span> <span>ही</span> <span>तर्क</span> <span>विज्ञान</span> <span>के</span> <span>प्रति</span> <span>विध्वंसकारी</span> <span>था।</span> <span>वे</span> <span>राजनितिक</span> <span>कारणों</span> <span>से</span> <span>ईश्वर</span>, <span>परलोक</span> <span>आदि</span> <span>की</span><br /><span>मान्यता</span> <span>को</span> <span>स्थापित</span> <span>करने</span> <span>के</span> <span>लिए</span> <span>बाध्य</span> <span>थे</span> <span>और</span> <span>उन्होंने</span> <span>यह</span> <span>बेहतर</span> <span>तरीके</span> <span>से</span> <span>किया</span> <span>भी</span> <span>है।</span> <span>हम</span> <span>थोडा</span> <span>ध्यान</span> <span>दें</span> <span>तो</span> <span>जान</span> <span>सकते</span> <span>हैं</span> <span>कि</span> <span>उस</span> <span>काल</span> <span>में</span> <span>जब</span> <span>शासक</span> <span>वर्ग</span> <span>को</span> <span>जनता</span> <span>को</span> <span>नियत्रण</span> <span>में</span> <span>रखने</span> <span>के</span> <span>उद्धेश्य</span> <span>से</span> <span>पौराणिक</span> <span>कथाओं</span> <span>और</span> <span>अन्धविश्वास</span> <span>का</span> <span>सृजन</span> <span>करना</span> <span>पड़</span> <span>रहा</span> <span>था</span>, <span>माधवाचार्य</span> <span>इन</span> <span>सब</span> <span>से</span> <span>कैसे</span> <span>अछूते</span> <span>रहते</span>, <span>वह</span> <span>भी</span> <span>एक</span> <span>राज्य</span> <span>के</span> <span>राजा</span> <span>के</span><br /><span>संरक्षक</span> <span>के</span> <span>रूप</span> <span>में</span> <span>।</span> <span>यहाँ</span> <span>गौर</span> <span>तलब</span> <span>हो</span> <span>की</span> <span>लगभग</span> <span>सभी</span> <span>धर्मों</span> <span>में</span> <span>राजा</span> <span>को</span> <span>ईश्वर</span> <span>का</span> <span>प्रतिनिधि</span> <span>बताया</span> <span>गया</span> <span>है</span> <span>और</span> <span>उससे</span> <span>विद्रोह</span> <span>को</span> <span>पाप।</span> <span>प्राचीन</span> <span>भौतिकवाद</span> <span>के</span> <span>समृद्ध</span> <span>इतिहास</span> <span>को</span> <span>जानने</span> <span>का</span> <span>प्रयत्न</span> <span>किसी</span> <span>वेदांत</span> <span>दार्शनिक</span> <span>के</span> <span>ग्रन्थ</span> <span>के</span> <span>आधार</span> <span>पर</span> करते वक्त, <span>किसी</span> <span>निष्कर्ष</span> <span>पर</span> <span>पहुँचने</span> <span>से</span> <span>पहले</span> <span>इन</span> <span>दो</span> <span>विचारधाराओं</span> <span>के</span> <span>मध्य</span> <span>हुए</span> <span>संघर्ष</span> <span>का</span> <span>स्मरण</span> <span>रखना</span> <span>चाहिए।</span></div>Unknownnoreply@blogger.com13tag:blogger.com,1999:blog-2356433621108141667.post-38745423161405459882010-06-01T13:29:00.000-07:002010-06-01T21:03:06.575-07:00मैं नास्तिक हूं....मुझे अपनी समझ से<div>दुनिया को समझने में</div><div>अपने हिसाब से</div><div>अपने रास्ते पर </div><div>चलने में </div><div>अपने लिए </div><div>अपने खयाल बुनने में </div><div>अपने विचारों को </div><div>अपनी ज़ुबान में </div><div>कहने में </div><div>अपनी मस्ती में </div><div>बहने </div><div>अपनी धुन में </div><div>रहने में </div><div>नहीं कोई दुविधा है....</div><div><br /></div><div>मुझे सवाल पूछने </div><div>जवाब मांगने </div><div>तर्क करने </div><div>उंगली उठाने </div><div>सोचने समझने </div><div>गुत्थियां सुलझाने </div><div>अपने मानक </div><div>खुद तय करने </div><div>दोजख-नर्क के </div><div>भय के बिना </div><div>जीने और मरने </div><div>आवाज़ उठाने </div><div>और </div><div>तुम्हें मानने </div><div>या नकारने में </div><div>सुविधा है....</div><div><br /></div><div>मेरे लिए </div><div>ज़ोर से हंस पड़ना </div><div>हर अतार्किक बात पर </div><div>व्यंग्य करना </div><div>तुम्हारे तथाकथित </div><div>अनदेखे </div><div>अप्रमाणित ईश्वरों पर </div><div>न जाना, न जताना </div><div>भरोसा </div><div>इन इबादत घरों पर </div><div>परमकृपालु ईश्वर </div><div>हमेशा मेहरबान खुदा </div><div>के नाम पर </div><div>तुम्हारे द्वारा </div><div>किए गए</div><div>अपमानों </div><div>दी गई गालियों </div><div>और हमलों का जवाब </div><div>मुस्कुराहट </div><div>से देना भी </div><div>एक कला है </div><div>विधा है.....</div><div><br /></div><div>और हां </div><div>सच है तुम्हारा ये आरोप </div><div>ईश्वर के (न) होने </div><div>जितना ही </div><div>कि मैं </div><div>एक नास्तिक हूं.....</div><div><br /></div><div>mailmayanksaxena@gmail.com </div>Unknownnoreply@blogger.com19tag:blogger.com,1999:blog-2356433621108141667.post-48225845478624173542010-06-01T04:51:00.000-07:002010-06-01T05:05:43.900-07:00एक शापित नास्तिक का बयान<div style="text-align: justify;">नास्तिक से पहली गलती ये हुई कि वह बिग बैंग का उल्लेख देख कर वह एक आस्तिक के ब्लाग पर जा पहुँचा। उस ने दूसरी गलती ये की कि उस ने पोस्ट पढ़ ली और तीसरी गलती ये हुई कि उस ने उस पर टिप्पणी करते हुए एक प्रश्न लिख दिया। अब आप ही सोचें, आखिर एक गलती माफ की जा सकती है, दूसरी गलती में मामूली सजा दी जा सकती है। लेकिन तीसरी तो पूरी तरह से अक्षम्य होती है। आखिर कठोर दंड मिलना तो नास्तिक ने ही तय कर लिया था, भला उस से बचता कैसे? वैसे आप को बता दें कि उस नास्तिक ने वहाँ टिप्पणी क्या की थी? तो लीजिए आप भी पढ़ लीजिए.....</div><div style="text-align: justify;"><b>क्या कुरआन (उस के) आने से पहले के तमाम सिद्धांतों की नकल मात्र है? बिगबैंग का सिद्धांत तो <a href="http://anvarat.blogspot.com/search/label/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%96%E0%A5%8D%E0%A4%AF">सांख्य</a> में कुरआन के सैंकड़ों बरस पहले से है, जो एक अनीश्वरवादी दर्शन है।</b></div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">अब ये नास्तिक जी का एक मासूम सवाल ही था। पर इस में तीन गलतियाँ शामिल थीं। माफ तो कैसे किया जाता। आस्तिक ब्लागर ने अपना स्पष्टीकरण दिया .....</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><b>इस पोस्ट में मैंने बिग बैंग को पूरी तरह सही नहीं माना है बल्कि कुरआन और कुछ और पुराने ज्ञान के आधार पर इस सिद्धांत में सुधार की कोशिश की है।</b></div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">आस्तिक ब्लागर जी कोई अकेले तो आस्तिक नहीं? सारी दुनिया आस्तिकों से भरी पड़ी है। दूसरे आस्तिक जी को उन का यह स्पष्टीकरण दुनिया के तमाम आस्तिकों की कमजोरी लगा। उन्हों ने सोचा तीन गलतियों की सजा शाप से कम तो हो नहीं सकती तो उन्हों ने एक लम्बा-चौड़ा, भारी-भरकम शाप दे डाला। जरा आप भी गौर फरमाइए इस शाप पर .......</div><div style="text-align: justify;"> <b>@ वकील साहब! ईश्वर ने ही मनुष्य को बुद्धि दी है। वह उससे सोचता है और ब्रह्माण्ड के रहस्यों को सुलझाने की कोशिश करता है और वह किसी सत्य नियम को पा लेता है । और वही नियम हज़ारों मील दूर की अजनबी भाषा में सैकड़ों साल पहले की किताब में लिखा मिलता है तो क्या सचमुच यह इसी तरह नज़रअन्दाज़ कर देने के लायक़ है? जैसे कि आज आप कर रहे हैं । हज़रत मुहम्मद साहब भारत नहीं आये और न ही वे संस्कृत बोलते थे। तब <a href="http://anvarat.blogspot.com/search/label/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%96%E0%A5%8D%E0%A4%AF">सांख्य</a> का अरबी भाषा में अनुवाद भी नहीं था। वे पढ़े लिखे भी नहीं थे फिर भी उनके द्वारा जो सत्य बताया गया उसे आप स्वीकारने के बजाए नकार रहे हैं ?</b></div><div style="text-align: justify;"><b>ठीक है, आज आपको मालिक ने नकारने का अधिकार दिया है लेकिन मौत आपको एक ऐसी दुनिया में ले जाएगी जहां आप सत्य को नकारने की दशा में न होंगे लेकिन तब आपका मानना आपके काम न आएगा। आप की रीत को देखकर जो भी गुमराह होगा उसका पाप भी आप पर ही पड़ेगा।</b></div><div style="text-align: justify;"><b>दुनिया में भी आप आदमी को 120 बी (दुष्प्रेरणा)का मुल्ज़िम ठहराते हैं । परलोक में आप पर दूसरी धाराओं के साथ यह धारा भी लगेगी , अब इस का नम्बर वहां चाहे दूसरा ही क्यों न हो?</b></div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">अब शापित हो जाने के बाद नास्तिक जी के पास क्या चारा बचा था? उन्हों ने शाप को शिरोधार्य कर लिया। लेकिन अपनी बात कहते हुए चलिए आप ये बात भी पढ़ लीजिए.......</div><div style="text-align: justify;"><b>यूँ तो मैं आप की बेवजह मुझे पापी घोषित करने वाली बात का उत्तर देना जरूरी नहीं समझता। लेकिन इस वजह से कि आप एक इंसान हैं बराबरी से दो बात कहना चाहता हूँ। <br />
कुऱआन आप का विश्वास है, उसे खुदा ने भेजा है यह आप का विश्वास है। इस्लाम का पहला सबक है आँख मूंद कर पहले ईमान लाओ। यह आप का यक़ीन है। आप उसे मानते हैं। हम आप की कद्र करते हैं कि आप अपने विश्वासों पर अटल हैं। लेकिन हम भी अपने विश्वासों पर अटल हैं जिन की बुनियाद आँख मूंद कर यकीन करना नहीं है बल्कि तर्क हैं। हम विश्वास की बिना पर नहीं बल्कि नए तथ्यों और तर्कों की बिना पर अपने विश्वासो मे सुधार करने को भी तैयार रहते हैं। जिस तरह हम आप की कद्र करते हैं आप को भी तर्क आधारित विश्वासों पर हमारे डटे रहने की कद्र करना चाहिए। <br />
मैं इस पर विश्वास नहीं करता कि ईश्वर ने ही मनुष्य को बुद्धि दी है। <br />
-कि हज़रत मुहम्मद साहब भारत नहीं आये। (तो फिर हजरतबल में किसका बाल सुरक्षित है?) वे संस्कृत जानते भी हों तो किस से बोलते और किसे समझाते? (वहाँ कोई समझने वाला तो होता।) <a href="http://anvarat.blogspot.com/search/label/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%96%E0%A5%8D%E0%A4%AF">सांख्य</a> को जानने के लिए किसी भाषा की जरूरत नहीं थी। वह कानों कान अनेक भाषाओं में पूरी दुनिया में फैला है। वह इस कदर दुनिया में व्याप्त हुआ कि एक अनपढ़ और अंगूठा छाप भी उस का इतना ज्ञान रखता है कि वह <a href="http://anvarat.blogspot.com/search/label/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%96%E0%A5%8D%E0%A4%AF">सांख्य </a>पर पूरी क्लास ले सकता है। आप अनवरत पर सांख्य से संबद्ध पोस्टो में यह सब पढ़ सकते हैं। <br />
नकारने का अधिकार मुझे किसी ने नहीं दिया है वह तो हमेशा से इंसान के पास मौजूद था। उन्हों ने ही ईमान के नाम पर उसे खो दिया। मैं मौत के बाद की जिन्दगी में उसी तरह यकीन नहीं करता जैसे भगत सिंह नहीं करता था। मेरे पास किसी जन्नत का किसी हूर का लालच नहीं है तो मेरे पास किसी दोजख के दंड का भय भी नहीं है। आप किसे दोजख के दंड का भय दिखा रहे है। वे कमजोर इंसान हैं जो इन काल्पनिक डरों से डरते हैं वे डरते डरते सारी जिन्दगी काट देते हैं, वे इन्सानियत का कोई भला नहीं कर सकते। वे ही कर सकते हैं जो किसी से नहीं डरते उस काल्पनिक खुदा से भी नहीं जो इंसान ने खुद अपने लिए गढ़ा और उस का गुलाम हो गया। मैं किसी दुष्प्रेरणा का दोषी नहीं हूँ। न ही मैं पाप और पुण्य को मानता हूँ। <br />
खु</b><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgHjapiOmPg2dH7xY_MXeMFqGvbh6JV7uSUv9VQgfbhn0niX0QBwPZY_uZUv7USsZNeHRI7H6FAeamMRbCn3FfqOkMgSGw9vFFjUKTLweNIGcRf28AJinnRQO1Tj235-0OggH3KYE8BrI0/s1600/bhagat_singh_in_jai_1l.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgHjapiOmPg2dH7xY_MXeMFqGvbh6JV7uSUv9VQgfbhn0niX0QBwPZY_uZUv7USsZNeHRI7H6FAeamMRbCn3FfqOkMgSGw9vFFjUKTLweNIGcRf28AJinnRQO1Tj235-0OggH3KYE8BrI0/s200/bhagat_singh_in_jai_1l.jpg" width="141" /></a><b>दा को नकारने वाला भगतसिंह ही था जिस ने अपने को सोच-समझ कर यह जानते हुए कि जो वह करने जा रहा है उस की सजा मौत है,खुद को कौम के लिए कुर्बान कर दिया। यह जज्बा किसी खुदा से डरने वाले कै पास नहीं हो सकता। अगर आप की सोच सही है औऱ मेरी गलत तो भी आप की सोच के मुताबिक भगत सिंह को भी खुदा को नकारने के लिए दोजख मिली होगी तो मैं भी उस दोजख में जाने को तैयार हूँ। कम से कम वहाँ मैं उस जहीन इंसान से मिल कर उसके कदम तो चूम सकूंगा।</b></div>दिनेशराय द्विवेदीhttp://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-2356433621108141667.post-28976607563973348802010-05-23T23:37:00.000-07:002010-05-24T01:20:36.826-07:00'' अगर धर्म एक अच्छे इन्सान होने का सर्टिफिकेट होता तो इस दुनिया में कोई समस्या ही नहीं होती '' - 1<span style="color: rgb(102, 0, 0);">जब</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">हमने</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">इस्वर</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">और</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">धर्म</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">की</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">सत्ता</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">को</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">मानने</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">से</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">इंकार</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">किया</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">तो</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">बहुत</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">से</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">करीबियों</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">को</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">दुःख</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">के</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">साथ</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> - </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">साथ</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">कुछ</span> <span style="color: rgb(102, 0, 0);">को</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">ख़ुशी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">भी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">हुई</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">.</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">दुखी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">लोगों</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">ने</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">कहा</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">अच्छा</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">खासा</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">लड़का</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">था</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">बिगड़</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">गया</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> ..</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">लगता</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">है</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">किसी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">गलत</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">सोहबत</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">में</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">पड़</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">गया</span> <span style="color: rgb(102, 0, 0);">है</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">.</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">लोगों</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">ने</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">हमें</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">बहुत</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">समझाने</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">की</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">कोशिशें</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">की</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">मगर</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">क्या</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">करें</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">हम</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">भी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">तर्क</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">पे</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">तर्क</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">किये</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">जा</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">रहे</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">थे</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">और</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">ये</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">तर्क</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">लोगों</span> <span style="color: rgb(102, 0, 0);">के</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">गले</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">नहीं</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">उतर</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">रहे</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">थे</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">.</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">कुछ</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">लोगों</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">को</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">चिंता</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">भी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">हुई</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">की</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">कहीं</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">इसकी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">सोहबत</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">में</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">हमारे</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">लड़के</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">भी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">ना</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">बिगड़</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">जाएँ</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">सो</span> <span style="color: rgb(102, 0, 0);">कई</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">लड़कों</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">के</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">साथ</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">हमारा</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">उठाना</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">बैठने</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">भी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">छुट</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">गया</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">.</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">लोग</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">इस्वर</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">के</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">अस्तित्व</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">को</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">साबित</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">करने</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">के</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">लिए</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">तमाम</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">तर्क</span> - <span style="color: rgb(102, 0, 0);">बितर्क</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">करने</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">लगे</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">.</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">फिर</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">भी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">हम</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">नहीं</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">माने</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">तो</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">लोगों</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">ने</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">हार</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">के</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">कहा</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> -<span style="color: rgb(153, 0, 0);font-size:130%;" > ''</span></span><span style="color: rgb(153, 0, 0);font-size:130%;" > धार्मिक</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);font-size:130%;" >हउवे</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);font-size:130%;" >बिना</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);font-size:130%;" >आदमीं</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);font-size:130%;" >अच्छा</span> <span style="color: rgb(153, 0, 0);font-size:130%;" >इन्सान</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);font-size:130%;" >नहीं</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);font-size:130%;" >हो</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0);font-size:130%;" >सकता</span><span style="color: rgb(153, 0, 0);font-size:130%;" > ''.</span><br /><br /> <span style="color: rgb(102, 0, 0);">खुश</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">होने</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">वाले</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">करीबियों</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">को</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">हममें</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">तमाम</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">संभावनाएं</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">नज़र</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">आ</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">रही</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">थी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">.</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">कहने</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">लगे</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">सही</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">है</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">ब्रम्ह्ड़ो</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">ने</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">हिन्दू</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">धर्म</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">में</span> <span style="color: rgb(102, 0, 0);">कई</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">बुराइयों</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">का</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">प्रवेश</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">करा</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">दिया</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">है</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">.</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">इनका</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">तर्क</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">होता</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">था</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">की</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">इस्वर</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">है</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">बस</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">तुम</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">उसे</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">खोजो</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">, </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">धर्म</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">को</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">पालिस</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">करने</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">की</span> <span style="color: rgb(102, 0, 0);">जरुरत</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">है</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">,</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">कुछ</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">लोगों</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">ने</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">इस</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">गन्दा</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">बना</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">दिया</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">है</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> .</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">दरअसल</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">ये</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">सभी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">लोग</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">किसी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">ना</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">किसी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">पंथ</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">को</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">मानने</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">वाले</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">थे</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">कोई</span> <span style="color: rgb(102, 0, 0);">आर्य</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">समाजी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">था</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">,</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">तो</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">कोई</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">निरंकारी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">था</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">और</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">कोई</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">गायत्री</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">परिवार</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">को</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">मानने</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">वाला</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">और</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">वे</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">समझ</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">रहे</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">थे</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">की</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">उनके</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">पंथ</span> <span style="color: rgb(102, 0, 0);">को</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">मानने</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">वालों</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">में</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">मैं</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">भी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">शामिल</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">हो</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">सकता</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">हूँ</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">.</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">अचानक</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">इन</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">साहबों</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">ने</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">मुझे</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">अपने</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">अपने</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">धार्मिक</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">आयोजनों</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">में</span> <span style="color: rgb(102, 0, 0);">बुलाना</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">शुरू</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">कर</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">दिया</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">.</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">हमारे</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">एक</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">बहुत</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">करीबी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">जो</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">की</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">निरंकारी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">हैं</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">. </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">अक्सर</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">बुलाते</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">थे</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">अपने</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">निरंकारी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">सत्संगों</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">में</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">और</span> <span style="color: rgb(102, 0, 0);">अक्सर</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">मेरी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">नास्तिकता</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">का</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">मजाक</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">भी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">उड़ाते</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">थे</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">एक</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">दिन</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">खीज</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">करके</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">मैने</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">पुछ</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">दिया</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> - </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">अच्छा</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">ये</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">बताइए</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">.</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">जब</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">आप</span> <span style="color: rgb(102, 0, 0);">खुदा</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">,</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">इस्वर</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">या</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">भगवान</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">को</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">निरंकारी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">मानते</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">हैं</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">तो</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">अपने</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">समरोहों</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">में</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">क्यों</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">एक</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">लोग</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">को</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">सफ़ेद</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">धोती</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">कुरता</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">पहना</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">के</span> <span style="color: rgb(102, 0, 0);">और</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">सफ़ेद</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">चादर</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">ओढा</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">कर</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">पूजा</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">करते</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">है</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> ? </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">जब</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">आपका</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">इस्वर</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">निरंकारी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">है</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">तो</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">यहाँ</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span>आकार वाली <span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">धरती</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">और</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">इंसानों</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">- जानवरों</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">को</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">बनाने</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">की</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">जरुरत</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">क्यों</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">पड़ी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> ? </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">क्या</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">आपका</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">इस्वर</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">चापलूस</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">जो</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">इंसानों</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">को</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">केवल</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">पूजा</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> - </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">पाठ</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">के</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">लिए</span> <span style="color: rgb(102, 0, 0);">बनाया</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">है</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> ? </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">और</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">सब</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">छोड़</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">भी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">दें</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">तो</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">जरा</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">बताइए</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">जब</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">निरंकारी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">की</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">पूजा</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">करते</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">हैं</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">समय</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">साकार</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">भगवानो</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">राम</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">,</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">कृस्न</span> <span style="color: rgb(102, 0, 0);">और</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">शंकर</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">की</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">स्तुति</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">क्यों</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">करते हैं</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">?</span><br /><br /><br /> <span style="color: rgb(102, 0, 0);">गर</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">निरंकारी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">होके</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">भी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">इन्ही</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">भगवानो</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">की</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">पूजा</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">करनी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">थी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">तो</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">क्या</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">जरुरत</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">है</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">निरंकारी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">होने</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">की</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">.</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">पता</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">नहीं</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">कितने</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">करोड़</span> <span style="color: rgb(102, 0, 0);">भगवानो</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">को</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">ढ़ोने</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">वाली</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">अपनी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">गधों</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">वाली</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">पीठ</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">पे</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">एक</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">और</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">भगवान</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">को</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">लादने</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">की</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">जरुरत</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">क्या</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">है</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> ? </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">मेरे</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">सवालों</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">से</span> <span style="color: rgb(102, 0, 0);">गुस्साए</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">मेरे</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">उन</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">करीबी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">जब</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">कोई</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">तर्क</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">नहीं</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">कर</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">पाए</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">तो</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">कहा</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> - </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">अब</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">तुम</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">पिटोगे</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">तभी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">तुम्हारी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">समझा</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">में</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">आएगा</span> <span style="color: rgb(102, 0, 0);">इस्वर</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">और</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">धर्म</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">...</span><br /><br /> <span style="color: rgb(102, 0, 0);">मेरे</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">से</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">दुखी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">और</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">अपने</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">पंथ</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">के</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">संदर्भ</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">में</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">मेरे</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">में</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">संभावना</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">देखने</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">वाले</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">ये</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">लोग</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">तब</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">भी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">और</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">अब</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">भी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">जब</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">तर्क</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">से</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">पेश</span> <span style="color: rgb(102, 0, 0);">नहीं</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">हो</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">पाते</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">यही</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">कहते</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">हैं</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> - '' </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">धार्मिक</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">हउवे</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">बिना</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">आदमीं</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">अच्छा</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">इन्सान</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">नहीं</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">हो</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">सकता</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> ''.</span><br /><br /> <span style="font-size:130%;"><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;"> </span></span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >और</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >मैं</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >कहता</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >हूँ</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >की</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >बिना</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >धर्म</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >के</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >भी</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >एक</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >अच्छा</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >इन्सान</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >हूवा</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >जा</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >सकता</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >है</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >.</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >क्यों</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >क़ि</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >धर्म</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >और</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >इस्वर</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >दोनों</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >इन्सान</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >पे</span><span style="font-size:130%;"><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;"> </span></span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >जबरदस्ती</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >लादे</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >गए</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >हैं</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >.</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >इन्सान</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >अपने</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >कुदरती</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >रूप</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >में</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >ही</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >बहुत</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >अच्छा</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >है</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >.</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >धर्मिक लोगों की जनसँख्या ही इस धरती सबसे बड़ी है.नास्तिक तो मुश्किल से कुछ हजार ही होंगे फिर भी यहाँ इतनी असमानता क्यों?क्यों धर्म के नाम पे ही धरती सबसे ज्यादे लहूलुहान हुई ? हो</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >सकता</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >है</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >एक</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >ज़माने</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >में</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >धर्म</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >सोसायटी</span><span style="font-size:130%;"><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;"> </span></span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >को</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >चलने</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >के</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >लिए</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >लोगों</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >ने</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >बनाया</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >हो</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >.</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >मगर</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >अब</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >हमारी</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >सोसायटी</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >को</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >चलने</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >के</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >लिए</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >एक</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >अलग</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >व्यवस्था</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >है</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >.</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >और</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >एसे</span><span style="font-size:130%;"><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;"> </span></span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >में</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >अब</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >ये</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >धर्म</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >हमारी</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >प्रगति</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >में</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >लंगड़ी</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >मरने</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >के</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >सिवा</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >और</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >किसी</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >काम</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >के</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >नहीं</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >हैं</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >.</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >इन्हें</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >अब</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >इतिहास</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >की</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >किताबों</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >में</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >ही</span><span style="font-size:130%;"><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;"> </span></span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >रहने</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >देना</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >चाहिए</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >.</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >और</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > '' </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >इस्वर</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >वों</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >तो</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >इस</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >दुनिया</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >का</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >सबसे</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >झूठा</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >शब्द</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >है</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >,</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >और</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >सबसे</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >ज्यादे</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >विस्वास</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >से</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >बोले</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >जाने</span><span style="font-size:130%;"><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;"> </span></span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >वाला झूठ</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >भी</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > ''....</span><span style="font-size:130%;"><br /><br /><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;"> </span></span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >'' </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >गर</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >धर्म</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >एक</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >अच्छे</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >इन्सान</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >होने</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >का</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >सर्टिफिकेट</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >होता</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >तो</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >इस</span><span style="font-size:130%;"><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;"> </span></span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >दुनिया</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >में</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >कोई</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >समस्या</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >ही</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >नहीं</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >होती</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > ''.</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >धर्म</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >के</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >नाम</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >पे</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >या</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >सम्प्रदाय</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >के</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >नाम</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >पे</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >किये</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >जाने</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >वाली</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > हत्याएं</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >नहीं</span><span style="font-size:130%;"><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;"> </span></span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >होतीं.भगवान है तो वों </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >दुनिया</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" ><span>में</span> होने वाली दुःख तकलीफों को कम क्यों नहीं करता</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >.</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >आप</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >गधे</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >हो</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >सकते</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >हैं</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >मैं</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" > </span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >नहीं</span><span style="color: rgb(153, 0, 0); font-weight: bold;font-size:130%;" >.</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">जब</span> <span style="color: rgb(102, 0, 0);">आपको</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">यहाँ</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">भी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">उन्ही</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">भगवानो</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">को</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">पूजना</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">है</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">तो</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">फिर</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">कोई</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">जरुरत</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">नहीं</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">नए</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">पन्थो</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">और</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">भगवानों</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">की</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">.</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">दरअसल</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">इन्हें</span> <span style="color: rgb(102, 0, 0);">शिकायत</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">ये</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">नहीं</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">है</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">की</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">मैं</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">भगवान</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">को</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">मानता</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">हूँ</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">या</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">नहीं</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> ..</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">शिकायत</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">इस</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">बात</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">की</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">है</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">क़ि</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">मैं</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">इनकी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">तरह</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">गधा</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">नहीं</span> <span style="color: rgb(102, 0, 0);">निकला</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">और</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">इनके</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">मालिक</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">का</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">बोझ</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">नहीं</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">धो</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">रहा</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">और</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">उसपे</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">इनका</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">मालिक</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">अपने</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">अदृश्य</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">कोड़े</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">भी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">मुझपे</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">नहीं</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">बरसा</span> <span style="color: rgb(102, 0, 0);">रहा</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">...? बहुत से सवल हैं जिनका कोई जवाब नहीं देता...</span><br /><br /> <span style="color: rgb(102, 0, 0);">है</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">तो</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">कहने</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">को</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">बहुत</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">कुछ</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">मगर</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">..</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">फिर</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">कभी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> ...</span><br /><span style="color: rgb(102, 0, 0);">आखिरी</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">में</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">इस</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">ब्लॉग</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">क़ि</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">पहली</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">पोस्ट</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">पे</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">आई</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">एक</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 0);">कमेंट्स</span><span style="color: rgb(102, 0, 0);"> -</span><br />____________________________________________________________________________________________________________________________<br /><span style="color: rgb(204, 51, 204);">J.S. PARMAR - </span><span style="color: rgb(204, 51, 204);">जब</span><span style="color: rgb(204, 51, 204);"> </span><span style="color: rgb(204, 51, 204);">कहीं</span><span style="color: rgb(204, 51, 204);"> </span><span style="color: rgb(204, 51, 204);">पढ़ता</span><span style="color: rgb(204, 51, 204);"> </span><span style="color: rgb(204, 51, 204);">हूँ</span><span style="color: rgb(204, 51, 204);"> </span><span style="color: rgb(204, 51, 204);">की</span><span style="color: rgb(204, 51, 204);"> </span><span style="color: rgb(204, 51, 204);">नास्तिकता</span><span style="color: rgb(204, 51, 204);"> </span><span style="color: rgb(204, 51, 204);">के</span><span style="color: rgb(204, 51, 204);"> </span><span style="color: rgb(204, 51, 204);">विरूद्ध</span><span style="color: rgb(204, 51, 204);"> </span><span style="color: rgb(204, 51, 204);">लड़ना</span><span style="color: rgb(204, 51, 204);"> </span><span style="color: rgb(204, 51, 204);">है</span><span style="color: rgb(204, 51, 204);"> </span><span style="color: rgb(204, 51, 204);">तो</span><span style="color: rgb(204, 51, 204);"> </span><span style="color: rgb(204, 51, 204);">सिहर</span><span style="color: rgb(204, 51, 204);"> </span><span style="color: rgb(204, 51, 204);">उठता</span><span style="color: rgb(204, 51, 204);"> </span><span style="color: rgb(204, 51, 204);">हूँ</span><span style="color: rgb(204, 51, 204);">, </span><span style="color: rgb(204, 51, 204);">कहीं</span><span style="color: rgb(204, 51, 204);"> </span><span style="color: rgb(204, 51, 204);">अगला</span><span style="color: rgb(204, 51, 204);"> </span><span style="color: rgb(204, 51, 204);">नम्बर</span> <span style="color: rgb(204, 51, 204);">अपना</span><span style="color: rgb(204, 51, 204);"> </span><span style="color: rgb(204, 51, 204);">ही</span><span style="color: rgb(204, 51, 204);"> </span><span style="color: rgb(204, 51, 204);">तो</span><span style="color: rgb(204, 51, 204);"> </span><span style="color: rgb(204, 51, 204);">नहीं</span><span style="color: rgb(204, 51, 204);">? </span><br /><span style="color: rgb(204, 51, 204);">नास्तिकता</span><span style="color: rgb(204, 51, 204);"> </span><span style="color: rgb(204, 51, 204);">हो</span><span style="color: rgb(204, 51, 204);"> </span><span style="color: rgb(204, 51, 204);">या</span><span style="color: rgb(204, 51, 204);"> </span><span style="color: rgb(204, 51, 204);">आस्तिकता</span><span style="color: rgb(204, 51, 204);">, </span><span style="color: rgb(204, 51, 204);">दोनो</span><span style="color: rgb(204, 51, 204);"> </span><span style="color: rgb(204, 51, 204);">के</span><span style="color: rgb(204, 51, 204);"> </span><span style="color: rgb(204, 51, 204);">दो</span><span style="color: rgb(204, 51, 204);"> </span><span style="color: rgb(204, 51, 204);">दो</span><span style="color: rgb(204, 51, 204);"> </span><span style="color: rgb(204, 51, 204);">मार्ग</span><span style="color: rgb(204, 51, 204);"> </span><span style="color: rgb(204, 51, 204);">है</span><span style="color: rgb(204, 51, 204);">, </span><span style="color: rgb(204, 51, 204);">इन्हे</span><span style="color: rgb(204, 51, 204);"> </span><span style="color: rgb(204, 51, 204);">समझा</span><span style="color: rgb(204, 51, 204);"> </span><span style="color: rgb(204, 51, 204);">जाना</span><span style="color: rgb(204, 51, 204);"> </span><span style="color: rgb(204, 51, 204);">चाहिए</span><span style="color: rgb(204, 51, 204);">.</span><br /><span style="color: rgb(204, 51, 204);">जहाँ आस्तिकता के एक मार्ग के राही महात्मा गाँधी थे तो दूसरा मार्ग लादेन ने पकड़ रखा है. वैसे ही नास्तिकता के एक मार्ग पर स्टालिन चला था तो दूसरा मार्ग महावीर और बुद्ध द्वारा रोशन हुआ है. अब यह तो व्यक्ति पर निर्भर करता है की वह किस रास्ते जाता है.<br />दोनों ही रास्तों के खतरनाक दृष्टांत हैं। मेरा तो यही कहना है कि आदमी की आस्था अपने में होनी चाहिए। वह आस्तिक हो या नास्तिक, अगर उसकी आस्था अपने ऊपर नहीं रही तो वह खंडहर की तरह कभी भी ढह सकता है।</span><span style="color: rgb(204, 51, 204);"></span>anjule shyamhttp://www.blogger.com/profile/01568560988024144863noreply@blogger.com29tag:blogger.com,1999:blog-2356433621108141667.post-3221843127919945352010-05-23T00:22:00.000-07:002010-05-23T00:22:56.214-07:00बर्बरता के विरुद्ध: ईश्वर की सत्ता में यकीन रखने वाले मित्रों से एक अपील!!!<a href="http://pratirodhh.blogspot.com/2010/05/blog-post.html">बर्बरता के विरुद्ध: ईश्वर की सत्ता में यकीन रखने वाले मित्रों से एक अपील!!!</a>हरीश करमचंदाणीhttp://www.blogger.com/profile/07560678438638512429noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2356433621108141667.post-22982077011200423042010-05-16T06:41:00.000-07:002010-05-16T06:41:45.561-07:00बर्बरता के विरुद्ध: ईश्वर की सत्ता में यकीन रखने वाले मित्रों से एक अपील!!!<a href="http://pratirodhh.blogspot.com/2010/05/blog-post.html">बर्बरता के विरुद्ध: ईश्वर की सत्ता में यकीन रखने वाले मित्रों से एक अपील!!!</a>Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2356433621108141667.post-29926647354604200072010-05-15T03:56:00.000-07:002010-05-15T20:30:47.841-07:00दोहराव असहज है पर सहज है<a href="http://nastikonblog.blogspot.com/2010/04/blog-post_24.html"><span style="color: black;">‘नास्तिकता सहज है’</span></a> लिखते समय थोड़ा-सा अंदाज़ा था कि इसे पढ़कर कुछ मित्र असहज हो सकते हैं। शायद अब तक किसी ने ऐसा कहा नहीं। बहरहाल, मैंने नास्तिक के प्रचलित अर्थों को लिया। एक आदमी जिसका भगवान से कोई लेना-देना नहीं, जो अपने दैनिक कार्यों के लिए अपनी शक्ति, बुद्धि, विवेक आदि पर भरोसा करता है, उनका इस्तेमाल करता है। बच्चा अज्ञानी तो है पर इस अर्थ में नास्तिक भी है कि ईश्वर से अभी उसका कोई लेना-देना नहीं है। भविष्य में भी होने की संभावना कम है अगर ईश्वर उस पर थोपा न जाए और उसके पूरे जीवन के देशकाल में क़िस्सों से लेकर परिवार या समाज तक ईश्वर जैसी कोई कल्पना तक न हो। यकीनन इस बच्चे की नास्तिकता में तार्किकता नहीं होगी। बड़े होने पर यह तार्किकता आ भी सकती है और नहीं भी। फ़िलहाल मैं तो यह तय करने की स्थिति में नहीं ही हूं कि तार्किकता जन्मजात होती है या ज्ञान भी इसमें कोई मदद कर सकता है। नास्तिक बनने की प्रक्रिया में तर्क वहां लगभग अवश्यंभावी है जहां बचपन से आस्तिकता सीखा व्यक्ति बाद में नास्तिक हो जाता है। मैं ज्ञान की बात नहीं कर रहा। हर ज्ञानी तार्किक नहीं होता। लेकिन तार्किक अपनी सीमाओं के बीच यथासंभव ज्ञानी होता है। उसकी तर्कबुद्धि उसे ज्ञानार्जन के लिए कभी प्रेरित तो कभी मजबूर करती है। लेकिन तार्किक वह वृहत ज्ञानार्जन के बिना भी होता है, अगर यह उसका स्वभाव है। <br />
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एक वक्त था जब हमारा काम अंग्रेजी सीखे बिना भी चलता था। अपनी भाषाओं-बोलिओं में सारे काम संभव थे इसलिए उसकी ज़रुरत ही नहीं थी। अब माहौल दूसरा है। बहुत से लोग मानते हैं कि अब अंग्रेजी सीखे बिना गुज़ारा नहीं। इसी तरह एक जन्मजात नास्तिक को भी अपनी नास्तिकता के बचाव या समर्थन में तर्क और ज्ञान की ज़रुरत वहीं पड़ने वाली है जहां आस-पास के माहौल में ईश्वर अंग्रेजी की तरह स्थापित हो। अगर ऐसा नही ंहै तो उसे तर्क या ज्ञान की ज़रुरत नहीं है। हां, ऐसा नास्तिक ठोस भी हो सकता है और पिलपिला भी। यह फिर से उसकी तर्क-क्षमता पर निर्भर करेगा।<br />
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विज्ञान से उम्मीद रखने में कतई बुराई नहीं। उसे हमने बहुत कुछ करते देखा है। जबकि ईश्वर को हमने कभी कुछ करते नहीं देखा। काल्पनिक ईश्वर पर भी हम यहां वास्तविक विज्ञान की बदौलत बात कर पा रहे हैं। यहां तक कि ईश्वर की तुलना प्रेम से भी नहीं की जा सकती। भले कुछ लोग प्रेम को वासना कहें, पर उसकी उपस्थिति हर व्यक्ति कभी न कभी अपने मन और देह में महसूस करता है, बिना किसी के बताए-सिखाए भी। उसकी शारीरिक परिणति भी होती है। पर ईश्वर के मामले में ऐसा कुछ नहीं है।<br />
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ईश्वर की कल्पना मनुष्य ने किन परिस्थितियों में की थी, इस पर अब हज़ारों साल बाद तो अंदाज़े ही लगाए जा सकते हैं, कोई निर्णय कैसे दिया जा सकता है ? बहुत से लोग ईश्वर को मनुष्य की व्यापारिक और षाड्यंत्रिक बुद्धि का नतीजा भी मानते हैं। कुछ डर का परिणाम मानते हैं।<br />
यह बात भी उठी है कि अगर यह सृष्टि ईश्वर के बिना बनी है तो यह भी तो चमत्कार है। क्यों ? यह चमत्कार क्यों है ? और इसके समकक्ष ईश्वर को चमत्कार मानना नास्तिकों के संदर्भ में इसलिए फिज़ूल है कि नास्तिक ईश्वर के अस्तित्व में ही विश्वास नहीं करता। सृष्टि को चमत्कार मानें या कुछ और, वह हमें दिखाई तो पड़ती है, हम उसके साथ जीते तो हैं, महसूसते तो हैं, इस्तेमाल तो करते हैं। मगर ईश्वर !?<br />
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जो नास्तिक अपनी तार्किकता की वजह से नास्तिक हैं, उनमें मत-भिन्नता स्वाभाविक है। फिर, दुनिया के किन्हीं दो लोगों में एक जैसी योग्यता हो, अव्यवहारिक ही लगता है। इस ब्लाग के सदस्यों के साथ भी ऐसा ही हो तो क्या आश्चर्य ? अगर सभी एक जैसी योग्यता रखते तो एक ही सदस्य काफी था। सौ-पचास की क्या ज़रुरत !<br />
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शब्द और भाषा बदलकर बार-बार दोहराए जाने वाले प्रश्न असहज कर देते हैं। पर नास्तिकता और आस्तिकता के बीच बहस में फ़िलहाल इसी स्थिति को सहज मानना होगा।<br />
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एक बात साफ कर दूं, ऐसी बहस से मैं बचता हूं जिसमें ‘फलां तो मेरा फेवरेट है, आराध्य है, फलां का अपमान सारे ब्रहमांड का अपमान है’ जैसे भावुकता-प्रधान तर्क शुरु हो जाते हैं। या व्यक्ति से चिढ़ के चलते हम उसकी हर बात का विरोध शुरु कर देते हैं। ऐसे में सहमति की दस्तक तक नहीं सुनाई देती बल्कि व्यक्ति के प्रति हमारी चिढ़ हमारे विवेक पर इस तरह सवार हो जाती है कि कई बार हम थोड़ी-थोड़ी देर बाद अपनी ही बातों को काटना शुरु कर देते हैं।<br />
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शुक्र है कि यहां सभी समझदार लोग हैं और अभी तक ऐसी कोई स्थिति पैदा नहीं हुई। इसके लिए सभी का आभार।<br />
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-संजय ग्रोवरSanjay Groverhttp://www.blogger.com/profile/14146082223750059136noreply@blogger.com14tag:blogger.com,1999:blog-2356433621108141667.post-37281582750075866982010-05-02T02:45:00.000-07:002010-05-02T02:50:13.614-07:00नास्तिकता मेरी नज़र से<div><span class="Apple-style-span" style="font-family: Arial; font-size: small;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: 13px;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium;"></span></span></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-family: Arial; font-size: small;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: 13px;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: 'Times New Roman'; font-size: medium;"><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><div style="text-align: justify;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">व्यक्तिगत विचारों की अभिवयक्ति के लिए जब मौका हाथ आता है तो अपने बारे में बातें करना सच में अच्छा लगता है वैसे भी मैं अपनी ही फोटो को घंटों निहारने वालों में से हूँ! आत्म-मुद्धता का ऐसा शिकार की अपने तेज के सामने हर किसी का तेज मद्धिम लगता है मेरे नास्तिक विचारों को खाद यहीं से मिलती होगी शायद (मतलब साफ़ है मै अपना बखान करने वाला हूँ)</span></div></div><div></div><div><div style="text-align: justify;"> इसके पहले की पोस्ट में जो बहस हो रही थी उसे पढ़ते हुए अजीब लगरह था की अब आस्था को वैज्ञानिक और तार्किक कैसे कहा जा सकता है! आस्था अंधी होती है और होनी भी चाहिए उसे तर्क की आवश्यकता नहीं! और आस्था को तर्क के ज़रीय अभिवयक्त कैसे किया जा सकता है! आस्था की शुरुआत वहीँ होती है जहाँ अँधेरा हो और जैसे जैसे उजाला होगा चीजें साफ़ होती जायेंगी अब अँधेरे में काल्पनिक कृतियाँ बना कर कोई उसके ठोस होने का तर्क कैसे दे सकता है सही है की तर्क या विज्ञान अभी बहुत सारी चीजों को नहीं समझ पाया है! अब ज़मीन परिकर्मा करती है कहने वाला आज की दुनिया में होता तो क्या भला बेचारा मारा जाता!</div></div><div><div style="text-align: justify;">ऐसा कभी कभी हमें खुद भी अहसास होता है जैसे मुझे अक्सर परेशानी हुयी की आदमी का पूर्वज कौन है आदम या बन्दर! स्कूल में बन्दर तो घर पर आदम और ऐसी ही कई बातें अक्सर परेशान करती रहीं थी मगर किस्मत अच्छी थी की मुझे बचपन में ही बिगड़ने वाला <img goomoji="gtalk.338" src="https://mail.google.com/mail/e/gtalk.338" style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0.2ex; margin-right: 0.2ex; margin-top: 0px; vertical-align: middle;" /> बंद मिल गया था! मेरे मौलवी साहब बड़े मस्त आदमी थे और सच कहूँ तो वैसा इंसान आजतक नहीं टकराया! माँ बाप जिस बन्दे को मुझे धर्म पढ़ाने के लिए रखा था वास्तव में उसने मेरी ज़िन्दगी का रास्ता बदल दिया! अपने मौलवी साहब "मुगल-ए-आज़म" काहे जाते थे अपनी नफासत के लिए और बहुत बड़े आलोचक दुनिया में ऐसा कुछ भी नहीं जिसकी आलोचना वो नहीं कर सकते हों और पुरे तर्क के साथ एक जनवादी मैंने पूछा भी था की आप नक्सली तो नहीं (मैं बिहार के गया से हूँ और उस समय नक्सालियों ने मेरे रिश्ते के मामू की हत्या कर दी थी जब वो मुझे मेरे घर छोड़ कर वापस लौट रहे थे सो नक्सालियों को जानता था और उनसे नफरत भी करता था) वही अजीब अजीब बातें करते हैं! खैर मैंने पूछा की हमारे पूर्वज कौन हैं वो बोले आदम मैंने कहा बन्दर क्यों नहीं उन्होंने कहा की यार आदम के पूर्वज कौन हैं ये मैंने नहीं बताया! अब मै समझा उत तेरी मतलब हमारे पूर्वज आदम और आदम के पूर्वज बन्दर वाह ये सही है उन्होंने कहा की हो सकता है की यही हो मगर तुम पता करो ज्यादा पढ़ो! उनका अपना फंडा था विचार की परंपरा से मत बंधो जानो जितना ज्यादा हो सके! इंसान की ज़िन्दगी दुनिया को खुबसूरत बनाने के लिए है! जड़ता से अलग होना और निरंतरता ही सही रास्ता है जिसके ज़रिये आगे बढ़ा जाना चाहिए! हर संरचना एक ओर वर्त्तमान को मजबूत करती है तो दूसरी ओर एक वर्ग का शोषण करती है कोशिश करो कुछ एक ऐसे समाज के निर्माण की जो संरचना से ऊपर हो स्वछंदता जैसा कुछ</div></div><div><div style="text-align: justify;">उनसे बात करना दिमाग का दही करना लगता था अजीब प्राणी हर जवाब "हो भी सकता है और नहीं भी तुम पता करो खुद से" ही होता एक बार तो मैंने पूछ ही लिया की आपको पढ़ाना है नहीं सब मुझे ही करना है तो फिर रहने दीजिये मत आया कीजिये! </div></div><div><div style="text-align: justify;">वैसे तो उन्होंने ने मुझे कुरान पढाई हदीसों की व्याख्या और इस्लाम के अलग अलग सेक्ट की मान्यता और उनकी व्याख्याएं भी बताई साथ ही नंदन और अन्य पत्रिकाएं जिनमे सनातनी कथाएं आती को भी पढने को भी कहा नक्सालियों के पर्चे भी पढ़वाये और पता नहीं क्या क्या जो उनके पास था या जो मेरे घर पर बड़े भाई की किताबों का गोदाम था उनमे से छटाई करके पढ़ाते रहना मै भी नालायक खेलने में कम और किताबों में ज्यादा उलझ गया! उन्होंने आँख बंद करके मानने के बजाये चीजों को कसौटी पर कसने को प्रोत्साहित किया! धर्म से ज्यादा समाज के अध्ययन पर जोर दिया और परिणाम खतरनाक हो गया इतना की जबतक मैं पांचवी में पंहुचा तब तक ये समझ चूका था की धार्मिक व्यवस्था को हम राजनैतिक व्यवस्था जैसा ही कुछ है! <span class="Apple-style-span" style="color: red;">(अब धर्म एक राजनैतिक व्यवस्था कैसे है फिर कभी बताऊंगा मगर बौद्धिक बहस मैं नहीं करता)</span> जहाँ तक मुझे लगता है की वास्तव में नास्तिकता या स्वछंदता की उत्पत्ति के पीछे आत्म-मुग्द्धता,सामाजिक व्यवस्था की समझ या ज्यादा जानने या समझने की इच्छा से होती है! फार्मूले में बंध जाना आपको संकीर्ण कर देता है यही वजह है की चाँद पर जाने वाली मिसाईल (लांचर) पर नारियल फोड़ा जाता है या शैम्पेन की बोतल तोड़ी जाती है ताकि सब शुभ शुभ हो! और शायद यही वजह होती है जो वैज्ञानिकों को आस्तिक बनाती है! सही मायने में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का मतलब किसी विशेष शाखा का विशेषज्ञ होना नहीं होता वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अर्थ है समग्रता और समग्रता आपको ना केवल नास्तिक बनाती है आपितु पक्के तौर पर किसी भी शाखा से दूर ले जाती है (बाकी फिर कभी)</div></div></span></span></span></div>Unknownnoreply@blogger.com21tag:blogger.com,1999:blog-2356433621108141667.post-54529482654366865142010-04-24T06:33:00.000-07:002013-10-04T00:58:19.299-07:00नास्तिकता सहज है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="color: #073763;">|| <strong>नास्ति दतम् नास्ति हूतम् नास्ति परलोकम् ||</strong></span> <br />
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यह पंक्ति मैं पहली बार पढ़ रहा हूं। <br />
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जब मैं नास्तिक हुआ तो मैंने चार्वाक या माक्र्स का नाम तक नहीं सुना था। ऐसी कोई भारतीय या अन्य परंपरा है, इसकी मुझे हवा तक नहीं थी। कोई वामपंथी पार्टी भी है, यह भी मुझे बहुत बाद में जाकर पता चला। हां, बाद में सरिता-मुक्ता फ़िर हंस जैसी कुछ पत्रिकाओं से इस विचार को बल ज़रुर मिला। मेरा मानना है कि नास्तिकता सहज स्वाभाविक है, प्राकृतिक है। हर बच्चा जन्म से नास्तिक ही होता है। धर्म, ईश्वर और आस्तिकता से उसका परिचय इस दुनिया में आने के बाद कराया जाता है, इसी दुनिया के कुछ लोगों द्वारा। कल्पना कीजिए कि इस पृथ्वी पर कोई ऐसी जगह है जहां ईश्वर का नामो-निशान तक नहीं है। ईश्वर की कोई ख़बर तक उस देश में कहीं से नहीं आती। कोई मां-बाप, रिश्तेदार, पड़ोसी, समाज, बड़े होते बच्चों को ईश्वर की कैसी भी जानकारी देने में असमर्थ हैं, क्योंकि उन्हें ख़ुद ही नहीं पता। क़िस्सों और क़िताबों में ईश्वर का कोई ज़िक्र तक नहीं है। तब भी क्या वहां ईश्वर के अस्तित्व या जन्म की कोई संभावना हो सकती है !? <br />
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दूसरे, क्या नास्तिकता को किसी परंपरा की ज़रुरत है ? मेरी समझ में जहां तर्क, विवेक, विचार, मौलिकता और वैज्ञानिकता है वहां कभी न कभी नास्तिकता आ ही जाएगी। चाहे ऐसी कोई परंपरा हो न हो। नास्तिकता तो ख़ुद ही परंपरा के खि़लाफ़ एक विचार है। यह तो प्रगतिशीलता, तर्कशीलता वैज्ञानिेकता और मानवता का मिश्रण है। परंपरा के नष्ट होने से नास्तिकता नष्ट हो जाएगी, ऐसा मुझे नहीं लगता। हो सकता है कि परंपरा के रहते नास्तिकों की संख्या कुछ ज़्यादा होती। पर ऐसे नास्तिक परंपरा से आए आस्तिकों की तरह ही रुढ़ और हठधर्मी होते। जिस तरह हम देखते हैं कि कई बार राजनीतिक पार्टियों के संपर्क में आने से नास्तिक हो गए लोग घटना-विशेष की प्रतिक्रिया में ठीक कट्टरपंथिओं जैसा ही आचरण करने लगते हैं। उन्हें लगता है कि चूंकि हम यह आचरण घोषित कट्टरपंथियों के विरोध में कर रहे हैं इसलिए यह कट्टरपंथ नहीं, हमारी ‘वैचारिक प्रतिबद्धता’ है।<br />
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दोस्त लोग मानते हैं कि नास्तिकता किसी तरह घिसट-घिसट कर जीवित है। ऐसा शायद वे संख्या और सांसरिक/भौतिक सफ़लताओं के आधार पर तय कर लेते है। यही लोग ख़ुदको अघ्यात्मवादी भी मानते हैं। संख्या बल और भौतिक सफलता को मानक बनाएं तो इंसानियत भी एक अप्रासंगिक शय हो चुकी है और इसे भी दफ़ना देना चाहिए। और अगर आप सफ़लताओं की वजह से आस्तिकता के साथ हैं तो इसका एक मतलब यह भी है कि आप उस विचार और सही-ग़लत की वजह से कम और अपने फ़ायदे की वजह से उसके साथ ज़्यादा हैं। कलको आपको नास्तिकता में सांसरिक फ़ायदे दिखेंगे तो आप उसके गले में हाथ डाल देंगे। अगर नास्तिकता घिसटकर चल रही है और इस वजह से अप्रासंगिक है तो भैया सारी क्रांतियां और स्वतंत्रता आंदोलन भी कभी न कभी घिसटते ही हैं। घिसटने से इतना डरना या उसे हेय दृष्टि से क्यों देखना !? दलितों, अश्वेतों और महिलाओं के आंदोलन भी तो सैकड़ों सालों से घिसट ही रहे थे। आज किसी अंजाम पर पहुंचते भी तो दिख रहे हैं।<br />
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--संजय ग्रोवर</div>
Sanjay Groverhttp://www.blogger.com/profile/14146082223750059136noreply@blogger.com91tag:blogger.com,1999:blog-2356433621108141667.post-17749392310905622502010-04-15T05:06:00.000-07:002010-04-15T08:22:50.260-07:00इस ब्लॉग का उद्देश्य क्या है ?आपका इस ब्लॉग में स्वागत है. यह ब्लॉग भारतीय दर्शन की उस परम्परा को सामने रखने का विनम्र प्रयास है जिसे "लोकायत " कहते हैं. इस दार्शनिक परम्परा के अनुयायी ईश्वर की सत्ता पर विश्वाश नही करते थे. उनका मानना था की क्रमबद्ध व्यवस्था ही विश्व के होने का एकमात्र कारण है, एवं इसमें किसी अन्य बाहरी शक्ति का कोई हस्तक्षेप नही है. भारतीय दर्शन की इस परम्परा को बलपूर्वक नष्ट कर दिए जाने का आभास मिलता है, क्योंकि हमारे प्रतिद्वंदी ग्रथों में वर्णित भौतिकवादियों के भाष्य और ग्रन्थ अब उपलब्ध नही है, न ही इस दार्शनिक धारा का कोई नामलेवा बचा है. इस ब्लॉग के माध्यम से हमारा प्रयास मानवतावादी दृष्टि कोण को उभारने का रहेगा जो किसी संप्रदाय अथवा धर्म (religion) के हस्तक्षेप से मुक्त हो. अगर आप ईश्वर की सत्ता में अविश्वाश रखते हैं, मानव को स्वयं का नियंता समझते हैं इस ब्लॉग में आपका स्वागत है. सदस्य बनने के लिए आपका नास्तिक होना एकमात्र योग्यता है <b>fgh1256</b> एट जीमेल डोट काम पर मेल करें. यहाँ आप अपने प्रश्न जिज्ञासाएं एवं नास्तिकता तथा धर्म (religion)विषयक विचार पर तर्क-वितर्क कर सकते हैं, शर्त सिर्फ यह है की भाषा अपशब्द एवं व्यक्तिगत आक्षेपों से मुक्त होनी चाहिए.adminhttp://www.blogger.com/profile/10011215816123607995noreply@blogger.com24